भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन! Read this article in Hindi to learn about:- 1. नियोजित सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा 2. नियोजित सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य and Other Details.
Contents:
- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा
- नियोजित सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य
- अमरीका के राष्ट्रीय साधन नियोजन बोर्ड
- भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन
- नियोजित सामाजिक परिवर्तन का लक्ष्य और विधियाँ
- भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन का मूल्यांकन
- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से नियोजन का प्रभाव
- भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन में प्रमुख बाधायें
- नियोजित सामाजिक परिवर्तन विषयक भ्रान्तियां
1. नियोजित सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा:
परिवर्तन प्रकृति का नियम है । तीव्र अथवा धीमी गति द्वारा यह प्रत्येक समाज में होता रहता है । प्रत्येक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं है क्योंकि परिवर्तन भौतिक जगत अथवा जैवकीय व्यवस्था में भी होता रहता है । भौतिक जगत में हो रहे परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन के स्रोत हो सकते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक सम्बन्धों सामाजिक संगठन अर्थात् सामाजिक संरचना एवं प्रकार्यों तथा विशिष्ट सामाजिक संस्थाओं और उनके परस्पर सम्बन्धों में होने वाला परिवर्तन है । किंग्स्ले डेविंस के अनुसार सामाजिक परिवर्तन में केवल वही परिवर्तन सम्मिलित किये जाते हैं जो सामाजिक संगठन अर्थात् सामाजिक संरचना और प्रकार्यों में घटित होते हैं ।
टी. बी. बॉयेमार के अनुसार सामाजिक परिवर्तन से अभिप्राय सामाजिक संरचना में परिवर्तन, विशिष्ट सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन अथवा संस्थाओं के परस्पर सम्बन्धों में परिवर्तन है । मैकाइवर तथा पेज ने सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही सामाजिक परिवर्तन कहा है ।
1. ओडम- इनके अनुसार नियोजन द्वारा सामाजिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जिसके द्वारा प्राकृतिक व सामाजिक शक्तियों तथा परिणामतः विकसित सामाजिक व्यवस्था पर नियन्त्रण प्राप्त किया जाता है ।
2. मिड्रल- “नियोजन किसी देश की सरकार द्वारा किये गये वे जागरूक प्रयास है जिसके द्वारा लोक-नीतियों को अधिक तार्किक ढंग से समन्वित किया जाता है ताकि अधिक तेजी व पूर्णता से भावी विकास के उन लक्ष्यों पर पहुंचा जा सके जो कि विकसित होती हुई राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा निर्धारित किये गये हैं ।”
ADVERTISEMENTS:
3. एंडरसन तथा पार्कर- ”सामाजिक-नियोजन या चेतन रूप से निर्देशित सामाजिक परिवर्तन एक उस कार्यक्रम का विकास है जो कि किसी समाज के लिये या उसके किसी भाग के लिए पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये तैयार किया जाता है ।”
उपरोक्त विद्वानों ने निम्न प्रश्नों द्वारा नियोजित सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या की है- नियोजन में यह निर्णय लेना पड़ता है कि हमें क्या करना है ? कैसे करना है और कौन करेगा ? तथा ये भी, कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को इसमें कैसे शामिल किया जायेगा ? संक्षेप में नियोजित सामाजिक परिवर्तन वह सामाजिक परिवर्तन है जो पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार सचेतन और योजनाबद्ध रूप से सामाजिक व्यवस्था में लाने का प्रयास किया जाता है ।
इस व्याख्या के अनुसार नियोजित सामाजिक परिवर्तन के मूल तत्व हैं:
(i) स्पष्ट व निर्धारित लक्ष्य;
ADVERTISEMENTS:
(ii) विचारपूर्वक बनाया गया समयबद्ध प्रोग्राम; और
(iii) जिन समूहों पर प्रभाव पड़ता है उनकी सहभागिता ।
नियोजित सामाजिक परिवर्तन बनाम निर्देशित सामाजिक परिवर्तन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार सचेतन और योजनाबद्ध रूप से सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयास है । कई बार हमें किसी विशिष्ट समस्या के समाधान के लिए अलग से नियोजन करना पड़ता है ।
इस प्रकार का नियोजन सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित न होकर समाज की किसी एक समस्या या पहलू से सम्बन्धित होता है । इसी को निर्देशित सामाजिक परिवर्तन कहते हैं । इस प्रकार निर्देशित सामाजिक परिवर्तन नियोजित सामाजिक परिवर्तन का ही एक अंग है तथा उससे सीमित क्षेत्र वाली अवधारणा है ।
