जैव विविधता: विशेषताएं और लाभ | Biodiversity: Features and Benefits in Hindi!
Read this article in Hindi to learn about:- 1. जैव विविधता की विशेषतायें (Features of Biodiversity) 2. जीव-प्रजातियों का वर्गीकरण (Categorization of Species of Biodiversity) 3. लाभ (Benefits) 4. जैविक विविधता का ह्रास तथा जीव-प्रजातियों का लुप्त होना (Biodiversity Loss and Extinction of Species).
जैव विविधता की विशेषतायें (Features of Biodiversity):
जैव विविधता की पाँच मुख्य विशेषतायें निम्न हैं:
1. विभिन्न प्रकार के परिस्थितिकीय तंत्रों का वर्णन, जिसमें विभिन्न प्रकार के जंतु एवं वृक्षों-पौधों की प्रजातियाँ शामिल हैं । इसके अतिरिक्त इनमें इन जीवधारियों के चारों ओर पाया जाने वाला पर्यावरण भी शामिल है । इन सबका प्रभाव जीवधारियों को प्रभावित करता है तथा उनके अस्तित्व को बनाये रखता है ।
ADVERTISEMENTS:
2. किसी क्षेत्र में पायी जाने वाली कुल प्रजातियाँ ।
3. किसी क्षेत्र में पायी जाने वाली विशेष प्रकार के जीवधारी ।
4. किसी प्रजाति विशेष की आनुवांशिक विविधता ।
5. किसी प्रजाति विशेष की उप-जनसंख्या, जो कि आनुवांशिक विविधता से प्रभावित होती है ।
ADVERTISEMENTS:
जैविक विविधता शब्दावली का उपयोग सबसे पहले वर्ष 1968 में आर. एफ. डेस्मैन (R. F. Dasman) ने वर्ष 1968 में किया था । जैविक विविधता का अर्थ है, पारिस्थितिकी तन्त्र (Ecosystem) के जैविक तथा अजैविक घटकों और उनके पारस्परिक सम्बंध को कहते हैं ।
जैविक विविधता से जीव-प्रजातियों (Species) आनुवंशिक (Genetic) एवं परितंत्र की विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त होता है । मानव समाज के लिये परितंत्र (Ecosystem) से बहुत-से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं । इसलिये जीव-जगत एवं वनस्पति जगत को टिकाऊ बनाये रखने के लिये पारिस्थितिकी तन्त्र को स्वास्थ्य एवं टिकाऊ बनाये रखने की आवश्यकता होती है ।
परितंत्र से मानव समाज को मिलने वाले लाभ निम्न प्रकार से हैं:
1. मानव समाज को भोजन पारिस्थितिकी तन्त्र से प्राप्त होता है ।
ADVERTISEMENTS:
2. परितंत्र से उद्योगों के लिये कच्चा माल प्राप्त होता है ।
3. परितंत्र से औषधियों के लिये जड़ी-बूटी प्राप्त होती है ।
4. जैविक विविधता से परितंत्र में संतुलन स्थापित होता है ।
5. जैविक पारिस्थितिकी अध्ययन से विकासवादी प्रक्रिया (Evolutionary Process) को समझने में सहायता मिलती है ।
6. जैविक विविधता एक सौन्दर्यपरक (Aesthetic) महत्वपूर्ण संसाधन है ।
7. जैविक विविधता से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) में वृद्धि होती है ।
8. जैविक विविधता परागण (Pollination) प्रक्रिया को बढ़ावा देती है ।
9. जैविक विविधता का प्रस्वेदन (Transpiration) रासायनिक चक्र (Chemical Cycling) तथा पोषक चक्र (Nutrient Cycle) पर अनूकूल प्रभाव पड़ता है ।
10. जैविक विविधता का जल-चक्र (Hydrological Cycle) पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।
11. जैविक विविधता से कीटाणु नियंत्रण में सहायता मिलती है ।
12. जैविक विविधता से पयर्टन (Tourism) एवं पारिस्थितिकी-पयर्टन (Eco-Tourism) को बढ़ावा मिलता है ।
13. सरकार की आय में वृद्धि होती है, विदेशी मुद्रा में वृद्धि होती है ।
