डॉ। होमी जहांगीर भाभा पर निबंध | Essay on Dr. Homi Jehangir Bhabha in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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जिस भारतीय ने स्वतन्त्र भारत को परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने का गौरव प्रदान किया, वे महान् वैज्ञानिक थे- डॉ॰ होमी जहांगीर भामा । उन्होंने अणुशक्ति और शान्ति, अर्थात् एटम फॉर पीस विषय पर जेनेवा में दिये गये अपने भाषण में यह जोरदार वकालत की कि ”संसार के अल्पविकसित तथा गरीब देश तब तक आधुनिक औद्योगिक विकास से दूर रहेंगे, जब तक वे परमाणु शक्ति और ऊर्जा का उपयोग नहीं करते हैं ।”
2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:
डॉ॰ होमी जहांगीर भामा का जन्म 30 अक्टूबर, 1909 को बम्बई के सुशिक्षित एवं सम्पन्न पारसी परिवार में हुआ था । उनके पिता श्री जे॰एच॰ भामा एक सुप्रसिद्ध वकील थे । उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बम्बई के जॉन केनन विद्यालय से पूर्ण की ।
एलीपोस्टन कॉलेज तथा रॉयल इंस्टीटयूट ऑफ साइंस कॉलेज से विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त की । लंदन के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विज्ञान में पी॰एच॰डी॰ प्राप्त की । उनकी रुचि विशेषत: गणित तथा भौतिक विज्ञान में रही थी ।
डॉ॰ भामा ने यूरोप के विभिन्न देशों में जाकर विद्युत एवं चुम्बकत्व विषयों के साथ-साथ कॉस्मिक किरणों की मौलिक खोजों के सम्बन्ध में जो भाषण दिये थे, उसके कारण उनकी ख्याति महान वैज्ञानिकों में होने लगी । उन्होंने ”कॉस्मिक किरण की बौछार के कम प्रपात के सिद्धान्त” का प्रतिपादन किया ।
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भारत लौटने पर 1941 में वे बंगलौर के भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी के प्राध्यापक नियुक्त हुए । कॉस्मिक किरण संशोधन केन्द्र में प्रोफेसर के पद पर भी उन्होंने ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से कार्य
किया ।
इसी वर्ष वे रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने जाने पर लंदन चले गये । 1942 में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें ”एडम्स” पुरस्कार से सम्मानित किया । भारत आने पर वे टाटा वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्थान के पृथक् निदेशक बने । फिर रिसर्च संस्थान बम्बई के निदेशक बने ।
स्वतन्त्रता के बाद सन् 1948 में उन्होंने परमाणु शक्ति आयोग की स्थापना की, जिसके वे अध्यक्ष भी चुने गये थे । सन् 1955 में होये में उन्होंने परमाणु शक्ति केन्द्र की स्थापना की । अणुशक्ति द्वारा बिजली उत्पादन कर उद्योगों और कारखानों में अच्छे माल की व्यवस्था हो सके और इसका लाया प्रत्येक गरीब मजदूर को मिल सके ।
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भारत जैसे गरीब देश में उन्होंने अप्सरा तथा जरलीना नामक परमाणु भट्टियों की भी स्थापना की, ताकि भारत अपनी वैज्ञानिक क्षमता विश्व में स्थापित कर सके । डॉ॰ भामा वैज्ञानिक होने के साथ-साथ संगीतप्रेमी भी थे । ग्रामोफोन सुनने में उनकी गहरी रुचि रही थी ।
अवकाश के क्षणों में संगीत सुनने के साथ-साथ वे चित्रकारी भी किया करते थे । विभिन्न धर्मों की पुस्तकें भी वे पढ़ा करते थे । भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाने वाले इस वैज्ञानिक का देहावसान एक विमान दुर्घटना में 24 फरवरी सन् 1966 को तब हुआ, जब वे बम्बई से जेनेवा जा रहे थे । उनका जेट विमान पश्चिमी यूरोप की सर्वाधिक ऊंची चोटी माउण्ट ब्लैक से टकराकर नष्ट हो गया था ।
3. उपसंहार:
भारतीय विज्ञान जगत् को परमाणु ऊर्जा देने वाले डॉ॰ भामा ने एक शान्तिप्रिय वैज्ञानिक की तरह देश के विकास में कार्य किया । वे वैज्ञानिक प्रगति द्वारा राष्ट्र का सर्वागीण विकास करना चाहते थे । चीन जैसे पड़ोसी देशों द्वारा अणु बम बनाने पर उन्होंने भारत को शी अणुशक्ति सम्पन्न देश बनाने की वकालत की थी ।
आज मरुस्थलीय क्षेत्रों में अणुशक्ति के द्वारा उपजाऊ भूमि तैयार करने में जो सफलता हमने प्राप्त की, उसका श्रेय डॉ॰ होमी जहांगीर भामा को है । स्वर्गीय प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री द्वारा मन्त्री पद देने के प्रस्ताव को अस्वीकार करना उनके निर्लोभी मानवसेवी चरित्र को दर्शाता है ।