भारत का आर्थिक विकास पर निबंध! Here is an essay on ‘Economic Development in India’ in Hindi language.
विगत दशकों में भारत का आर्थिक विकास उत्साहवर्द्धक रहा है । विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीपीपी (परचेजिंग पावर पैरिटी) के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 6.4% है और इस आधार पर आज हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, किन्तु अभी भी यह विश्व में उस स्थान को प्राप्त नहीं कर सका है जिसका यह वास्तव में हकदार है ।
इसका कारण है-देश में समस्याओं का अम्बार लगा होना, जिनका समाधान एक कठिन चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ा है । देश के पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. लालबहादुर शास्त्री का भी मानना था कि बिना इन समस्याओं का समाधान किए देश का आर्थिक विकास सम्भव नहीं है । उन्होंने कहा भी था- ”आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे जरूरी हैं और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपने सबसे बड़े दुश्मन गरीबी और बेरोजगारी से लड़े ।”
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जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार, नारी-शोषण, सामाजिक शोषण, अशिक्षा, औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया इत्यादि भारत के आर्थिक विकास के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ हैं:
1. जनसंख्या वृद्धि:
जनसंख्या वृद्धि हमारे देश के आर्थिक विकास के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती तो है ही, साथ ही बढती जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर सृजित नहीं होने के कारण बेरोजगारी एवं गरीबी में भी वृद्धि होती है जो आगे अनेक सामाजिक समस्याओं एवं बुराइयों की जड़ बनती है ।
जनसंख्या तो बढ़ती है किन्तु उस अनुपात में हमारे संसाधनों में वृद्धि नहीं हो पाती, जिसके फलस्वरूप सीमित संसाधनों का बँटवारा हमें पहले के मुकाबले अधिक लोगों के साथ करना पड़ता है नतीजतन हुमारा आर्थिक विकास धीमा पड़ जाता है ।
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2. गरीबी:
गरीबी अथवा निर्धनता उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है । गरीबी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं इसके विकास में अनेक प्रकार की समस्याएँ जन्म लेती हैं । चोरी, अपहरण, हत्या, डकैती, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति जैसी बुराइयों की जड़ में कहीं-न-कहीं गरीबी ही है । भारत के करोड़ों लोग अब भी घोर गरीबी की स्थिति में जीवन जीने को विवश हैं ।
3. बेरोजगारी:
भारत के आर्थिक विकास में बेरोजगारी भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है । बेरोजगारी के कारण देश के संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता, कुपरिणामस्वरूप देश के आर्थिक विकास को समुचित गति नहीं मिल पाती ।
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4. आर्थिक विषमता:
भारत की यह अजीब विडम्बना है कि यहाँ एक ओर तो ऐसे धनकुबेरों की कमी नहीं है जिनके पास अकूत सम्पत्ति है, वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिनके लिए दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है । आर्थिक विषमता की यह स्थिति भारत के आर्थिक विकास में बहुत बड़ी बाधा है ।
5. भ्रष्टाचार:
भ्रष्टाचार आज की तारीख में आर्थिक बिकास में सबसे बड़ी बाधा है । कुछ लोग कानूनों की अवहेलना करके अपना उल्लू सीधा करते हुए भ्रष्टाचार को बढावा देते है । इसकी वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है ।
6. नारी-शोषण:
हमारे देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहाँ पूर्व में स्त्री शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता था । यहाँ की स्त्रियों को चहारदीवारी तक ही सीमित रखा जाता था । उनका शोषण किया जाता था । आज भी इस ‘आधी आबादी’ में से कुछ की स्थिति ही ठीक हे बाकी या तो घर की देखभाल में लगी रहती है या फिर अशिक्षा या अन्य गलत परम्परा जैसे कारणों से किसी कार्य में संलग्न नहीं रहती, जिसके कारण देश का आर्थिक विकास प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है ।
7. सामाजिक शोषण:
धनिक वर्ग द्वारा गरीबों का शोषण, उनकी मजबूरी का फायदा उठाना ही सामाजिक शोषण है । यदि मजदूरों का शोषण किया जाएगा, उन्हें उचित मजदूरी नहीं दी जाएगी, तो भला कैसे कोई देश आर्थिक विकास कर सकता है ।
8. अशिक्षा:
हम चाहे जितने दावे कर लें लेकिन सच्चाई यही है कि भारत की लगभग 30% आबादी आज भी अशिक्षित है । इनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति और भी चिन्ताजनक है । आज भी लगभग 40% महिलाएं अशिक्षित है । इतनी बड़ी आबादी के अशिक्षित होने से देश का आर्थिक विकास गम्भीर रूप से बाधित होता है ।
9. औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया:
भारत की जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही है, उसके यथोचित पोषण के लिए औद्योगीकरण की प्रक्रिया में जिस तीव्रता की आवश्यकता थी, उसे हम आज तक प्राप्त कर पाने में विफल रहे हैं । फलस्वरूप आर्थिक विकास की गीत धीमी हुई है ।
देश एवं समाज के आर्थिक बिकास के लिए इन चुनौतियों का शीघ्र समाधान आवश्यक है और इसका उत्तरदायित्व मात्र राजनेताओं अथवा प्रशासनिक अधिकारियों का ही नहीं है, बल्कि इसके लिए संयुक्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता है ।
देशभर में शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार कर एवं यहाँ की जनता द्वारा ‘छोटा परिवार, सुखी पीरवार’ का आदर्श अपनाकर बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाया जा सकता है । साक्षरता दर को ऊँचा उठाकर, कुटीर उद्योग आदि का विस्तार कर रोजगार के नए-नए क्षेत्र तलाशे जाने चाहिए ।
आर्थिक विषमता को दूर करने हेतु नई नीतियों का गठन किया जाना चाहिए । नारियों को अधिकाधिक संख्या में शिक्षित कर उन्हें रोजगार से जोडा जाना चाहिए । इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिण्ट मीडिया को इन सुधार कार्यों में खुलकर सहयोग करने की आवश्यकता है ।
समाज सुधारकों, लेखकों, कलाकारों एवं अन्य बुद्धिजीवी वर्गों को भी जन-जन से जुड़कर लोगों में नई चेतना का संचार करना चाहिए, ताकि देश में सामाजिक क्रान्ति लाई जा सके । नोबेल पुरस्कार प्राप्त भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का भी कहना है- ”सामाजिक परिवर्तन के बिना आर्थिक विकास सम्भव नहीं है ।”