क्लोनिंग पर निबंध! Here is an essay on ‘Cloning’ in Hindi language.
क्लोनिंग विज्ञान की एक अति उन्नत तकनीक है, जो पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक विवादास्पद रही है । कुछ लोग इसे मनुष्य के लिए वरदान, तो कुछ लोग इसे अभिशाप मानते है, इसलिए कुछ लोग इसके अनुसन्धान का समर्थन करते हैं, तो कुछ लोग इसका विरोध । क्लोनिंग उचित है या अनुचित, इसे जानने के लिए सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि इसके विविध पक्ष क्या हैं?
क्लोनिंग का तात्पर्य होता है- प्रतिरूपण । क्लोनिंग अथवा प्रतिरूपण आनुवंशिक रूप से समान प्राणियों के अलैंगिक प्रजनन की ऐसी कृत्रिम जैव-वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें किसी प्राणी की कोशिका अथवा डीएनए का प्रयोग उसके प्रतिरूप अथवा क्लोन को जन्म देने के लिए किया जाता है ।
किसी भी प्राणी की कोशिका एवं डीएनए में उसके सारे आनुवंशिक गुण विद्यमान रहते है । इसी सिद्धान्त के आधार पर इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है । क्लोनिंग जटिल वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसे अत्यधिक दक्ष वैज्ञानिक, किसी विकसित प्रयोगशाला में ही अंजाम दे सकते हैं ।
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यद्यपि क्लोनिंग की अवधारणा अत्यन्त प्राचीन है । भारतीय पौराणिक अन्यों में भी क्लोनिंग के कुछ उदाहरण जैसे-जरासन्ध के शरीर का दो भागों में होना, रावण का दशानन होना इत्यादि देखने को मिलते हैं, किन्तु इन उदाहरणों में हमें विज्ञान की झलक कम ही मिलती है ।
क्लोनिंग की आधुनिक अवधारणा विज्ञान के सिद्धान्तों पर आधारित है । यद्यपि इसकी शुरूआत का श्रेय यूरोप के वैज्ञानिकों को जाता है, किन्तु इसे प्रसिद्धि दिलाने में स्कॉटलैण्ड के रॉसलिन इंस्टीटूयूट के वैज्ञानिक इयान वल्मुट का प्रमुख योगदान रहा है ।
उनकी टीम ने वर्ष 1996 में क्लोनिंग तकनीक से ‘डॉली’ नामक एक भेड् को उत्पन्न किया । इसके बाद क्लोनिंग के लाभ-हानि की चर्चा विश्वभर में छिड़ गई और विश्वभर के वैज्ञानिक इससे सम्बन्धित अनुसन्धान कार्य में जुट गए ।
भारत में भी करनाल के कृषि वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग तकनीक से उन्नत प्रजाति की भैंस के विकास में सफलता प्राप्त की है क्लोनिंग से सम्बन्धित विवादों का सिलसिला मानव क्लोनिंग की शुरूआत के साथ शुरू हुआ ।
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‘डॉली’ नामक भेड को उत्पन्न करने वाले वैज्ञानिकों की टीम की अगुआई करने वाले नोबेल पुरस्कार प्राप्त इग्लैण्ड के वैज्ञानिक सर जॉन गर्डन मानव क्लोनिंग के समर्थन में कहते हैं- ”यदि क्लोनिंग वास्तव में मानव की समस्याओं का निदान करता है और लोगों के लिए लाभकारी है, तो मेरे विचार से इसे स्वीकार करना चाहिए ।
आने बाले पचास वर्षों में ऐसे माता-पिता, जिन्होंने दुर्घटनाओं में अपने बच्चों को खो दिया हो, उनके क्लोन ‘प्रतिरूपों’ को पाने में सक्षम हो जाएंगे ।” नि:सन्देह क्लोनिंग से कई लाभ हो सकते है । यह तकनीक जन्तुओं एवं पेड़-पौधों की विलुप्त प्रजातियों के लिए निश्चित तौर पर वरदान साबित हो सकती ।
इस तकनीक के माध्यम से इन्हें पुनर्जीवन दिया जा सकता है । नि:सन्तान दम्पतियों को भी इस तकनीक से सन्तान प्राप्ति सम्भव है । इस तकनीक की सहायता से मानव अंगों का बिकास कर दुर्घटना में घायल लोगों का इलाज किया जा सकता है । यह अनेक प्रकार की बीमारियों का हल निकालने में भी सहायक साबित हो सकती है । क्लोनिंग कृषि एवं पशुपालन के लिए बरदान साबित होगी ।
इसके माध्यम से उन्नत नस्ल की गायें एवं भैंसें तैयार की जा सकेगी । इसका लाभ डेयरी उद्योग को मिलेगा । इस तरह, देखा जाए तो क्लोनिंग के कई फायदे होंगे । क्लोनिंग के यदि कई फायदे हैं, तो इसके दुरुपयोग से कई प्रकार के नुकसान भी सम्भव हैं । अपराधी अपना क्लोन पैदा कर उससे अपराध करवाएंगे ।
