पर्वतराज हिमालय पर निबंध! Here is an essay on ‘Himalayas’ in Hindi language.

किसी भी भारतीय से यदि यह आ जाए कि उसे भारत कीं किन प्राकृतिक स्थलाकृतियों पर गर्व है, तो उसके उत्तर में हिमालय को अवश्य स्थान मिलेगा । हिमालय वास्तव में भारत का गौरव है ।

इसकी प्रशंसा में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने लिखा है-

”मेरे नगपति! मेरे विशाल, साकार दिव्य गौरव विराट ।

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पौरुष के पूँजीभूत ज्वाल, मेरी जननी के हिम किरीट ।

मेरे भारत के दिव्य भाल । मेरे नगपति मेरे विशाल ।”

हिमालय प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का रक्षक एवं पोषक रहा है । इसलिए भारतीय कवियों ने इसका भरपूर गुणगान किया है । सिन्धु घाटी सभ्यता के विकास में हिमालय का योगदान प्रमुख था । हिमालय भारतीय जलवायु को भी प्रभावित करता है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी हिमालय से निकली नदियों, इन नदियों से निर्मित घाटियों एवं हिमालय क्षेत्र के वनों का प्रमुख योगदान है ।  ‘हिमालय’ संस्कृत के दो शब्दों ‘हिम’ और ‘आलय’ से मिलकर बना है । ‘हिम’ का अर्थ होता है- ‘बर्फ’ एवं ‘आलय’ का अर्थ होता है- ‘घर’ ।

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इस तरह हिमालय का अर्थ हुआ- ‘बर्फ का घर’ । चूंकि हिमालय एक पर्वत श्रृंखला है, इसलिए यहाँ यह बताना आवश्यक हो जाता है कि पर्वत और पर्वत-श्रृंखला किसे कहते हैं ।  पृथ्वी की सतह से उठे हुए ऐसे क्षेत्र, जिनका शिखर छोटा एवं आधार चौड़ा होता है, पर्वत कहलाते है । कई पर्वतों के सम्मिलित रूप को पर्वत सुखला कहा जाता है ।

हिमालय विश्व की सर्वाधिक ऊँची पर्वत-श्रृंखला है । पर्वत के प्रकार के दृष्टिकोण से यह वलित पर्वत है ।  संरचना के आधार पर भारत को चार प्राकृतिक विभागों में विभाजित किया जाता है । इन चारों विभागों में से एक है- हिमालय एवं इससे सम्बद्ध पर्वत-श्रेणियाँ । हिमालय श्रेणी 2400 किमी की लम्बाई वाले अर्द्धवृत्त के रूप में भारत के उत्तरी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश से लेकर जम्मू-कश्मीर तक फैली है ।

इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 किमी एवं अरुणाचल प्रदेश में 150 किमी है । अपने पूरे देशान्तरीय विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है । इन श्रृंखलाओं के मध्य कई घाटियाँ हैं । इस श्रृंखला के उत्तरी भाग को हिमाद्रि या आन्तरिक हिमालय कहा जाता है । इसकी औसत ऊँचाई 6,000 मी है ।

माउण्ट एवरेस्ट, इस पर्वत-श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मी है । यह विश्व कीं भी सर्वाधिक ऊँची पर्वत चोटी है ।  हिमाद्रि अर्थात् आन्तरिक हिमालय का अधिकतर हिस्सा बर्फ से का रहता है । हिमाद्रि के दक्षिणी भाग को हिमाचल या निम्न हिमालय कहा जाता है । इसकी ऊँचाई 3,700 मी से लेकर 4,500 मी के बीच तथा चौडाई 50 किमी है ।

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इसी सुखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल के काँगडा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं ।  कवि जयशंकर प्रसाद ने इन पंक्तियों के माध्यम से इसी हिमालय की ऊँची चोटी का उल्लेख करते हुए भारत भूमि के वीर सुपुत्रों का देश को स्वतन्त्र कराने के लिए आह्वान किया था-

”हिमाद्रि तुंग श्रुंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयं प्रभा समुज्जला

स्वतन्त्रता पुकारती ।”

हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता है । इसकी चौड़ाई 10 से 50 किमी तथा ऊँचाई 900 से 1,100 मी के बीच है । ये श्रृंखलाएँ उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लाए गए असम्पीडित अवसादों से बनी है ।

ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ की मोटी परत से ढकी हुई हैं । निम्न हिमाचल तथा शिबालिक के बीच में स्थित लम्बवत् घाटी को दून कहा जाता है । देहरादून एवं पाटलीदून इसके उदाहरण हैं ।  हिमालय पर्वत-श्रृंखला में 100 से अधिक पर्वत हैं । ये सभी पर्वत छ: देशों-नेपाल, भारत, भूटान, तिज्जत, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान की सीमाओं का स्पर्श करते है ।

सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली कुछ प्रमुख नदियाँ है । हिमालय पर्वत-श्रृंखला में पन्द्रह हजार से अधिक ग्लेशियर हैं, जो बारह हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं । पूरी हिमालय पर्वत-श्रृंखला लगभग पाँच लाख वर्ग किलोमीटर में फैली है ।

