खुदरा बाजार पर निबंध! Here is an essay on ‘Foreign Investment in Retail Markets’ in Hindi language.

भारत कृषि प्रधान देश है । खुदरा बाजार की संस्कृति होने के कारण यहाँ खाद्य सामग्रियों एवं वस्त्रों का विक्रय खुदरा स्तर पर किया जाता है । भारतीय खुदरा व्यापार में आधे से अधिक हिस्सा अनाज, दाल, सब्जी, फल, चाय कॉफी, मसाले, दूध और मास जैसे खाद्य उत्पादों का है ।

आज भारतीय खुदरा या फुटकर बाजार 500 बिलियन डॉलर से भी अधिक का कारोबार कर विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा खुदरा बाजार बन गया है । भारतीय खुदरा व्यापार की सकल घरेलू उत्पादन में 14 से 15% तक की भागीदारी है । इस व्यापार के माध्यम से 4 करोड़ से भी अधिक भारतीयों को रोजगार प्राप्त हुआ है, जबकि 20 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका इसी व्यापार से चलती है ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्यमों का काफी विकास हुआ, किन्तु स्वतन्त्रता के पाँचवें दशक में राजनीतिक अस्थिरता के दुष्पीरणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्रों के कई उद्यमों पर सकट के बादल छाने लगे । देश को भुगतान सन्तुलन के कारण उत्पन्न गम्भीर समस्याओं से गुजरना पडा ।

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वर्ष 1991 में केन्द्र सरकार द्वारा औधोगिक लाइसेंस, विदेशी निवेश, विदेशी व्यापार, विनिमय दर प्रबन्धन, वित्तीय क्षेत्र आदि में संरचनात्मक सुधार लाने हेतु ‘नई आर्थिक नीति’ लाई गई । सरकार द्वारा विदेश व्यापार नीति में सुधार कर शुल्क दर कम करने एवं आयात पर मात्रात्मक नियन्त्रण कम करने की कोशिश की गई, जिसका सकारात्मक परिणाम निकला ।

केन्द्र सरकार द्वारा इस उदारवादी आर्थिक नीति को लागू किए जाने के साथ ही विभिन्न विदेशी कम्पनियों को भारत में प्रवेश की छूट मिल गई । अब विदेशी निवेशकों को यहाँ के बाजार में अपना निवेश कर कम्पनी स्थापित करने की सुविधा प्राप्त हो गई ।

विदेशी निवेशकों को भारत में पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी अथवा भारत की किसी कम्पनी के साथ साझा कारोबार शुरू करने का अधिकार प्राप्त हो गया, इसके साथ-ही-साथ विदेशी कम्पनियों को सम्पर्क के माध्यम से भारत में शाखा कार्यालय खोलकर भी यहाँ के बाजार में अपना निवेश करने की सुविधा दे दी गई ।

किसी देश के द्वारा अन्य देश के बाजार में इस प्रकार किया गया निवेश ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ अथवा एफडीआई (फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेण्ट) कहलाता है । वर्ष 2011 तक केन्द्र सरकार द्वारा बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का विरोध किया गया । यहाँ तक कि एकल ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में भी तक ही विदेशी निवेश को स्वीकृति दी गई ।

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जनवरी, 2012 में केन्द्र सरकार द्वारा एकल ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश की छूट प्रदान की गई, पर शर्त रखी गई कि 300% उत्पाद भारत से खरीदे जाएँ ।  केन्द्र सरकार ने सितम्बर, 2012 में 30% स्थानीय खरीदारी की अनिवार्यता के साथ बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में भी विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, किन्तु इसका क्रियान्वयन राज्यों पर छोड़ दिया गया है ।

बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेश । निवेश के फैसले पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह ने कहा था- ”इस कदम से किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ होगा तथा कृषि बाजार में नई प्रौद्योगिकी के प्रवेश में मदद मिलेगी ।” इस फैसले के बाद 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में विदेशी रिटेल स्टोर खोले जाने के रास्ते खुल गए ।

अब वॉल्मार्ट, टेस्को, कॉरफोर जैसे दुनिया के बड़े रिटेल स्टोर्स के आउटलेट भारतीय शहरों में खोले जा सकते हैं हालाँकि विपक्ष ने केन्द्र सरकार के इस फैसले को भारतीय खुदरा बाजार के लिए अहितकर बताया । अगस्त, 2013 में बहुब्राण्ड खुदरा कम्पनियों के लिए 30% स्थानीय खरीद नियमों में ढील देते हुए केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा यह निर्णय लिया गया कि सहायक ढाँचे में एफडीआई का 50%  खर्च करने की शर्त निवेश की 10 करोड़ डॉलर की पहली किस्त पर लागू होगी ।

तत्पश्चात्, निवेशक एवं उनके सहयोगी बाजार स्थिति के अनुसार निर्णय करेंगे । अब 10 लाख से कम आबादी बाले शहरों में भी बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति प्रदान कर दी गई है ।  भारतीय खुदरा व्यापार में संगठित एवं असंगठित दो तरह के खुदरा कारोबार चल रहे हैं । संगठित खुदरा कारोबार में पूर्व निर्धारित नियमों एवं विदेशी निवेश के मानदण्डों का पालन किया जाता है जबकि असंगठित खुदरा कारोबार इन सबसे मुक्त रहता है ।

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भारतीय खुदरा व्यापार में 90% से ज्यादा भागीदारी असंगठित खुदरा कारोबार की है । देश में संगठित खुदरा कारोबार का प्रवेश 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में हुआ, जो वर्तमान समय में भारत के विभिन्न शहरों में मॉल, सुपर मार्केट, समाचार मार्केट, डिस्काउण्ट स्टोर आदि रूपों में देखे जा सकते हैं ।