उदाहरण के लिये मान लीजिये कि वेश्यावृत्ति की समस्या के समाधान के लिये या दहेज प्रथा की समस्या को दूर करने के लिये या लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिये कोई योजना बनाई जाये जो उसी समस्या विशेष से सम्बन्धित हो तो उसे निर्देशित सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है ।
निर्देशित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य समाज में पायी जाने वाली समस्याओं का समाधान करना है जबकि नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य पूरे समाज का नियोजन लक्ष्यों के आधार पर करना है । दोनों के साधन या कारक ही एक जैसे नहीं है । अपितु दोनों में एक जैसी बाधायें भी उपस्थित होती हैं ।
नियोजित सामाजिक परिवर्तन बनाम सामाजिक परिवर्तन:
सामाजिक परिवर्तन एवं नियोजित सामाजिक परिवर्तन दोनों एक नहीं हैं । प्रत्येक सामाजिक परिवर्तन को नियोजित सामाजिक परिवर्तन नहीं कहा जा सकता । नियोजित सामाजिक परिवर्तन वास्तव में सामाजिक परिवर्तन का ही एक विशिष्ट प्रकार है जिसमें परिवर्तन की दिशा का पूर्वानुमान होता है और जिनमें निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये जागरूक रूप से प्रयास करने पड़ते हैं ।
संक्षेप में अपनी निम्नांकित विशेषताओं के कारण नियोजित सामाजिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन से पृथक् किया जा सकता है:
(1) दिशा- नियोजित सामाजिक परिवर्तन निश्चित दिशा की ओर और उस दिशा की ओर बढ़ने का जागरूक प्रयास है जिसे समाज ने तार्किक एवं विवेकशील रूप से निर्धारित किया है ।
(2) उद्देश्य- नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य समाज को पुनर्गठित अथवा पुनर्व्यवस्थित करना है ।
(3) प्रकृति- यह स्वत: होने वाली प्रक्रिया न होकर चेतन रूप से किया जाने वाला प्रयास है ।
(4) निर्णय- सामाजिक परिवर्तन की अपेक्षा जो कि एक प्रक्रिया मात्र है, नियोजित सामाजिक परिवर्तन एक निर्णय है ।
(5) समस्या समाधान- नियोजित सामाजिक परिवर्तन में वर्तमान समाज में पायी जाने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं अन्य प्रकार की समस्याओं के समाधान की ओर विशेष ध्यान रखा जाता है ।
(6) अनेक पहलू- नियोजित सामाजिक परिवर्तन के अनेक पहलू हो सकते है जैसे, आर्थिक नियोजन, सामाजिक नियोजन, शैक्षणिक नियोजन, ग्रामीण विकास इत्यादि ।
(7) परम्परागत संस्थाओं में परिवर्तन- नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य उन परम्परागत संस्थाओं में परिवर्तन करना भी है जो कि वांछनीय लक्ष्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न करती है ।
(8) समयबद्धता- नियोजित सामाजिक परिवर्तन एक समयबद्ध परिवर्तन है अर्थात् निश्चित एवं वांछनीय लक्ष्य की प्राप्ति धीरे-धीरे समयबद्ध योजनाओं के परिणामस्वरूप की जाती है ।
(9) सर्वांग विकास- नियोजित सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध समाज का सर्वांग विकास करना है ।
(10) सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं में संभव- नियोजित सामाजिक परिवर्तन प्रत्येक प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में सम्भव है अर्थात् यह किसी विशेष प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था वाले देश तक ही सीमित नहीं है ।
सामाजिक बनाम आर्थिक नियोजन:
आर्थिक नियोजन से कुछ लोग केवल देश को आर्थिक समृद्धि की ओर समयबद्ध योजनाओं द्वारा ले जाना समझते हैं । परन्तु यह आर्थिक नियोजन को संकुचित रूप से परिभाषित करना है । वास्तव में जितनी भी आर्थिक योजनायें बनाई जाती हैं, उनका उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज का विकास करना होता है । आर्थिक विकास अन्तिम रूप से देश में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन, रहन-सहन एवं सम्बन्धों को प्रभावित करता है ।
अर्थ-व्यवस्था में परिवर्तन से समाज की अन्य व्यवस्थाओं में भी परिवर्तन हो जाता है । इस प्रकार आर्थिक नियोजन सामाजिक नियोजन का ही दूसरा नाम है क्योंकि आर्थिक नियोजन द्वारा जो आर्थिक विकास होता है उसका अन्तिम उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना होता है । परन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि सामाजिक नियोजन एवं आर्थिक नियोजन पर्यायवाची शब्द हैं ।
