कल्पना चावला पर निबंध! Here is an essay ‘Kalpana Chawla’ in Hindi language.

सपने तो सभी देखते हैं लेकिन ऐसे साहसी लोगों की संख्या बहुत कम होती है, जो सपनों को पूरा करते हैं । कल्पना चावला साहस और संघर्ष की एक ऐसी ही प्रतिमूर्ति हैं, जिन्होंने अन्तरिक में जाने के अपने बचपन के सपने को सच कर दिखाया ।

अपनी उपलब्धियों के कारण आज न केवल नासा और भारत को, बल्कि पूरे विश्व को उन पर गर्व है । ‘भारत की बेटी’ और ‘अन्तरिक्ष परी’ के नाम से प्रसिद्ध अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म 1 जुलाई, 1961 को हरियाणा राज्य के करनाल जिले में हुआ था ।

उनके पिता का नाम श्री बनारसी लाल तथा माता का नाम श्रीमती संज्योति चावला है । उनकी स्कूली शिक्षा करनाल के टैगोर बाल निकेतन स्कूल में सम्पन्न हुई । चार भाई-बहनों में सबसे छोटी कल्पना बचपन से ही प्रतिभाशाली थीं ।

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विद्यालय के दिनों में ही उन्हें विज्ञान, अन्तरिक्ष और चाँद-तारों में दिलचस्पी हो गई थी । करनाल शहर के फ्लाइंग क्लब ने उनकी इस दिलचस्पी को और भी बड़ा दिया था । बचपन में वायुयानों को करीब से उड़ते हुए देखकर उनके मन में वायुयानों में बैठकर उड़ने का सपना घर कर गया था ।

छोटी उम्र में ही उन्होंने जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा का नाम सुना, जो भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति होने के साथ-साथ एक सफल एवं कुशल विमानचालक भी थे । बस इन्हीं बातों से प्रभावित कल्पना ने बचपन में ही ठान लिया था कि उन्हें बड़े होकर एरोस्पेस इंजीनियर बनना है ।

हालांकि उनके पिता उन्हें चिकित्सक या शिक्षिका बनते हुए देखना चाहते थे, पर कल्पना की कल्पना में तो केवल अन्तरिक्ष ही था । इसलिए उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से वैमानिक अभियान्त्रिकी (एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की ।

इसके बाद, बह आगे की शिक्षा के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं, जहाँ उन्होंने वर्ष 1984 में टेक्सास विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री और वर्ष 1988 में कोलोरैडो विश्वविद्यालय से वैमानिक अभियान्त्रिकी में ही पीएचडी पूरी की ।

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वर्ष 1988 के अन्त में कल्पना ने नासा के एम्स अनुसन्धान केन्द्र में काम करना शुरू किया, जहाँ उन्होंने हैरियर जैसे पावर्ड लिफ्ट हवाई जहाजों के जमीन पर संचालन सम्बन्धी बहाव, भौतिकी के अनुकरण, विश्लेषण व पावर लिफ्ट वायुयान के महत्वपूर्ण पुर्जों सहित उनकी संरचना एवं संख्यात्मक सिमुलेशन से सम्बन्धित गहन अध्ययन किया ।

उल्लेखनीय है कि कल्पना चावला को हवाई जहाजों, ग्लाइडरों व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षण का दर्जा हासिल था । साथ ही उन्हें एकल व बहु-इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक का लाइसेंस भी प्राप्त था ।

वर्ष 1983 में उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक जीन पियरे हैरीसन से शादी करने के बाद कल्पना चावला को संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता प्राप्त हुई । इसके बाद उन्होंने नासा की अन्तरिक्ष टीम में शामिल होने की कोशिशें प्रारम्भ कर दीं ।

उनकी कोशिशें रंग लाईं और वर्ष 1995 में उन्हें अन्तरिक्ष में जाने वाले अन्तरिक्ष यात्रियों के 15वें समूह में शामिल कर लिया गया, कड़े प्रशिक्षण के बाद 19 नवम्बर, 1997 को उनका पहला अन्तरिक्ष मिशन प्रारम्भ हुआ । छ: सदस्यीय अन्तरिक्ष यात्री दल का हिस्सा होने के नाते कल्पना चावला ने इस मिशन में 10.4 मिलियन मील का सफर तय करते हुए पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं की और अन्तरिक्ष में 372 घण्टे से अधिक समय व्यतीत किया ।

