ऐतिहासिक स्थल की सैर पर निबंध! Here is an essay on ‘Visit to a Historical Place’ in Hindi language.

ऐतिहासिक स्थलों की सैर कई अर्थों में लाभप्रद साबित होती है । इससे ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षात् अनुभूति होती है । हम लालकिला और इण्डिया गेट को देखकर जो अनुभूति कर सकते हैं, वह किसी भी किताब के माध्यम से नहीं हो सख्ती ।

मैं प्रायः हर वर्ष किसी ऐतिहासिक स्थान की सैर करने अवश्य जाता हूँ । इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में मैं ताजमहल देखने के लिए आगरा गया था । वैसे तो आगरा में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो भव्य एवं आकर्षक हैं, किन्तु आगरा जाने का मेरा मूल उद्देश्य ताजमहल की सैर करना था ।

इसलिए आगरा पहुँचते ही सबसे पहले मैं ताजमहल देखने गया । उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के तट पर स्थित आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है । प्राचीनकाल में इसे अग्रवन एवं आर्यगृह के नाम से जाना जाता था ।

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ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, मध्यकाल में सिकन्दर लोदी ने इस नगर को बसाया था, किन्तु इसके भारतीय विकास में मुगलों का विशेष योगदान रहा । आगरा की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण ताजमहल है । इसे दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है ।

प्रत्येक वर्ष लगभग 50 लाख विदेशी पर्यटक इसे ही देखने के लिए भारत आते हैं । मिस वर्ल्ड रह चुकी ऐश्वर्या राय ने इसे देखकर कहा था- “ताजमहल मुझसे ज्यादा खूबसूरत है ।” ताजमहल के निर्माण सम्बन्धी एक कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है ।

बादशाह शाहजहाँ की सबसे प्रिय बेगम मुमताज महल बहुत खूबसूरत थी । एक बार जब वह बीमार पड़ी, तो उसे लगने लगा कि अब जीवन शेष नहीं बचा है । इसका आभास होने के बाद उसने अपने पति शाहजहाँ से उसकी याद में एक ऐसा मकबरा बनाने का वादा लिया, जो दुनियाभर में अनूठा एवं सर्वाधिक भव्य हो ।

कुछ दिनों बाद जब मुमताज की मृत्यु हो गई, तब शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण प्रारम्भ करवाया । शरत्‌चन्द्र ने अपने उपन्यास ‘शेष प्रश्न’ में ताजमहल का वर्णन करते हुए लिखा है- ”यह शाहजहाँ का मुमताज बेगम के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की निशानी है ।”

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महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ताजमहल की प्रशंसा इस तरह से की है- ”नदी तट पर खड़े ताजमहल को देखकर ऐसा प्रतीत होता हे जैसे समय के गाल पर एक बूँद आँसू टपक पड़ा हो ।”

ताजमहल भारतीय एवं इस्लामी वास्तुकला के अनूठे संगम का उत्कृष्ट नमूना है । कहा जाता है कि इसके निर्माण में 20 वर्षों से भी अधिक समय लगा था । इसका निर्माण 1648 ई. में पूरा हुआ था । उस्ताद अहमद लाहौरी इसके प्रधान वास्तुकार थे ।

यह सफेद संगमरमर से निर्मित है । इस इमारत को मकबरे के तौर पर बनाया गया था । इसके बीच में स्थित गुम्बद इसका सर्वाधिक भव्य भाग है । यह इमारत आयताकार चबूतरे पर बनी हुई है । मुख्य आधार के चारों कोनों पर चार विशाल मीनारें स्थित हैं ।

प्रत्येक मीनार 40 मी ऊँची है । ये मीनारें ताजमहल की बनावट की सममितीय प्रवृत्ति प्रदर्शित करती हैं । मीनार के ऊपरी भाग में मुख्य इमारत जैसा छज्जा बना हुआ है ।

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ये चारों मीनारें बाहर की ओर हल्की-सी झुकी हुई हैं, लेकिन देखने पर इस बात का आभास तक नहीं होता । ताजमहल के चारों ओर कई इमारतें एवं मस्जिदें हैं । यमुना नदी की ओर को छोड़कर, इनके तीन ओर की दीवारें लाल बलुआ पत्थर से निर्मित हैं ।

ताजमहल का बाहरी अलंकरण, मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है । इसका निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि इसके नजदीक जाते हुए यह दूर जाता प्रतीत होता है एवं इससे दूर जाते हुए यह नजदीक आता हुआ प्रतीत होता है ।

इसके अलंकरण के लिए विभिन्न प्रकार की चित्रकारी एवं नक्काशी का सहारा लिया गया है । इसके अतिरिक्त, सुलेख द्वारा भी इसका अलंकरण किया गया है । सुलेख को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के अलंकरण में प्राचीन भारतीय शिल्पकला का प्रयोग स्पष्ट दिखाई पड़ता है ।