दोनों के महत्व एवं प्रकृति में अन्तर है । सामाजिक नियोजन का उद्देश्य प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन की समस्याओं, सामाजिक मूल्यों एवं सामाजिक सम्बन्धों से है । सामाजिक क्षेत्र में योजनाबद्ध रूप से परिवर्तन लाना ही सामाजिक नियोजन है । वह सामाजिक कुरीतियों, जैसे अपराध, बाल-अपराध, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, जाति प्रथा, अस्पृष्यता आदि को योजनाबद्ध रूप से समाप्त करना है ।
आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाना है यद्यपि इसका प्रभाव व्यक्तियों पर पड़ता है । आर्थिक नियोजन एवं विकास भी व्यक्तियों के सहयोग के बिना सम्भव नहीं है । वास्तव में सामाजिक नियोजन तथा आर्थिक नियोजन, नियोजित सामाजिक परिवर्तन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं ।
नियोजित सामाजिक परिवर्तन बनाम सामाजिक नियोजन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक नियोजन को पर्यायवाची शब्द मान लेना उचित नहीं है । नियोजित सामाजिक परिवर्तन एक विस्तृत एवं व्यापक अवधारणा है जबकि नियोजन एक सीमित एवं संकुचित अवधारणा है ।
वास्तव में सामाजिक नियोजन नियोजित सामाजिक परिवर्तन का एक भाग है जिसके साथ में ये सामाजिक मूल्य जुड़े होते हैं कि समाज में पायी जाने वाली सामाजिक समस्याओं का निराकरण सामाजिक प्रगति के लिए अनिवार्य है ।
सामाजिक नियोजन का सम्बन्ध मुख्य रूप से सामाजिक व्यवस्था में मानवीय विकास की वृद्धि करना, विभिन्न सामाजिक समस्याओं को सुलझाना तथा ऐसे साधन उत्पन्न करना है जिनसे मानव जीवन अधिक समृद्धिशाली एवं समन्वित हो सके । सामाजिक नियोजन नीति का एक महत्वपूर्ण अंग होने के कारण एक प्रकार का सामूहिक निर्णय है ।
इसके विपरीत नियोजित सामाजिक परिवर्तन केवल समाज को चेतन रूप में निश्चित दिशा की ओर ले जाने वाला प्रयास है जो कि प्रत्येक प्रकार की राजनीतिक प्रणाली वाले समाज में सम्भव है । सामाजिक नियोजन की भांति नियोजित सामाजिक परिवर्तन को आर्थिक नियोजन, राजनीतिक नियोजन, धार्मिक नियोजन, जनसंख्या नियोजन तथा ग्रामीण या नगरीय नियोजन से भी सम्बद्ध माना जाता है ।
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य समाज में रहने वाले व्यक्तियों एवं विविध प्रकार के समूहों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना, विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करना तथा मानवीय मूल्यों को प्राप्त करने के लिये सचेतन प्रयास करना है ।
अत: यह एक विस्तृत अवधारणा है । सामाजिक नियोजन, आर्थिक नियोजन, परिवार नियोजन, ग्रामीण नियोजन इत्यादि नियोजित सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायता तो प्रदान करते हैं परन्तु इन्हें नियोजित सामाजिक परिवर्तन के पर्यायवाची शब्द नहीं कहा जा सकता है ।
2. नियोजित सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य:
(I) सामाजिक संरचना में परिवर्तन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य समाज की संरचना को इस प्रकार से परिवर्तित करना है कि तार्किक एवं विवेकशील ढंग से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके ।
(II) आर्थिक समृद्धि:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य व्यक्तियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अधिक अवसर प्रदान करना है ताकि वे अधिक समृद्धिशाली जीवन व्यतीत कर सकें ।
(III) जन कल्याण:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन जन समूह के कल्याण का एक मार्ग है । इसका उद्देश्य समाज को और अधिक कल्याणकारी बनाना है । डूब ने जन समूह के कल्याण को नियोजित सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख आधार माना है । इनके अनुसार नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य व्यक्तियों की अधिकतर इच्छाओं की पूर्ति करना तथा उन्हें कम से कम निराश एवं हतोत्साहित करना है ।
(IV) साधनों का अधिकतम प्रयोग:
समाज में उपलब्ध भौतिक एवं मानवीय शक्तियों का अधिकतम प्रयोग करने की क्षमता में वृद्धि करना भी नियोजित सामाजिक परिवर्तन का ही एक मुख्य उद्देश्य है ।
(V) बाधाओं को हटाना:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का एक अन्य उद्देश्य समाज को निश्चित दिशा की ओर ले जाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना भी है ।
(VI) मूल्यों, मनोवृत्तियों और विश्वासों में परिवर्तन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य जनता के मूल्यों मनोवृतियों एवं विश्वासों में परिवर्तन लाना है ताकि लोग समयानुकूल समाज के परिवर्तित लक्ष्यों से तालमेल रख सकें ।
