इच्छा मृत्यु का अधिकार पर निबंध! Here is  an essay on ‘Desire of Death’ in Hindi language.

मानव इतिहास में इच्छा मृत्यु की अवधारणा प्राचीनकाल से चली आ रही है । भारतीय शास्त्र-पुराण भी इससे अछूते नहीं हैं । भगवान श्रीराम से भेंट होने और कुटिया से उनके प्रस्थान के पश्चात् शबरी का स्वयं को योगामि में भस्म कर लेना इच्छा मृत्यु का ही एक रूप है ।

इच्छा मृत्यु के वरदान स्वरूप ही महाभारत युद्ध के दौरान बाण-शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपने प्राण त्यागे, किन्तु वर्तमान समय में अत्यन्त गम्भीर बीमारियों अथवा असाध्य कष्टों से मुक्ति पाने हेतु इच्छा मृत्यु को बैध ठहराया जाए या नहीं, यह एक गम्भीर बहस का मुद्दा बना हुआ है ।

इच्छा मृत्यु यूनानी शब्द ‘यूथेनेसिया’ का हिन्दी पर्याय है, जिसका अर्थ है-सुखद मृत्यु । यूथेनेसिया को मर्सी किलिंग अर्थात् दया मृत्यु भी कहा जाता है । व्यावहारिक रूप में यूथेनेसिया का मतलब हैं-अपने जीबन को खत्म करने का अधिकार ।

ADVERTISEMENTS:

इच्छा मृत्यु के दो रूप हैं:

(i) निष्क्रिय इच्छा मृत्यु

(ii) सक्रिय इच्छा मृत्यु

निष्क्रिय इच्छा मृत्यु में असाध्य कष्ट झेल रहे व्यक्ति का इलाज रोक दिया जाता है अथवा जीवन रक्षक प्रणालियाँ यथा-वेंटिलेटर आदि कीं सुविधाएं हटा दी जाती है, जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जबकि सक्रिय इच्छा मृत्यु में रोगी की पूर्ण सहमति के पश्चात् चिकित्सक दवा देकर उसकी जीवन लीला समाप्त करते है । उल्लेखनीय है कि पूरे विश्व में कहीं ऐसा कानून नहीं है कि रोगी द्वारा मानसिक रूप से मृत्यु की स्वीकृति दिए बिना दबा का प्रयोग कर उसके जीवन पर हमेशा के लिए विराम लगाया जा सके ।

ADVERTISEMENTS:

विश्व में सर्वप्रथम वर्ष 1996 में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी राज्य में इच्छा मृत्यु का अधिकार प्रदान किया गया, किन्तु अगले ही वर्ष इस पर पुन रोक लगा दी गई । वर्ष 2014 में बेल्जियम ने अपने यहाँ असाध्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चों तक के लिए इच्छा मृत्यु को वैध घोषित कर दिया, जिससे इच्छा मृत्यु पर एक बार फिर से पूरे विश्व में चर्चा छिड़ गई ।

सक्रिय इच्छा मृत्यु का अधिकार बेल्जियम की तरह जापान, मैक्सिको नीदरलैण्ड एवं लक्जमबर्ग में भी प्रदान किया गया है । इन देशों में इच्छा मृत्यु के निर्णय तय करने हेतु विशेष आयोग को अधिकार प्रदान किए गए है ।

कनाडा और क्रास में निष्क्रिय इच्छा मृत्यु अर्थात् रोगी के कहने पर जीवन रक्षक प्रणाली को हटाने का प्रचलन है, बही स्विट्जरलैण्ड में ‘असिस्टेड सुसाइड’ अर्थात् चिकित्सक की मदद से रोगी की इच्छा मृत्यु पूर्ण की जाती है । असिस्टेड सुसाइड को मान्यता देने बाले देशों में बेलियम व नीदरलैण्ड भी शामिल हैं ।

भारत में कभी न ठीक होने वाले असह्य कष्ट एवं अत्यन्त गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त व्यक्ति हेतु इच्छा मृत्यु का अधिकार दिए जाने की माँग वर्षों से की जा रही है । वर्ष 1996 में ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद-21 के अन्तर्गत मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार में मृत्यु पाने का अधिकार सम्मिलित नहीं है ।

