पालतू जानवर पर निबंध! Here is an essay on ‘Domestic Animals’ in Hindi language.

Essay # 1. पालतू जानवर का अर्थ (Meaning of Domestic Animals):

इस जीवित संसार का बहुत बड़ा भाग प्राणियों से भरा पड़ा है । अतिसूक्ष्म जीवाणु जिनकी संख्या बहुत अधिक है, अपना जीवन अदृश्य अवस्था में ही गुजारते हैं ।  प्राणियों के दो गुण उन्हें पौधों से अलग करते हैं- प्राणी चलायमान होते हैं तथा वे अपना भोजन सरलतम रसायनों से बनाने में असमर्थ होते हैं, इसलिए पौधों पर निर्भर होते हैं ।

पौधों के समान ही प्राणियों में भी आकार, स्वरूप, जीवन-शैली व निवास स्थान आदि संबंध में अनेकों भिन्नताएं होती हैं । कुछ प्राणी केवल जमीन पर रहते हैं, कुछ केवल पानी में रहते हैं तो कुछ जमीन व पानी दोनों में रहते हैं व दोनों का आनंद उठाते है । इसके अतिरिक्त कुछ प्राणी अपना सारा जीवन जमीन से अत्यधिक ऊंचाई पर व्यतीत करते हैं ।

प्राणियों को रीढ़ की हड्डी के आधार पर दो समूहों में बाटा जा सकता है । हमारे समान जिन प्राणियों में रीढ़ की हड्डी होती है उन्हें मेरुदण्डी (वर्टिब्रेट्‌स) कहते हैं । मेरुदण्डी प्राणियों की संख्या केवल 4 प्रतिशत हैं । फिर भी जब हम प्राणियों के बारे में विचार करते हैं तो हमारे दिमाग में यही प्राणी आते हैं । सभी बड़े जानवर, रेंगने वाले प्राणी, मछलियां, पक्षी तथा उभयचर प्राणी (एम्फीबियन) मेरुदण्डी की श्रेणी में ही आते हैं ।

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रोजमर्रा के जीवन में हमें जिन प्राणियों से सामना करना पड़ता है, वे एक ओर छोटे समूह में आते हैं जिन्हें हम स्तनधारी प्राणी कहते हैं । मानव सहित इन प्राणियों के शरीर पर बाल होते हैं, इनकी माताएं स्तनपान कराकर अपने शिशुओं को पालती हैं, वे अपने शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखते हैं तथा इनमें तुलनात्मक दृष्टि से बड़ा मस्तिष्क होता है ।

अभी तक ज्ञात प्राणियों की प्रजातियों की संख्या दस लाख से ऊपर है जिनमें से केवल 4000 प्रजातियां स्तनधारी प्राणियों की हैं । ये प्राणी अनेक प्रकार के आवासों में रहते हैं तथा इनमें से अनेक मानव प्रजाति से घनिष्ट रूप से संबंधित हैं ।

सबसे छोटा स्तनधारी प्राणी वंबलबी चमगादड़ होता है, जिसका वजन केवल 2 ग्राम होता है तथा सबसे बड़ा स्तनधारी प्राणी विशालकाय नीली व्हेल होती है जो 33 मीटर लंबी व वजन में 91 टन तक होती है । यह अभी तक जितने जीवित प्राणी हुए हैं उनमें नीली व्हेल सबसे बड़ी है । जिराफ सबसे ऊंचा प्राणी है जिसकी ऊंचाई 5.5 मीटर तक होती है । यह भी स्तनधारी प्राणी है ।

Essay # 2. बड़े प्राणियों (Big Creatures):

जिस प्रकार हमने पौधों के साथ अन्वेषक गतिविधियों को कार्यान्वित किया, वैसी गतिविधियों को प्राणियों के साथ करना संभव नहीं होगा नैतिक व मनौवैज्ञानिक कारणों से प्राणियों से संबंधित गतिविधियां केवल अवलोकन तक ही सीमित रहती हैं । नमूने के रूप में रखने हेतु उन्हें मारना वांछित नहीं है जब तक कि शोध अध्ययनों हेतु वह अत्यन्त आवश्यक न हो ।

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प्राणियों का अवलोकन हम दूर से ही कर सकते हैं । प्राणियों को उनके ही परिवेश में देखना लाभदायक हो सकता है परन्तु यह हममें से अधिकांश के लिए संभव नहीं होता फिर भी प्राणी संग्रहालय में हम अनेक प्रकार के प्राणियों का अवलोकन कर सकते हैं ।

