भारतीय संविधान पर निबंध | Essay on the Indian Constitution in Hindi.
Essay Contents:
- भारतीय संविधान का प्रारम्भ (Introduction to Indian Constitution)
- भारत में संविधान सभा की मांग (Demands for the Constituent Assembly in India)
- क्रिप्स मिशन (Cripps Mission)
- कैबिनेट मिशन योजना और संविधान सभा का निर्माण (Formation of Cabinet Mission Plan and Constituent Assembly)
- संविधान सभा की रचना और उसका स्वरूप (Composition and Constitution of the Constituent Assembly)
- संविधान सभा की स्थिति और आलोचनात्मक टिप्पणियाँ (Status of the Constituent Assembly and Critical Comments)
Essay # 1. भारतीय संविधान का प्रारम्भ (Introduction to Indian Constitution):
संविधान में किसी देश द्वारा प्राप्त किए जाने वाले आदर्शों और लक्ष्यों का समावेश होता है । इसके साथ-साथ उस शासन व्यवस्था सरकार का स्वरूप, शक्तियों का विभाजन, अधिकार व मौलिक कर्तव्य आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन होता है । वास्तव में किसी भी देश का संविधान एक दर्पण की भांति कार्य करता है, जो उस देश की शासन व्यवस्था एवं राज्य के स्वरूप को परिलक्षित करता है ।
संविधान लिखित भी होता है और अलिखित भी । सर्वप्रथम संसार में लिखित संविधान के रूप में अमेरिकी संविधान का निर्माण (1789) हुआ । जबकि ब्रिटेन का संविधान सबसे प्राचीन अलिखित संविधान है जोकि मुख्यतः प्रथाओं व रीति रिवाजों से संचालित होता है लेकिन अलिखित संविधान का तात्पर्य यह नह है कि ब्रिटेन का संविधान कमजोर या निष्क्रिय है ।
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सर्वश्रेष्ठ संविधान वही होता है जिसके आदर्शों व लक्ष्यों को जनता हृदयंगम कर, उनकी प्राप्ति के प्रति सतत् प्रयत्नशील हो । इस दृष्टि से संविधान का लिखित या अलिखित रूप महत्व नहीं रखता बल्कि किसी कानून को लिपिबद्ध करने से अच्छा है कि उनकी छाप लोगों के मन मस्तिष्क पर अंकित हो ।
Essay # 2.भारत में संविधान सभा की मांग (Demands for the Constituent Assembly in India):
भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्धारण कर सकें, इसलिए भारतीय नेताओं द्वारा संविधान सभा के गठन की माँग ब्रिटिश शासन से समय-समय पर की गई । अमेरिका की स्वतंत्रता और उनके द्वारा संविधान निर्माण, फ्रांस की राज्य क्रांति तथा विश्व की अन्य लोकतांत्रिक घटनाओं ने भारतीय लोगों को स्वशासन प्राप्ति के लिए और अधिक प्रेरित किया ।
सर्वप्रथम तिलक ने संविधान सभा के गठन की मांग को 1895 में अपने स्वराज्य विधेयक में उठाया । 1922 में गाँधी जी ने भी संविधान सभा की मांग की और कहा कि भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा । इसके पश्चात तो संविधान सभा के विचार ने एक व्यापक रूप धारण कर लिया । विभिन्न प्रस्तावों और सभाओं में संविधान के निर्माण की मांग को दोहराया जाने लगा ।
सर्वप्रथम औपचारिक रूप से भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन का विचार एम॰ एन॰ राय द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसे मूर्तरूप देने का कार्य जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया । 1935 ई॰ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा की स्थापना के लिए प्रस्ताव पास किया और घोषणा की कि ”यदि भारत को आत्म निर्णय का अवसर मिलता है तो भारत के सभी विचारों के लोगों की प्रतिनिधि सभा बुलाई जानी चाहिए, जो सर्वसम्मत संविधान का निर्माण कर सके, यही संविधान सभा होगी ।”
