एड्स पर निबंध! Here is an essay on ‘AIDS’ in Hindi language.

वर्तमान में मानव ने ज्ञान-विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में प्रगति के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं । नई-नई औषधियों और आधुनिक तकनीकों के माध्यम से आज न सिर्फ लोगों को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने में कामयाबी मिली है, बल्कि काली खाँसी, मलेरिया, हैजा, प्लेग जैसी महामारियों पर भी बहुत हद तक काबू पा लिया गया है और अब भी सफलतापूर्वक तरह-तरह के शोध किए जा रहे है, पर अब तक हमारे चिकित्सा विशेषज्ञों को कुछ रोगों में विशेष सफलता हासिल नहीं हो सकी है ।

ऐसे ही रोगों में से एक है- ‘एड्स’ जिसकी सर्वप्रथम पहचान संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में वर्ष 1981 में की गई थी ।  एडस (AIDS) जिसका पूरा नाम ‘एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएन्सी सिंड्रोम’ है, एचआईबी अर्थात् ‘ह्यूमन इम्यूनो डेफिसिएन्सी’ नामक विषाणु के कारण फैलता है । यद्यपि अब तक यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका है कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को एडस होना आवश्यक है ।

यह विषाणु इतना सूक्ष्म होता है कि इसे नग्न खो से नहीं देखा जा सकता । इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जाना ही सम्भव है ये विषाणु दो प्रकार के होते हैं- एचआईवी-1 एवं एचआईबइा-2 यह विषाणु मानव शरीर में प्रवेश कर उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता को धीर-धीरे समाप्त कर देता है ।

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इसके कारण शरीर कमजोर होता चला जाता है एवं अन्ततः मनुष्य के लिए घातक स्थिति उत्पन्न हो जाती है । संयुक्त राष्ट्र एडस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 में विश्वभर में एचआईवी से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या 35 करोड़ थी, जिनमें 20 लाख से अधिक नए संक्रमित व्यक्तियों में से ढाई लाख के आस-पास बच्चे थे ।

इस रिपोर्ट में 20 लाख से अधिक एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों के साथ भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है । बावजूद इसके नए एचआईवी संक्रमित लोगों में 19% की कमी आना भारत के लिए एक अच्छा सकेत है भारत में एडस का पहला रोगी वर्ष 1986 में चेन्नई में पाया गया था ।

जहाँ तक एडस के फैलने की बात है, तो यह एचआईवी संक्रमण असुरक्षित यौन सम्बन्धों से, संक्रमित हुई मुड़ी-सिरज के प्रयोग से एवं संक्रमित रक्त से फैलता है । एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिला से होने वाले नवजात शिशु को भी एचआईवी संक्रमित होने का खतरा रहता है ।

एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध के दौरान निकलने वाले वीर्य रक्त अथवा योनि स्राव के सम्पर्क में आने से एचआईवी से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है । मादक पदार्थों के आदी व्यक्तियों के द्वारा सुइयों का साझा प्रयोग करने पर एचआईवी संक्रमण की सम्भावना अधिक रहती है ।

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संक्रमित रक्त व रक्त अवयवों के प्रयोग से एचआईवी फैलता है यदि गर्भवती महिला एचआईवी से संक्रमित है, तो गर्भावस्था के दौरान, जन्म के समय या स्तनपान के परिणामस्वरूप नवजात शिशु को एचआईवी संक्रमण हो सकता है ।

एचआईवी संक्रमण होते ही एचआईवी विषाणु रक्त में प्रवाहित हो जाता है । एचआईवी से संक्रमित होने के दो से तीन महीनों के बाद रक्त के एण्टी-बॉडी टेस्ट के माध्यम से इसको पहचान की जा सकती है । एचआईबी संक्रमित व्यक्तियों में एडस के लक्षण उत्पन्न होने में 8 से 10 वर्षों तक का समय भी लग सकता है ।  एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति कई वर्षों तक बिना किसी बीमारी के लक्षण के भी रह सकते हैं ।