प्राणियों का लंबे समय तक लगातार अवलोकन करने हेतु हम हमारे आस-पास पाई जाने वाली प्रजातियों को चुन सकते हैं । बड़े प्रणालियों में विभिन्न प्रकार के पक्षी, रेंगने वाले प्राणी, उभयचर प्राणी तथा कुछ स्तनधारी पाए जाते हैं विशेषकर गांवों में ये अधिक संख्या में होते हैं । 

प्राणियों का सबसे अच्छा अवलोकन करने का अवसर हमें हमारे पालतू जानवर उपलब्ध कराते हैं । एक बिल्ली का परिवार हमारे घरों में पाया जाना एक आम बात है । पालतू कुत्ते भी अनेक घरों में पाए जाते हैं । इसी प्रकार खरगोश, कबूतर, हंस, राजहंस, चूहे पालना सरल है किन्तु साधारणत: इन्हें लोग पालते नहीं हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में मवेशी व मुर्गे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं । इस प्रकार पहले से तैयारी की जाए तो इन प्राणियों के संबंध में अनेक प्रकृति निहारने संबंधी गतिविधियां आयोजित की जा सकती हैं ।

बिल्ली के परिवार:

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बिल्लियां पालना सरल होता है । ये हमें आनंददायक साथ तो देती ही है साथ ही हम इनसे अनेक प्राणियों के बारे में तथा विशेषत: स्तनधारी प्राणियों के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं बिल्ली के एक साथ पैदा हुए बच्चों को बढ़ते देखना एक सुहाना अनुभव है जो हमें आनंद भी प्रदान करता है । यदि हम हमारी बिल्ली पर लगातार नजर रखे तो हम उसके बच्चों का जन्म व उनके जीवन के प्रारंभिक क्षणों का अवलोकन कर सकते हैं ।

प्रसव के समय बिल्ली स्वयं ही दाई के सभी कार्य करती है जिनमें नाभि-नाड़ी (अम्बिलिकल कार्ड) को काटना भी शामिल है वह अपने बच्चों को चाटकर साफ करती है व उन्हें सुखाती है । कुछ ही समय बाद शावकों के बाल रोंएदार हो जाते हैं । पूर्ण रूप से सूखने से पूर्व ही शावक रेंगकर अपनी मां के स्तनों के पास पहुंचकर स्तनपान करते लगते हैं । यदि आप इन प्रथम घटनाओं को न भी देख सके फिर भी इन प्यार करने योग्य शावकों को इस अवस्था के बाद देखना भी बहुत आनंददायक होता है ।

यदि हम बिल्ली के शावकों को ध्यान से अवलोकित करें तो हम निम्न बिन्दु नोट कर सकते हैं:

(1) नवजात शावक की आंखे व कान बन्द रहते हैं तथा उसके छोटे से मुंह में दांत नहीं होते । फिर भी वह अपनी मां की गंध के कारण रास्ता खोजकर स्तनपान करने हेतु अपनी मां तक रेंगकर पहुंच जाता है ।

(2) जन्म के एक सप्ताह बाद उसकी आंखे खुलना प्रारंभ हो जाती हैं तथा लगभग दो सप्ताह में वे पूर्णत: खुल जाती हैं । इस अवस्था में उसके दूध के अस्थाई दांत निकल आते हैं ।

(3) जब शावक लगभग एक महीने का हो जाता है तब वह ठीक से चलने लगता है तथा ठोस पदार्थ खाने का प्रयत्न करता है ।

(4) आठ या नौ सप्ताह के अन्दर शावक स्वयं संसार का सामना करने हेतु तैयार हो जाते हैं वे बहुत सक्रिय होते हैं । किसी भी हिलती वस्तु पर पंजे मारते रहते हैं । ये शावक आपस में तथा अपनी मां के साथ खेलते रहते हैं । मां ऐसे खेलों को पूछ हिलाकर अथवा झूठ-मूठ के हमले कर प्रोत्साहित करती है । वास्तव में ये खेल शिकार करने तथा आत्मरक्षा करने का प्रशिक्षण होते है ।

बिल्ली के बच्चों के विकास की उपरोक्त दी गई सामान्य प्रवृत्ति के आधार पर क्या आप अपने घर के शावकों के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट बना सकते हैं ? शावकों की लंबाई, ऊंचाई व वजन नापने तथा समय-समय पर उनके चित्र बनाने का प्रयास करें । यदि संभव हो तो उनके कुछ फोटो भी लें ।

इस बात की ओर ध्यान दें कि बिल्ली अपने बच्चों को एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर किस प्रकार ले जाती हे तथा ले जाते समय शावक कितने ढीले पड़ जाते हैं । यदि कोई शावक को ले जाए तो बिल्ली की क्या प्रतिक्रिया होती है ? कुछ महीनों बाद बिल्ली उनसे कैसा व्यवहार करती है ?

