युवा शक्ति पर निबंध! Here is an essay on ‘Youth Power’ in Hindi language.
”मुझे कुछ साहसी और ऊर्जावान युवा पुरुष मिल जाएँ,
तो मैं देशभर में क्रान्ति ला सकता हूँ ।”
शुरू से ही युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे स्वामी विवेकानन्द का यह कथन राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति के महत्व को दर्शाता है और सचमुच स्वतन्त्रता संग्राम में मंगल पाण्डेय, लक्ष्मीबाई, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस आदि युवाओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करके यह साबित कर दिया कि उनके लिए कुछ भी असम्भव नहीं ।
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देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत भारतमाता की इन वीर और साहसी सन्तानों के सामने अंग्रेजों की एक न चली और उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ा । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी भारत को अपने पड़ोसी देशों-पाकिस्तान एवं चीन द्वारा किए गए युद्धों का सामना करना पड़ा ।
देश पर अनावश्यक रूप से थोपे गए इन युद्धों के दौरान हमारी सेना के जवानों ने जिस वीरता और साहस का प्रदर्शन किया, उससे हम भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा उठ जाता है । कुछ वर्ष पूर्व हमारी सेना ने कारगिल में घुस आई पाकिस्तानी सेनाओं के भी छक्के छुड़ाए थे ।
पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मुम्बई में ताज एवं अन्य स्थानों पर किए गर्व हमलों में भी भारत के जाँबाज सेना अधिकारियों और कमाण्डोज ने पूरी बहादुरी का परिचय दिया । सभी आतंकवादी मार गिराए गए और एक को बन्दी बना लिया गया । भारत के युवा वीरों की यह गाथा किसी से छिपी नहीं है ।
अपने बडे-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में भारत के युवाओं ने देशभक्ति के अतिरिक्त अध्यात्म, धर्म, साहित्य, विज्ञान कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों में भी पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है । बिना युवा शक्ति के भारत सोने की चिड़िया न कहलाता और अपनी अनगिनत देनों से विश्व को अभिभूत न कर पाता । अल्वर्ट आइंसटाइन ने कहा था- ”सम्पूर्ण मानव जाति को उस भारत का ऋणी होना चाहिए, जिसने विश्व को शून्य (0) दिया है ।”
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मैक्समूलर ने भी भारतवर्ष की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए लिखा है – ”यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव-मस्तिष्क ने मुख्यतः अपने गुणों का विकास किया, जीवन की सबसे महत्वपूर्ण समस्या पर सबसे अधिक गहराई के साथ सोच-विचार किया और उनमें से कुछ ऐसे रहस्य दृढ़ निकाले, जिनकी ओर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने प्लेटों और काण्ट का अध्ययन किया, तो मैं भारतवर्ष की ओर संकेत करूँगा ।”
भारत की इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्रकवि मैयिलीशरण चुप्त’ ने भी लिखा है-
”देखो हमारा विश्व में, कोई नहीं उपमान था ।
नरदेव थे हम और भारत देवलोक समान था ।”
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भारतवर्ष की इन महान् उपलब्धियों के पीछे देश के युवा वर्ग का बहुत बड़ा योगदान है । आज आईआईटी आईआईएम जैसे देश के बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों या अन्य विश्वविद्यालयों से जुड़े छात्र-छात्राओं के आविष्कारों और शोधों की बदौलत भारत तेजी से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो रहा है ।
इतना ही नहीं आज भारतीय छात्र-छात्राएँ विदेशों में जाकर भी विश्व के लोगों को अपनी प्रतिभाओं से अचम्भित कर रहे है । आज भारत के युवा वर्ग ने महात्मा गाँधी के इस कथन को अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया है- ”अपने प्रयोजन में दृढ़ विश्वास रखने वाला एक कृशकाय शरीर भी इतिहास के रुख को बदल सकता है ।”
आज इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के युवा वर्ग में भारी असन्तोष व्याप्त है । स्कूल-कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यहाँ के छात्र-छात्राओं का भविष्य अन्धकारमय है । न तो उन्हें नौकरी मिल पाती है और न ही उनका किताबी ज्ञान जीवन के अन्य कार्यों में ही उपयोगी सिद्ध हो पाता है ।
वे गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं के जाल में फँसते चले जाते है । कई बार तो प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी आरक्षण अथवा सरकार की अन्य गलत नीतियों का शिकार हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में युवा वर्ग को सही मार्गदर्शन भी नहीं मिल पाता, फलस्वरूप युवा वर्ग भ्रमित एवं कुण्ठाग्रस्त होकर पूरी व्यवस्था का विरोध करने के लिए आन्दोलन करने लगता है ।
कुछ राजनीतिज्ञ युवाओं द्वारा चलाए गए आन्दोलनों में रुचि लेने लगते हैं, तो कुछ ऐसे आन्दोलनों को जीवित रखने के लिए असामाजिक तत्त्वों की सहायता लेने में भी संकोच नहीं करते । जब ये असामाजिक तत्व लूट या आगजनी करते हैं, तो इन विध्वंसक गतिविधियों हेतु युवाओं को दोषी ठहराया जाता है ।
पहले से ही कुण्ठित युवा और अधिक कुण्ठित हो जाते है, जिससे उनमें असन्तोष की भावना और बढ़ जाती है । युवा असन्तोष का परिणाम उत्तेजनापूर्ण आन्दोलनों के रूप में सामने आता है । वे क्रुद्ध युवा, जो घोर अन्याय से उत्पीड़ित महसूस करते है या जो विद्यमान ढाँचों एवं अवसरों से नाराज होते है, सामूहिक रूप से सत्तारूढ़ व्यक्तियों पर युवा उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन के रूप में कुछ परिवर्तन लाने के लिए दबाव डालते हैं ।
वर्ष 1979 में ‘जयप्रकाश नारायण’ ने छात्र समुदाय को संगठित कर शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति लाने हेतु एक विशाल अभियान चलाया था, जिसमें युवा वर्ग को सन्देश देते हुए उन्होंने कहा था- ”निश्चय ही देश का राजनीतिक चेहरा बदल चुका है, पर विद्यार्थियों की समस्याएँ वैसी ही हैं ।
उनके मन में असन्तोष की जो चिंगारियाँ हैं, वे अब प्रकट हो रही है । यदि इस असन्तोष को रचनात्मक दिशा न दी गई, तो अराजकता पैदा होगी और देश का भविष्य अस्थिर हो जाएगा । हमारा प्रयास शैक्षिक क्रान्ति की ज्योति जलाकर छात्र-मानस को स्वस्थ दिशा में मोड़ने का है ।”
हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने इन पंक्तियों के माध्यम से भारतीय युवाओं को इस प्रकार समझाया है-
”युग का युवा
मत देख दायें और बायें
झोंक मत बगलें,
अगर कुछ देखना है
देख अपने वे वृषभ कन्धे
जिन्हें देता चुनौती
सामने तेरा खडा
युग का जुआ ।”
(जुआ उस लकड़ी को कहते हैं, जो हल चलाने के दौरान बैलों के कन्धों पर रखी जाती है ।)
सचमुच यदि किसी देश का युवा वर्ग जाग जाए और रचनात्मक कार्यों में जुट जाए, तो उस देश को समृद्ध और उन्नत होने से कोई नहीं रोक सकता । इधर हाल के वर्षों में अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध किए गए देशव्यापी आन्दोलन और दिल्ली में निर्भया काण्ड के बाद बलात्कार के कानून में परिवर्तन की माँग को लेकर एकजुट हुए देशभर के युवाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज भी भारत की युवा पीढी सोई नहीं है, उन्हें भी देश-दुनिया की उतनी ही चिन्ता है, जितनी देश के बड़े-बुजुर्गों को ।
देश के लिए यह भावना हितकर है, किन्तु प्रत्येक कार्य व संकल्प हेतु नैतिक व जीवन-मूल्य का होना अत्यावश्यक है । आज भारत के युवाओं को ‘अब्दुल कलाम’ की इन पंक्तियों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है- ”आकाश की ओर देखो । हम अकेले नहीं है । सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते है, उन्हें वह उनका हक प्रदान करता है ।”
‘स्वामी विवेकानन्द’ ने युवा शक्ति को आह्वान करते हुए कहा था- ”समस्त शक्तियाँ तुम्हारे अन्दर हैं । तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, यह विश्वास करो । मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो । तत्पर हो जाओ । जरा-जीर्ण होकर थोडा-थोडा करके क्षीण होते हुए मरने के बजाय बीर की तरह दूसरों के अल्प कल्याण के लिए लड़कर उसी समय मर जाना क्या अच्छा नहीं है ?”
आज भारत के युवाओं को विवेकानन्द के विचारों से सीख लेकर उन्हीं के बताए मार्गों पर चलने की आवश्यकता है, तभी वे बेहतर भारत का निर्माण कर सकते है । आज आवश्यकता है उन्हें स्वयं को युवा होने की इस कसौटी पर जाँचने की कि क्या वे अनीति से लड़ते है, दुर्गुणों से दूर रहते है, काल की चाल को बदल सकते हैं, क्या उनमें जोश के साथ होश भी है, क्या उनमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था है, क्या वे समस्याओं का समाधान निकालते है, क्या वे प्रेरक इतिहास रचने बाले हे और क्या वे कही बातों को करके दिखाते है?
आज युवाओं को ‘महात्मा गाँधी’ के कहे इस कथन के मर्म को समझने और उसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है- ”खुद वो बदलाव बनिए, जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं ।”