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दिसम्बर 1936 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा के अर्थ और महत्व की व्याख्या की गई । 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस मांग को दोहराया तथा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी हुई एक संविधान सभा का विचार प्रस्तुत किया, जो बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के स्वतंत्र भारत का संविधान बनाए । गाँधीजी सहित अन्य लोगों का भी मानना था कि संविधान सभा से इस देश की सामुदायिक अशांति दूर होगी और वह देश को उचित राजनीतिक दिशा प्रदान करेगा ।
लेकिन जहां एक तरफ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस संविधान सभा के गठन की मांग को बार-बार दोहरा रही थी, वहीं, दूसरी तरफ मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश शासन की भांति इस मांग का विरोध किया । संविधान सभा की स्थापना के विषय में मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण आरंभ से ही अलग था । मुस्लिम लीग ने कांग्रेस द्वारा मांगी हुई संविधान सभा के प्रति न ही कोई सहानुभूति तथा न ही कोई सहयोग दिया क्योंकि उनके विचार में संविधान सभा एक ऐसा साधन बन सकती थी जो हिन्दू शासन को सारे देश में फैला देगा ।
1940 में लाहौर में हुए सम्मेलन में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना को अपना राजनीतिक लक्ष्य घोषित किया जिसे जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत के नाम से जाना जाता है जिसमें उन्होंने एक पृथक मुस्लिम राज्य की मांग की । अपने इसी उद्देश्य या मांग को ध्यान में रखकर मुस्लिम लीग संविधान सभा के बारे में सहमत हो गई लेकिन उसने मुसलमानों के बहुसंख्यक क्षेत्रों के लिए पृथक संविधान सभा की मांग भी उठाई ।
Essay # 3. क्रिप्स मिशन (Cripps Mission):
हालांकि 1940 के पूर्व तक ब्रिटिश सरकार का दृष्टिकोण ‘संविधान सभा’ के गठन के प्रति नकारात्मक व विरोधात्मक रहा । लेकिन 1940 के बाद उनके इस दृष्टिकोण में परिवर्तन देखने को मिला जिसके मुख्यतः दो कारण रहे । प्रथम, अब कांग्रेस के साथ-साथ मुस्लिम लीग ने भी संविधान सभा की मांग की तो उसका व्यापक प्रभाव पड़ा, दूसरे, द्वितीय विश्व युद्ध की आवश्यकताओं और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों ने उसे ऐसा करने के लिए विवश कर दिया ।
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8 अगस्त, 1940 को वाइसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने घोषणा की कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारत में एक पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाएगी तथा साथ ही एक संविधान सभा की स्थापना का प्रबंध किया जाएगा ।
अतः हम देखते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात क्रिप्स योजना के अनुसार संविधान सभा का निर्माण इस दिशा में अगला कदम था । सर स्टैफोर्ड क्रिप्स ने ब्रिटिश कॉमन सभा में कहा था कि मेरा मत है कि भारत की राजनीतिक समस्याओं का समाधान एक संविधान सभा की रचना के माध्यम से ही संभव है ।
क्रिप्स योजना के अनुसार भारतीय संघ की स्थापना उस संविधान पर आधारित थी, जो भारतीय संविधान सभा द्वारा तैयार किया जाएगा । इस योजना में संविधान सभा की रचना की विधि की भी चर्चा की गई थी । इस सभा में दो प्रकार के प्रतिनिधि होने थे । प्रथम, प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि और द्वितीय, भारतीय रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत प्रतिनिधि ।
लेकिन दुर्भाग्य से क्रिप्स मिशन योजना दोषों से अछूती नहीं थी जिसके कारण इसे भारतीय जनता की आलोचना का सामना करना पड़ा । सर्वप्रथम इसकी आलोचना इस आधार पर की गई कि संविधान सभा में रियासतों के सदस्यों की संख्या तो रियासतों की जनसंख्या पर आधारित थी, पर उनमें रहने वाले 9 करोड़ व्यक्तियों को अपने प्रतिनिधि चुनने का कोई अधिकार नहीं था ।
