यदि मैं भारत का प्रधानमन्त्री होता पर निबंध! Here is an essay on ‘If I were the President of India’ in Hindi language.
स्वतन्त्रता दिवस का पावन पर्व और मैं लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराने के बाद देश की जनता को सम्बोधित करते हुए भाषण दे रहा था । इस भाषण में केन्द्र सरकार की विगत वर्षों की उपलब्धियों का वर्णन तो था ही, साथ ही भविष्य में प्रस्तावित योजनाओं का उल्लेख भी था ।
मैं अभी भाषण दे ही रहा था कि अचानक मेरी नींद खुल गई और मैंने अपने आपको बिस्तर पर पाया । मैं वास्तव में प्रधानमन्त्री होने का खूबसूरत सपना देख रहा था । सपना टूटने के बाद मैंने सोचा कि ‘काश ! मैं भारत का प्रधानमन्त्री होता !’
विश्व के सबसे बड़े गणतान्त्रिक देश भारत का प्रधानमन्त्री बनना किसी भी भारतीय नागरिक के लिए गौरव की बात है । प्रधानमन्त्री का पद जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अधिक जिम्मेदारी भरा भी, इसके बावजूद अधिकांश भारतीयों का सपना प्रधानमन्त्री बनना होता है ।
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यदि मैं भी जीवन में कभी इस पद पर पहुँचने में कामयाब रहा, तो यह मेरे लिए सबसे सुखद व गौरव की बात होगा । एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में भारत के प्रधानमन्त्री से मेरी भी कुछ उम्मीदें हैं । यदि मैं भारत का प्रधानमन्त्री होता, तो अपनी इन उम्मीदों पर बिल्कुल खरा उतरने की कोशिश करता ।
भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में मेरी निम्नलिखित प्राथमिकताएँ होंगी:
i. शिक्षा का उचित प्रसार:
देश के प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले मैं भारत में शिक्षा के उचित प्रसार पर ध्यान देता । किसी भी देश का आर्थिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके नागरिक कितने शिक्षित हैं ।
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समय के अनुसार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में परिवर्तन को देखते हुए भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी इनको प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है । मैं अपने देश में उत्पादकता बढ़ाने के लिए विज्ञान की शिक्षा, कार्यानुभव एवं व्यावसायिक शिक्षा पर जोर देता ।
ii. आन्तरिक सुरक्षा के लिए प्रयास:
एक देश तभी प्रगति की राह पर अग्रसर रह सकता है जब उसके नागरिक अपने देश में सुरक्षित हो । असुरक्षा की भावना न केवल नागरिकों का जीना दूभर कर देती है, बल्कि इससे देश की शान्ति एवं सुव्यवस्था के साथ-साथ इसकी प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
आज भारत निःसन्देह बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है किन्तु इसकी आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, अलगाववाद, भाषावाद नक्सलवाद जैसी चुनौतियाँ भी हैं, जो इसकी शान्ति एवं सुव्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा रही हैं । मैं भारतीय प्रधानमन्त्री होकर इन समस्याओं का समाधान कर आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने का प्रयास करता ।
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iii. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का प्रयास:
भारत में कई धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन एवं आस्था में अन्तर तो है ही साथ ही उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग है । इन सबके बावजूद पूरे भारतवर्ष के लोग भारतीयता की जिस भावना से ओत-प्रोत रहते हैं, उसे राष्ट्रीय एकता का विश्वभर में सर्वोत्तम उदाहरण कहा जा सकता है ।
इसी भावना का परिणाम है कि जब कभी भी हमारी एकता को खण्डित करने का प्रयास किया जाता है भारत का एक-एक नागरिक सजग होकर ऐसी असामाजिक शक्तियों के विरुद्ध खड़ा दिखाई पड़ता है । राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है ।
यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे । इसलिए मैं भारत की सबसे बड़ी विशेषता ‘विविधता में एकता’ को महत्व देते हुए भारत की राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने का प्रयास करता ।
iv. राजनीतिक स्थिरता के प्रयास:
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिली है । राजनीतिक दलों की अधिक संख्या के कारण प्राय: किसी एक दल को बहुमत नहीं मिल पाता एवं गठबन्धन की राजनीति को बढ़ावा मिलता है । गठबन्धन की राजनीति कई प्रकार के राजनीतिक भ्रष्टाचार को जन्म देती है ।
इसलिए मैं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनीति में अपराधीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति को नियन्त्रित करने का प्रयास करता । राजनीति में अपराधीकरण की प्रवृत्ति पर नियन्त्रण के बाद काफी हद तक भारत में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति समाप्त हो सकेगी ।
v. सामाजिक समस्याओं का समाधान:
धार्मिक कट्टरता, जाति प्रथा, अन्धविश्वास, नारी-शोषण, दहेज प्रथा सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार, गरीबी इत्यादि हमारी प्रमुख सामाजिक समस्याएँ हैं । ऐसा नहीं है कि ये सभी सामाजिक समस्याएँ हमेशा से हमारे समाज में विद्यमान रही हैं ।
कुछ समस्याओं की जड़ धार्मिक कुरीतियाँ हैं, तो कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं, जिन्होंने सदियों की गुलामी के बाद समाज में अपनी जड़ें स्थापित कर ली, जबकि कुछ समस्याओं के मूल में दूसरी पुरानी समस्याएँ रही हैं । देश एवं समाज की वास्तविक प्रगति के लिए इन समस्याओं का शीघ्र समाधान आवश्यक है ।
एक प्रधानमन्त्री के रूप में मैं बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए व्यावहारिक एवं व्यावसायिक रोजगारीन्मुखी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर लोगों को स्वरोजगार अर्थात् निजी उद्यम एवं व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित करता । बेरोजगारी को कम करने से गरीबी को कम करने में भी मदद मिलती ।
गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि दूर होने के बाद भ्रष्टाचार में स्वाभाविक रूप से कमी होती । मैं भ्रष्ट अधिकारियों को सजा दिलवाने के लिए दण्ड-प्रक्रिया एवं दण्ड संहिता में संशोधन कर कानून को और कठोर बनाने का प्रयास करता तथा भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाता ।
बेरोजगारी, गरीबी जनसंख्या वृद्धि, नारी-शोषण, अशिक्षा एवं भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं का समाधान हो जाने के बाद शेष समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जाता ।
vi. आर्थिक चुनौतियों का समाधान:
पिछले दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि हालाँकि सन्तोषजनक रही है, किन्तु अभी भी यह विश्व में वह स्थान प्राप्त नहीं कर पाया है, जिसका यह हकदार है । इसका कारण है- इसके सामने अनेक प्रकार की चुनौतियाँ, जिनका समाधान किए बगैर इसके आर्थिक विकास को समुचित गति नहीं मिल सकती ।
जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार, गरीबी, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया इत्यादि भारत में आर्थिक विकास की कुछ मुख्य चुनौतियाँ हैं । प्रधानमन्त्री के रूप में मैं इन आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने की कोशिश करता ।
vii. भारतीय विदेश नीति में सुधार:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में किसी भी देश की स्थिति तब ही सुदृढ़ हो सकती है, जब उसकी विदेश नीति सही हो । भारत एक शान्तिप्रिय देश है । दुनियाभर में शान्ति को बढ़ावा देने एवं परस्पर सहयोग के लिए मैं भारतीय विदेश नीति में सुधार करता ।
viii. महँगाई पर नियन्त्रण:
आज जिस तरह से देश में महँगाई का ग्राफ ऊपर जा रहा है, उससे हर इंसान परेशान है । दूध, पेट्रोल, अनाज, रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है । इस पर समय रहते यदि नियन्त्रण नहीं किया गया, तो अनेक जटिलता, बुराइयों एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि मन्द पड़ जाएगी ।
महँगाई की मार आम आदमी पर सर्वाधिक पड़ती है, जिससे उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, फलस्वरूप पूरे देश की आर्थिक वृद्धि प्रभावित होती है । अत: महँगाई पर नियन्त्रण के लिए यथाशीघ्र कड़े-से-कड़े कदम उठाते हुए मैं जमाखोरी, मुनाफाखोरी एवं कालाबाजारी को समाप्त करता ।
इस तरह स्पष्ट है कि यदि मैं भारत का प्रधानमन्त्री होता, तो देश एवं जनता को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक शैक्षिक स्तर पर सुदृढ़ कर भारत को पूर्णतः विकसित खुशहाल देश बनाने का अपना सपना साकार करता, ताकि देश पुन: सोने की चिड़िया कहलाने लगे । ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ प्रेम व शान्ति के क्षेत्रों में भी विश्वभर में हमारी मिसालें दी जाएँ और हम पुन: विश्व गुरु की उपाधि हासिल कर लें ।