14. देश के चहुंमुखी विकास में सहायता होती है ।
15. जलवायु पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।
16. देश आत्म-निर्भर होता है, सम्पन्नता बढ़ती है और राष्ट्र सम्मान में वृद्धि होती है । पारिस्थितिकी विज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार विश्व में जीव-प्रजातियों (Species) की कुल संख्या एक करोड़ से दस करोड़ तक हो सकती है । जीव-प्रजातियों की संख्या के आधार पर विश्व में भारत का 12वाँ स्थान है ।
जैव-विविधता के आधार पर भारत के 70 प्रतिशत क्षेत्रफल का सर्वेक्षण किया जा चुका है । सर्वेक्षण किये गये 70 प्रतिशत क्षेत्रफल 45,600 प्रकार के पेड़-पौधे तथा 91000 प्रकार के पशु-पक्षी तथा जीव-जंतु हैं । मई 1994 में भारत अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता अभिसमय (International Convention of Biological Diversity) का सदस्य बन चुका है ।
जैव-विविधता अभिसमय के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:
1. जैव-विविधता संरक्षण (Conservation of Biological Diversity)।
2. जैविक विविधता का उपयुक्त एवं वैज्ञानिक तथा टिकाऊ ढंग से विकास करना ।
3. जैविक विविधता से पूरे समाज का लाभ पहुँचाना ।
4. सामाजिक, आर्थिक एवं मानव विकास इस प्रकार करना कि पारिस्थितिकी तन्त्र को कम-से-कम हानि पहुँचे और वे टिकाऊ बने रहें ।
5. जैविक विविधता का उपयोग शिक्षा, शोधकार्य, ट्रेनिंग एवं ज्ञापन के लिये किया जाये ।
6. जैविक के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर एवं विविधता को संरक्षण प्रदान किया जाये ।
जीव-प्रजातियों का वर्गीकरण (Categorization of Species of Biodiversity):
अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संघ (International Union of Nature and Natural Resources (IUCN)) ने जैव-प्रजातियों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
1. सामान्य जीव-प्रजातियाँ (Normal Species):
ऐसी जीव-प्रजातियाँ जिनकी जनसंख्या सामान्य होती है, जैसे- गायें, भैंस, भेड़-बकरी, घोड़े, हिरण, चूहे, छछून्दर, कॉक्रोच आदि तथा आम, पीपल, बरगद, बबूल, साल, सागौन, शीशम, देवदार, चीड़ इत्यादि ।
2. दुलर्भ, असाधारण जीव-प्रजातियाँ (Rare Species):
ऐसी जीव-प्रजातियाँ (Species) जिनकी जनसंख्या कम हो तथा विशेष क्षेत्र एक सीमित हों, दुलर्भ जीव प्रजातियाँ कहलाती हैं । समय बीतने पर इनकी संख्या कम हो सकती है तथा असुरक्षित वर्ग (Vulnerable Categories) में गिनी जा सकती हैं । यदि इनके संरक्षण के लिये विशेष प्रबन्धन किये जायें तो इनकी जनसंख्या लुप्त होने की कगार पर पहुँच सकती है ।
3. असुरक्षित जीव प्रजातियाँ (Vulnerable Species):
जिन जीव प्रजातियों की जनसंख्या काफी घट गई हो, असुरक्षित वर्ग (Vulnerable Species) में सम्मिलित की जाती हैं । इनको विशेष संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता होती है ।
एशियाई हाथी, बर्फ में रहने वाला तेन्दुआ, काला गैण्डा (अफ्रीका), नीली ह्वेल (Blue Whale), जंगली गधा, नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr), ब्लैक बाजा (केराला) इसके उदाहरण हैं ।
4. संकटापन्न जीव प्रजातियाँ (Endangered Species):
