बजट का निर्माण | Read this article in Hindi to learn about the process of formulating budget.
‘बजट निर्माण’ का अर्थ है- बजट अनुमानों का, अर्थात प्रत्येक वित्त वर्ष के संबंध में भारत सरकार के व्यय और प्राप्तियों (आय) के अनुमानों का विवरण तैयार करना । भारत में वित्त वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है ।
भारत सरकार के दो बजट हैं- रेलवे बजट और आम बजट । 1921 में आकवर्थ कमेटी की सिफारिश पर रेल बजट को बजट से अलग कर दिया गया था । रेल बजट में केवल रेल मंत्रालय के खर्चों और आमदनी के अनुमान होते हैं जबकि आम बजट में भारत सरकार के सभी मंत्रालयों (रेल के अलावा) के व्यय और प्राप्तियों के ।
एजेंसियाँ (Agencies):
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बजट निर्माण में निम्नलिखित एजेंसियाँ शामिल होती हैं:
वित्त मंत्रालय- बजट बनाने की पूरी जिम्मेदारी इसकी है और यह अपेक्षित नेतृत्व एवं दिशा प्रदान करता है । प्रशासनिक मंत्रालय- इनको प्रशासनिक आवश्यकताओं का विस्तृत ज्ञान होता है ।
योजना आयोग- यह बजट में योजना की प्राथमिकताओं को शामिल कराने का काम करता है । दूसरे शब्दों में, बजट में योजना की प्राथमिकताओं को सम्मिलित कराने के लिए वित्त मंत्रालय योजना आयोग से निकट संपर्क बनाए रखता है । नियंत्रक और महालेखा परीक्षक- यह बजट अनुमानों के निर्माण के लिए आवश्यक लेखा विधि कौशल उपलब्ध कराता है ।
चरण/प्रक्रियाएँ (Stages/Process):
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बजट निर्माण के विभिन्न चरण निम्न हैं:
आहरण एवं संवितरण (Drawing & Disbursing) अधिकारियों द्वारा अनुमानों की तैयारी:
वित्त वर्ष प्रारंभ होने से 5-6 महीने पहले अर्थात सितंबर-अक्टूबर में वित्त मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालय को परिपत्र और प्रपत्र भेजकर उससे आगामी वित्त वर्ष के खर्चों के अनुमान माँगता है । प्रशासनिक मंत्रालय इन प्रपत्रों को अपनी ओर से स्थानीय/क्षेत्रीय अधिकारियों अर्थात संवितरण अधिकारियों को भेज देते हैं ।
इन प्रपत्रों में अनुमान तथा अन्य अपेक्षित सूचनाएँ भरनी होती हैं और इनमें से प्रत्येक में निम्नलिखित स्तंभ होते हैं:
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i. पिछले वर्ष के वास्तविक आँकड़े,
ii. चालू वर्ष के लिए स्वीकृत बजट अनुमान,
iii. चालू वर्ष के संशोधित अनुमान,
iv. अगले वर्ष के प्रस्तावित अनुमान (किसी बढ़ोतरी या कमी के कारण सहित),
v. चालू वर्ष के लिए उपलब्ध वास्तविक आँकड़े (अनुमान तैयार करते समय),
vi. पिछले वर्ष की संगत समयावधि के वास्तविक आँकड़े ।
विभागों तथा मंत्रियों द्वारा संवीक्षा एवं समेकन:
संवितरण अधिकारियों से अनुमान प्राप्त करने के बाद विभागीय प्रमुख संपूर्ण विभाग के लिए इनकी संवीक्षा और समेकन करते तथा प्रशासनिक मंत्रालय को प्रस्तुत कर देते हैं । प्रशासनिक मंत्रालय अपनी साझा नीति के प्रकाश में इन अनुमानों की संवीक्षा और पूरे मंत्रालय के लिए इनका समेकन करता है तथा वित्त मंत्रालय (आर्थिक मामले के विभाग के बजट प्रभाग) को प्रस्तुत कर देता है ।
वित्त मंत्रालय द्वारा संवीक्षा:
प्रशासनिक मंत्रालय से प्राप्त अनुमानों की संवीक्षा व्यय की मितव्ययता और आय की उपलब्धता के दृष्टिकोण से वित्त मंत्रालय द्वारा की जाती है । ‘स्थायी परिव्ययों’ के मामले में यह संवीक्षा नाममात्र की, किंतु व्यय की नई मदों के मामले में अधिक कड़ी होती है ।
विवादों का निपटारा:
बजट अनुमानों में किसी योजना को शामिल करने के प्रश्न पर यदि प्रशासनिक मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के बीच मतभेद होता है तो प्रशासनिक मंत्रालय ऐसी योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने रख सकता है, जिसका निर्णय इस मामले में अंतिम होता है ।
वित्त मंत्रालय द्वारा समेकन:
इसके पश्चात वित्त मंत्रालय व्यय पक्ष के बजट अनुमानों को समेकित करता है । फिर अनुमानित व्ययों के आधार पर वह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड और केंद्रीय अप्रत्यक्ष बोर्ड के परामर्श से राजस्व अनुमान तैयार करता है । इस संबंध में वित्त मंत्रालय की सहायता आयकर विभाग तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क विभाग करते हैं ।
मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदन:
वित्त मंत्रालय समेकित बजट को मंत्रिमंडल के सामने रखता है । मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बाद ऐसे बजट को संसद में रखा जा सकता है । यहाँ यह बताना जरूरी है कि बजट गोपनीय दस्तावेज है और संसद में प्रस्तुत होने से पहले इसे बाहर नहीं आना चाहिए ।
प्रभारित व्यय (Changed Expenditure):
वित्त मंत्रालय जिन बजट अनुमानों को संसद में प्रस्तुत करने के लिए अंतिम रूप देता है उनमें दो प्रकार के व्यय होते हैं- भारत के समेकित कोष से ‘प्रभारित’ व्यय और ऐसे व्यय जो इस संचित निधि से ‘किए जाते’ हैं । संसद प्रभारित व्यय पर मतदान नहीं कर सकती अर्थात संसद इस पर केवल चर्चा कर सकती है जबकि दूसरे प्रकार के व्यय पर संसद में मतदान होना जरूरी है ।
प्रभारित व्यय की सूची निम्न हैं:
(i) राष्ट्रपति की परिलब्धियाँ और भत्ते तथा उसके कार्यालय संबंधी अन्य खर्चे ।
(ii) राज्य विधान सभाओं के सभापतियों तथा उपसभापतियों एवं लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते ।
(iii) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते और पेंशन ।
(iv) उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों की पेंशनें जिनके न्यायक्षेत्र में भारत का कोई भी क्षेत्र शामिल है ।
(v) नियंता एवं महालेखा परीक्षक के वेतन, भत्ते और पेंशन ।
(vi) संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशनें ।
(vii) सर्वोच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यालय और संघ लोक सेवा आयोग कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन, भत्तों एवं पेंशनों सहित उनके प्रशासनिक खर्चे ।
(viii) वे ऋण प्रभार जिनकी देय भारत सरकार पर है । इनमें ब्याज और कर्ज उठाने संबंधी निक्षेप धन प्रभार, ऋण मोचन प्रभार तथा इन जैसे अन्य खर्च और ऋण सेवा तथा मोचन (Redemption) खर्चे शामिल हैं ।
(ix) किसी न्यायालय या मध्यस्थता ट्रिब्यूनल के किसी निर्णय, आदेश अथवा अधिनियम की पूर्ति के लिए आवश्यक कोई धनराशि ।
(x) संसद द्वारा घोषित इस प्रकार से प्रभारित कोई अन्य व्यय ।