एचआईवी विषाणु से संक्रमित होने के लक्षण निम्न प्रकार हैं:

1. किसी भी व्यक्ति का वजन बिना कारण महीने में दस किलो तक कम हो जाना ।

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2. एक-दो महीने तक लगानार शरीर में बुखार का रहना, थकान होना व पसीना आना ।

3. एक महीने से अधिक समय तक दस्त होना और दवाइयों से आराम न होना ।

4. गर्दन, बगल व जीवों की ग्रंथियों में सूजन आना ।

5. मुँह में तथा जीभ पर सफेद छाले पड़ना ।

6. शरीर में खुजली या दाने होना ।

7. लम्बे समय तक लगातार दवाई लेने पर भी किसी बीमारी का ठीक न होना ।

वर्ष 2014 में बेल्जियम के वैज्ञानिकों के एक अन्तर्राष्ट्रीय दल ने नवीनतम पायलोग्राफिक (ऐतिहासिक प्रक्रिया का अध्ययन) तकनीक का प्रयोग करते हुए अब तक उपलब्ध सभी प्रमाणों का विश्लेषण कर महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की । इस रिपोर्ट के अनुसार, एचआईवी का जन्म सर्वप्रथम अफ्रीका महाद्वीप स्थित कांगों की राजधानी किसांशा में 1920 के दशक में हुआ था और यही से पूरी दुनिया में इसका विस्तार हुआ ।

ऑक्सफोर्ड के जूलोजी विभाग के प्रोफेसर ओलिवर पाइवस ने कहा है- ”ऐसा लगता है कि 20वीं सदी के प्रारम्भ में कई कारकों की बदौलत एचआईवी के जन्म को पूरा अवसर मिला और बिना थमे वह पूरे अफ्रीका में फैलता गया ।”

एडस के सन्दर्भ में कई प्रकार की भ्रान्तियाँ फैली हुई है, इसलिए यह जानना आवश्यक है कि किन कारणों से एचआईवी नहीं फैलता है । किसी व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में एचआईवी संक्रमण केवल उसी दशा में सम्भाव है, जब एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति के शारीरिक द्रव (रक्त, वीर्य या योनि स्राव) दूसरे व्यक्ति के शारीरिक द्रव के सम्पर्क में आते हैं ।

एचआईबी संक्रमित व्यक्ति के साथ सामान्य काम करते हुए संक्रमित होने का कोई खतरा नहीं होता । एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को छूने एवं चूसने से भी संक्रमण का खतरा नहीं होता । एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के लार/थूक, मल-मूत्र एवं आँसू से भी एचआईवी विषाणु के फैलने का खतरा नहीं होता ।

एचआईबी संक्रमित रक्त के सन्दर्भ में एक बात ध्यान रखने योग्य यह है कि कम मात्रा में रक्त होने की स्थिति में इसके सूखने के बाद एचआईवी विषाणु निष्क्रिय हो जाता है । एड्स के बारे में कहा जाता है कि सावधानी ही इसका इलाज है, क्योंकि यह एक ऐसी बीमारी है, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इससे बचने का प्रयास करना चाहिए ।

एडस की रोकथाम के लिए निर्मित नई दवाएँ एण्टी-रिट्रोवायरल (एआरवी) ड्रग्स, एचआईबी के कारण प्रतिरोधक क्षमता में होने वाली कमी को धीमा करती हैं ये दवाएँ शरीर में एचआईवी विषाणु की संख्या घटाकर, व्यक्ति के जीवनकाल एक गुणवत्ता में वृद्धि करती हैं ।

सुरक्षित यौन सम्बन्धों के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर एवं कुछ सावधानियाँ बरतकर से बचा जा सकता है । यदि रक्त की आवश्यकता हो, तो सदैव सरकारी या लाइसेंस शुदा रक्त कोष से ही रक्त लेना चाहिए ।