जिन जीव-प्रजातियाँ की संख्या इतनी घट गई कि उनके लुप्त होने की सम्भावना बढ़ जाए संकटापन्न जीव-प्रजातियाँ (Endangered Species) कहलाती हैं, जैसे- बाघ (Tiger), अफ्रीका का काला गैण्डा, आस्ट्रेलिया का भूरा कंगारू, दक्षिण अमेरिका का काला शेर आदि ।
5. लुप्त जीव-प्रजातियां (Extend Species):
जिन जीव-प्रजातियों का पृथ्वी पर कोई भी जीवित प्राणी न पाया जाता हो, उसको लुप्त वर्ग में सम्मिलित किया जाता है । डायनोसोर (Dinasour) तथा मैमथ (Mammoth) लुप्त प्राणियों के उदाहरण हैं ।
जैव-विविधता के लाभ (Benefits of Biodiversity):
जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया जा चुका है, जैविक-विविधता से मानव समाज को बहुत-से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ है, जिनको संक्षिप्त में नीचे दिया गया है:
1. आर्थिक लाभ (Economic Benefits):
(i) भोजन का स्रोत,
(ii) कपड़ा,
(iii) मकान,
(iv) खेल के सामान के लिये लकड़ी,
(v) औद्योगों के लिये कच्चा-समान,
(vi) पयर्टन,
(vii) जनेटिक (Genetic) का खजाना (Stare House) इत्यादि ।
2. अप्रत्यक्ष लाभ (Indirect Benefits):
(i) जल संरक्षण,
(ii) वायु को शुद्ध करना,
(iii) मृदा निर्माण एवं मृदा संरक्षण,
(iv) जलवायु तथा मौसम पर अनुकूल प्रभाव,
(v) जलचक्र में सहायक,
(vi) सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्वता,
(vii) पर्यावरण को टिकाऊ बनाना तथा
(viii) सौन्दर्यपरक (Aesthetic) महत्व ।
जैविक विविधता का ह्रास तथा जीव-प्रजातियों का लुप्त होना (Biodiversity Loss and Extinction of Species):
जैविक विविधता एक गतिशील (Dynamic) अवधारणा है । यह समय और स्थान के साथ-साथ बदलती रहती है । यदि कोई जीव प्रजाति (Species) पृथ्वी से पूर्ण रूप से लुप्त हो जाये और कहीं उसका कोई प्राणी न मिले तो उसको उस जीव जाती का लुप्त होना (Extinction) होना कहते हैं ।
जैविक विविधता ह्रास के कारण निम्नलिखित हैं:
1. प्राकृतिक कारण (Natural Causes):
(i) ज्वालामुखी उद्गार,
(ii) महाद्वीपीय विस्थापन,
(iii) जलवायु परिवर्तन,
(iv) बाढ़ एवं सूखा,
(v) महामारी ।
2. मानवीय कारण (Anthropogenic Causes):
(i) प्राकृतिक आवास को समाप्त होना, सडकों, रेलों, कारखानों, हवाई-अड्डों, बन्दरगाहों, बाँध, खनन, बहुउद्देशीय योजनाओं के निर्माण के कारण जीव प्रजातियों (Species) के प्राकृतिक आवास को नष्ट होना है ।
प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से बहुत से जंगली जानवर ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों की ओर घुस कर मानव समाज को हानि पहुंचा रहे हैं बहुत से लोगों को मार देते हैं । वर्ष 2014 की एक बाघनी (Tigress) जिला बिजनौर (उत्तर प्रदेश) के गांव में जिमनेशनल राष्ट्रीय उद्यान से भाग कर आई और बहुत-से लोगों को अपना शिकार बना लिया था ।
(ii) संसाधनों का अधिक दुरुपयोग (Over Exploitation):
जंगली जानवरों का आखेट और बहुत-से जानवरों को मारने से पारिस्थितिकी में परिवर्तन हो रहा है । चीते, गैण्डे, हाथी इत्यादि के गैर-कानूनी तौर पर शिकार करने से उनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है । सागरों और महासागरों में छोटी-बड़ी मछलियों का शिकार करने से उनके संख्या में कमी आ रही है ।
(iii) विदेशी जीव-प्रजातियों का विसरित करना (Diffusion of Exotic Species):