इससे भी अधिक निराशाजनक बात यह थी कि भारतीय राजाओं द्वारा मनोनीत सदस्यों का रूढ़िवादी तथा लोकतंत्र का विरोधी होना स्वाभाविक ही था । ऐसे व्यक्ति भारत की संवैधानिक प्रगति में रूकावट डाले बिना नहीं रह सकते थे ।
Essay # 4. कैबिनेट मिशन योजना और संविधान सभा का निर्माण (Formation of Cabinet Mission Plan and Constituent Assembly):
क्रिप्स योजना के असफल होने के बाद 9 फरवरी, 1946 ई॰ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक कैबिनेट मिशन भेजने की घोषणा की जो 24 मार्च, 1946 को भारत पहुंचा, जिसमें निम्नलिखित तीन सदस्य थे- 1. सर स्टैफोर्ड क्रिप्स, 2. ए॰ वी॰ अलैक्जेंडर, 3. सर पैथिक लारेंस ।
कैबिनेट मिशन ने एक योजना पेश की जिसकी मुख्य विशेषता यह थी कि इसने भारत के विभाजन को अस्वीकार कर दिया । साथ-ही-साथ इसने देशी रियासतों तथा ब्रिटिश भारत को मिलाकर एक भारतीय संघ बनाने का सुझाव दिया ।
इस योजना में संविधान सभा के निर्माण के बारे में मूल चार व्यवस्थाएँ थी:
1. इसमें कुल 389 सदस्य होंगे, जिनमें से 292 प्रांतों से, 4 सदस्य चीफ कमिश्नर प्रांतों से तथा 93 सदस्य भारतीय रियासतों से होंगे ।
2. प्रत्येक प्रांत द्वारा भेजे गए सदस्यों कीर संख्या उनकी जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाएगी । प्रत्येक दस लाख जनसंख्या पर एक सदस्य निर्वाचित होगा ।
3. प्रांतों को दिए गए स्थानों को उनमें रहने वाली मुख्य जातियों की संख्या के आधार पर विभक्त किये जाए । इनमें प्रत्येक जाति के लोग अपने प्रतिनिधि चुनेंगे ।
4. भारतीय रियासतों से भी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधि आने थे किंतु उनके चुनने की विधि का निर्णय शासकों के परामर्श से करना था ।
इस प्रकार कैबिनेट मिशन योजना एक व्यापक तथा महत्वपूर्ण योजना थी, जिसमें अखंड भारत के लिए संविधान सभा के गठन के सुझाव दिए गए थे । वास्तव में इसने भारतीयों की दीर्घकालीन इच्छा की ही पूर्ति की थी लेकिन दूसरी तरफ यह योजना क्रिप्स मिशन योजना की भांति दोषरहित नहीं थी, फिर भी संवैधानिक प्रगति में यह एक बडा महत्वपूर्ण कदम था । कांग्रेस और मुस्लिम लीग के साथ-साथ सभी राजनीतिक दलों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया ।
कांग्रेस ने संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र, अखंड तथा लोकतंत्रीय भारत के संविधान के बनने की आशा से प्रेरित होकर इसको स्वीकार कर लिया, वहीं मुस्लिम लीग ने इस योजना में पाकिस्तान के बनने के बीज उपस्थित देखकर इसको स्वीकार करने में अपनी भलाई समझी ।
Essay # 5. संविधान सभा की रचना और उसका स्वरूप (Composition and Constitution of the Constituent Assembly):
जुलाई 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुनाव हुए । इस चुनाव में ब्रिटिश भारत के 292 स्थानों में से कांग्रेस ने 208, मुस्लिम लीग ने 73, 7 निर्दलीय सदस्यों तथा 4 स्थान सिखों ने प्राप्त किए । इन चुनावों में कांग्रेस की भारी सफलता को देख मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया और पाकिस्तान के लिए एक पृथक संविधान सभा की मांग प्रारंभ कर दी ।
मुस्लिम लीग के इस रवैये के कारण स्थिति और अधिक बिगड़ गई । हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में एक सम्मेलन बुलाया । जिसमें पं॰ नेहरू, मि॰ जिन्ना तथा सिखों की ओर से सरदार बलदेव सिंह सम्मिलित हुए लेकिन इस सम्मेलन का कोई परिणाम नहीं निकला ।
