इबोला पर निबंध! Here is an essay on ‘Ebola’ in Hindi language.

इबोला विषाणु रोग या इबोला हेमोराइजिक बुखार (EHF) इबोला विषाणु के कारण फैलने वाला एक घातक और संक्रामक रोग है । पश्चिमी अफ्रीकी देशों नाइजीरिया, सियेरालियोन और गिनी में इबोला विषाणु की वजह से अब तक सैकडों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और मरने वालों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है । आज इस बीमारी ने महामारी का रूप धारण कर लिया है ।

इबोला के संक्रमण के साथ जुडा सर्वाधिक भयावह तथ्य यह है कि अभी तक भी न तो इसके निदान हेतु कोई दवा ही खोजी जा सकी है न ही इलाज की किसी समुचित विधि का ही पता चल पाया है । यही कारण है कि इससे ग्रस्त मरीजों में लगभग 90% की मृत्यु हो जाती है ।

इबोला वायरस का पता आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व 1976 में अफ्रीकी महाद्वीप के सूडान के नजारा और कांगो के इबोलीगनी में चला । कांगो में ही बहने वाली नदी ‘इबोला’ के नाम पर इस बायरस जनित बीमारी को इबोला से नामित किया गया ।

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वर्ष 1976 से अब तक अफ्रीका में लगभग 15 बार इसका संक्रमण फैल चुका है मार्च, 2014 में इससे जुड़ी संक्रमण की पहली घटना पश्चिमी अफ्रीकी देश ‘गिनी’ में दिखी, जिसने विषाणु संक्रमण के फैलाव की वजह से उसके पड़ोसी देशों सियेरालियोन लाइबेरिया, नाइजीरिया एवं सेनेगल तक को अपनी गिरफ्त में ले लिया ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, फ्रूट बैट यानि चमगादड़ इबोला विषाणु का प्राथमिक स्रोत है जहाँ से यह जानवरों में संक्रमण जैसे-चिम्पांजी, गुरिल्ला, बन्दरों के माध्यम से मानव को संक्रमित करता है । यह विषाणु संक्रमण 2 से 21 दिन में शरीर में पूरी तरह से फैल जाता है । इसके पश्चात यह मानवीय कोशिकाओं में बहुत ही तीव्रता से अपनी संख्या में वृद्धि करता है ।

इस विषाणु के संक्रमण से कोशिकाओं से साइटीकाइन प्रोटीन का तीव्रता से स्राव होने लगता है । इससे कोशिकाएँ नसों को छोड़ने लगती है और उससे रक्तस्राव प्रारम्भ हो जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विषाणु जनित इस बीमारी के लक्षणों में मुख्यतः अचानक बुखार, कमजोरी, गले में खराश आना, माँसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, उल्टी, जी मिचलाना और डायरिया को माना है ।

चिकित्सकों के अनुसार आरम्भ में इसके लक्षण सामान्य फूल की तरह ही प्रतीत होते है । अक्सर इसके लक्षण प्रकट होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है ।  लेकिन जैसे-जैसे इसका संक्रमण बढता जाता है, रोगी को उल्टी होना, डायरिया सहित कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव होने लगता है और अन्ततः रोगी की मृत्यु हो जाती है ।

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इबोला विषाणु का संक्रमण पसीने व लार से फैलता है । संक्रमित रक्त और मल के सम्पर्क में आने से भी यह विषाणु फैलता है । इसके अतिरिक्त, यौन-सम्बन्ध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी इसका संक्रमण फैलता है महामारी बाले इलाके के पशुओं के सम्पर्क से भी यह विषाणु फैलता है । इसका संक्रमण काफी लम्बे समय तक कोशिकाओं में उपस्थित रहता हे ।

यही कारण है कि इससे पूर्व में संक्रमित व्यक्ति के वीर्य से लगभग 2 महीने की अवधि तक यह संक्रमित करने की क्षमता रखता है ।इबोला संक्रमण का कोई निश्चित इलाज नहीं है । इससे संक्रमित व्यक्ति को मानव आबादी से अलग रखकर उसका इलाज किया जाता है, ताकि संक्रमण अन्यत्र न फैले । इससे पीडित व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन स्तर और रक्तचाप को सामान्य रखने की कोशिश की जाती है ।

इबोला संक्रमण का पता लगाने हेतु मरीज की कई तरह की जाँचे कराई जाती है । जिनमें एलिसा टेस्ट (एण्टीबॉडी कैप्चर एन्जाइम लिंक्ड इम्पोनोसोरवेंट एसे), एण्टीजन डिटेक्शन टेस्ट, सीरम ऋलाइजेशन टेस्ट, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी आदि है । इस समय मरीजों से प्राप्त नमूनों को काफी सावधानी से रखे जाने की आवश्यकता होती है ।