(VII) शान्तिपूर्ण परिवर्तन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य युद्ध, क्रान्ति या बिना संकट के वांछनीय परिवर्तन लाना है । यह परिवर्तन विविध प्रकार की सांस्कृतिक, मान्यताओं, जैसे सांस्कृतिक एकता, परिवार नियोजन, शिक्षा की समुचित व्यवस्था, व्यवसायों की बहुलता, समान एवं अधिकाअधिक अवसर प्रदान करके एवं तकनीकी का विकास करके लाया जा सकता है । नियोजित सामाजिक परिवर्तन का उद्देश्य व्यक्तियों में सहयोग, सहकारिता एवं सामाजिक सुरक्षा की भावनायें विकसित करना तथा प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष जैसे विघटनकारी शक्तियों को नियमित करना भी है ।
3. अमरीका के राष्ट्रीय साधन नियोजन बोर्ड:
अमरीका के राष्ट्रीय साधन नियोजन बोर्ड के अनुसार नियोजित सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं:
(a) न्याय, एकता, स्वतन्त्रता और अधिकारों के बीच व्यक्ति के व्यक्तित्व को यथाशक्ति विकसित होने का पूर्ण अवसर प्रदान करना ।
(b) सभी प्रकार के भौतिक एवं वान-साधनों का विकास करना, लोगों को सम्पूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध करना, आय में निरन्तर वृद्धि करना, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता तथा आर्थिक ढांचे में सन्तुलन बनाये रखना ।
(c) साम्राज्यवाद और अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों की समाप्ति तथा सभी देशों का विकास करना ।
नियोजित सामाजिक परिवर्तन के कारक साधन अथवा विधियाँ:
(I) अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उद्देश्यों के स्पष्ट निर्धारण एवं वितरण द्वारा;
(II) सभी प्रकार के प्रशंसनात्मक एवं संगठनात्मक साधन उपलब्ध करवा कर;
(III) साधनों की उपलब्धि एवं इनके उचित प्रयोग के सम्बन्ध में ज्ञान में वृद्धि द्वारा;
(IV) उन सभी परिस्थितियों का विश्लेषण करके जहाँ समायोजन तथा संशोधन की आवश्यकता है;
(V) विशिष्ट समस्याओं के सांस्कृतिक सामाजिक तथा भौगोलिक पहलुओं का विश्लेषण करके;
(VI) सामाजिक विकास के अधिक अवसर प्रदान करके;
(VII) सामाजिक आन्दोलनों द्वारा;
(VIII) वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति के बारे में एक विस्तारपूर्ण परियोजना बनाकर;
(IX) सरकारी अर्द्ध-सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों के सामाजिक संचालन द्वारा;
(X) विशिष्ट जनों द्वारा जनसाधारण में जागरूकता में वृद्धि करके;
(XI) शिक्षा संचार तथा आवागमन के साधनों का विकास करके; तथा
(XII) जन-सहयोग एवं इससे सम्बन्धित विभिन्न योजनाओं जैसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम इत्यादि के विकास द्वारा ।
निम्न साधनों की नियोजित सामाजिक परिवर्तन में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका है:
(i) सरकार तथा सरकार द्वारा पारित अधिनियम;
(ii) राजनीतिक दल;
(iii) समाज सुधारक;
(iv) सहकारिता एवं सहयोग पर आधारित विभिन्न संगठन;
(v) शिक्षा; तथा
(vi) प्रचार ।
4. भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन आज प्रत्येक समाज में सर्वांगीण विकास के लिये पाया जाता है । भारत जैसे, विकासशील देश के लिए इसका महत्व और भी अधिक है क्योंकि यहाँ नागरिकों की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति एवं उनमें समानता लाने के लिये तथा विकसित देशों के बराबर पहुँचने के लिये अभी काफी रास्ता तय करना है ।
अंग्रेजी शासन में नियोजित सामाजिक परिवर्तन:
अंग्रेजी शासन काल में भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया । फिर भी अंग्रेजी शासनकाल में भारतीय समाज में विविध प्रकार के सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों की शृंखला शुरू हुई । अंग्रेज अपने साथ विकसित तकनीकी तथा पश्चिमी मूल्य एवं संस्कृति लाये थे ।
इसलिये पश्चिमी संस्कृति एवं तकनीकी के विकास के कारण भारतीय सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने शुरू हुए । सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की शुरूआत अंग्रेजी शासनकाल में हुई, यद्यपि वास्तव में ये परिवर्तन अंग्रेजों के अपने हितों की पूर्ति के लिए किए गये थे ।
परिवर्तन करते समय यह बात ध्यान में नहीं रखी गई थी कि इन नवीन मूल्यों एवं परिवर्तनों से परम्परागत व्यवस्था सामंजस्य में रह पायेगी अथवा नहीं । अतः अनेक प्रकार के परिवर्तनों को हमारे समाज में रहने वाले लोगों ने बिना किसी सूझबूझ एवं तर्क के स्वीकार कर लिया ।
