ओलम्पिक खेल पर निबंध! Here is an essay on ‘Olympics’ in Hindi language.

प्राचीनकाल में सैनिक युद्ध कला सीखने के साथ-साथ सैन्य प्रशिक्षण के अन्तर्गत कुश्ती, मुक्केबाजी, दौड़ा, घोड़ा दौड़ जैसे खेलों का अभ्यास भी किया करते थे । तब शान्ति के समय में यदा-कदा खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था और सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले सैनिकों को सम्राट पुरस्कृत करते थे ।

शुरू-शुरू में इसी प्रकार योद्धा-खिलाड़ियों के मध्य प्राचीन ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था । विश्व में प्रथम ओलम्पिक खेलों का विधिवत् आयोजन 776 ई. पूर्व यूनान (ग्रीस) के ओलम्पिया नामक नगर में हुआ था ।

इस कारण इस खेल आयोजन को ओलम्पिक नाम दिया गया । इस प्रथम ओलम्पिक के आयोजन के बाद प्रत्येक चार वर्ष की अवधि पर ओलम्पिक खेलों का आयोजन किया जाने लगा, जिसमें हजारों की संख्या में लोग एकत्र होकर खेलों का आनन्द लेते थे ।

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उस समय इन आयोजनों में खेलों के अतिरिक्त साहित्य, कला, नाटक, संगीत एवं जिमनास्टिक आदि की स्पर्द्धाएँ भी होती थीं । 394 ई. में रोम के तत्कालीन सम्राट थियोडोसिस ने एक राज्यादेश द्वारा इन खेलों के आयोजन पर प्रतिबन्ध लगा दिया ।

इस आयोजन पर प्रतिबन्ध लगने के कुछ समय बाद ही एक विनाशकारी भूकम्प के कारण ओलम्पिया शहर का अस्तित्व लगभग समाप्त-सा हो गया और इसी विनाश के साथ ओलम्पिक खेलों का आयोजन भी बन्द हो गया ।

19वीं शताब्दी में ओलम्पिया शहर की खुदाई के बाद ओलम्पिक खेलों के बारे में दुनिया को पता चला एवं इसे पुन: प्रारम्भ करने के प्रयास अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुए ।

आधुनिक ओलम्पिक खेलों का आयोजन प्रारम्भ करने का श्रेय फ्रांस के विद्वान् खेल प्रेमी पियरे डि कुबर्तिन को जाता है । 1894 ई. में उनके प्रयासों से ‘अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति’ का गठन किया गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष ‘पियरे डि कुबर्तिन’ ही बनाए गए ।

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इसके बाद ओलम्पिक के जन्मदाता देश यूनान की राजधानी एथेंस में 4 अप्रैल, 1896 को आधुनिक ओलम्पिक खेलों का प्रथम आयोजन हुआ, तब से प्रत्येक चार वर्ष के पश्चात् इसका आयोजन विश्व के विभिन्न स्थानों पर किया जाता रहा है ।

वर्ष 1916 में प्रथम विश्वयुद्ध के कारण छठे ओलम्पिक एवं वर्ष 1940 तथा 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण क्रमशः बारहवें एवं तेरहवें ओलम्पिक का आयोजन नहीं किया जा सका ।

उन्तीसवें ओलम्पिक खेलों का आयोजन चीन की राजधानी बीजिंग में वर्ष 2008 में और तीसवें ओलम्पिक खेल का आयोजन ब्रिटेन की राजधानी लन्दन में वर्ष 2012 में किया गया । इकतीसवें ओलम्पिक खेलों का आयोजन ब्राजील की राजधानी रियो-डि-जेनेरियो में वर्ष 2016 में किया जाना प्रस्तावित है ।

ओलम्पिक का आदर्श वाक्य है- “सिटियस, अल्टियस, फोर्टियस ।” लैटिन भाषा के इन शब्दों का हिन्दी में क्रमशः अर्थ है- ”और तेज, और ऊँचा, और बलशाली ।” वर्ष 1914 में पियरे डि कुबर्तिन के सुझाव पर ओलम्पिक ध्वज बनाया गया ।

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यह ध्वज सिल्क के सफेद कपड़े का बना होता है, जिस पर आपस में जुड़े नीले, पीले काले हरे एवं लाल रंग के पाँच छल्लों के रूप में ओलम्पिक चिह्न मुद्रित होता है । ये पाँच छल्ले पाँच प्रमुख महाद्वीपों- अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया एवं यूरोप को दर्शाते हैं ।

ओलम्पिक खेलों का एक अपना गान है जिसे ‘ओलाम्पिक गान’ कहा जाता है । वर्ष 1968 में मैक्सिको ओलम्पिक से ओलम्पिक शुभंकर की परम्परा की भी शुरूआत हुई ।