इसका परिणाम वही हुआ जो होना था । लीग ने संविधान सभा में संयुक्त होना आवश्यक नहीं समझा और अलग संविधान सभा की मांग करती रही । दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार ने जून 1948 तक भारत छोड़ने की घोषणा कर दी । संविधान सभा यथाशीघ्र संविधान निर्माण कर सके इसके लिए पं॰ नेहरू ने एक समिति नियुक्त की जिसके द्वारा संविधान सभा के कार्य संचालन की आवश्यक प्रक्रिया तय की गई ।
9 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन शुरू हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री सच्चिदानन्द सिन्हा द्वारा की गई जोकि संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष चुने गये । लेकिन शीघ्र ही डा॰ राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष के रूप में चुना गया । 13 दिसम्बर 1946 को पं. नेहरू द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया जो संविधान निर्माण की दिशा में प्रथम कदम के रूप में जाना जाता है ।
इस प्रस्ताव को संविधान सभा में प्रस्तुत करते हुए नेहरू ने कहा ”मैं आपके सामने जो प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा हूँ उसमें हमारे उद्देश्यों की व्याख्या की गई है, योजना की रूपरेखा दी गई है और बताया गया है कि हम किस रास्ते पर चलने वाले हैं ।”
यह प्रस्ताव बडा ही महत्वपूर्ण था जिसमें निम्नलिखित बातों का उल्लेख था:
1. भारत में एक स्वतंत्र तथा सार्वभौम गणराज्य स्थापित किया जाए ।
2. इस गणराज्य में भारत के समस्त व्यक्तियों को राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक समानता प्राप्त होगी ।
3. उनको बोलने तथा लिखने, संस्था बनाने, कोई भी व्यवसाय करने, किसी भी धर्म तथा मत को अपनाने तथा छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी ।
4., अल्पसंख्यकों, अनुसूचीत जातियों तथा जनजातियों, पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा का प्रबंध किया जाएगा ।
श्री के॰एम॰ मुंशी ने इस प्रस्ताव के बारे में कहा ”यह प्रस्ताव हमारे गणतंत्र की जन्मपत्री है” ।
प्रस्ताव के समर्थन के पश्चात विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया ।
जिनमें प्रमुख समितियाँ थी:
1. संघ संविधान समिति
2. प्रांतीय संविधान समिति
3. संघ शक्ति समिति
4. मूल अधिकारों, व अल्पसंख्यकों से संबंधित परामर्श समिति
5. प्रारूप समिति आदि ।
देशी रियासतों से बातचीत करने के लिए संविधान सभा ने एक वार्ता समिति पहले ही गठित कर दी थी । इन समितियों ने विचार-विमर्श के पश्चात अपनी रिपोर्ट संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत की । उन पर वाद-विवाद के पश्चात सदस्यों द्वारा आवश्यक संशोधन रखे गए ।
इन समितियों के केंद्र में प्रारूप समिति थी । डॉ॰ भीम राव अम्बेडकर इस समिति के अध्यक्ष चुने गये जिनमें अन्य सदस्य मोहम्मद सादुल्ला, के॰एम॰ मुंशी, बी॰एल॰ मित्तर, एन गोपालास्वामी आयंगर, अल्लादी कृष्णारचामी, तथा डी॰पी॰ खेतान थे । बाद में मित्तर और खेतान के स्थानों पर एन॰ माधवराव तथा टी॰टी॰ कृष्णामाचारी को नियुक्त किया गया ।
इस प्रारूप समिति का मुख्य कार्य यह था कि वह संविधान सभा की परामर्श शाखा द्वारा तैयार किए गए संविधान का परीक्षण करें और फिर संविधान को विचार के लिए संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करें । संविधान सभा ने इस प्रारूप का तीन बार वाचन किया तथा लगभग एक वर्ष तक गंभीर विचार विमर्श के पश्चात 26 नवम्बर 1949 को इस पर संविधान सभा के अध्यक्ष डा॰ राजेन्द्र प्रसाद ने हस्ताक्षर किए ।
इस प्रकार स्वतंत्र भारत का संविधान पूर्णरूप से तैयार हो गया । अपने अंतिम रूप में संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी ।