चित्रकारी की विषय-वस्तु अधिकांशतः वनस्पति ही हैं, लेकिन वनस्पतियों की चित्रकारी में भी विशेष प्रकार की सुन्दर ज्यामितीय रचनाओं का प्रयोग किया गया है । ताजमहल के आन्तरिक अलंकरण में विशेष प्रकार के रत्नों एवं बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग किया गया है ।

आन्तरिक कक्ष एक अष्टकोण है, जिसके फलक में प्रवेश-द्वार है । आन्तरिक दीवारें लगभग 25 मी ऊंची हैं एवं एक आभासी आन्तीरक गुम्बद से ढकी हैं । इसके आस-पास के छज्जों को लताओं, फूलों एवं फलों की चित्रकारी एवं नक्काशी से सजाया गया है ।

इमारत के मध्य में शाहजहाँ एवं मुमताज की कब्रें हैं । मुस्लिम परम्परा के अनुसार, कब्र की विस्तृत सज्जा निषिद्ध है । इसलिए शाहजहाँ एवं मुमताज महल के पार्थिव शरीर अपेक्षाकृत रूप से साधारण-सी कब्रों में दफन हैं ।

ताजमहल के चारों ओर एक खूबसूरत उद्यान बना हुआ है, जिसे चारबाग कहा जाता है । इस बाग में इमारत तक जाने के लिए एक पथ है, जो बाग को सोलह छोटी-छोटी फूलों की क्यारियों में बाँटता है । इस बाग में विभिन्न प्रकार के सजावटी पौधे लगे हुए हैं ।

समय-समय पर विभिन्न प्रकार के मौसमी फूलों के पौधों द्वारा भी इस बाग को सजाया जाता है । बाग के मध्य में एक तालाब बना है, जिसमें ताजमहल का दृश्य प्रतिबिम्बित होता है ।

ताजमहल जिस स्थान पर बना है, उसके बारे में कहा जाता है कि बह नदी के पास होने के कारण इमारत बनाने के लिए उपयुक्त नहीं था । इसलिए इस भाग की खुदाई कर इसमें कूड़ा-करकट भरा गया, ताकि यह ऊँचा हो जाए ।

इसके अतिरिक्त, लगभग पचास कुएँ भी यहाँ खोदे गए । इन कुओं के ऊपर एक ढाँचा बनाया गया, जिस पर मुख्य इमारत बनाने का कार्य शुरू हुआ । इमारत बनाने के लिए संगमरमर राजस्थान के मकराना से मँगाया गया था ।

निर्माण सामग्रियों एवं संगमरमर को नियत स्थान पर पहुँचाने हेतु, पन्द्रह किलोमीटर लम्बा एक मिट्टी का ढाल बनाया गया था । बीस से तीस बैलों को विशेष प्रकार की गाड़ियों में जोतकर शिलाखण्डों को इमारत बनाने के स्थान पर लाया जाता था ।

नदी से पानी लाने के लिए रहट प्रणाली का प्रयोग किया जाता था तथा पत्थर एवं संगमरमर के खण्डों को इच्छित स्थानों पर पहुँचाने के लिए विस्तृत पैड एवं बल्ली से बनी चरखी का प्रयोग किया जाता था ।

आधारशिला एवं मकबरे के बनने में बारह साल लगे । शेष इमारतों एवं भागों को अगले दस वर्षों में पूरा किया गया । पूरी इमारत को बनाने में उस समय करोड़ों रुपये व्यय हुए ।

वर्तमान समय क अनुसार यदि इसका व्यय निकाला जाए, तो यह खरबों रुपयों से भी अधिक होगा । निर्माण के दौरान यातायात के लिए एक हजार से अधिक हाथियों का प्रयोग किया गया था ।

विभिन्न प्रकार के कीमती रत्न एवं पत्थर चीन, पंजाब, तिब्बत, अफगानिस्तान एवं श्रीलंका से मँगाए गए थे । इसके निर्माण में लगभग बीस हजार से अधिक मजदूर कार्यरत थे ।

भारत के अतिरिक्त अन्य देशों के वास्तुकार एवं शिल्पियों को भी निर्माण में सहयोग के लिए बुलाया गया था । चाँदनी रात में ताजमहल का सौन्दर्य देखते ही बनता है । इसलिए प्रत्येक मास शुक्ल पक्ष में इसके पर्यटकों की संख्या में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होने लगती है ।

एक बार ताजमहल का दीदार कर लेने बाला व्यक्ति जीवनभर इसे भूल नहीं सकता । यह वास्तव में पृथ्वी पर स्वर्ग होने का आभास कराता है । भारत के मशहूर शायर शकील बदायूँनी ने इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है-

“एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल

सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है ।”

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