अब रही बात इबोला संक्रमित व्यक्ति के उपचार की तो अभी तक इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं खोजा जा सका है । न तो इसकी कोई दवा खोजने में सफलता हाथ आयी है न ही कोई एण्टी-बायरस ही खोजा जा सका है ।

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संक्रमित व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर इससे जुड़ी उपचार विधियों पर अनुसंधान किए जा रहे हैं । ‘इबोला’ के मामले में जानकारी ही बचाव है । इसके संक्रमण से बचने का सबसे अच्छा तरीका है, इस सम्बन्ध में अधिकाधिक जागरूकता फैलाना ।

इसके अतिरिक्त इबोला के संक्रमण से बचाव हेतु निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैं:

1. जानवरों और उससे सम्बन्धित खाद्य उत्पादों के संसर्ग, उपभोग के मामले में पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए ।

2. संक्रमित व्यक्ति से संक्रमण प्रसारित न हो, इसके लिए पर्याप्त सुरक्षोपाय कि जाने चाहिए ।

3. संक्रमण से मृत व्यक्ति के दाह-संस्कार एवं अपशिष्टों के विसर्जन के दौरान पूरी निपटान प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए ।

4. प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली को ज्यादा सक्षम व संसाधन सम्पन्न बनाकर भी संक्रमण को प्राथमिक स्तर पर नियन्त्रित करने में मदद मिलेगा ।

5. ‘इबोला’ के संक्रमण से इलाज में सम्पर्क में रहे डॉक्टर व अन्य कर्मियों को भी पर्याप्त खतरा रहता है । अतः इलाज के दौरान उन्हें भी अतिरिक्त बचाव के उपाय करने चाहिए ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इबोला से बचाव हेतु विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं । इनमें प्रमुख तौर पर सभी स्तरों पर पर्याप्त प्रबन्धन, सामुदायिक जागरूकता और सामूहिक प्रयास, संक्रमण की रोकथाम प्रशिक्षण एवं सहयोग शामिल है ।

भारत के सन्दर्भ में देखे तो देश के कई लोगों का व्यवसाय, नौकरी, पर्यटन आदि के कारण पश्चिमी अफ्रीकी देशों में आवागमन लगा रहता है । खासकर इबोला के मामले में यह ध्यातव्य है कि इसके विषाणु संक्रमण की अवधि लम्बी (8-21 दिन) होती है ।

अतः काफी हद तक यह सम्भव है कि इबोला पीड़ित देशों से यात्रियों के माध्यम से संक्रमण देश में प्रवेश कर जाए । ऐसा पहला मामला नवम्बर, 2014 में दिल्ली हवाई अड्डे पर सामने आया । जहाँ लाइबेरिया से आये हुए इबोला संक्रमित व्यक्ति की पहचान की गई । अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक आवागमन के मार्गों पर पर्याप्त परीक्षण की सुविधा हो ।

साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को भी सक्षम बनाया जाए । सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इससे जुड़ी जानकारी का पर्याप्त प्रचार-प्रसार किया जाए । इसके लिए भारत सरकार द्वारा एक नियन्त्रण कक्ष और सहायता नम्बर प्रारम्भ किया गया है एवं हवाई अड्डों पर भी सूक्ष्म जाँच-परीक्षण की सुविधा प्रारम्भ की गई है ।

‘इबोला’ जो आज महामारी का रूप लेता जा रहा है । इसके नियन्त्रण हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के मच से भी वैश्विक एकजुटता का आटान किया गया है । संयुक्त राष्ट्रसंघ महासचिव बान की मून ने इबोला पर वर्ष 2015 के मध्य तक नियन्त्रण पा लिए जाने का संकल्प दर्शाया है । इसके साथ ही चीन और अमेरिका ने भी इबोला की रोकथाम हेतु सन्धिपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं ।

सारांशतः कहे तो वर्तमान वैश्वीकरण के युग में इबोला का प्रकोप राष्ट्र एवं राष्ट्रीयताओं को पार करते हुए पूरी मानवता के लिए खतरा बना हुआ है । आज आवश्यकता है समूचे विश्व को एकजुट होकर इससे निपटने की । इतिहास गवाह है कि वैश्विक प्रयासों ने प्लेग, हैजा, पोलियो, कालाजार जैसी महामारियों पर विजय प्राप्त की है । अतः मानवता के समक्ष खड़े इस सकट से तभी पार पाया जा सकता है जब सम्पूर्ण मानवता एकजुट हो जाए ।

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