भारत में परमाणु ऊर्जा पर निबंध! Here is an essay on ‘Nuclear Energy in India’ in Hindi language.
भारत शुरू से ही विश्व को शान्ति और प्रेम का सन्देश देता रहा है न सिर्फ देश के ऋषि-मुनि, बल्कि यहाँ के वैज्ञानिक भी अपने ज्ञान-विज्ञान का उपयोग सर्वदा मानव कल्याण के लिए करते आए हैं ।
जब दुनिया के विकसित राष्ट्रों में खुद को ताकतवर साबित करने के लिए परमाणु अस्त्र बनाने की होड लगी थी, तब भी हमारे देश के वैज्ञानिक नाभिकीय विखण्डन द्वारा विद्युत उत्पादन जैसे मानव कल्याणार्थ कार्य करने की बातें सोच रहे थे ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा व नागासाकी पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने के एक वर्ष से पूर्व ही भारत में परमाणु ऊर्जा के जनक कहे जाने वाले महान् वैज्ञानिक डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ने कहा था- ”मान लीजिए कि अभी से एक-दो दशकों में परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन में सफलतापूर्वक इस्तेमाल होने लगे, तब भारत को परमाणु विशेषज्ञों के लिए विदेशों में देखने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि बे यही तैयार मिल जाएंगे ।”
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परमाणु ऊर्जा नाभिकीय विखण्डन के द्वारा उत्पन्न की जाती है, इसलिए इसे नाभिकीय ऊर्जा भी कहते हैं । नाभिकीय विखण्डन बह रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें एक भारी नाभिक दो भागों में टूटता है । नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया श्रृंखला अभिक्रिया होती है । यह श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती है-अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया एवं नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया ।
अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया का प्रयोग जहाँ परमाणु बम बनाने में किया जाता है, वहीं नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया के द्वारा नाभिकीय रिएक्टरो में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है । नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन के रूप में यूरेनियम 235 या प्लूटोनियम 239 का प्रयोग किया जाता है । अभिक्रिया को नियन्त्रित करने के लिए मन्दक के रूप में भारी जल या ग्रेफाइट का प्रयोग किया जाता है ।
मन्दक रिएक्टर में न्यूट्रान की गीत को धीमा करता है । रिएक्टर में नियन्त्रक छड के रूप में कैडमियम या बोरॉन का प्रयोग किया जाता है । यह छड़ नामिक के विखण्डन के दौरान निकलने बाले तीन नए न्यूट्रान में से दो को अवशोषित कर लेती है, जिससे अभिक्रिया नियन्त्रित हो जाती है और उत्पादित परमाणु ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित कर इसका प्रयोग लाभदायक कार्यों के लिए किया जाता है ।
नाभिकीय रिएक्टर से कई प्रकार के विकिरण उत्सर्जित होते हैं, जो रिएक्टर के समीप कार्य करने वालों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसलिए रिएक्टरों के चारों ओर कंकरीट की मोटी-मोटी दीवारें बनाई जाती परिरक्षक जाता है ।
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परमाणु रिएक्टर का उपयोग मूल रूप से विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन की कम मात्रा से ही अपार ऊष्मा का उत्पादन किया जा सकता है । जहाँ 1,000 बाट के थर्मल पावर सयन्त्र को चलाने के लिए 300 लाख टन कोयले की आवश्यकता होती है, वहीं इतना ही वियुक्त उत्पादन नाभिकीय रिएक्टर में मात्र 30 टन यूरेनियम से सम्भव है ।
रिएक्टर से प्राप्त विद्युत ऊर्जा का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है । इसके अतिरिक्त, परमाणु रिएक्टरों का उपयोग प्लूटोनियम उत्पादन के लिए भी किया जाता है यह यूरेनियम से भी बेहतर विखण्डनीय पदार्थ है । नाभिकीय रिएक्टर में श्रृंखला अभिक्रिया के अन्तर्गत यूएरनियम 238 पर तीव्रगामी न्यूट्रानों की बौछार करके उसे प्लूटोनियम 239 में बदला जाता है ।