विदेशी मूल के पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के प्रसारण से भी जैविक विविधता का ह्रास हो रहा है । उदाहरण के लिये लान्टाना (Lantana) को खेती एवं उद्यानों की बाढ़ (Hedges) आदि के लिये लाया गया था । परन्तु अब इस से देशी वनस्पति को भारी हानि हो रही है ।
ऐसे ही ‘गाजर घास’ भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रही है । एक समय ब्रिटिश सरकार ने आस्ट्रेलिया में इंग्लैंड से खरगोशों को फैलाया ताकि वहां की खरपतवार घास को नष्ट किया जा सके, परन्तु कुछ ही समय पश्चात खरगोशों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई जिससे वहां की पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचा ।
(iv) झूमिंग (Shifting Cultivation):
उष्णार्द्र जलवायु के पवर्तीय ढ़लानों पर बहुत-से आदिवासी जंगलों को काटकर तथा जलाकर खेती करते हैं जिससे जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवासों को भारी हानि पहुंचती है और वन प्राणी या तो पलायन कर जाते हैं या मर जाते हैं ।
भारत के उत्तर-पूर्वी पहाड़ी राज्यों तथा पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, छोटे नागपुर के पठार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि । झूमिंग से जैविक विविधता को भारी नुकसान पहुँच रहा है ।
(v) पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution):
मृदा, जल, वायु तथा शोर (Noise) प्रदूषण का भी पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । बढ़ती हुई जनसंख्या एवं उपभोक्तावाद के कारण पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जाती है, जिसका जैविक विविधता का ह्रास होता है ।
(vi) भूमण्डलीय तापन (Global Warming):
पिछले लगभग 100 वर्षों में और विशेष रूप से दूसरे महायुद्ध के पश्चात भूमण्डलीय तापन (Global Warming) की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है । भूमण्डलीय तापन का पारिस्थितिकी तन्त्र एवं जैविक विविधता पर खराब असर पड़ रहा है । सागरों और महासागरों में तापमान वृद्धि के कारण प्रवाल भित्तियों (Coral Bleaching) में बीमारी महामारी का रूप धारण कर रही है ।
(vii) महामारी तथा बीमारी (Disease and Epidemics):
पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों में बीमारी फैलने से भी जैविक विविधता का ह्रास होता है । कश्मीर घाटी में बहुत-से चिनार के वृक्ष तथा छोटा नागपुर के पठार पर साल एवं सागौन के वृक्षों में बीमारी फैलने से बहुत-से वन नष्ट हो गये एवं जैविक विविधता में परिवर्तन हो रहा है ।
(viii) पर्यटन (Tourism):
पर्यटन उद्योग से भी पारिस्थितिकी को भारी हानि पहुँच रही है । धनी लोग जब पर्यटकों के रूप में पर्वतों इत्यादि में जाते हैं तो लापरवाही के साथ परितन्त्रों को हानि पहुँचाते हैं जंगली जानवरों का शिकार करने से भी जैविक विविधता का ह्रास होता है ।
(ix) वन प्राणियों का व्यापार (Trade in Wild Species):
बहुत-से व्यापारी पालतू जानवरों, कुत्तों, बिल्लियों, चिड़ियों, मछलियों इत्यादि को बेचने से भी जैविक-विविधता में कमी आती है । जैविक विविधता में संतुलन स्थापित करने के लिये उपरोक्त समस्याओं का समाधान करना अनिवार्य हो जाता है ।