Essay # 3. घर के आस-पास के अन्य प्राणी (Other Animals Around the House):

कुत्ते व उनके पिल्ले पालना आम बात है तथा उन्हें ध्यान से अवलोकित किया जा सकता है । कुत्ते के बढ़ते पिल्लों को अवलोकित करें तथा उनकी तुलना बिल्ली के शावकों से करें ।

(1) इन दो प्रकार के बच्चों की वृद्धि की गति में क्या समानता/असमानता है? किसी विशिष्ट आयु में कौन अधिक सक्रिय व फुर्तीले होते हैं ?

(2) उनके खेल में क्या भिन्नता होती है ? बिल्ली या कुतिया-क्या वह अपने बच्चों के लिए शिकार अथवा भोजन लाती हे ?

(3) एक बिल्ली तथा एक कुत्ते के शारीरिक ढांचे में क्या समानताएं व असमानताएं होती हैं इसे भी जानने का प्रयत्न करें उनके पंजे किस प्रकार से भिन्न होते है ? उनकी मूँछ, दांत व जीभ कैसी होती है ? क्या उनके शिकार करने के तरीके से आप इनका संबंध जोड़ सकते हैं ?

इनके बारे में अनेक बिन्दु हैं, जिन्हें नोट किया जा सकता है । आप ऐसे कितने बिन्दु खोज सकते हैं ? यदि आप कुत्ते तथा बिल्ली के बच्चों के साथ लंबे समय तक खेलें तो वे आपके मित्र बन सकते हैं ।

अन्य स्तनधारी प्राणियों जैसे खरगोश व चूहों को भी पालतू बनाकर उनका अवलोकन किया जा सकता है । प्रयत्न कर देखिए कि इनके बच्चों के पालन पोषण में तथा बिल्ली व कुत्तों के बच्चों के पालन-पोषण की प्रक्रिया में क्या अतर है क्या वे पिल्लों को जन्म देने हेतु बिस्तर तैयार करते हैं ? क्या खरगोश व चूहों के बच्चों के जन्म के समय उनके शरीर पर बाल होते हैं ?

यदि आपको किसी गाय के प्रसव को देखने का अवसर मिले तो आप देखेंगे कि गाय का बछड़ा कुछ ही घण्टों में अपने पैरों पर खड़ा होकर चलने लगता है । हम अपने द्वारा अवलोकित किए हुए प्राणियों से इसकी किस प्रकार तुलना कर सकते हैं ? अधिकांश प्राणियों में बच्चों के जन्म के बाद कुछ सप्ताहों से लेकर कुछ महीनों तक मां-बाप द्वारा देखभाल की आवश्यकता होती है किन्तु मानवों के लिए यह देखभाल की अवधि सबसे अधिक होती है ।

आदमी के बच्चों को शारीरिक देखभाल की आवश्यकता तो दो या तीन वर्ष तक ही होती है किन्तु उन्हें मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक देखभाल की आवश्यकता कम से कम दस से पन्द्रह वर्ष तक रहती है । क्या इस कारण मानवों को कोई विशिष्ट दर्जा प्राप्त है?

घर के आस-पास पाए जाने वाले पक्षी:

किसी भी मोहल्ले में हमारे पंखों वाले मित्र अर्थात पक्षी आसानी से देखे जा सकते हैं । पक्षी ही केवल ऐसे प्राणी हैं जिनके पंख होते हैं । घरों के आस-पास आमतौर पर पाए जाने वाला कौआ (यद्यपि कुछ स्थानों पर अब ये विलुप्त से होते जा रहे हैं) तथा बिना उड़ान भरने वाले पक्षी जैसे मुर्गियां, बत्तख, हंस व राजहंस-ये सभी हमें अपनी ओर आकृष्ट करते हैं । इनके माध्यम से हम प्रकृति के विषय में बहुत कुछ सीख सकते हैं, विशेषकर पक्षियों की आदतों के विषय में ।

पक्षियों को निहारना, अध्ययन का एक विकसित क्षेत्र है । शगल या शौक के रूप में भी इसके लिए लंबे समय तक आलिप्त रहना होता है । किन्तु थोड़े प्रयास से ही यदि कोई व्यक्ति पक्षियों में रुचि रखता है तो वह अपने आस-पास में पाए जाने वाले पक्षियों को पहचान सकता है ।

