एकल स्वामित्व:  अर्थ, लाभ और हानियां! Read this article in Hindi to learn about:- 1. एकल स्वामित्व का अर्थ (Meaning of Sole Proprietorship) 2. एकल स्वामित्व के लाभ (Advantages of Sole Proprietorship) 3. हानियां (Disadvantages).

एकल स्वामित्व का अर्थ (Meaning of Sole Proprietorship):

एकाकी व्यापार, व्यापार का वह स्वरूप है जिसे एक व्यक्ति ही प्रारम्भ करता है चलाता है तथा जिसके लाभ और हानि उसके ही द्वारा सहन किये जाते है । चार्ल्स इन, गर्स्टनबर्ग के अनुसार ‘एकाकी व्यापार वह व्यापार है जो एक व्यक्ति द्वारा ही प्रारम्भ किया जाता है तथा वही व्यक्ति उसका संचालन कर उसके लाभ-हानि का पूर्ण उत्तरदायी होता है ।’

इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि एकाकी व्यापार में पूंजी उसी व्यक्ति को लगानी पड़ती है जो व्यापार प्रारम्भ करता है । उसके संगठन तथा प्रबन्ध का पूर्ण दायित्व उसी पर होता है तथा वह उसे अपनी रुचि के अनुसार कर सकता है । उन सेवाओं के प्रतिफल में व्यापार से जो कुछ लाभ होता है उसका अधिकारी भी वह स्वयं ही है ।

इसके विपरीत उसको व्यापारिक त्रुटियों के कारण यदि व्यापार में किसी प्रकार का घाटा हो जाये तो समस्त घाटे के लिए वह पूर्ण रूप से उत्तरदायी रहने को बाध्य है । एकाकी व्यापार का स्वरूप तथा आकार व्यापारी की स्वयं की स्थिति पर निर्भर करता है ।

एकल स्वामित्व के लाभ (Advantages of Sole Proprietorship):

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1. यह बगैर कानूनी अडचनों के प्रारम्भ किया जा सकता है ।

2. इसमें एक ही व्यक्ति स्वामी होता है, अतः वह व्यापार की उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है ।

3. इसमें व्यापारी को किसी कार्य को करने की अनुमति नहीं लेनी पडती, इसलिए वह व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाकर लाभप्रद व्यापार करने में सफल हो जाता है ।

4. इसमें व्यापार का संचालन एक ही व्यक्ति के हाथ में होने से व्यवसाय में गोपनीयता बनाये रखना सम्भव है ।

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5. इसमें व्यापारी ग्राहक के सीधे सम्पर्क में आता है, अतः वह ग्राहक की रुचियों से परिचित रहता है ।

6. इसमें कर्मचारियों के साथ सीधा संबंध सम्भव है, अतः उनसे मधुर संबंध बनाये रखने में सुविधा होती है ।

7. होने वाला सभी लाभ मालिक को ही मिलता है इसलिए वह अपनी योग्यता व रुचि से कार्य करता है ।

8. ऊपरी खचें कम होने से माल सस्ता बेचा जा सकता है ।

एकल स्वामित्व की हानियां (Disadvantages of Sole Proprietorship):

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1. पूंजी सीमित होने के कारण आधुनिक फैक्टरी लगाना संभव नहीं है ।

2. अपरिमित दायित्व होता है ।

3. मालिक सभी तकनीकों में दक्ष नहीं हो सकता है ।

4. व्यवसाय का विस्तार सीमित होता है ।

5. मालिक की अक्षमता के कारण व्यवसाय में हानि होने पर उसे बन्द करना पड़ सकता है ।

6. मालिक की मृत्यु हो जाने पर अथवा कार्य करने में असमर्थ होने पर आवश्यक नहीं कि उसके उत्तराधिकारी भी उतनी ही योग्यता से व्यापार चला सके, इसलिए व्यापार प्रायः बिगड जाता है अथवा उसका अन्त हो जाता है ।