ओलम्पिक खेल प्रारम्भ होने से कुछ दिन पहले यूनान के ओलम्पिया स्थित जियस देवता के मन्दिर में सूर्य की किरणों से ओलम्पिक मशाल को प्रज्वलित किया जाता है ।

फिर इसी मशाल से ओलम्पिक आयोजन स्थल की ‘स्टेडियम मशाल’ को प्रज्वलित कर आयोजन प्रारम्भ किया जाता है । खेल प्रारम्भ होने से पूर्व सभी प्रतिभागी खिलाड़ियों की ओर से कोई एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी ओलम्पिक खेलों के नियमों के अनुरूप, सच्ची खेल-भावना से खेलने की शपथ ग्रहण करता है ।

ओलम्पिक खेलो में शामिल होने को भी एक उपलब्धि से कम नहीं का जाता । प्राचीन ओलम्पिक आयोजनों में महिलाओं को भाग नहीं लेने दिया जाता था । 1896 ई. में आयोजित प्रथम आधुनिक ओलम्पिक खेलों में भी महिलाओं को शामिल नहीं किया गया था ।

पेरिस में वर्ष 1900 में आयोजित दूसरे ओलम्पिक खेलों में पहली बार महिलाओं को भी इसमें शामिल करने का निर्णय किया गया । ओलम्पिक खेलों में किसी भी स्पर्द्धा में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वालों को एक प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) के साथ क्रमशः स्वर्ण, रजत एवं काँस्य पदक से सम्मानित किया जाता है ।

चतुर्थ से अष्टम स्थान प्राप्त करने वालों को केवल प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) से सम्मानित किया जाता है । यूँ तो वर्ष 1900 में पेरिस ओलम्पिक में ब्रिटिश भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कोलकाता निवासी एंग्लो-इण्डियन सर नॉर्मन प्रिचार्ड ने हिस्सा लिया था, किन्तु अधिकृत रूप से वर्ष 1920 से ही भारत ने इसमें हिस्सा लेना शुरू किया ।

तब से लेकर वर्ष 2012 में आयोजित लन्दन ओलम्पिक तक भारत कुल मिलाकर 24 पदक जीत पाया है । इनमें से 11 पदक भारत ने हॉकी में जीते हैं, जिनमें से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 काँस्य पदक थे ।

वर्ष 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में केडी जाधव ने काँस्य पदक के रूप में किसी व्यक्तिगत स्पर्द्धा (कुश्ती) में प्रथम ओलम्पिक पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया । इसके बाद वर्ष 1996 में अटलाण्टा ओलम्पिक में लिएण्डर पेस ने टेनिस में एक काँस्य पदक तथा वर्ष 2000 में सिडनी ओलम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में एक काँस्य पदक जीता ।

वर्ष 2004 में एथेंस ओलम्पिक में मेजर राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में एक रजत पदक जीता । वर्ष 2008 के ओलम्पिक में अभिनव बिन्द्रा ने किसी व्यक्तिगत स्पर्द्धा में पहली बार भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया ।

इसी आयोजन में सुशील कुमार ने कुश्ती में एवं विजेन्दर कुमार ने मुक्केबाजी में एक-एक काँस्य पदक प्राप्त किया । वर्ष 2012 में हुए लन्दन ओलम्पिक में भारत के खिलाड़ियों ने दो रजत एवं चार काँस्य पदक जीतकर ओलम्पिक इतिहास का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया ।

इस आयोजन में निशानेबाजी में भारत के गगन नारंग व विजय कुमार, बैडमिण्टन में सायना नेहवाल, महिला मुक्केबाजी में मैरी कॉम, 60 किग्रा पुरुष वर्ग कुश्ती में योगेश्वर दत्त एवं 66 किग्रा कुश्ती में सुशील कुमार ने पदक जीते । भारत का अब तक ओलम्पिक खेलों में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है ।

सवा करोड़ आबादी वाले एक ऐसे देश से, जिसमें युवाओं की संख्या 40 करोड़ से अधिक हो, कम-से-कम इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि उसका नाम पदक-तालिका में यथासम्भव ऊपर हो, किन्तु खेलों में अनावश्यक राजनीतिक दखल, ग्रामीण प्रतिभाओं की अनदेखी, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की आधुनिक खेल सुविधाओं का अभाव इत्यादि कारणों से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन अब तक इन खेलों में आशानुरूप नहीं रहा है ।

बावजूद इसके वर्ष 2012 ओलम्पिक में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन से प्रभावित हो यहाँ के युवा वर्ग के कृत संकल्पित निरन्तर अभ्यास से आशा बँध रही है कि वर्ष 2016 के ब्राजील ओलम्पिक में भारत पदक-तालिका में सम्मानजनक स्थान अवश्य प्राप्त कर लेगा ।

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