प्रसव पूर्व एचआईवी पॉजिटिव माताओं तथा उनसे उत्पन्न नवजात शिशुओं को एण्टी-रिट्रोवायरल (एआरवी) दवा देने से नवजात शिशुओं को एचआईवी के संक्रमण से बचाया जा सकता है, इसलिए एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं को स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए कि किस प्रकार उनके होने वाले बच्चों को एचआईवी संक्रमण से बचाया जा सकता है ।

सामान्यतया एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को एड्स का प्रभाव कम करने के लिए पौष्टिक आहार तथा स्वच्छ पानी ग्रहण करना चाहिए । पूरी नींद लेनी चाहिए, व्यायाम एवं ध्यान करना चाहिए तथा पेशेवर परामर्शदाता की सेवा लेनी चाहिए । उसे चाहिए कि वह अपनें सभी व्यसनों का त्याग कर दे एवं किसी अन्य को इस बीमारी में संक्रमित न होने दे ।

उसे असुरक्षित यौन सम्बन्धों से भी बचना चाहिए । किसी भी एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को रक्तदान की इजाजत नहीं दी जाती ।  इधर हाल ही में जुलाई, 2014 में ऑस्ट्रेलिया स्थित मेलबर्न में 20वाँ अन्तर्राष्ट्रीय एड्स सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें एड्स से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर गम्भीरता से विचार-विमर्श किया गया ।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1 दिसम्बर का विश्व एड्स दिवस घोषित किया गया है ।  इस दिन एड्स का अन्तर्राष्ट्रीय प्रतीक लाल रिबन धारण कर पूरे विश्व के लोग एड्स को जड़ से समाप्त करने की वचनबद्धता लेते हैं । भारत में भी एचआईबी संक्रमण एवं पहला की रोकथाम हेतु केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों की पार से कई प्रभावी कदम उठाए गए हैं ।

इनमें से केन्द्र सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण कार्यक्रम एनएसीपी एवं राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन एनएसी की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है ।  एनएसीपी ने अपने चरणों में एचआईवी संक्रमण की रोकथाम करने  व राज्य सरकारों को जागरूक कर उनकी क्षमताओं का विस्तार करने का सफल प्रयास किया है, वहीं एनएसी ने एचआईवी संक्रमण व एड्स जैसी घातक बीमारी के उपचार के क्षेत्र में काफी सराहनीय कार्य किया है ।

अन्धविश्वास एवं भ्रान्तियों के कारण कुछ लोग एचआईवी संक्रमित लोगों से दुर्व्यवहार करते है । भारत में संवैधानिक मौलिक अधिकार, बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों के लिए समान हैं, इसलिए एचआईवी/एड्स संक्रमित व्यक्तियों को भी पढ़ाई, रोजगार, स्वास्थ्य, विवाह, यात्रा, मनोरंजन, गोपनीयता, सामाजिक सुरक्षा आदि सभी प्रकार के अधिकार हैं ।

एचआईवी संक्रमण के कारण किसी व्यक्ति के रोजगार को समाप्त करना पूर्णतया अमानवीय एवं असवैधानिक है । एचआईबी परीक्षण पूर्णतया स्वैच्छिक है, जोकि व्यक्तिगत महमति के बाद ही होता है, किसी भी व्यक्ति को एचआईवी परीक्षण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ।

एड्स के नियन्त्रण में सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है । सभी सरकारी अस्पतालों में एचआईवी की जाँच एवं इससे सम्बन्धित दबाएं मुफ्त दी जाती हैं ।  एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति की पहचान को अस्पताल गोपनीय रखता है । एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों के साथ हमें भी सामान्य व्यवहार करना चाहिए ।

यदि देश का प्रत्येक व्यक्ति केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के प्रयासों में सहयोग करते हुए व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर भी एचआईवी संक्रमण और एड्स जैसी जानलेवा बीमारी को जड से उखाड फेंकने का संकल्प लेकार इसके विरुद्ध लडाई करने की ठान ले, तो निश्चय ही आने वाले कुछ वर्षों में इससे भारत को हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है भारत के साथ-साथ इसे पूरे विश्व से समाप्त करने में भी हमें पूर्णरुपेण सहयोग करने की आवश्यकता है ।

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