स्वतन्त्र भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार का प्रथम लक्ष्य भारत को एक नवीन एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित करना था । उसने भारत की परम्परा एवं ऐतिहासिकता तथा नवीन समाज की स्थापना के लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया एवं इनमें तालमेल रखकर ऐसे लक्ष्य निर्धारित किये जिनसे नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकतायें अधिकाधिक पूरी हो सकें ।
भारत के सामने पूँजीवाद, साम्यवाद तथा समाजवाद जैसे विविध मार्ग थे जिन पर चल कर समाज का विकास किया जा सकता था । प्रजातान्त्रिक पद्धति की शासन प्रणली को अपनाकर भारत ने देश में समाजवाद लाने का संकल्प लिया ।
भारतीय सरकार ने भारत को प्रजातान्त्रिक समाजवाद का आदर्श देकर नागरिकों में आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से समानता लाने तथा सभी को सुरक्षा प्रदान करने वाली सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के प्रयास शुरू किये ।
पंचवर्षीय योजनायें:
भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन लाने के लिये समयबद्ध पंचवर्षीय योजनायें बनाई गई, पंचायती राज का पुनर्गठन किया गया तथा सामुदायिक विकास जैसी योजनाओं की शुरूआत की गई । भारत सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना करना अपना लक्ष्य निर्धारित किया ।
इसके लिए प्रजातान्त्रिक राजनीतिक प्रणाली एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था को साधनों के रूप में स्वीकार किया गया । भू-दान, ग्राम-दान तथा सर्वोदय जैसे गैर-सरकारी प्रयासों द्वारा भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाने में सहायता मिली है ।
समाज कल्याण:
पंचवर्षीय योजनाओं में समाज कल्याण विशेष रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण की ओर काफी ध्यान दिया गया है ।
भारत में 1966 में समाज कल्याण विभाग की स्थापना की गई तथा केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड बनाया गया जो निम्नलिखित बातों के बारे में विशेष ध्यान देता है:
(1) सामान्य कल्याण;
(2) शिशु कल्याण;
(3) अनाथ बच्चों की देखरेख;
(4) भिखारी, किशोर, अपराधी अन्य ऐसे लोगों को पुनर्विस्थापन के लिए प्रशिक्षण प्रोग्राम;
(5) अन्तर्राष्ट्रीय शिशु शिक्षा धन;
(6) अपाहिजों की शिक्षा का प्रबन्ध;
(7) स्त्रियों का नैतिक उद्धार एवं वेश्यावृति की समाप्ति;
(8) सामाजिक सुरक्षा का कार्य;
(9) मद्य निषेध;
(10) ग्रामीण स्त्रियों को शिक्षा; तथा
(11) अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण ।
भारत सरकार द्वारा समाज कल्याण के लिए किये गए कार्यों में उल्लेखनीय हैं मद्य निषेध अनैतिक व्यापार पर रोक, बाल अपराधियों का सुधार, भिखारियों का सुधार, जेलों में समाज कल्याण, विस्थापित व्यक्तियों की सहायता एवं पुनर्वास, शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से अयोग्य व्यक्तियों का कल्याण, मातृत्व एवं बाल कल्याण संस्थाओं का विकास तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए शुरू की गई विविध योजनायें ।
5. नियोजित सामाजिक परिवर्तन का लक्ष्य और विधियाँ:
भारत में नियोजन का केन्द्रीय लक्ष्य एक ऐसे विकास की प्रक्रिया का प्रारम्भ करना है जो लोगों के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठा सके और उनके लिये अधिक समृद्ध और विभिन्नतापूर्ण जीवन की व्यवस्था कर सके ।
यह नियोजन तार्किक ढंग से भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं का हल ढूँढता है; यह भारतीयों के बीच व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करता है । नियोजन के अभाव में उपरोक्त लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है । योजना में विभिन्न क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी वरीयतायें रखी गई हैं । यह नियोजन प्रजातान्त्रिक ढंग से राजकीय निर्देशन में हो रहा है ।
नियोजन में निम्न प्रविधियों का प्रयोग हुआ है:
(a) संगठनात्मक संरचना में परिवर्तन;
(b) मूल्य-नीति के द्वारा साधनों का वितरण;
(c) पूँजी संग्रह व साख-व्यवस्था का विकास;
(d) वित्तीय नीति का एक यन्त्र के रूप में प्रयोग; और
(e) विभिन्न स्तरों पर नियन्त्रण ।
(1) प्रथम पंचवर्षीय योजना:
इसमें कृषि सिंचाई, ऊर्जा एवं यातायात के साधनों पर विशेष जोर दिया गया ताकि औद्योगिक क्रान्ति की नींव डाली जा सके । सहकारिता को समाज के विकास के नियम के रूप में स्वीकार किया गया । यातायात और शक्ति के विकास को विकास की नींव के रूप में निर्मित करने का प्रयास किया गया । मिश्रित-अर्थव्यवस्था को विकास की स्वीकृत व्यवस्था माना गया ।