ADVERTISEMENTS:

इसका उल्लंघन कर मृत्यु का वरण करने की कोशिश करने वाले को आईपीसी की धारा-306 एवं 309 के अन्तर्गत आत्महत्या के प्रयास का दोषी माना जाएगा । वर्ष 2011 में अरुणा शानबाग मामले से इच्छा मृत्यु के अधिकार की वैधता और अवैधता पर एक बार फिर से बहस तेज हो गई ।

मुम्बई के एक अस्पताल में नर्स के रूप में कार्यरत अरुणा शानबाग के गले में जंजीर बाँधकर उसी अस्पताल के वार्डबॉय ने नवम्बर, 1973 में उस के साथ दुष्कर्म किया था, जिसके बाद से अब तक शानबाग मृतप्राय होकर अस्पताल में भर्ती है ।

पीड़िता की लेखिका मित्र ने हमेशा कोमा में जीवन बिताने वाली शानबाग हेतु सर्वोच्च न्यायालय में इच्छा मृत्यु की अर्जी दी थी । इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के पक्ष में निर्णय सुनाया, किन्तु अस्पताल में शानबाग की सेवा करने वाली नसों ने इसका विरोध किया था, फलस्वरूप वह आज भी मरणासन्न होकर अस्पताल में पडी है ।

वर्तमान समय में भारत सहित इंग्लैण्ड, नॉर्वे, फिलीपींस, इजराइल जैसे राष्ट्रों में इच्छा मृत्यु को कानूनन मान्यता नहीं दी गई है । इधर कुछ वर्षों के दौरान भारत में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें आर्थिक तंगी के कारण उपचार न करा पाने वाले रोगियों अथवा उनके परिजनों द्वारा इच्छा मृत्यु की माँग की गई ।

ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश में इसे वैध ठहराने से इसके दुरुपयोग की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता, यूँ भी भारत में चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया गया है और उसे अन्तिम क्षण तक रोगी की जान बचाने के प्रयास करने की शिक्षा दी जाती है, ऐसे में एक चिकित्सक हेतु रोगी की मृत्यु में सहायक बनना बहुत कठिन चुनौती है ।

अब सवाल यह भी उठता है कि क्या भारत में इच्छा मृत्यु को ‘सम्मान मृत्यु’ के रूप में देखा जा सकेगा या फिर इसे भी आत्महत्या की तरह नकारात्मक सोच से जोड़कर ही देखा जाएगा? नि:सन्देह इस पर भी लोगों में मतैक्य नहीं है ।

इच्छा मृत्यु की वैधता को चुनौती देने वालों का यह भी तर्क है कि चिकित्सा जगत् में दिनोंदिन नए-नए शोध-अध्ययन होने से आने वाले समय में असाध्य कहे जाने वाले रोगों पर भी काबू पाने में सफलता हासिल की जा सकेगी । अतः रोगी, उसके परिजन और चिकित्सक, सभी को आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ।

ब्रिटेन के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने इच्छा मृत्यु के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए कहा था- ”लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियन्त्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांसपेशी के जरिये अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ ।”

संसद में इस सम्बन्ध में स्पष्ट कानून बनाना आवश्यक है । वैसे तो भारत जैसे देश हेतु इच्छा मृत्यु अधिकार का मुद्दा अति संवेदनशील है, किन्तु आज यह भी देखा जा रहा है कि यहाँ का युवा वर्ग रूढ़ियों, नैतिक बेडियों व अन्धविश्वासों को तेजी से पीछे छोडते हुए जीवन के नए मूल्य तलाश रहा है ।

ऐसे में आने वाले समय में इच्छा मृत्यु के समर्थकों की संख्या बढ़ने की प्रबल सम्भावना है, पर इसकी वैधता अथवा अवैधता से जुड़े फैसलों में कानून के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की अनदेखी न हो, इसका अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए । यदि संविधानिक पीठ द्वारा इसे मान्यता दे भी दी गई, तो ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि इसका दुरुपयोग किसी भी स्थिति में न होने पाए ।

Home››Essay››