इस कार्य को प्रारंभ करने हेतु विशिष्ट मार्गदर्शक पुस्तकें तथा अनुभवी मित्र प्राय: उपलब्ध हो जाते हैं । कुछ अभ्यास के बाद हम सामान्य पक्षियों को देखते ही तथा उनकी आवाज से पहचान सकते हैं । हम उनके भोजन, घोंसले तथा अन्य रुचिकर आदतों के बारे में या तो अवलोकन के द्वारा अथवा अन्य स्रोतों से जानकारी एकत्र कर सकते है ।

यदि आस-पास कुछ पेड़ हों तो मानव बस्तियों में रहने वाले पक्षी तो वहां आ ही जाते हैं । वे यहां भोजन तथा घोंसला बनाने हेतु सुरक्षित स्थान की खोज में आते हैं । जलीय पक्षी प्राय: जल स्रोतों अथवा दलदल वाले स्थानों के आस-पास ही रहते हैं ।

पक्षियों को यदि सबसे अधिक सक्रिय अवस्था में देखना है तब प्रात: काल अथवा सूर्यास्त का समय सबसे उपयुक्त होता है । उनके घोंसले के स्थान का पता लगाकर हम उनकी गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं तथा उनके बच्चों का भी अवलोकन कर सकते हैं ।

पक्षियों को हमारा मेहमान बनाना:

अपने आस-पास के क्षेत्र में पक्षियों की ताक में रहने के साथ-साथ हम उनके लिए ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं जिससे पक्षी उस स्थान पर नियमित रूप से आए । उन्हें घोसला बनाने हेतु सुरक्षित स्थान प्रदान कर हम उन्हें अपने मेहमान बना सकते हैं जिससे वे अधिक समय तक हमारे साथ रह सकें ।

पक्षियों के भोजन हेतु टेबल बनाना:

30 वर्ग से.मी. का एक लकड़ी का तख्ता लेकर तथा उसकी चारों भुजाओं पर 2 से.मी. चौड़ी पट्टी लगाकर हम पक्षियों के खाने हेतु एक टेबल सुगमता से बना सकते है । अवलोकन हेतु उपयुक्त ऊंचाई पर यह तख्ता लगा दें किन्तु यह इतनी ऊंचाई पर अवश्य हो जिससे बिल्ली व कुत्ते छलांग लगाकर उस ऊंचाई तक न पहुंच सके । इस तख्ते पर किसी भी प्रकार के अनाज के दाने, ब्रेड के टुकड़े अथवा बची हुई भोजन सामग्री रख दें व जब पक्षी उन्हें खाने आयें तो उन्हें अवलोकित करें ।

एक दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि इस तख्ते को किसी पेड़ की शाखा से लटका दें । तख्ते को टांगने हेतु प्रयुक्त डोरी में से एक टीन का 20 वर्ग से.मी. का टुकड़ा लटका दें जिससे शेष गिलौरियां तख्ते पर न उतर सकें । इस टेबल के ऊपर छत लगाकर हम इसे बेहतर बना सकते हैं तथा अनाज के दानों को वर्षा के पानी से बचा सकते हैं ।

एक प्लास्टिक की तश्तरी अथवा एक नारियल खोल को लटका कर भी पक्षियों हेतु भोजन व्यवस्था की जा सकती है । खाने हेतु आने वाले पक्षियों के प्रकारों, उनके आने के विभिन्न समय व मौसमों को नोट कर लीजिए । टेबल के आस-पास पक्षियों द्वारा गिराए गए पंखों को एकत्र करें । यह संग्रह आने वाले पक्षियों को रिकार्ड रहेगा ।

घोंसले का ध्यान से अवलोकन करना:

यदि जंगली पक्षियों के घोसलों को छुआ जाए अथवा उसमें हलचल की जाए तो वे अण्डों सहित अपना घोंसला छोड़कर चले जाते हैं । फिर भी मुर्गी के घोंसले तथा वे अण्डों को किस प्रकार रखते हैं इसका अवलोकन किया जा सकता है । हंस शीत ऋतु से पूर्व अण्डे देना प्रारंभ करते हैं जबकि मुर्गियां वर्ष भर अण्डे देती हैं । पालतू मुर्गी अथवा हंसों के अण्डों को सुरक्षित रखने हेतु घोंसले से हटाया जा सकता है । ये अण्डे एक या दो दिन के अंतराल से दिए जाते हैं ।

लगभग एक महीने बाद वे घोंसला बनाने हेतु स्थान की तलाश प्रारंभ करती हैं । किसी सुरक्षित स्थान पर घास-फूस रख दें तथा उस पर अण्डे रख दें । शीघ्र वे घास-फूस को नर्म बनाकर उससे बर्तन के आकार का सुन्दर घोंसला बना लेंगी । घोंसले के अन्दर वे अपने छाती के पंख निकाल कर फैला देती हैं जिससे घोंसला और नर्म हो जाता है तथा गरम भी रहता है । फिर मुर्गी/मादा हंस अपने पंख फैलाकर सारे अण्डों को गर्मी देने हेतु ढक देती हैं ।