(2) द्वितीय पंचवर्षीय योजना:
इसमें समाजवादी विकास प्रारूप को अपनाने की घोषणा की गई । भारी उद्योगों के विकास को वरीयता प्रदान की गई । जनसंख्या के नियन्त्रण के गहन प्रयास किये गये । लोक क्षेत्र को विकास का प्रमुख दायित्व सौंपा गया ।
(3) तृतीय पंचवर्षीय योजना:
इसमें ‘आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था’ के निर्माण का लक्ष्य रखा गया । विकास के अवसरों में समानता का विकास और आय की असमानताओं को दूर करने का संकल्प लिया गया । चीन के आक्रमण (1962) और पाकिस्तान के साथ संघर्ष (1965) के परिणामस्वरूप तीसरी योजना के बाद चौथी योजना तुरन्त न बन सकी और न उसे क्रियाशील किया जा सका । राष्ट्र एक आपातकालीन स्थिति से गुजर रहा था । विकास के कार्यक्रम वार्षिक योजनाओं के आधार पर तीन वर्ष तक चले ।
(4) चौथी योजना:
इसमें विकास की प्रक्रिया में सामाजिक न्याय व समानता के लक्ष्यों के लिये साहसिक कार्यक्रम अपनाये गये । ग्राम विकास और सन्तुलित भोजन तथा पोषक भोजन के प्रसार के कार्यक्रम नवीन ढंग से बनाये गये । इस योजना में नियोजन का प्रमुख उद्देश्य ‘स्थायित्व के साथ वृद्धि’ रखा गया ।
(5) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना:
इस योजना में ‘गरीबी हटाओ’ और ‘आत्म-निर्भरता’ के लक्ष्यों की प्राप्ति का संकल्प रखा गया । गरीबी हटाओ उद्देश्य की पूर्ति के लिये कुछ विशिष्ट लक्ष्य भी रखे गये । मूल्य-स्थायित्व आय तथा उपभोग की असमानताओं में कमी इसके अन्य लक्ष्य रहे । इस योजना में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास को प्रथम बार वरीयताओं में सम्मिलित किया गया है ।
पाँचवीं योजना कुछ देर से प्रारम्भ की गई थी और 6 महीने में ही कांग्रेस सरकार का पतन हो गया । 1977 में जनता सरकार केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई । जनता सरकार ने इस योजना को रह कर दिया और इसके स्थान पर नियोजन के लिये एक नवीन अवधारणा ‘रोलिंग प्लान’ राष्ट्र के सम्मुख रखी ।
जिसका आशय प्रत्येक वर्ष की योजना का मूल्यांकन करना और इसके अनुभवों के आधार पर अगले वर्ष के लिए योजना बनाना था । वास्तव में यह विस्तार नियोजन की विचारधारा थी यह योजना 1978-79 वार्षिक योजना के रूप में चालू की जा सकी ।
(6) छठी योजना:
यह योजना पिछले तीन दशकों के अनुभवों को सामने रखकर बनाई गई । यह प्रयास किया गया कि दोषों की पुनरावृत्ति न हो । इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पुन: सत्ता में लौट आई थी । गरीबी हटाओ का तीव्र अभियान छेड़ा गया ।
(7) सातवीं योजना:
इसमें खाद्यान में आत्म-निर्भरता की वरीयता बनाये रखी गई । तिलहन, दालों, सब्जियों और फलों के अधिक उत्पादन पर भी जोर दिया गया । उद्योग के लिए आधुनिकीकरण और उच्च तकनीकी लक्ष्य के रूप में रखे गये ।
इस योजना की प्रमुख विशेषता मानव संसाधन का विकास । शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवीन तरीकों को अपनाने पर जोर दिया गया । इसी भांति, रोजगार के अवसरों को भी बढाने का प्रयास किया गया ।
(8) आठवीं योजना:
इसमें पहली बार नियोजन की पद्धति में भी परिवर्तन किया गया है । इस योजना में प्रत्येक क्षेत्र के लिए कार्य क्षमता बढाने के लिये लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं । कृषि क्षेत्र में प्रतिशत वृद्धि दर निर्धारित की गई है । औद्योगिक क्षेत्र के लिये यह लक्ष्य 12 प्रतिशत है । इसी भांति, निर्यात के लिये 10 प्रतिशत वृद्धि दर निर्धारित की गई है ।
पंचवर्षीय योजनाओं के अतिरिक्त अनेकों और प्रयास किये गये हैं, जैसे पंचायती राज की स्थापना, सामुदायिक विकास योजनायें आदि । इन सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त भूदान, ग्राम दान तथा सर्वोदय जैसे गैर-सरकारी प्रभासों द्वारा भी भारत में समाजवादी समाज के लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाने में सहायता मिली है ।
6. भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन का मूल्यांकन:
भारत में पंचवर्षीय योजनायें आर्थिक योजनायें मात्र नहीं हैं । ये विभिन्न समूहों के मध्य आय और विकास के अवसरों का वितरण भी हैं । सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था पर इनका प्रभाव होना स्वाभाविक ही है । सन् 1970 में विश्व बैंक की रिपोर्ट में लिखा गया था, ”भारतीय अर्थव्यवस्था में जो कि जीवन निर्वाह के सीमान्त पर ही क्रियाशील होती है, पैदावार सारा ही अन्तर पैदा कर देती है ।”