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नासा के इस अन्तरिक्ष अभियान की सफलता के साथ ही कल्पना चावला भारतीय मूल की प्रथम महिला अन्तरिक्ष यात्री और अन्तरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति बन गईं । इस अभियान के बाद कल्पना ने नासा में विभिन्न पदों पर रहकर अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दी । इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2000 में उन्हें पुन: अन्तरिक्ष यात्री के रूप में चुन लिया गया ।

हालाँकि तकनीकी कारणों से इस मिशन में देर होती गई, लेकिन अन्ततः 16 जनवरी, 2003 को कोलम्बिया मिशन एसटीएस-107 की शुरूआत हुई । इस मिशन में उनके साथ छ: अन्तरिक्ष यात्री और भी थे । अपने दल सहित कल्पना चावला ने अन्तरिक्ष में रहते हुए 80 प्रयोग किए, जिनका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी व अन्तरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास व अन्तरिक्ष यात्री स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सम्बन्धी विषयों पर अध्ययन करना था ।

16 दिन अन्तरिक्ष में बिताने के बाद कोलम्बिया यान ने पृथ्वी की ओर कूच किया, परन्तु पृथ्वी पर उतरने से पूर्व ही उस यान का सम्पर्क मिशन नियन्त्रण कक्ष से टूट गया ।  पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते ही अत्यधिक तेज गति के कारण यान का तापमान 165 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुँचा, जिसका परिणाम यह हुआ कि कोलम्बिया यान असंख्य छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया और इसी के साथ यान में सवार सारे अन्तरिक्ष यात्री मारे गए । इस प्रकार, कल्पना चावला की दूसरी अन्तरिक्ष यात्रा उनकी अन्तिम यात्रा सिद्ध हुई ।

सभी तरह के अनुसन्धान तथा विचार-विमर्श के उपरान्त वापसी के समय जिस तरह से यह दुर्घटना घटी, वह नासा सहित सारे विश्व के लिए दर्दनाक घटना थी, लेकिन 1 फरवरी, 2003 को हुई इस दुर्घटना के साथ ही कल्पना का बह कथन सत्य हो गया- “मैं अन्तरिक्ष के लिए ही बनी हूँ । प्रत्येक पल अन्तरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए मरूँगी ।”

इस मिशन की मिशन स्पेशलिस्ट रही कल्पना चावला और उनके साथी अन्तरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए, लेकिन उनके द्वारा किए गए अनुसन्धानों ने विज्ञान को बहुत कुछ दिया है और आगामी अन्तरिक्ष अभियानों के लिए एक सीख भी दी है ।

कल्पना चावला की मृत्यु के बाद अमेरिका और भारत में अनेक प्रकार से उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया गया । नासा ने अपने एक सुपर कम्प्यूटर का नाम कल्पना रखा है, तो भारत ने अपनी मौसम सम्बन्धी उपग्रह श्रृंखला ‘मैटसैट’ को कल्पना को समर्पित किया है ।

उनके नाम से अमेरिका और भारत में कई छात्रवृत्तियों की भी घोषणा की गई है । हरियाणा सरकार ने अपनी इस बेटी के नाम से ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में कल्पना चावला तारामण्डल का निर्माण कराया है । उनके सम्मान में भारत में प्रतिवर्ष 1 फरवरी को अन्तरिक्ष नायकों को याद किया जाता है ।

भले ही कल्पना चावला ने अमेरिकी नागरिकता हासिल कर ली थी, लेकिन भारत में जन्मी कल्पना पर पूरे भारत को गर्व है । उन्होंने अपनी उपलब्धियों से भारतीय महिलाओं को कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित किया हे ।

एक बार उन्होंने कहा था- “मैं किसी एक क्षेत्र या देश से बँधी नहीं हूँ । मैं इन सबसे हटकर मानव जाति का गौरव बनना चाहती हूँ ।” उनका यह कथन सत्य सिद्ध हुआ । अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर उन्होंने पूरे विश्व को जो योगदान दिया है, वह सदा अविस्मरणीय रहेगा ।

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