Read this article in Hindi to learn about the viewpoints of various countries on environmental issues.

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण की समस्या एक वैश्विक चुनौती है । इसके समाधान के लिए विश्व के सभी देशों के मध्य सहयोग और समन्वय का होना आवश्यक है । लेकिन इस सम्बन्ध में विकसित तथा विकासशील देशों के मध्य पर्याप्त मतभेद पाये जाते हैं ।

इसका प्रमुख कारण यह है कि इन दोनों देशों के विकास सम्बन्धी हित व प्राथमिकतायें अलग-अलग हैं । इस मतभेद के कारण पर्यावरण समस्या विशेषकर जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों में बाधा आ रही है । भारत विकासशील देशों के दृष्टिकोण का पक्षधर है ।

संक्षेप में विकसित और विकासशील देशों के पर्यावरण सम्बन्धी दृष्टिकोण में निम्न मतभेद पाये जाते हैं:

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1. पर्यावरण प्रदूषण की ऐतिहासिक जिम्मेदारी (Historical Responsibility of Environmental Pollution):

विकासशील देश यह मानते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन की जो वर्तमान चुनौती विश्व के सामने उपस्थित है उसके लिए मुख्य रूप से विकसित देश ही उत्तरदायी हैं । क्योंकि उन्होंने अपने विकास की प्रक्रिया में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है । अत: पर्यावरण की वर्तमान समस्या के समाधान के लिए उनकी अधिक जिम्मेदारी है । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में इस दृष्टिकरण को स्वीकार किया गया है ।

फिर भी विकसित देशों का मानना है कि विकासशील देशों को भी इस सम्बन्ध में समान जिम्मेदारी का वहन करना चाहिए । उनका मानना है कि भारत और चीन जैसे बड़े विकासशील भी पर्यावरण के क्षरण के लिए उत्तरदायी हैं । विकासशील देश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पर्यावरण प्रदूषण में उनके यहाँ प्रति व्यक्ति योगदान विकसित देशों से बहुत कम है ।

उदाहरण के लिए भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन प्रतिवर्ष 1.1 टन है, जबकि अमेरिका में यह प्रतिवर्ष 20 टन है । अत: प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की दृष्टि से अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों की जिम्मेदारी पर्यावरण प्रदूषण में अधिक है ।

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2. वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था (Financial Resources System):

ग्रीन अर्थव्यवस्था को लाने तथा जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती से निपटने के लिए नई तकनीक व वैकल्पिक उपायों की आवश्यकता है । इसके लिए पर्याप्त संसाधन आवश्यक हैं । विकासशील देश चाहते हैं कि इन संसाधनों तथा तकनीकी का योगदान विकसित देशों द्वारा किया जाना चाहिए ।

जबकि विकसित देश यह अपेक्षा रखते हैं कि विकासशील देश भी आर्थिक व वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था में योगदान दें । इस विवाद के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए 100 बिलियन डॉलर का ग्रीन फन्ड प्रस्तावित है वह खटाई में पड़ गया है । क्योंकि विकसित देश इस फन्ड में अपना योगदान नहीं बढ़ाना चाहते ।

2008 से चल वैश्विक वित्तीय संकट के चलते उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है । दूसरी तरफ विकसित देश विकासशील देशों को प्रतिवर्ष जो विकास सहायता उपलब्ध कराते हैं, उस सहायता को भी वे ग्रीन फन्ड में योगदान के लिए समायोजित करना चाहते हैं । इसके अतिरिक्त उनके अनुसार ग्रीन फन्ड में निजी क्षेत्र से धन उपलब्ध कराया जाये । विकासशील देश इन दोनों ही सुझावों के विरोधी हैं ।

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3. समायोजन तथा निराकरण (Adaption and Mitigation):

समायोजन का तात्पर्य है कि पर्यावरण प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों का सामना करने के लिए क्षमता का विकास किया जाये जबकि निराकरण का तात्पर्य है कि इन समस्याओं को जन्म देने वाले कारणों को समाप्त किया जाये ।

उल्लेखनीय है कि विकसित देश निराकरण के उपायों पर विशेष बल दे रहे हैं तथा वे चाहते है कि विकासशील देश निराकरण के उपायों को प्राथमिकता प्रदान करें । जबकि विकासशील देश यह मानते हैं कि पर्यावरण की समस्या से सबसे अधिक वही प्रभावित हैं, अत: सबसे पहले उन्हें इन प्रभावों को कम करने के लिए क्षमता विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है । अत: विकासशील देश समायोजन की रणनीति अपनाने पर बल दे रहे हैं ।

4. सामान्य लेकिन क्षमता के अनुसार विभेदीकृत जिम्मेदारी (Differential Responsibility as General but Capacity):

विकसित देशों का मानना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी देशों को समान रूप से योगदान देना चाहिए । जबकि विकासशील देशों का मानना है कि उनकी क्षमता कम है, अत: पर्यावरण के संरक्षण में उनका योगदान उनकी क्षमता के अनुपात में होना चाहिए ।

5. विकास की आवश्यकता (Need for Development):

विकासशील देशों का मानना है कि वे विकास की प्रक्रिया में विकसित देशों से बहुत पीछे हैं । अत: उनकी विकास प्रक्रिया में पर्यावरण प्रतिबन्धों के कारण शिथिलता आयेगी । अत: विकासशील देश पर्यावरण संरक्षण के नाम पर अपनी विकास प्रक्रिया में कोई गतिरोध नहीं उत्पन्न करना चाहते । उन्हें विकास की आवश्यकता है । जबकि विकसित देश विकास की एक सीमा को प्राप्त कर चुके हैं । इस सम्बन्ध में विकसित देश कोई अन्तर नहीं करना चाहते हैं ।

विकसित और विकासशील देशों के मध्य व्याप्त उक्त मतभेदों के कारण जलवायु परिवर्तन की वार्ताएं प्रगति नहीं कर पाती क्योंकि उनमें आम सहमति का अभाव पाया जाता है । विकासशील देशों में से चार बड़े देशों-ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत तथा चीन ने विकासशील देशों का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक समूह का गठन किया है जिसे बेसिक समूह (BASIC) के नाम से जाना जाता है । कुल मिलाकर यदि पर्यावरण की चुनौती का विश्व स्तर पर समाधान खोजा जाना है तो विकसित तथा विकासशील देशों के मध्य आम सहमति व सहयोग की प्रक्रिया को मजबूत बनाना होगा ।

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