भारतीय किसान आज भी अपनी वार्षिक फसल पर आश्रित है; फसल अच्छी हो गई तो सब कुछ ठीक अन्यथा सारी अर्थव्यवस्था ही डावांडोल हो जाती है । सन् 1972-73 में भारत की निम्न श्रेणी की 30 प्रतिशत जनसंख्या का प्रति व्यक्ति उपभोग 25 रू. प्रतिमाह आता रहा है । आज यह गाँव में 130 रू. तथा नगर में 140 रू. है । यह जीवन निर्वाह से भी नीचे का स्तर है । भारत में नियोजन की असफलता उपरोक्त तथ्यों से ही प्रकट हो जाती है ।
भारतीय नियोजन के दोष निम्नलिखित हैं:
(A) स्पष्ट वैचारिकी का अभाव:
शुरू में ‘हम मिश्रित व्यवस्था’ से आगे चले, दूसरी योजना में हिचकते हुए ‘समाजवादी प्रतिमान’ को आदर्श के रूप में स्वीकार किया अब खुलकर ‘समाजवाद’ को वैचारिकी के रूप में घोषित कर पाये हैं । यह भी ‘नकारात्मक समाजवाद’ है कुछ क्षेत्रों में राष्ट्रीयकरण करके या भूतपूर्व राजाओं के प्रीवी-पर्स समाप्त करके ही इसे नहीं लाया जा सकता ।
इसके लिए रचनात्मक समाजवाद की आवश्यकता है । कठोर अनुशासन और बलिदान पर आधारित योजना, आवश्यकताओं की वरीयता के साथ बनानी होगी । विलास, शानोशौकत के उद्योगों के स्थान पर भोजन-वस्त्र के उद्योग लगाने होंगे ।
(B) भौतिक विकास का लक्ष्य:
इसके कारण मानव के चरित्र सम्बन्धी रूपान्तर का लक्ष्य उपेक्षित रहा । यही कारण है कि बेइमानी, रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद, चोर बाजारी व मिलावट जैसी चारित्रिक-कमजोरियाँ व्यापक रूप से भारतीय जनता में आ गई हैं । नियोजित सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख उद्देश्य तो मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण का ही है ।
(C) आधारों की उपेक्षा:
नियोजन के आधार राष्ट्रीय स्तर पर नवीन शिक्षा प्रणाली व मध्यश्रेणी के उद्योग बनाये जाने चाहियें । भारतीय योजनाओं में इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है ।
7. सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से नियोजन का प्रभाव:
(1) जनसंख्या-वृद्धि की रोकथाम:
परिवार-नियोजन के प्रोग्राम के अन्तर्गत जनसंख्या वृद्धि रोकने का प्रयास किया गया है । इसका प्रभाव परम्परागत यौन नैतिकता पर भी पड़ा है । अनेक बातें जो पहले पूर्णतया व्यक्तिगत और गोपनीय थीं, अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गई हैं; गर्भपात को कानूनी रूप दिया गया है ।
(2) संयुक्त परिवार का विघटन:
बढ़ते हुए रोजगार के स्तर, यातायात के साधनों और नगरीकरण के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों का रूप बदला है अब केन्द्रक परिवारों का विकास हो रहा है ।
(3) जाति-व्यवस्था में परिवर्तन:
नियोजित प्रयासों ने सामाजिक-संस्तरण का मूलभूत आधार, व्यक्ति की कुशलता व उपलब्धि को बना दिया है । जन्म के आधार पर उच्च सामाजिक स्तर की प्राप्ति का नियम शिथिल होता जा रहा है । अतः जाति व्यवस्था में परिवर्तन हो रहा है ।
(4) शक्ति और सत्ता के परम्परागत प्रतिमान:
ये पहले आयु जाति या धर्म के आधार पर थे आज बदल रहे हैं । सत्ता का प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण हुआ है । नेतृत्व उपलब्धि के आधार पर होता जा रहा है ।
(5) ग्रामीण समुदाय का विकास:
सामुदायिक विकास योजनाओं के अन्तर्गत गाँवों के सर्वांगीण विकास का प्रयास हुआ है । ग्रामीण समुदाय अपनी ‘परम्परागत पृथकता’ के दायरे से निकले है । वे खण्ड, जिले व राज्य के स्तर पर सम्बन्धित हो गये हैं ।
(6) नगर-ग्राम सम्पर्क:
नगर-ग्राम एकीकरण एवम् अन्त:क्रिया भी बढ़ी है ।
(7) ‘वि-जनजातीयकरण’:
अनेक जनजातियों के व्यक्ति खानों कारखानों व शहरों की ओर आ गये हैं । वे अपनी परम्परागत प्रथाओं व विश्वासों में आस्था छोड़ते जा रहे है
(8) लौकिकीकरण:
‘धार्मिक व्यवस्था’ उतनी कट्टर नहीं रही है । लौकिकीकरण बढ़ा है । विकास के लिए आवश्यक विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रसार ने धार्मिक विश्वासों को हिलाया है ।
(9) औद्योगीकरण व नगरीकरण:
इन दोनों ही प्रक्रियाओं को बल मिला है ।
(10) कुछ सामाजिक समस्यायें:
नियोजन ने कर्मचारीतन्त्र के महत्व को बढ़ा दिया है । हर कदम पर साल-फीता शाही और भ्रष्टाचार पनपा है । सारांश में, नियोजन भारतीय समाज में एक वास्तविकता है और इसके प्रभाव विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में स्पष्ट देखे जा सकते हैं ।
8. भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन में प्रमुख बाधायें:
(1) अशिक्षा:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन द्वारा देश को आगे बढ़ाने के लिए जनता का सक्रिय सहयोग आवश्यक है । परन्तु भारत में अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है जिसके कारण वे नियोजन का अर्थ ही नहीं समझते तथा विकास को केवल सरकार का उत्तरदायित्व मानते हैं और इसलिये अपना सक्रिय सहयोग नहीं देते ।
(2) गुटबन्दी:
भारतीय राजनीति गुटबन्दी पर आधारित है । अत: यदि शासक दल कोई योजनाबद्ध कार्य शुरू करता है तो विरोधी दल वाले उसे समर्थन नहीं देते । इससे योजनाबद्ध कार्यक्रमों को समय पर पूरा करने में कठिनाई होती है ।
(3) रूढ़िवादिता एवं अन्धविश्वास:
नियोजित सामाजिक परिवर्तन एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है । वह लक्ष्य एवं साधनों की तार्किक गणना से सम्बन्धित है । भारत परम्परागत रूप से परम्परावादी एवं रूढ़िवादी देश रहा है । आज भी अधिकांश भारतीय जनता इन परम्परागत विश्वासों के कारण ही कुरीतियों को समाप्त करने में सरकार को सहयोग नहीं देती है । उदाहरण के लिए दहेज प्रथा कानूनी रूप से समाज कर दी गई है परन्तु जनता का सहयोग न मिलने के कारण यह कुरीति आज भी भारत में प्रचलित है ।
(4) व्यावहारिकता का अभाव:
भारत में अनेक योजनायें राजनीति से प्रेरित होती हैं और उनका उद्देश्य किसी विशेष राज्य या क्षेत्र में मतदाताओं को ही प्रभावित करना होता है । चुनाव के समय घोषित अनेक योजनाओं के व्यावहारिक पक्ष पर विस्तृत रूप से विचार विमर्श तक नहीं किया जाता । चुनाव के बाद अनेक ऐसी योजनायें अव्यावहारिक होने के कारण प्रायः समाप्त हो जाती हैं ।
(5) साधनों की कमी:
भारतवर्ष में योजनाओं में लक्ष्य निर्धारित करते समय कई बार उपलब्ध साधनों की मात्रा को ध्यान में नहीं रखा जाता । इसका परिणाम यह होता है कि साधनों के अभाव में अनेक कार्यक्रम अधूरे रह जाते हैं ।
(6) ग्रामीण विशिष्टजन वर्ग की उदासीनता:
प्रो. एस. सी. दुबे ने सामुदायिक विकास योजनाओं की असफलता का कारण ग्रामों में रहने वाले प्रभावशाली वर्ग विशिष्टजन वर्ग द्वारा इन योजनाओं को सफल बनाने में सहयोग न देना बताया है । ये विशिष्ट जन ग्रामवासियों को कई बार इनका विरोध करने तक को प्रेरित करते हैं ।
(7) सामान्य जनता की उदासीनता:
भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन की धीमी गति का एक प्रमुख कारण विकास कार्यक्रमों के प्रति, सरकार के प्रति तथा राष्ट्र के प्रति सामान्य जनता की उदासीनता है । आज सभी अपने व्यक्तिगत हितों में इतने उलझे हुये हैं कि सम्पूर्ण राष्ट्र के बारे में कोई सोचता ही नहीं ।
(8) राजनीतिज्ञों एवं बुद्धिजीवियों में असहयोग:
भारत में राजनीतिक नेता जो कि विकास योजनाओं का निर्माण करते हैं तथा इन्हें कार्यान्वित करते हैं तथा बुद्धिजीवियों में प्रत्यक्ष सम्पर्क का अभाव है । विभिन्न विकास योजनाओं के बारे में बुद्धिजीवियों की राय की उपेक्षा की जाती है । सामाजिक वैज्ञानिकों से इन योजनाओं के बारे में सलाह नहीं ली जाती । अत: इनमें अनेक कमियाँ रह जाती है ।
9. नियोजित सामाजिक परिवर्तन विषयक भ्रान्तियां:
‘नियोजित सामाजिक परिवर्तन’ परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिसमें योजनाबद्ध रूप से निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है ।
इसके विषय में निम्नलिखित भ्रान्तियाँ है जिन्हें दूर कर देना अनिवार्य है:
(a) यह अवधारणा केवल सुनियोजित रूप से होने वाले परिवर्तनों को ही समझने में सहायक है अन्य परिवर्तनों को इस अवधारणा की सहायता से नहीं समझा जा सकता ।
(b) यह एक विस्तृत अवधारणा है, अत: इसके साथ ‘आर्थिक’, ‘राजनीतिक’, ‘धार्मिक’, ‘जनसंख्यात्मक’, ‘नगरीय’, ‘ग्रामीण’ आदि विविध प्रकार के शब्द जोड़ना उचित नहीं है । वास्तव में आर्थिक नियोजन, धार्मिक नियोजन, जनसंख्यात्मक नियोजन, नगरीय या ग्रामीण नियोजन ‘अथवा’ सामाजिक नियोजन’ पर्यायवाची शब्द नहीं हैं अपितु नियोजित सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विधियाँ हैं । अतः सामाजिक परिवर्तन के साथ इन शब्दों को जोड़ना एक भ्रान्ति है ।
(c) ‘नियोजित सामाजिक परिवर्तन’ एवं ‘सामाजिक नियोजन’ को एक नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि ‘सामाजिक नियोजन’ वास्तव में ‘नियोजित सामाजिक परिवर्तन’ का ही एक भाग है ।
(d) नियोजित सामाजिक परिवर्तन का साधन केवल सरकार ही नहीं है अपितु कोई गैर-सरकारी संगठन अथवा समाज सुधारक संस्था भी इसका साधन हो सकते है । उपरोक्त भ्रान्तियों को दूर करके भारत में नियोजित सामाजिक परिवर्तन को सफल बनाया जा सकता है ।