कुछ-कुछ देर बाद वह घास-फूस को अन्दर करती रहती हैं जिससे घोंसला सघन रहे तथा अण्डे लुढ़ककर बाहर न जाए । यह प्रक्रिया लगभग एक महीने चलेगी (मुर्गी के संबंध में 21 दिन) । इस अवधि में न तो वह कुछ खाती है और न ही घोंसला छोड़ती है । फिर अण्डों से हंस के बच्चे बाहर निकलते हैं । वे मुर्गी के चूजों से बड़े होते हैं तथा मुलायम पीली गेंदों के समान दिखते है । पैदा होने के एक दिन के अन्दर ही वे पानी की ओर बढ़ जाते हैं । मुर्गी के चूजे अपनी मां के इर्द-गिर्द ही जमीन पर बने रहते हैं ।

Essay # 4. छोटे प्राणियों का संग्रह (Collection of Small Creatures):

हमारे घर आंगन के आस-पास हमें अनेक प्रकार के छोटे प्राणी मिल जाएंगे । उनमें से कई प्राणियों को हम पकड़कर ध्यान से अवलोकन करने हेतु कुछ समय के लिए अपने पास रख सकते हैं टैरेरियम में कुछ सुधार करके इन प्राणियों के लिए हम एक आदर्श घर बना सकते हैं ।

एक बड़ा एक्वेरियम या बड़ा बक्सा लें जिसके कोने बड़े प्लास्टिक जैसे पारदर्शी पदार्थ की परत से बने हों । बक्से के अन्य दो पृष्ठों को बारीक तार की जाली (अथवा नायलॉन की जाली) से ढंका जा सकता है । बक्से के शीर्ष को मच्छरदानी की जाली से ढंककर उसे रबर बैण्ड से फिट किया जा सकता है ।

बक्से में विभिन्न प्रकार की सामग्री रखें जो इन प्राणियों की आरामगाह बन सके । एक कोने में घास अथवा छोटे पौधों के साथ कुछ गीली मिट्‌टी रख दें व उसके पास ही पानी भरकर एक कटोरा रख दें । दूसरे कोने में पत्थरों का एक ढेर लगा दें व उसमें बहुत-सी खाली जगह छोड़ दें पत्थरों के पास कुछ रेत बिछा दे तथा उसके बगल में कुछ मिट्‌टी के बर्तन रख दे । बक्से के एक ओर सपाट शिला रख दें अपने अनुभव व अवलोकन के आधार पर आप अन्य वस्तुएं भी रख सकते हैं । गमले में लगा एक पौधा अथवा टहनियां भी एक ओर रख दें ।

बक्से के अंदर आर्द्रता रखने हेतु उसमें पानी का छिड़काव कर दें । आप जो भी छोटे जीव पकड़ें उन्हें इस विशेष टेरेरियम में रख सकते हैं- यदि हम इसे विवेरियम अथवा “जीवन घर” कहें तो अधिक उपयुक्त होगा । इसमें जो प्राणी रखे जा सकते हैं उनमें से कुछ हैं- मेंढक/भेंक, छिपकली, घोंघा, कीट, बूढ़े, केकड़े, बिच्छु आदि ।

इस विवेरियम में आप कुछ छोटे सांप भी रख सकते हैं । पकड़ने हेतु सबसे सुरक्षित सांप पट्टेदार कीलबैक होता है । यह गैर विषैला सांप बहुत सौम्य व पकड़ने में आसान होता है । किन्तु सांपों के साथ आप तब तक कार्य न करें जब तक आप उनके प्रकारों से भली-भांति परिचित न हो जाएं ।

सांपों को पकड़ना बहुत कठिन कार्य नहीं है किन्तु इसके लिए अभ्यास तथा कुछ अनुभव की आवश्यकता होती है । जब आप सापों के विषय में अच्छी तरह जान जाए तो आप इनके लिए एक विशिष्ट सांप घर (सर्पेन्टेरियम) बना सकते हैं जिसमें आप जिन्दा विषैले सांप भी रख सकते हैं । किन्तु इस पुस्तक का उपयोग करने वाले लोगों हेतु हम यह सुझाव देते हैं कि वे इस मामले को तब तक छोड़ दें जब तक उन्हें इस संबंध में किसी विशेषज्ञ के साथ अनुभव प्राप्त नहीं हो जाता है ।

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