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इस तरह, असली अपराधी पर्दे के पीछे से अपने कार्य को अंजाम देते रहेंगे और नकली अपराधी को पकडकर भी कानून असली अपराधी का कुछ बिगाड नहीं पाएगा । इस तकनीक की मदद से सुपर मानव को जन्म दिया जा सकता है बह सुपर मानव अनेक प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न हो सकता है इस तकनीक से यदि वैज्ञानिक चाहे, तो ऐसे व्यक्तियों के भी प्रतिरूप तैयार कर सकते हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं ।
इस तकनीक की मदद से एडॉल्फ हिटलर, मुसोलिनी, लेनिन, चर्चिल ही नहीं, बल्कि जिस व्यक्ति के भी डीएनए दुनिया में सुरक्षित हैं, उसका प्रतिरूप बनाना मनुष्य के लिए आसान हो जाएगा । इससे नस्लबादी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा । विकसित देश अपना वर्चस्व कायम करने के लिए इस तकनीक का दुरुपयोग करेंगे ।
इस तकनीक से ऐसे मनुष्य को भी विकसित किया जा सकता है, जो किसी विशेष कार्य में दस हो भयंकर-से-भयंकर अपराधी या दयालु-से-दयालु मानव या इन दोनों का मिश्रण वैज्ञानिक जैसा चाहे वैसा मनुष्य बनाने में सफलता प्राप्त कर लेंगे ।
अमीर लोग इस तकनीक के माध्यम से अपने लिए अधिक बुद्धिमान एवं सुपर शक्तियों से सम्पन्न बच्चे पाने की कोशिश करेंगे, चूँकि यह कार्य अधिक खर्चीला होता है, इसलिए निर्धनों को इससे किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं होगा, चाहे वह इलाज का कार्य हो या कोई अन्य कार ।
इस तरह, क्लोनिंग की तकनीक के दुरुपयोग से कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी । यह प्रकृति के नियमों को मनुष्य की सबसे बडी चुनौती साबित होगी । इस तकनीक की एक और कमी यह है कि इसके माध्यम से उत्पन्न प्राणियों में अब तक कई प्रकार की समस्याएँ देखी गई है ।
ढली नामक भेड भी कई प्रकार की बीमारियों का शिकार हो गई थी, इसलिए मानव क्लोनिंग की इजाजत किसी भी देश में नहीं दी गई है । हालाँकि मनुष्य के इलाज के लिए इसके सीमित प्रयोग की इजाजत कुछ देशों में दी गई है हमारे पूर्व राष्ट्रपति व महान् वैज्ञानिक श्री एपीजे अब्दुल कलाम का कहना है- ”मैं मानव क्लोनिंग के खिलाफ हूँ क्योंकि मानव ईश्वर के लाखों-करोडों वर्षों की जेनेटिक इंजीनियरिंग का परिणाम है, किन्तु स्वास्थ्य बहाली हेतु आँख, जिगर और दिल जैसे अंगों की क्लोनिंग की जानी चाहिए ।”
कोई भी तकनीक उचित है या अनुचित यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसका प्रयोग किस रूप में और क्यों किया जा रहा है । यदि सब्जी काटने वाले चाकू का प्रयोग किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने के लिए किया जाए, तो इसमें उस चाकू का क्या दोष है ।
यदि उसका प्रयोग सब्जी काटने के लिए किया जाता है, तो नि:सन्देह वह मनुष्य के लिए लाभदायक होने के कारण बरदान है और यदि उसका प्रयोग हिंसा के लिए किया जाता है, तो नि:सन्देह बह मनुष्य के लिए अभिशाप है, किन्तु दोनों ही परिस्थितियों में गौर करने वाली बात यह है कि चाकू को वरदान या अभिशाप बनाने वाला मनुष्य है ।
यही बात विज्ञान के किसी भी नियम एवं तकनीक पर लागू होती है । परमाणु विस्फोट की तकनीक का प्रयोग यदि ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाए, तो निश्चित रूप से परमाणु तकनीक मनुष्य के लिए वरदान साबित होगी, लेकिन यदि इसका प्रयोग मनुष्य के विनाश के लिए किया जाए, तो इसे हम मनुष्य के लिए उचित कैसे कह पाएंगे । इसी तरह क्लोनिंग हमारे लिए वरदान साबित होगी यदि हम इसका सदुपयोग करें और अभिशाप साबित होगी यदि हम इसका दुरुपयोग करें ।