भारत में आधुनिकीकरण पर निबंध | Essay on Modernization in India in Hindi.

1. डॉ. एस. सी. दुबे के विचार:

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भारत में परम्परा और आधुनिकता विरोधाभास के रूप में मौजूद हैं । विकास की योजनाओं में परम्पराएँ बाधक सिद्ध हुई है । जातीयता व साम्प्रदायिकता ने राष्ट्रीय दृष्टिकोण में रोड़ा पैदा किया है पवित्रता और अपवित्रता की प्राचीन धारणा धर्म-निरपेक्षता के मार्ग में बाधक रही है ।

धर्म और धार्मिक संस्कार तथा कर्म-काण्ड विवेक के विकास में बाधक हैं । प्रदत्त व अर्जित पदों का तालमेल नहीं बैठ पाया है । परम्परा प्रदत्त पदों को चाहती है तो आधुनिकता अर्जित पदों की पुष्टि करती है । आधुनिकता तटस्थता चाहती है तो परम्परा भावात्मकता चाहती है ।

हिन्दुओं के प्राचीन सिद्धान्त जैसे कर्म का सिद्धान्त, जीवन चक्र का सिद्धान्त, संस्तरण खण्डात्मकता, परलोकवाद, पवित्रता-अपवित्रता की धारणा, पुरुषों की प्रधानता तथा कौटुम्बिकता आदि आधुनिकीकरण में बाधक है । आज का भारत परम्परा और आधुनिकता की दुविधा में फँस गया है ।

उसके सामने एक द्वन्द है कि वह किस सीमा तक परम्परा को छोड़े एवं किस सीमा तक आधुनिकता को अपनाये । 80 प्रतिशत लोग जो गाँवों में रहते हैं, परम्परावादी हैं । दूसरी ओर गाँव आधुनिकता से बिल्कुल अछूते भी नहीं हैं यातायात, रेल, मोटर, सड़क, संचार, रेडियो, समाचारपत्र, शिक्षा, प्रशासन, सामुदायिक योजनाएँ आदि ने वहाँ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है । गाँवों में भौतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे हैं और नये मूल्य, सम्बन्ध व आकांक्षायें भी पनप रहे हैं ।

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वर्तमान में गाँवों में भी परिवर्तन की हवा चलने लगी है, अब उन्हें हम स्थिर और जड़ नहीं कह सकते । गाँवों की समाज व्यवस्था, भाई-चारा, जाति एवं स्थानीयता पर आधारित थी । परिवार, वंश एवं जाति से जुड़ा हुआ था, अब उसका स्वरूप बदला है । परिवार में व्यक्तिवाद उभर रहा है, जबकि पहले सामूहिकता को महत्व दिया जाता था ।

अब समूह में लिंग, आयु व सम्बन्ध के आधार पर अधिकार का निर्धारण न होकर योग्यता, अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर होता है संयुक्त परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध बदले हैं । स्त्रियों का परिवार में महत्व बढ़ा है । जाति के क्षेत्र में विवाह, व्यवसाय संस्तरण, कर्म-काण्ड व पवित्रता की धारणा में परिवर्तन हुआ है, अन्तर्विवाह की धारणा यद्यपि अभी भी दृढ़ है ।

जातियों में छुआछूत को कम करने के आन्दोलन हुए है तथा नगरों में विभिन्न जातियों के मेलजोल के अवसर बड़े हैं । गाँवों में भी जजमानी प्रथा व व्यवसाय में परिवर्तन हुए हैं राजनीति में अन्तर्जातीय समझौते हुए हैं । अल्पसंख्यक उच्च जातियों के पास सत्ता और शक्ति है ।

साथ ही वे बहुसंख्यक निम्न जातियों के दबाव के सामने झुकी हैं और उनसे समझौते भी किये हैं । जातियों की पारस्परिक दूरी कम हुई है । जातियाँ नये रूप में संगठित हो रही हैं तथा उनके स्थानीय, प्रान्तीय और राष्ट्रीय संगठन बने हैं । धार्मिक विश्वास के क्षेत्र में भी परिवर्तन हुए हैं । कर्मकाण्ड व भाग्यवादिता में विश्वास कम हुआ है एवं नास्तिकता बड़ी है ।

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नयी शिक्षा-प्रणाली, नयी अर्थव्यवस्था, प्रशासन, सामुदायिक विकास योजना नगरीकरण औद्योगीकरण, यातायात व संचार, प्रेस, अखबार तथा नये सामाजिक एवं धार्मिक आन्दोलनों ने उपरोक्त परिवर्तनों को संजोया है ।