इस पर्वत-श्रृंखला की उत्पत्ति प्राचीनकाल के टैथिस सागर में हुई थी । इस सागर के निक्षिप्त तलछट भूगर्भीय हलचलों के फलस्वरूप धीरे-धीरे ऊपर उठ चले, जिससे विश्व के इस नवीनतम बलित पर्वत की उत्पत्ति प्रारम्भ हुई । इसके निर्माण की प्रक्रिया दीर्घ काल तक चलती रही । वैज्ञानिकों के अनुसार, इसको वर्तमान स्वरूप तक पहुँचने में लगभग सात करोड वर्ष लगे ।

हिमालय पर्वत-श्रृंखला के पूरे प्राकृतिक विभाग को चार प्रमुख खण्डों-पंजाब हिमालय, कुमायूँ हिमालय, नेपाल हिमालय एवं असोम हिमालय में बाँटा जाता है ।  सिन्धु एवं सतलुज नदी के बीच लगभग छ किलोमीटर की दूरी में फैला क्षेत्र पंजाब हिमालय, सतलुज एवं काली नदियों के बीच लगभग तीन सौ किलोमीटर की दूरी में फैला क्षेत्र कुमायूँ हिमालय, काली एवं तिस्ता नदियों के बीच लगभग आठ सौ किलोमीटर की दूरी में फैला क्षेत्र नेपाल हिमालय तथा तिस्ता एवं दिहाग नदियों के बीच लगभग सात सौ किलोमीटर की दूरी में फैला क्षेत्र असोम हिमालय कहलाता है ।

पश्चिम में हिमालय पामीर के उस छोर से मिलता है, जहाँ कराकोरम, हिन्दूकुश, कुनलुन इत्यादि पर्वत-श्रृंखलाएँ मिलती हैं । उत्तर-पूर्व में यह म्यामांर की सीमा पर स्थित उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली मिशमी, पटकाई बूम और नागा पर्वत-श्रृंखलाओं में मिलता है । हिमालय की ढाल भारतीय मैदान की ओर कगार जैसी खड़ी और तिब्बत पठार की ओर मन्द है ।

इसके कारण दक्षिण की ओर बढने पर दुर्गम रास्ते मिलते हैं । ढालों की इस विभिन्नता के कारण हिमालय के दक्षिणी और उत्तरी भागों में पाए जाने बाले हिम के वितरण में असमानता देखी जाती है । उत्तरी भाग में मन्द ढाल है, इसलिए उस ओर हिमनदों (ग्लेशियर) का जमाव अधिक होता है ।

हिमालय हमारे लिए बहुत लाभदायक है । यह उत्तर में खड़े हमारे प्रमुख प्रहरी का कार्य करता है । यह भारत की अधिकतर नदियों का स्रोत है । इन नदियों से निर्मित घाटियाँ कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है । गंगा नदी एवं इसका बहाव क्षेत्र इसका सबसे अच्छा उदाहरण है ।

हिमालय के कई क्षेत्रों में जलाशय का निर्माण कर उनका उपयोग सिचाई एवं जल-विद्यूत उत्पादन के लिए किया जाता है । हिमालय में कई प्रकार की वनस्पतियाँ तथा जीव-जन्तु पाए जाते हैं । हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों के वनों से हमें ईंधन, चारा, कीमती लकड़ियाँ एवं विभिन्न प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं इतना ही नहीं हिमालय हम भारतवासियों को अडिग होकर निरन्तर अपने कर्म-पथ पर चलते रहने कीं प्रेरणा भी देता है ।

कवि सोहनलाल द्विवेदी के शब्दों में-

”खडा हिमालय बता रहा है

डरो न आँधी पानी में ।

खडे रही तुम अविचल होकर

सब संकट तूफानी में । ।”

हिमालय शुरू से ही पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है । इसकी प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है । कई पहाड़ी पर्यटन स्थल हिमालय श्रेणी में अवस्थित हैं । ये स्थान पर्यटन के साथ-साथ पैराग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग तथा स्कीइंग जैसे खेलों के लिए भी प्रसिद्ध हैं ।

नेपाल एवं भारत में जल की आवश्यकता की अधिकांश आपूर्ति हिमालय से ही होती है । हिमालय पर्वत-श्रृंखला प्राचीनकाल से ही योगियों एवं ऋषियों की भी तपोभूमि रही है ।  हिन्दुओं के अनेक तीर्थ; जैसे-हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, ऋषिकेश इत्यादि हिमालय पर्वत-श्रृंखला में ही स्थित हैं । श्रीराम शर्मा आचार्य ने ‘हिमालय की यात्रा’ नामक यात्रा वृनान्त में हिमालय की शोभा का बडा ही सुन्दर एवं सजीव वर्णन किया है । हमारे प्राचीन शास्त्र भी इस पर्वत श्रृंखला के गुणगान से भरे हुए हैं ।

संस्कृत का यह श्लोक इसका गवाह है-

”हिमालय समारम्भ यावत् इंदु सरोवरम् ।

तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्तान प्रचक्षते । ।”

इसका अर्थ है- हिमालय पर्वत से प्रारम्भ होकर हिन्द महासागर तक फैले हुए हिन्दुस्तान देश की रचना ईश्वर ने की है । इस प्रकार पर्वतराज हिमालय न सिर्फ हमारे देश का अभिन्न अंग है बल्कि यह हमारी पहचान भी है ।

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