परमाणु रिएक्टरों में अनेक तत्वों के कृत्रिम आइमोटोप समस्थानिक भी बनाए जाते हैं । इन समस्थानिकों का उपयोग चिकित्सा, कृषि जीव विज्ञान तथा अन्य वैज्ञानिक शोधों में किया जाता है । सबसे पहले नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया को अमेरिकी वैज्ञानिक स्ट्रॉसमैन एवं ऑटो होन ने प्रदर्शित किया ।
इन्होंने यूएरनियम परमाणु पर न्यूट्रानों की बमबारी करके उसके नाभिक को दो खण्डों में विभाजित कर श्रृंखलाबद्ध अभिक्रिया द्वारा बडी मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जिन की थी । आज विश्व के सभी विकसित एवं विकासशील देश बिजली उत्पादन हेतु परमाणु रिएक्टरों के निर्माण में दिलचस्पी ले रहे हैं ।
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वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा में हुए परमाणु हादसे के बावजूद दुनियाभर में परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा आपूर्ति का महत्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है । अमेरिका के राष्ट्रपति थी बराक ओबामा ने 30 वर्ष बाद वर्ष 2012 में पहली बार नया रिएक्टर बनाने की अनुमति दी है चीन को हर वर्ष 60 हजार मेगावाट विद्युत हेतु नए रिएक्टरो का निर्माण करना पड़ता है ।
विद्युत हेतु अब तक कोयले पर निर्भर रहने वाला देश पोलैण्ड भा परमाणु ऊर्जा की ओर आकर्षित होने लगा है । यूरोपीय देशों में फ्रांस में सर्वाधिक परमाणु रिएक्टर हैं परमाणु राजनीतिज्ञ रेबेका हार्म्स के अनुसार, एक परमाणु रिएक्टर के निर्माण में लगभग Rs.450 अरब की लागत आती है । बर्लिन के पर्यावरण वैज्ञानिक लुत्स मेत्स का कहना है- ”अब तक पुराने रिएक्टरों को नष्ट करने की तकनीक विकसित नहीं हो पाई है और न तो परमाणु कचरे को सुरक्षित रखने का तरीका ही ढूँढा जा सका है ।”
बावजूद इसके परमाणु ऊर्जा का उत्पादन वर्तमान युग की आवश्यकता बन गई है । आज विश्व के 30 देशों में लगभग साढे चार सौ सक्रिय परमाणु रिएक्टर हैं । भारत में डॉ. भाभा की अध्यक्षता में वर्ष 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) की स्थापना के साथ ही परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का श्रगिणेश हुआ ।
इस आयोग ने अपनी परमाणु ऊर्जा की नीतियों के क्रियान्वयन के लिए वर्ष 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की इस विभाग के अन्तर्गत कई शोध संस्थान कार्यरत हैं । तब हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- ”भारतीय परमाणु कार्यक्रम सिर्फ शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है ।” आज हमारा देश इसी आदर्श पर चलते हुए नाभिकीय विखण्डन द्वारा परमाणु ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है ।
परमाणु ऊर्जा आयोग ने अपने परमाणु कार्यक्रमों को तीन चरणों में विस्तार देने की योजना बनाई, इसमें सबसे पहले प्राकृतिक यूएरनियम ईंधन से चालित भारि जल प्रतिकर्मी रिएक्टर की स्थापना का लक्ष्य रखा गया ।
इसके बाद क्रमशः प्लूटोनियम ईंधन चालित तीव्र प्रजनक-प्रतिकर्मी (फास्ट ब्रीडर) रिएक्टरों तथा नाभिकीय फास्ट रिएक्टरों से उत्पादित यूरेनियम व के पुन: प्रसंस्करण की प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए रिएक्टरों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया ।
प्रथम परमाणु शोध रिएक्टर वर्ष 1956 में अप्सरा नाम से मुम्बई के निकट बनाया गया । ईंधन के भागों को छोडकर (ब्रिटेन से आयातित) यह ब्बॉयलिंग वाटर रिएक्टर अपने ही देशवासियों द्वारा यही निर्मित किया गया था । इसी वर्ष कनाडा की मदद से महाराष्ट्र में ही साइरस नाम से दूसरा रिएक्टर स्थापित किए जाने की घोषणा की गई ।
वर्तमान समय में महाराष्ट्र में 4 और देश में कुल 21 परमाणु रिएक्टर प्रचालनरत हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता लगभग 6 हजार मेगावाट है । भारत के छ: प्रान्तों (महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात) में स्थापित इन रिएक्टरों में 2 ब्बॉयलिंग वाटर रिएक्टर एवं 18 प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (दाबित भारी जल रिएक्टर) एवं एक प्रेसराइज्ड लाइट बाटर रिएक्टर है ।