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से खुदरा व्यापार क्षेत्र में होने बाले लाभों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है:

1. बड़े पैमाने पर देशवासियों को रोजगार की प्राप्ति:

टेस्को, वॉल्मार्ट, कॉरफोर, मेटो आदि बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियों के भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश करने से रोजगार के नए-नए अवसर प्राप्त होंगे और भारत के युवा वर्ग को बड़े स्तर पर नौकरियाँ प्राप्त होगी । अकेले वॉल्मार्ट ने ही भारत में 40 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करने की बात कही है । ऐसे में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश बेरोजगारी दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकता है ।

2. कृषकों की आय में वृद्धि:

खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश में 30% उत्पाद की स्थानीय खरीदारी की अनिवार्यता किए जाने से भारतीय कृषकों को लाभ पहुँचने की सम्भावना है । विदेशी कम्पनियों के हाथों कच्चा माल बेचने पर किसानों को अच्छी आय की प्राप्ति होगी ।

विदेशी निवेश के माध्यम से किसानों को कृषि क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकी का लाभ मिलेगा, जिससे कटाई के बाद होने वाले फसल नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही किसानों को उपज के लिए लाभकारी मूल्य भी मिल सकेगा । विदेशी कम्पनियों के द्वारा खाद्य भण्डारण, गोदाम व कृषि बाजार उत्पाद के लिए ढाँचागत सुविधाएँ प्राप्त होने से किसानों को काफी लाभ पहुँचेगा ।

3. ग्राहकों को चयन का विकल्प:

मॉल, सुपर मार्केट, डिस्काउण्ट स्टोर जैसे संगठित रिटेल के आने से ग्राहकों को खरीदी जाने वाली सामग्रियों के विकल्प की सुविधा प्राप्त होती है । बे अच्छी तरह सोच-समझकर अपनी पसन्द की वस्तुएँ खरीद पाते है ।

4. दलालों से किसानों को मुक्ति:

विदेशी निवेश के माध्यम से किसानों का सीधा सम्पर्क कम्पनियों से हो सकेगा, फलस्वरूप उन्हें उन दलालों से छुटकारा मिल जाएगा, जो उनके लाभ का एक बड़ा हिस्सा उनसे छीन लेते है । खुदरा बाजार में विदेशी निवेश से एक ओर निवेशक देशों को अच्छी आय की प्राप्ति होती है तो दूसरी ओर निवेश किए जाने वाले देश के विकास में भी सहायता मिलती है ।

वर्ष 2013 में ब्रिटेन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 89 भारतीय एफर्डाआई परियोजनाओं से ब्रिटेन में 7 हजार से अधिक नौकरियों के सृजन में मदद मिली है । जिससे भारत ब्रिटेन में चौथा सबसे बड़ा विनिवेशक राष्ट्र बन गया है । इस सूची में लगभग 400 परियोजनाओं के साथ ब्रिटेन में लगभग 50 हजार रोजगार सृजित कर अमेरिका प्रथम स्थान पर है ।

वर्ष 1914 में सिंगापुर से प्रकाशित की गई पुस्तक ‘द सिल्क रोड डिस्कवर्ड’ के अनुसार, वर्ष 2025 तक चीन से भारत में होने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढकर 30 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है ।  देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ने से रोजगार की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ वैश्विक व्यवहार को अपनाने का अवसर भी प्राप्त होता है ।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में अप्रैल, 2000 से अप्रैल, 2014 तक ई-कॉमर्स क्षेत्र में 3.71 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया है । खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश से होने वाले इन लाभों के बावजूद भारतीय कृषि विशेषज्ञ भारत के सन्दर्भ में इसे अच्छा नहीं मानते ।

उनके अनुसार, इन विदेशी कम्पनियों के द्वारा कृषि उत्पादों की गुणवत्ता के नाम पर किसान छले जाएंगे और उन्हें उनकी मेहनत कीं वास्तविक मजदूरी नहीं मिल सकेगी ।  छोटे किसानों की पहुँच इन बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियों तक नहीं हो पाएगी और वे बाजार की प्रतियोगिता में पिछड़ जाएंगे ।

इससे बेरोजगारी और बढ़ जाएगी । केन्द्र की वर्तमान भाजपा सरकार भी इन्हीं कारणों से बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के पक्ष में नहीं है । इन सबके बाबजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भारत जैसे विकासशील देश के लिए खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता, किन्तु इस क्षेत्र में नीतियों में सुधार की सम्भावनाएँ भी समाप्त नहीं की जानी चाहिए ।

किसान यूनियनों, एमएसएम ई और राज्य सरकारों की भागीदारी एवं व्यापक परामर्श के बाद ही केन्द्र सरकार द्वारा एफडीआई से सम्बद्ध नीतियाँ बनाई जानी चाहिए, ताकि अर्थव्यवस्था में बिकास के साथ-साथ जन-जन को इसका लाभ मिल सके ।

भारत के नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की कही गई यह बात भी इस क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन करती है- ”प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अपने आप में एक मूल्य नहीं है और एक अर्थव्यवस्था सिर्फ प्रगति के लिए इस पर निर्भर नहीं रह सकती ।”  अतः हमें देश के सन्दर्भ में विदेशी निवेश को स्वीकारने के साथ-साथ यहाँ की अर्थव्यवस्था को अति सुदृढ़ करने के लिए अन्य सभी विकल्पों के द्वार खुले रखने चाहिए ।

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