संविधान निर्माण कार्य संविधान सभा ने ग्यारह अधिवेशनों में किया जिनमें कुल 114 दिन सभा की बैठक हुई । संविधान के प्रारूप में हजारों संशोधन प्रस्तावित किए गए जिनमें से केवल 2474 संशोधनों पर विचार किया गया । संपूर्ण संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन का समय लगा । इस कार्य पर लगभग 64 लाख रूपये व्यय हुए ।
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन हुआ जिसमें संविधान सभा ने सर्वसम्मति से डा. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना । संविधान सभा के सभी सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए । पं॰ जवाहरलाल नेहरू हस्ताक्षर करने वाले प्रथम व्यक्ति थे ।
हालांकि 26 नवम्बर 1949 को जब संविधान पूर्ण हुआ तो नागरिकता, निर्वाचन और अंतरिम संसद से संबंधित उपबंधों को तुरंत लागू कर दिया गया लेकिन संविधान को 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से लागू किया गया । संविधान को लागू करने लिए 26 जनवरी का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि संविधान निर्माता भारत के प्रथम स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 की पुण्य स्मृति को सम्मानित करना चाहते थे ।
Essay # 6. संविधान सभा की स्थिति और आलोचनात्मक टिप्पणियाँ (Status of the Constituent Assembly and Critical Comments):
भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया था जिसमें विभिन्न पक्षों का अपना-अपना योगदान रहा फिर भी संविधान सभा की आलोचना करने वाले आलोचकों का मत है कि यह सभा एक दलीय सभा थी और यह मूल रूप से कांग्रेस पार्टी की सभा थी । इसी प्रकार की अन्य टिप्पणियाँ आलोचकों द्वारा भारतीय संविधान सभा पर की जाती रही हैं जिनमें से कुछ का विवेचन निम्नलिखित रूप से किया जा रहा है ।
1. क्या संविधान सभा प्रभुत्व संपन्न संस्था थी:
संविधान सभा के निर्माण के पश्चात ही यह एक विवाद का विषय बन गया कि क्या संविधान सभा स्वयं में प्रभुत्व संपन्न थी या नहीं । आलोचकों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के बाद किया गया था । अतः इसे समाप्त करने की शक्ति भी उसको प्राप्त थी ।
दूसरे, कैबिनेट मिशन ने संविधान सभा की शक्तियों, अधिकारों व सीमाओं पर प्रतिबंध लगाए हुए थे । ब्रिटिश संसद के एक वाद-विवाद में तो विंस्टन चर्चिल ने संविधान सभा की वैधता को ही चुनौती दे दी । जबकि सत्य यह है कि भारत की विशिष्ट स्थिति होने के कारण ब्रिटिश सरकार अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध थी किंतु जब विभाजन योजना स्वीकार कर ली गई तब यह समस्या समाप्त हो गई और ब्रिटेन ने किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया ।
भारतीय नेताओं का कहना था कि चूंकि संविधान सभा ने शक्ति जनता से प्राप्त की थी, अतः प्रभुत्व संपन्न थी । स्वयं नेहरू ने इस विचार की पुष्टि करते हुए कहा ”सरकारें राजकीय पक्षों से पैदा नहीं होती । वास्तव में वे जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति होती है । हम आज यहां इसलिए एकत्रित हो पाए हैं क्योंकि हमारे पीछे जनता की शक्ति है ।”
2. संविधान सभा अप्रत्यक्ष रूप में निर्वाचित सभा थी:
आलोचकों का यह भी कहना है कि यह सभा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित थी, ब्रिटिश भारत के प्रांतों की विधान सभाओं ने संविधान सभा को चुना था । भारतीय रियासतों से भी प्रतिनिधि जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित नहीं हुए थे । अतः यह वास्तविक रूप से भारतीय जनता के प्रतिनिधि नहीं थे ।
अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित कोई भी सभा जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती । जयप्रकाश नारायण और उनके वर्ग द्वारा इस बात पर बल दिया गया कि संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार और प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर किया जाना चाहिए था ।
हालांकि सैद्धांतिक दृष्टि से उपर्युक्त विचार सत्य है लेकिन यदि भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का अध्ययन किया जाए तो यह भली भांति ज्ञात हो जाता है कि अप्रत्यक्ष निर्वाचन के बावजूद भी संविधान सभा सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाली उच्चस्तरीय संस्था थी ।
यदि वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव कराए भी जाते तो संविधान सभा के स्वरूप में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता क्योंकि तब भी कांग्रेस को ही विशाल बहुमत प्राप्त होना था । यह बात बाद में होने वाले चुनावों से सिद्ध हो जाती है ।
3. वर्ग विशेष की संस्था:
संविधान सभा की एक अन्य आलोचना इस बात पर की जाती है कि यह सभा हिन्दू वर्ग विशेष की संस्था थी, जिसमें अन्य धर्मों के लोगों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त था । जबकि सच्चाई यह है कि संविधान सभा में निर्णय लेते समय सभी पक्षों व वर्गों से सहमति ली गई थी ।
इतना ही नहीं, संविधान सभा में हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमान, ईसाई, पारसी व एंग्लो-इंडियन आदि के प्रतिनिधि भी विद्यमान थे । पिछड़े वर्गों का भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व था । इस प्रकार हिन्दुओं के प्रभुत्व की बात सर्वथा अनुचित दिखाई देती है ।
4. संविधान सभा का स्वरूप साम्प्रदायिक था:
कुछ आलोचकों का मत है कि संविधान सभा के संगठन का स्वरूप साम्प्रदायिक था । प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं के सदस्यों द्वारा सम्प्रदायिकता के आधार पर ही संविधान सभा के सदस्यों को चुनना था । यह इसलिए किया गया ताकि साम्प्रदायिक सहयोग प्राप्त हो सके और संविधान सभा में किसी एक ही सम्प्रदाय का बहुमत न हो जाए ।
5. यह एक दलीय संस्था थी:
आलोचकों का यह भी कहना है कि संविधान सभा में वास्तव में कांग्रेस के ही लोगों का वर्चस्व था । अतः संविधान सभा एक कांग्रेस संस्था के रूप में थी । ग्रेनविल आस्टिन ने कहा है कि एक दलीय देश में संविधान सभा का एक दलीय होना स्वाभाविक था ।
जबकि वास्तविकता यह है कि कांग्रेस ने संविधान सभा में अपना बहुमत होते हुए भी विभिन्न पक्षों और दृष्टिकोणों के लोगों को न केवल सदस्य बनाया बल्कि उनके विचारों को संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान दिया । डॉ॰ अम्बेडकर कांग्रेसी न होते हुए भी प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे ।
इसके साथ ही इसमें सर्वपल्ली राधाकृष्णन, गोपालस्वामी आयंगर जैसे विद्वान तथा डा॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे कांग्रेस विरोधी भी थे ।
भारतीय संविधान निर्माण के लिए जिन विभिन्न संविधानों का अध्ययन व उनसे जो उपबंध लिये गए उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:
उपबंध:
1. संसदीय प्रणाली
2. मौलिक अधिकार
3. सर्वोच्च न्यायालय का संगठन व शक्तियाँ
4. गणतंत्र
5. संसद तथा विधानमंडल की प्रक्रिया
6. उपराष्ट्रपति का पद
7. आपातकालीन उपबंध
8. राज्य के नीतिनिदेशक
9. मौलिक कर्तव्य
10. समवर्ती सूची
11. संसद के विशेषाधिकार
स्रोत:
1. यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन)
2. यू.एस.ए. (अमेरिका)
3. यू.एस.ए.
4. फ्रांस
5. यूनाइटेड किंगडम
6. यू.एस.ए.
7. जर्मनी तथा 1935 का भारत अधिनियम
8. आयरलैंड
9. पूर्व सोवियत संघ
10. ऑस्ट्रेलिया
11. यूनाइटेड किंगडम |