इसके साथ ही कई अन्य रिएक्टर निर्माणाधीन भी हैं । 3 अगस्त, 2014 को भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के 60 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर मनाए जा रहे डायमण्ड जुबली समारोह में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा- ”हमें आशा है कि हम वर्ष 2023-24 तक वर्तमान श्रमता स्तर 5780 मेगावाट को तीन गुना करने का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे ।” नि:सन्देह ज्ञान-विज्ञान की अन्य शाखाओं की तरह भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी नए कीर्तिमान स्थापित करने लगा है ।
2 अगस्त, 2012 से परिचालित राजस्थान परमाणु ऊर्जा सयन्त्र का यूनिट-5 दो वर्षों से भी अधिक समय तक निर्बाध चलकर सबसे लम्बे समय तक चलने वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बन गया है । यह यूनिट स्वदेशी स्तर पर विकसित पीएचडब्लूआर तकनीक का प्रतिफल है । इस उपलब्धि पर परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव रतन कुमार ने कहा था- ”यह सिर्फ भावुक क्षण नहीं है, बल्कि गौरवान्वित करने वाली घडी है । दुनिया में ऐसे सिर्फ 10 रिएक्टर हैं, जो 500 से अधिक दिनों तक निरन्तर निर्बाध ढंग से परिचालित हुए हैं ।”
इसके साथ ही तमिलनाडु के कुडनकुलम स्थित देश के 21वें परमाणु रिएक्टर द्वारा (हल्के जल रिएक्टर श्रेणी के अन्तर्गत देश का पहला दाबानुकूलित सयन्त्र) जून, 2014 से 1,000 मेगावाट बिजली उत्पादन शुरू करना, भारतीय परमाणु कार्यक्रम की एक बडी उपलब्धि है ।
रूसी महासंघ के तकनीकी सहयोग से स्थापित इस सयन्त्र द्वारा अन्य भारतीय सयन्त्रों की तुलना में कहीं अधिक बिजली उत्पादन किया जाना सम्भव है । विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 40 करोड़ लोग बिजली की सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं ऐसे में देश में परमाणु रिएक्टरों एवं उनकी क्षमताओं का विकास किए जाने से यहाँ बडे स्तर पर विद्युत संकट का निवारण किया जा सकेगा ।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1967 में मुम्बई में ‘परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान ट्राम्बे’ (AEET) की स्थापना की गई थी । वर्तमान समय में ‘भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र’ (BARC) के नाम से प्रसिद्ध यह अनुसन्धान केन्द्र देश के परमाणु ऊर्जा विकास के क्षेत्र में लगातार अग्रसर है ।
भारत स्वयं तो परमाणु ऊर्जा का निर्माण करता ही है, साथ ही परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए वह समय-समय पर अन्य देशों से भी सहयोग लेता रहा है । वर्ष 1969 में अमेरिका की सहायता से भारत के प्रथम विद्युत् सयन्त्र ‘तारापुर विद्युत् सयन्त्र’ का व्यावसायिक परिचालन प्रारम्भ हुआ ।
भारत ने 18 मई, 1974 को पोखरण में प्रथम प्लूटोनिक परमाणु ईंधन, जिसकी क्षमता 10-20 किलोटन थी, का परीक्षण किया । इस कारण अमेरिका सहित अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों ने भारत को परमाणु ईंधन, उपकरण तथा तकनीक की आपूर्ति रोक दी थी । इससे कुछ समय तक भारत के परमाणु कार्यक्रमों को सकट के दौर से गुजरना पडा ।
तब हमारी पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अफ्रीका एकता संगठन के 11वें स्थापना दिवस पर कहा था- ”भारत द्वारा शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किए गए अणु परीक्षण पर नाक-भी सिकोडने वाले देश क्या यह मानते है कि विकसित देशों को विनाश हेतु अणु बम बनाने का अधिकार है और भारत जैसे विकासशील देश अपनी प्रजा की गरीबी ब अन्य समस्याओं के समाधान हेतु अणुशक्ति का विकास नहीं कर सकते समझ में नहीं आता कि इस क्षेत्र में हमारे देश द्वारा पिछले 25 वर्षों से प्रयास किए जाने के बावजूद आज इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है ? हमने सब कुछ पूर्व घोषणा के अनुसार ही किया है हम आज भी अपनी पुरानी बात पर अडिग हैं कि हमारे देश द्वारा अणुशक्ति का प्रयोग विध्वंस के लिए नहीं, बल्कि कृषि विकास, बिजली उत्पादन व चिकित्सा के क्षेत्रों में ही किया जाएगा ।”
