अविकसित देश और उनके अर्ध स्थिर प्रणाली | Read this article in Hindi to learn about the underdeveloped countries and their quasi stable systems.
हार्वे लीबिंस्टीन ने अर्द्धविकसित देशो की मुख्य प्रवृत्तियों का अवलोकन करते हुए माना कि:
i. एक पिछडी हुई अर्थव्यवस्था ऐसी संतुलन प्रणाली के द्वारा अभिव्यक्त की जाती है जो प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में अर्द्धस्थायी अंश को समाहित करती है ।
ii. पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था का संतुलन जब बाधा का अनुभव करता है तो इसके पीछे प्रति व्यक्ति आय में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में वृद्धि या कमी करने वाली शक्तियाँ विद्यमान होती है ।
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iii. पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था की असाम्य दशा में आय में वृद्धि करने वाली शक्तियों के सापेक्ष आय में कमी करने वाली शक्तियाँ अधिक प्रभावशाली बन जाती है ।
उपर्युक्त मान्यताओं के संदर्भ में लीबिंस्टीन ने आवश्यक न्यूनतम प्रयास सिद्धांत का विश्लेषण निम्न तीन संभावनाओं के अधीन किया:
पहली संभावना:
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लीबिंस्टीन ने अर्द्धविकसित देशों को एक अर्द्धस्थायी प्रणाली कहा । इस प्रणाली को चित्र 1 की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है । यह माना गया है कि उत्पादन दो चरों-संसाधनों एवं जनसंख्या के आकार पर निर्भर करता है । उत्पादन घटते हुए प्रतिफल के अधीन हो रहा है । जनसंख्या वृद्धि एवं शुद्ध विनियोग की दर, प्रति व्यक्ति आय के फलन है ।
चित्र में प्रदर्शित X अंग के समानान्तर रेखा ZZ शून्य आय वृद्धि एवं शून्य विनियोग रेखा है । चित्र में सून्य विनियोग रेखा एवं शून्य जनवृद्धि को एक ही रेखा द्वारा दिखाया गया है, जबकि यह भिन्न-भिन्न भी हो सकती है । शून्य जनसंख्या वृद्धि रेखा ZZ प्रति व्यक्ति आय के स्तर OZ से संबंधित है । यदि प्रति व्यक्ति आय से अधिक हो तब जनसंख्या वृद्धि धनात्मक होगी । प्रति व्यक्ति आय OZ स्तर से कम होने पर जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक होगी ।
प्रति व्यक्ति आय स्तर OA पर शुद्ध विनियोग शून्य होगा, अर्थात प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर उत्पादित की जा रही पूँजी वस्तुएँ केवल पूँजीगत टूट-फूट अथवा क्षरण ठीक करने के लिए आवश्यक पूँजी के प्रतिस्थापन के लिए पर्याप्त होगी । ZZ रेखा को शून्य विनियोग रेखा भी कहा जाता है जिसके ऊपर विनियोग धनात्मक एवं इससे नीचे शुद्ध विनियोग ऋणात्मक होगा ।
वक्र R वैकल्पिक उत्पादन को प्रदर्शित करता है जिसे वैकल्पिक जनसंख्या आकार पर दिये हुए संसाधनों (R) के द्वारा प्राप्त किया जाता है । चित्र में जनसंख्या के प्रारंभिक आकार को OP के द्वारा दिखाया गया है जबकि दिए हुए संसाधनों का आधार R है । आरंभिक संतुलन की दशा E है ।
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माना प्रेरित विनियोग के परिणामस्वरूप संसाधनों में वृद्धि होती है, जिसे चित्र में R1 के द्वारा दिखाया गया है । जनसंख्या के OP स्तर पर नयी प्रति व्यक्ति आय OS या SP है । प्रति व्यक्ति आय में होने इस वृद्धि के परिणामस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होती है अर्थात् जनसंख्या OP से बढ़ कर OP1 हो जाती है ।
जनसंख्या में होने वाली इस वृद्धि के परिणामस्वरूप आय का स्तर OS से गिर कर ON हो जाता है ।
अब यदि जनसंख्या में और अधिक वृद्धि हो तथा यह R2 के स्तर पर आ जाए जो इससे जनसंख्या में और अधिक वृद्धि होगी एवं प्रति व्यक्ति आय में इसके परिणामस्वरूप कमी होगी जिसे चित्र में OM स्तर द्वारा दिखाया गया है । यह प्रकिया तब तक चलती रहेगी जब तक अर्थव्यवस्था प्रति व्यक्ति आय के पुराने स्तर OZ पर लौट नहीं आती ।
उपर्युक्त से स्पष्ट होता है कि प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करती है । जिससे अर्थव्यवस्था निम्न स्तरीय संतुलन के पुराने स्तर पर लौट आती है । अत: जनसंख्या आय में कमी करने वाले घटक के रूप में कार्य करती है । यहाँ यह माना गया है कि प्रेरित विनियोग के प्रभावों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि के दीर्घकालीन प्रभाव अधिक शक्तिशाली होते है ।
दूसरी संभावना:
दूसरी संभावना यह है कि प्रणाली लघु विस्थापनों के लिए अर्द्धस्थायी है, तब जनसंख्या वृद्धि द्वारा प्रति व्यक्ति आय में की जाने वाली कमी के प्रभाव प्रेरित विनियोग द्वारा प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होंगे लेकिन वृद्धि के उतेजकों के लिए आय में कमी करने वाले जनसंख्या के सीमांत प्रभाव उत्तरोत्तर कम महत्वपूर्ण बनते जाएँगे, जबकि प्रेरित विनियोगों के प्रभाव या तो हास को सूचित नहीं करेंगे या उनके हास की दर जनसंख्या वृद्धि की तुलना में कम महत्वपूर्ण होगी ।
तीसरी संभावना:
तीसरी संभावना में आरंभ में संतुलन को अस्थिर माना गया है । इससे अभिप्राय है कि कोई भी परिवर्तन भले ही कितना ही लघु हो, वह प्रति व्यक्ति आय में एक प्रारंभिक वृद्धि करता है तथा प्रेरित विनियोग की ऐसी शृंखला को हर अगली समयावधि में उत्पन्न करता है जिससे प्रति व्यक्ति आय में अधिक वृद्धि संभव होती है, जबकि जनसंख्या वृद्धि की दर इसे घटाने का प्रयाम करती है । लीबिंस्टीन ने इस संभावना को अर्द्धविकसित देशों के लिए अवास्तविक बतलाया है ।
चित्र 1 में शून्य विनियोग रेखा एवं शून्य जनसंख्या वृद्धि की रेखा को एक ही रेखा द्वारा प्रदर्शित किया गया था । अब ऐसी दशा पर विचार किया जाये जहां शून्य विनियोग रेखा Zi, शून्य जनसंख्या वृद्धि रेखा Zp से उच्च है । चित्र 2 में MMi रेखा न्यूनतम आय रेखा को प्रदर्शित करती है जिससे ऊपर अविरत् वृद्धि संभव होती है । इससे अभिप्राय है कि यदि प्रति व्यक्ति आय का स्तर OM से ऊपर बढ़े तो अविरल आय वृद्धि संभव होगी ।
चित्र में आरंभिक संतुलन बिन्दु Q पर है जहां जनसंख्या का आकार OP एवं प्रति व्यक्ति आय का स्तर OY है । यदि औद्योगिक विनियोग के द्वारा कोई आरंभिक विस्थापन हो तो प्रणाली क्षेत्र QZiZP के अर्न्तगत होगी अर्थात् यदि आरंभिक असंतुलन की दशा QZiZP के अधीन है, तब अपविनियोग एवं जनसंख्या वृद्धि की शक्तियां प्रति व्यक्ति आय को कम करती रहेगी । ऐसे में प्रति व्यक्ति आय Q = P रेखा से नीचे गिरने लगेगी ।
QZp से नीचे जनसंख्या भी गिरेगी एवं अपविनियोजन तब तक जारी रहेगा जब तक विश्राम का बिन्दु Q न आ जाए । ऐसा इस कारण होता है क्योंकि इस बिन्दु पर विनियोग, अनविनियोजन, जनसंख्या वृद्धि या जनसंख्या हास की कोई प्रवृत्ति विद्यमान नहीं होती ।
यदि आरम्भिक असाम्य का बिन्दु QZi Mi N क्षेत्र के अर्न्तगत है तब भी हर स्थिति में बिन्दु Q की ओर आने की प्रवृति विद्यमान होगी । ऐसा इस कारण होगा, क्योंकि ऐसा बिन्दु शुद्ध विनियोग को समाहित करता है जिसकी दर जनसंख्या वृद्धि की दर से अल्य होती है । इससे अभिप्राय है कि यदि आय QZi, रेखा से नीचे आने की प्रवृत्ति रखें तो उसे बिन्दु Q पर लौटना होगा ।
उपर्युक्त व्याख्या प्रदर्शित करती है कि यदि अर्द्धविकसित देश निर्धनता के दुश्चक्र को खंडित करना चाहें तो में अपनी प्रति व्यक्ति आय को MMi स्तर से ऊपर उठाना होगा । अक्ष, रेखा आय के न्यूनतम स्तर को बताती है जिसके ऊपर अविरत् वृद्धिसंम्भव होती है । लीबिंस्टीन के अनुसार- एक अर्द्धविकसित देश में प्रति व्यक्ति आय का एक प्रमाणिक स्तर एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का संबधित स्तर है जिससे ऊपर अर्थव्यवस्था संतुलन को निरूपित न कर असंतुलन के रूप में बदल जाती है ।
संक्षेप में, अर्द्धविकसित देशों में निर्थनता के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए आवश्यक न्यूनतम प्रयास की आवश्यकता होती है । अर्थव्यवस्था में अविरत वृद्धि हेतु प्रति व्यक्ति आय का एक न्यूनतम स्तर प्राप्त किया जाना महत्वपूर्ण है ।