2. डॉ. योगेश अटल के विचार:

डॉ. अटल के अनुसार भारत में परम्परा व आधुनिकता साथ-साथ चल रही है । नयी शिक्षा और नये व्यवसाय के कारण लोग शहरों में आकर रहते हैं तथा यहाँ उनकी परिवार व्यवस्था में भी परिवर्तन आते है । स्थानीय दूरी ने पारिवारिक दूरी अधिक नहीं बढ़ायी है और सदस्यगण, विवाह, त्यौहार, उत्सव जन्म, मृत्यु और छुट्टियों के अवसर पर मिलते है विवाह पर खर्च चाहे केन्द्रीय परिवार करें परन्तु विवाह निमन्त्रण पत्रिका पर पितृवंशीय कुल के बुजुर्ग के नाम अंकित रहते हैं । करों ने भी परिवार के ढांचे को बदला है ।

आयकर के कारण दुकानों के खाते अलग-अलग सदस्यों के नाम से चलते है । वे मकान और भूमि का बँटवारा कर देते हैं । घर और कार्यालय की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न है । ऑफिस से लौटकर नयी पोशाक के साथ ही आधुनिकता को भी लोग खूंटी पर टाँग देते हैं और धोती पहनकर भोजन करते हैं ।

इस बात का उल्लेख आन्द्रे बैते ने अपनी पुस्तक ‘Caste, Class and Power’ में भी किया है । स्त्रियाँ घर में परम्परात्मक हैं तो दूसरी ओर आधुनिक प्रसाधनों जैसे गैस का चूल्हा, प्रेशर कुकर का प्रयोग, चप्पल पहने खडे-खडे खाना बनाना, पार्टियों व होटलों में जाना स्त्रियों द्वारा नौकरी करना, मम्मी-पापा आदि शब्दों का प्रयोग, अंग्रेजी भाषा का प्रयोग तथा प्रेम-विवाह की आकांक्षाएँ आदि और आधुनिकता का मिश्रित रूप प्रकट करते हैं ।

3. रूडोल्फ एवं रूडोल्फ के विचार:

रूडोल्फ एवं रूडोल्फ के अनुसार अंग्रेजों ने भारत में आधुनिकीकरण की नींव रखी उन्होंने भारत को नयी अर्थव्यवस्था और राजनैतिक एकता दी । प्रेस व नयी शिक्षा प्रणाली ने भारत में नये शिक्षित वर्ग को जन्म दिया नवीन प्रविधियों सिंचाई के साधनों तथा यातायात की वर्तमान सुविधाओं ने कृषि में क्रान्ति ला दी ।

गाँवों की पृथकता व जड़ता सड़कों ने समाप्त कर दी । रेल यातायात ने उद्योगों को जन्म दिया जिससे परम्परात्मक जाति-व्यवस्था पर आधारित समाज व्यवस्था में कई परिवर्तन आये । एक तरफ जाति ने प्राचीन ग्राम्य व्यवस्था को बनाये रखा तो दूसरी तरफ प्रजातन्त्र को भी ।

भारत में राजनीति व जाति के सम्बन्ध तीन रूपों में देखने को मिलते है:

(i) उदग्र गतिशीलता:

इसमें उच्च जाति के और प्रभावशाली लोग निम्न जातियों का सहारा परम्परात्मक वफादारी व अर्थव्यवस्था के नाम पर लेते हैं ।

(ii) क्षेतिज गतिशीलता:

क्षेतिज गतिशीलता के अन्तर्गत प्रत्येक जाति ने अपने जातीय संगठन बनाये हैं और अपने सदस्यों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक हितों को प्रोत्साहन दिया है । नये जातीय संगठनों का नेतृत्व नवीन एवं शिक्षित पीढ़ी के हाथ में है जो जनतान्त्रिक विचारों से ओतप्रोत हैं और जिनमें परम्परात्मक व आधुनिक विशेषताओं का सम्मिश्रण है ।

(iii) विभेदमूलक गतिशीलता:

विभेदमूलक गतिशीलता के अन्तर्गत राजनैतिक दल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बहुमत पाने के लिए मतदाताओं से प्रार्थना करते है । इसके लिए वे जाति का सहारा भी लेते हैं । उम्मीदवारों का चुनाव करते समय राजनैतिक दल क्षेत्र की जातीय स्थिति को भी ध्यान में रखते हैं ।

रूडोल्फ ने भारत में कानून व न्याय व्यवस्था के आधुनिकीकरण का भी उल्लेख किया है । कानून का शासन एवं वर्तमान न्याय-व्यवस्था भारत को अंग्रेजों की देन है । अंग्रेजों के समय में ही पहली बार सम्पूर्ण भारत एक ही प्रकार के कानून व न्याय-व्यवस्था द्वारा प्रशासित हुआ । अंग्रेजों के समय में ही बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह, स्त्री सम्पत्ति अधिकार, उत्तराधिकार एवं सती-प्रथा निरोधक कानून बने जिन्होंने परम्परात्मक व्यवस्था को आधुनिकता का पुट प्रदान किया ।

आधुनिक भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण:

(a) नवीन वर्गों का उदय:

भारतीय समाज में नवीन वर्गों, विशेष रूप से मध्यम वर्ग का तथा विशिष्टजन वर्ग का जन्म हुआ है । आधुनिक सुविधाओं के कारण सर्वप्रथम उच्च जातियों के लोगों ने व्यवसायिक सुविधाओं का ही लाभ नहीं उठाया अपितु नौकरशाह एवं तकनीकी विशेषज्ञों जैसे पदों पर नियुक्ति के कारण वे अपनी परम्परागत सत्ता को मजबूत बनाये रखने में सफल रहे । फिर भी इस नवीन मध्यम एवं विशिष्टजन वर्ग की भारतीय समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।

(b) जनता का राजनीतिकरण:

आज भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण अत्यन्त तीव्रता से हो रहा है तथा इससे गाँव जाति धर्म इत्यादि में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं । प्रजातन्त्र के आधुनिक मूल्यों को पंचायतें तथा प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले चुनाव सुदृढ़ बना रहे हैं तथा जनता के राजनीतिकरण में राजनीतिक दल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ।

(c) शिक्षा एवं गतिशीलता में वृद्धि:

शिक्षा प्राप्ति से सम्बन्धित परम्परागत दृष्टिकोण एवं निषेध समाप्त हो रहे हैं तथा इससे शिक्षा का विस्तार हुआ है और सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है । शिक्षा सुविधाओं से निम्न जातियों में आत्म-सम्मान बढ़ा है तथा उन्हें आगे बढ़ने के अधिक अवसर प्राप्त हुये हैं ।

(d) औद्योगीकरण:

भारतीय समाज में औद्योगीकरण भी तीव्रता से हुआ है । वास्तव में आधुनिकीकरण तभी सम्भव है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास हो । आज भारत औद्योगीकरण की दृष्टि से संसार का दसवां देश है ।

(e) नगरीकरण:

आधुनिकीकरण ने नगरीकरण की प्रक्रिया को भी प्रोत्साहन दिया है क्योंकि इससे परम्परागत व्यवसायों की समाप्ति ही नहीं हुई है अपितु गतिशीलता एवं नौकरी की सम्भावनाओं में भी वृद्धि हुई है क्योंकि अधिकांश उद्योग नगरीय क्षेत्रों में ही खुले हैं, अतः नगरों में ग्रामीण लोगों को रोजगार मिलने की सम्भावनाओं में वृद्धि हुई है ।

(f) लौकिकीकरण:

आधुनिकीकरण तार्किक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित है अत: इसने भारतीय समाज में लौकिकीकरण अथवा धर्म निरपेक्षीकरण लाने में भी काफी सहायता दी है । आज भारत एक लौकिक राज्य है ।

(g) नियोजित सामाजिक परिवर्तन:

आधुनिकीकरण का लक्ष्य आर्थिक सम्पन्नता एवं राजनीतिक स्थिरता लाकर देश को विकसित देशों की तरह आगे बढ़ने में सहायता देना है । अतः इससे नियोजित सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहन मिला है ताकि हम अपने लक्ष्यों को समयबद्ध योजनाओं द्वारा प्राप्त कर सकें ।

(h) समस्याओं में वृद्धि:

आधुनिकीकरण के अच्छे परिणामों के साथ-साथ इसका एक दूसरा पक्ष भी है । इससे हमारे समाज में अनेक समस्यायें भी उत्पन्न हो गई है । उदाहरणार्थ इससे व्यक्तिवादिता में वृद्धि हुई है तथा संयुक्त परिवार एवं विवाह की संस्थायें इससे प्रभावित हुई हैं । जनता में विकसित नवीन आशाओं एवं मांगों में वर्तमान स्थिति के प्रति असन्तोष बढ़ा है । नवीन तथा परम्परावादी मान्यताओं में संघर्ष ने भी मानसिक तनाव एवं असामंजस्य बढ़ाने में सहायता दी है ।

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