जैसे ही संकट का दौर गुजरा तो वर्ष 1961 में राजस्थान में कोटा के निकट रावतभाटा में भारत के दूसरे परमाणु विद्युत सयन्त्र ‘राजस्थान परमाणु विद्युत सयन्त्र’ ने कार्य करना शुरू किया । इसके बाद वर्ष 1983 में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड की स्थापना की गई ।
इसी वर्ष 23 जुलाई को मद्रास (अब चेन्नई) के निकट कलपक्कम में भारत के तीसरे परमाणु विद्युत सयन्त्र की स्थापना की गई वर्ष 1987 में परमाणु कार्यक्रमों के विस्तार के लिए भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड की स्थापना की गई ।
20वीं सदी के अन्त के दशक में भारत राजनीतिक अस्थिरता तथा आर्थिक संकटों के दौर से गुजरा । इसका असर भारत के परमाणु कार्यक्रमों के विकास पर भी पडा । उस समय भारत एक ओर आन्तरिक आतंकवाद, अलगाववाद साम्प्रदायिकता, राजनीतिक अस्थिरता जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, तो दूसरी ओर अमेरिका सहित अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देश भारत पर लगातार परमाणु अप्रसार सन्धि (एनपीटी) तथा व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि सीटीबीटी पर हस्ताक्षर का दबाव डाल रहे थे ।
इसके अतिरिक्त, चीन तथा पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश भी भारत को धौंस दिखा रहे थे । भारत ने क्षेत्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने तथा अन्तर्राष्ट्रीय दबावों से मुक्त होने के लिए अपने प्रथम परमाणु परीक्षण के 24 वर्षों के बाद 11 और 13 मई, 1998 को श्रृंखलाबद्ध रूप से पाँच परमाणु परीक्षण किए ।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा एवं जापान आदि देशों द्वारा भारत में किए गए इन परीक्षणों का व्यापक विरोध किया गया । भारत को कई अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबन्धों का सामना करना पडा । इसके बावजूद इसने वर्ष 2000 में रावतभाटा परमाणु विद्युत गृह की तीसरी तथा चौथी इकाई का क्रियान्वित कर दिया ।
भारत द्वारा पोखरण में प्रथम परमाणु परीक्षण किए जाने के 34 वर्ष बाद वर्ष 2008 में हमारे देश और अमेरिका, रूस, फ्रांस एवं ब्रिटेन अर्थात् चीन को छोड़कर पी-5 के सभी सदस्य देशों के मध्य असैन्य परमाणु समझौते हुए ।
साथ-ही-साथ कनाडा, अर्जेण्टीना, कजाकिस्तान, नामीबिया जैसे देशों से भी क्षेनियम एवं रिएक्टर की आपूर्ति और परमाणु तकनीक से सम्बद्ध महत्वपूर्ण समझौते हुए । भारत ने परमाणु ऊर्जा का उपयोग शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए किया है भारत की इसी नीति के कारण विश्व परमाणु सम्पन्न देशों ने भारत के परमाणु कार्यक्रमों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया है ।
इधर केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के पश्चात 5 सितम्बर, 2014 को भारत व ऑस्ट्रेलिया के मध्य भी असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर हुए है । परमाणु अप्रसार सन्धि से बाहर रहने वाले देशों में भारत अकेला ऐसा देश है, जिसे परमाणु हथियार सम्पन्न देशों के साथ परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापार करने की सुविधा प्राप्त है ।
विभिन्न देशों के साथ हुए असैन्य परमाणु करार के बाद भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास की सम्भावनाएँ काफी बढ गई है । आज अमेरिका सहित कई देशों से परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को सहयोग मिल रहा है ।
वास्तव में, भारत जैसे विशाल जनसंख्या बाले देश में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा की आपूर्ति एक कठिन चुनौती है । ऐसे में परमाणु उर्जा देश में ऊर्जा आपूर्ति का एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है । हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अकुल कलाम साहब ने कहा भी है- ”परमाणु ऊर्जा हमारे समृद्ध भविष्य का द्वार है ।”
अपने परमाणु ऊर्जा विकास कार्यक्रम में तेजी से सफलता प्राप्त करने के लिए भारत को विभिन्न विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए सतत विकासोन्मुख रहना होगा । आशा है आने वाले वर्षों में भारत परमाणु ऊर्जा के साथ-साथ ऊर्जा के अन्य विकल्पों का समुचित प्रयोग कर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाएगा ।