वीं पंचवर्षीय योजना पर निबंध | Essay on Five Year Plans | Hindi Hindi language.

हमारे देश को 16 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार से मुक्ति मिली । स्वतन्त्रता मिलना निश्चय ही हर्ष का विषय था, लेकिन गुलामी का एक लम्बा दौर झेल चुका भारत उस समय आर्थिक रूप से बदहाल था ।

उस समय हमारे लिए यह बहुत आवश्यक था कि हम पुन अपने पैरों पर खड़े हो, ताकि विश्व के समक्ष यह प्रमाणित हो जाए कि भारत न केवल अपनी स्वतन्त्रता और साम्यता की रक्षा कर सकता है, बल्कि क्षमतावान भी है । इसलिए तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने देश के आर्थिक नियोजन के लिए योजना के एक औपचारिक प्रारूप की आवश्यकता अनुभव की ।

इसी क्रम में 23 मार्च, 1950 को राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्तों के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद-वक्ष के अन्तर्गत योजना आयोग की स्थापना की गई । इसी योजना आयोग के अन्तर्गत भारत सरकार ने राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों का बिकास करने हेतु पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारम्भ किया ।

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उल्लेखनीय है कि नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 16 अगस्त, 2014 के अपने भाषण में योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा की है और योजना आयोग की जगह पर सरकार एक ऐसी संस्था के गठन के लिए प्रयासरत है, जो केन्द्र व राज्यों के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए बिकास कार्यों का खाका तैयार कर सके ।

वास्तव में, पंचवर्षीय योजनाएँ समाजवादी विचारधारा का परिणाम । विश्व की पहली पंचवर्षीय योजना जोसेफ स्टालिन द्वारा समाजवादी विचारधारा के पोषक सोवियत संघ में 1920 के दशक के अन्त में लागू की गई । बाद में, इनकी सफलता से प्रभावित होकर चीन सहित कई अन्य कम्यूनिस्ट एवं पूँजीवादी देशों ने पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया । पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य नियोजित रूप से एकीकृत राष्ट्रीय आर्थिक बिकास को गति प्रदान करना है ।

समाजवाद की इसी कल्याणकारी भावना से प्रेरित होकर भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1951 में भारत की पहली पंचवर्षीय योजना का आरम्भ किया । तब से लेकर अब तक भारत में ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी है । वर्तमान समय में, यहाँ बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) चल रही है ।

1. पहली पंचवर्षीय योजना:

प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) का आरम्भ हुआ । उस समय भारत पूंजी की कमी की बुनियादी समस्या का सामना कर रहा था, इसलिए हैरोड-डोमर मॉडल पर आधारित इस पहली पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गई । इस योजना में सिंचाई, ऊर्जा, कृषि, सामुदायिक विकास, परिवहन, संचार, उद्योग, भूमि पुनर्वास और अन्य सामाजिक सेवाओं सहित आर्थिक क्षेत्रों के लिए भी बजट आवण्टित किया गया ।

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भाखडा और हीराकुड बाँध सहित कई अन्य सिंचाई परियोजनाएँ इसी अवधि में आरम्भ हुई । वर्ष 1956 के अन्त तक देश में पाँच प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) स्थापित किए गए और उच्च शिक्षा में गुणवत्तात्मक सुधार हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का भी गठन किया गया ।

इस योजना के दौरान पाँच इस्पात संयन्त्रों की स्वीकृति भी दी गई, जिनका अस्तित्व दूसरी पंचवर्षीय योजना के मध्य आया । इस पंचवर्षीय योजना के लिए सकल घरेलू उत्पाद लक्ष्य दर 2.1% तय की गई थी, लेकिन तब भारत ने तय दर से अधिक, 3.6% की विकास दर हासिल की । इस तरह, यह पहली पंचवर्षीय योजना एक सफल योजना के रूप में जानी जाती है ।

2. दूसरी पंचवर्षीय योजना:

दूसरी पंचवर्षीय योजना (1951-56) में महालनोबिस प्रारूप को अपनाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बिकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया । इस योजना में पूँजीगत वस्तुओं के आयात पर बल दिया गया, जिनका मुख्य उद्देश्य दीर्घकालिक हित के लिए आर्थिक क्षेत्र को गति प्रदान करना था ।

इस योजना के तहत सिंचाई और ऊर्जा, संचार, परिवहन एवं सामाजिक सेवाओं सहित कई अन्य क्षेत्रों के लिए Rs.48 विलियन आवण्टित किए गए । पहली पंचवर्षीय योजना के तहत स्वीकृति प्रदान किए गए पाँच इस्पात संयन्त्र इसी दौरान स्थापित किए गए । इस योजना की उपलब्धि यह रही कि इस दौरान कोयले के उत्पादन में बुद्धि हुई, पूर्व में रेलमार्ग का विस्तार हुआ और टाटा अनुसन्धान संस्थान की स्थापना हुई ।

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वर्ष 1967 में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों को आरम्भ करने के लिए और प्रतिभाशाली युवा विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का संचालन भी शुरू किया गया । इस पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य 4.5% की विकास दर हासिल करना था, लेकिन वास्तविक विकास दर 4.27% रही । कुल मिलाकर, इस योजना के परिणाम सन्तोषजनक रहे ।

3. तीसरी पंचवर्षीय योजना:

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) के प्रारम्भ में गेहूँ उत्पादन में वृद्धि के लिए कृषि सुधार पर जोर दिया गया, लेकिन वर्ष 1962 में चीन के और वर्ष 1965-66 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों ने भारतीय रक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर कर दिया, जिससे सारा ध्यान रक्षा उद्योग की ओर स्थानान्तरित हो गया, हालाँकि बाँधों के निर्माण सम्बन्धी परियोजनाएँ जारी रही और कई सीमेण्ट एवं उर्वरक संयन्त्र भी स्थापित किए गए, परिणामस्वरूप पंजाब में गेहूँ उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई ।

इस दौरान शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया और जमीनी स्तर पर लोकतन्त्र के बिकास हेतु पंचायत चुनाव शुरू किए       गए ।  आरम्भिक दो पंचवर्षीय परियोजनाओं के बाद यह तीसरी योजना बुरी तरह से विफल रही । इस दौरान केवल 2.4% की विकास दर हासिल की जा सकी, जबकि लक्ष्य विकास दर 5.6% थी । 

इस योजना के असफल होने से सरकार ने आगामी तीन वर्षों (1969) तक पंचवर्षीय योजनाओं को स्थगित करने की घोषणा की । इस तीसरी पंचवर्षीय योजना की असफलता के प्रमुख कारण थे- संसाधनों की कमी, मुद्रस्फिाति में वृद्धि, चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध तथा बार-बार सूखा पड़ना ।

4. चौथी पंचवर्षीय योजना:

चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) के समय इन्दिरा गाँधी प्रधानमन्त्री थीं । इस योजनावधि में Rs.2,400 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया, जिससे पशुपालन, बनोत्पादन, बिजली उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन, परिवहन एवं परिवार नियोजन से सम्बन्धित परियोजनाओं को पूरा किया गया ।

इस योजना के दौरान भारत ने हरित क्रान्ति के विस्तार में आश्चर्यजनक प्रगति की और साथ ही प्रधानमन्त्री द्वारा 14 बड़े बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया । उनके इस कार्य को वर्तमान समय में बहुत सराहा जाता है ।

वर्ष 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण भी किया, लेकिन वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध और बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के कारण औद्योगिक बिकास आशानुकूल नहीं हो पाया । इस योजनावधि के दौरान केवल 3.3% की विकास दर प्राप्त की जा सकी, जबकि लक्ष्य विकास दर 5.6% निर्धारित की गई थी ।

5. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना:

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) में रोजगार, गरीबी हटाओ तथा सामाजिक न्याय पर बल दिया गया । पिछले युद्धों में मिली सीख के चलते रक्षा और कृषि क्षेत्र पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया, हालाँकि वर्ष 1978 में निर्वाचित हुए प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई ने इस योजना को खारिज कर दिया और 4.4% की लक्ष्य विकास दर हासिल करने के लिए सामाजिक एवं निजी क्षेत्रों में विनियोजन को प्रोत्साहन दिया, ताकि उत्पादन बढ़ सके ।

इस योजना के अन्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली की नींव रखी गई और केन्द्र सरकार ने विद्युत उत्पादन एवं वितरण के क्षेत्र में प्रवेश किया । इस दौरान पर्यटक उद्योग को भी बढावा दिया गया । इस योजनावधि के दौरान 5% विकास दर हासिल की गई जोकि निर्धारित विकास दर (4.4%) से अधिक थी ।

6. छठी पंचवर्षीय योजना:

वर्ष 1979 में जनता दल की सरकार ने सत्ता में आने के बाद पंचवर्षीय योजनाओं को खारिज करते हुए छ: वर्षीय योजना के प्रारूप को पेश किया, लेकिन वर्ष 1980 में कांग्रेस पार्टी ने पुन सत्ता में आने के बाद छ: वर्षीय योजना को अस्वीकार कर दिया और छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) की शुरूआत की ।

यह योजना आर्थिक उदारीकरण के युग की शुरूआत मानी जा सकती है, क्योंकि इसके अन्तर्गत राशन की दुकानों को बन्द कर दिया गया और सरकार ने मूल्य नियन्त्रण प्रणाली का अन्त कर दिया । इससे खाद्यान्नों के मूल्य में वृद्धि तो हुई, परन्तु साथ ही लोगों के जीवन-यापन स्तर में भी उन्नति हुई । इसे नेहरूवादी समाजवाद के अन्त के रूप में देखा जाता है ।

इस योजना के लिए Rs.15.60 बिलियन का बजट आवण्टित किया गया तथा 5.2% की बिकास दर हासिल करने का लक्ष्य रखा गया ।  इस योजना के अन्तर्गत जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण के लिए परिवार नियोजन सम्बन्धी परियोजनाओं को विशेष महत्व दिया गया । निष्कर्षत इस योजना को सबसे अधिक सफल पंचवर्षीय योजनाओं में गिना जाता है । इस योजनावधि में भारत 5.4% की बिकास दर पाने में सफल रहा ।

7. सातवीं पंचवर्षीय योजना:

छठी पंचवर्षीय योजना की सफलता ने सातवीं पंचवर्षीय योजना (1986-90) के लिए मजबूत आधार प्रदान कर दिया था । छठी योजना की आर्थिक सफलता ने अर्थव्यवस्था को एक स्थिरता प्रदान की, जिससे सातवीं योजना को और भी प्रभावी तरीके से लागू किया जा सका ।

इसके अन्तर्गत प्रौद्योगिकी उन्नयन, ऊर्जा उत्पादन, कृषि विकास, गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों आदि पर बल दिया गया । इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वर्ष 2000 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता एवं मजबूती प्रदान करना था, जिससे देश आत्मनिर्भरता की ओर उन्मुख हो ।

इस योजनावधि में 4% प्रतिवर्ष की दर से रोजगार बढ़ाने पर ध्यान दिया गया । इस योजना को भी सफल माना जाता है क्योंकि इस दौरान भारत ने निर्धारित लक्ष्य (5%) से अधिक की विकास दर (6.01%) हासिल करने में सफलता पाई थी ।

8. आठवीं पंचवर्षीय योजना:

केन्द्र में तेजी से बदलती हुई राजनीतिक परिस्थितियों के कारण वर्ष 1991 में आठवीं पंचवर्षीय योजना का आरम्भ नहीं किया जा सका । वर्ष 1991 और 1992 में वार्षिक योजनाएँ आरम्भ की गई लेकिन राजनीतिक स्थिरता के बाद पुनः पंचवर्षीय योजना के तहत विकास कार्यों को गति प्रदान की गई ।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) के समय आर्थिक परिस्थितियाँ राष्ट्र के लिए अनुकूल नहीं थी । पिछले दो वर्षों की अस्थिरता के कारण भारत को वित्तीय घाटा उठाना पडा और उसके सामने विदेशी मुद्रा भण्डार की कमी की समस्या आ खडी हुई । तब मजबूरी में तत्कालीन प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव और वित्तमन्त्री मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव करने पडे । इस तरह, इस योजनावधि में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखी गई ।

बढते वित्तीय घाटे को पाटने के लिए और विदेशी कर्ज से उबरने के लिए निजीकरण, उदारीकरण एवं आधुनिकीकरण की शुरूआत की गई । 1 जनवरी, 1996 को भारत इसके तहत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना । इस योजना को ‘राव और मनमोहन आर्थिक विकास प्रारूप’ के नाम से भी जाना जाता है ।

इसके अतिरिक्त, इस योजना के अन्य उद्देश्य जनसंख्या नियन्त्रण, गरीबी उन्मुलन, रोजगार के अवसर सृजन करना, बुनियादी ढाँचे का विकास, संस्थागत निर्माण, मानव संसाधन विकास, पंचायती राज व्यवस्था में सुधार आदि थे । एक प्रकार से यह योजनावधि सत्ता और धन के विकेन्द्रीकरण की अवधि थी । इस दौरान भारत ने 60 की विकास दर को छुआ ।

9. नौवीं पंचवर्षीय योजना:

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) का आरम्भ स्वतन्त्रता के ठीक 50 वर्ष बाद हुआ । उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमन्त्री थे । यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था आठवीं पंचवर्षीय योजना के कारण सँभल चुकी थी, फिर भी उस दौर की अस्थिरता का थोडा-बहुत प्रभाव इस दौरान भी देखा गया ।

इस योजनावधि में 7.1% की विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया था, परन्तु वास्तविक विकास दर 6.8% रही । इस योजना में सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों को समान महत्व देते हुए संयुक्त रूप से राष्ट्र की आर्थिक दशा को सुधारने पर बल दिया गया ।

नौवीं योजना के प्रमुख लक्ष्य थे- गरीबी उन्मुलन, रोजगार के अवसरों में बढोतरी, प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशेषकर निर्धन वर्ग के लिए भोजन की उपलब्धि का आश्वासन, पेयजल की उपलब्धि, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था, जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना तथा महिलाओं एवं आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का उत्थान ।

इस योजना में उन सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं को भी दूर करने का प्रयास किया गया, जो ऐतिहासिक रूप से समाज में हावी थी । इस योजना के कार्यान्वयन में कई आर्थिक बाधाएँ आई, किन्तु प्रशासन की दूरदर्शिता और बुद्धिमता के कारण इस योजना को एक सफल पंचवर्षीय योजना में परिवर्तित किया जा सका ।

10. दसवीं पंचवर्षीय योजना:

28 जून, 2009 के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सभापतित्व में योजना आयोग की बैठक में दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) को स्वीकृति प्रदान की गई थी । इस योजना के अन्तर्गत 20 सूत्री कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई । इस योजना के लिए Rs.43,825 करोड़ के बजट को स्वीकृति दी गई तथा प्रतिवर्ष 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया ।

इस योजना में इस बात पर जोर दिया गया कि विकास दर निर्धारित लक्ष्य से ऊपर ले जाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि देश में प्रतिव्यक्ति आय आगामी दस वर्षों में दोगुनी हो जाए । इस योजना के मुख्य लक्ष्य गरीबी उन्मुलन के कार्यक्रमों को तीव्रता प्रदान करना, विकास में प्रगति तथा लिंगभेद की विषमताओं को दूर करना आदि थे ।

इस योजनावधि के दौरान विश्व आर्थिक मन्दी से जूझा रहा था, इसलिए वैश्विक कारकों के कारण निर्धारित विकास दर नहीं हासिल की जा सकी, लेकिन ऐसी स्थिति में प्राप्त 7.7% विकास दर भी कुछ बुरी नहीं थी । एक ओर, जहाँ पूरा विश्व वर्ष 2001-02 की आर्थिक मन्दी के कुप्रभाव झेल रहा था, वहीं दूसरी ओर भारत अपने निर्धारित लक्ष्य से थोडा ही पीछे था ।

11. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना:

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के समय तक भारत को आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाने के परिणाम मिलने शुरू ही हुए थे कि वर्ष 2008-09 में फिर से वैश्विक आर्थिक मन्दी ने दस्तक दे दी, किन्तु अपनी मजबूत आर्थिक योजनाओं के चलते भारत इस बार भी 8% की बिकास दर को पाने में सफल रहा, हालाँकि लक्ष्य बिकास दर 9% तय की गई थी ।

इस योजना के प्रमुख उद्देश्य समावेशी विकास, सामाजिक क्षेत्र और उसकी सेवाओं में सुधार, शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से सशक्तीकरण, पर्यावरण स्थिरता, प्रजनन दर में कमी, वर्ष 2009 तक सभी के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना आदि थे, जिन्हें प्राप्त करने में सन्तोषजनक सफलता मिली है । कुल मिलाकर, इस योजना का परिणाम ठीक-ठाक रहा ।

12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना:

बारहवीं पंचवर्षीय योजना की समयावधि वर्ष 2012-17 तक की है । वर्तमान समय में यह योजना कार्यान्वित की जा रही है । भारत सरकार का लक्ष्य है कि इस योजनावधि में 8.2% की विकास दर हासिल की जाए, परन्तु योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोण्टेक सिंह अहलूवालिया और राष्ट्रीय विकास परिषद के मतानुसार, वैश्विक परिस्थितियों के चलते आर्थिक परिदृश्य बहुत परिवर्तित हो गया है, इसलिए 8% से अधिक की विकास दर हासिल करना सम्भव नहीं होगा ।

इसके अतिरिक्त, इस योजनावधि के दौरान सरकार ने गरीबी में 10% तक की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है । स्वतन्त्रता से लेकर अब तक भारत ने एक लम्बा पडाव पार किया है । इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने अच्छे-बुरे, दोनों दौर देखे हैं, लेकिन वर्तमान समय में भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी हो चुकी है । यह तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । पश्चिमी जगत् अब भारत को एक विश्व शक्ति के रूप में देख रहा है ।

वास्तव में, भारतीय अर्थव्यवस्था उन अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिनका आधार बहुत ही मजबूत है । इसलिए तो वर्ष 2001-10 में आई आर्थिक मन्दी के बावजूद भारत उससे अधिक प्रभावित नहीं हुआ । आज के सन्दर्भ में, यदि पंचवर्षीय योजनाओं की समीक्षा की जाए, तो उनकी महत्ता तथा सफलता स्पष्ट ही परिलक्षित होती है । पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से हमारे देश का योजनाबद्ध तरीके से विकास हुआ है, जिसका लाभ आज भी हमें मिल रहा है ।

यह सही है कि सभी पंचवर्षीय योजनाएँ सफल नहीं रही हैं कुछ तो बुरी तरह से विफल रही, लेकिन फिर भी इनकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता । तत्कालीन योजना मन्त्री श्री अशोक मेहता ने चौथी पंचवर्षीय योजना के प्रारूप में लिखा था कि ”पहली पंचवर्षीय योजना अधिक सफल हुई । दूसरी योजना भी असन्तोषजनक नहीं थी, किन्तु तीसरी योजना अच्छी नहीं रही ।”

यह क्रम कुछ हद तक स्वाभाविक है, क्योंकि हर बार परिस्थितियों को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं होता । उदाहरण के लिए पाक-चीन के युद्धों से बच पाना सम्भव नहीं था । हमें उनका उत्तर देना ही था, लेकिन यदि अकस्मात् युद्ध से हमारी एक पंचवर्षीय योजना विफल हो जाती है, तो सभी पंचवर्षीय योजनाओं को सन्देह की नजर से देखना बुद्धिमानी नहीं है ।

भारत जैसे विशाल देश का विकास योजनाबद्ध तरीके से ही सम्भव है ।  अतः दीर्घकालीन दृष्टिकोण से पंचवर्षीय योजनाएँ विकास में सहायक ही सिद्ध होंगी । आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमें दूरदर्शिता का परिचय देते हुए इन्हें प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना चाहिए । बारहवीं पंचवर्षीय योजना का प्रारूप उत्तम है आशा है इससे देश उन्नति के पथ पर आगे बढेगा ।

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