सरोगेसी पर निबंध! Here is an essay on ‘Surrogacy’ in Hindi language.
कुछ वर्ष पूर्व तक भारतीय परिवेश में ‘सरोगेसी’ शब्द का प्रयोग करना भी विचित्र-सा लगता था, लेकिन आज परिस्थितियाँ पूरी तरह से बदल गई हैं । आज भारत में सरोगेसी का प्रचलन काफी बढ़ रहा है और सामान्य जनता भी अब इससे अपरिचित नहीं है ।
‘सरोगेसी’ अर्थात् किराये की कोख के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करने से पूर्व इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है । दरअसल, सरोगेसी आधुनिक युग की एक चिकित्सकीय प्रणाली है, जिसके माध्यम से नि:सन्तान दम्पति सन्तान का सुख पा सकते है ।
अगर किसी भी प्रकार के शारीरिक अथवा चिकित्सकीय कारण से कोई महिला सन्तान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है, तो ऐसी स्थिति में सरोगेसी तकनीक का सहारा लिया जा सकता है । इस तकनीक के अन्तर्गत दम्पति द्वारा स्वयं के शारीरिक कॉम्बिनेशन की सन्तान किसी अन्य महिला, जिसे सरोगेट मदर कहा जाता है, से प्राप्त की जा सकती है । इस प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए टेस्ट ट्यूब तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है । इस तकनीक के माध्यम से अब तक हजारों दम्पति सन्तान-सुख प्राप्त कर चुके हैं ।
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एक अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग 20-25 मिलियन बाँझ दम्पति हैं, परन्तु भारतीय दम्पतियों में सरोगेसी का अधिक प्रचलन नहीं है, बावजूद इसके यह भी आश्चर्यजनक है कि आज भारत सरोगेसी हब के रूप में उभर रहा है अनुमानत दुनिया में अगर सरोगेसी के 500 मामले सामने आते हैं, तो उनमें से लगभग 300 मामले भारत के होते हैं ।
इस समय भारत में 3,000 से भी अधिक फर्टिलिटी क्लीनिक सेण्टर है, जो सरोगेसी की सुविधा उपलब्ध कराते हैं । गुजरात का आणन्द शहर सरोगेसी से सम्बन्धित सेवाएँ देने के लिए विश्वभर में मशहूर है । ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी हेराल्ड सन के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2012 में भारत में केवल ऑस्ट्रेलियाई दम्पतियों के ही 200 सरोगेसी जन्म के मामले प्रकाश में आए थे, जबकि वर्ष 2009 में यह कड़ा मात्र 47 था ।
इस समय विकसित देशों, विशेष तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस आदि के इच्छुक दम्पति सरोगेसी की सुविधा के लिए भारत का रुख करते हैं । यद्यपि कई देशों में वाणिज्यिक सरोगेसी को मान्यता प्राप्त नहीं है, परन्तु भारत में यह वैध है और सरोगेसी का अनुमानित व्यवसाय 400 मिलियन डॉलर से भी अधिक है ।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि विकसित देश तकनीक के मामले में नि:सन्देह हमसे बेहतर हैं और उन देशों में भी सरोगेसी की सुविधा उपलब्ध है, इसके बावजूद उन देशों के दम्पति सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पाने के लिए भारत को ही क्यों चुनते हैं?
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इसके कई कारण है । इसका पहला कारण तो यह है कि आज हमारे देश में भी चिकित्सकीय विज्ञान उन्नति कर रहा है और यहाँ चिकित्सा सम्बन्धी विश्वस्तरीय सुविधाएँ उपलब्ध है । दूसरा कारण है- यहाँ सरोगेट मदर (किराये की कोख देने वाली महिला) आसानी से मिल जाती है ।
गरीब अथवा निम्न तबके की महिलाएँ आर्थिक लाभ पाने के उद्देश्य से इस काम के लिए तैयार रहती है, हालाँकि कई बार इसके पीछे पारिवारिक दबाव भी होता है । एक अध्ययन के अनुसार, भारत में आर्थिक लाभ पाने हेतु गरीब तबके की 18 से 35 वर्षीय महिलाएँ सरोगेट मदर बनने की इच्छुक रहती हैं ।
तीसरा कारण है- यहाँ सरोगेसी सम्बन्धी नियम बहुत लचीले है और पूरी चिकित्सकीय प्रणाली के अन्तर्गत विकसित देशों की अपेक्षा बहुत कम खर्च होता है । इस प्रकार, समान स्तर की सुविधा की उपलब्धता और कम खर्चीली प्रक्रिया होने के कारण भारत में सरोगेसी का व्यवसाय काफी फल-फूल रहा है ।
मेडिकल टूरिज्म के दृष्टिकोण से देखें, तो सरोगेसी हमारे लिए फायदे का सौदा है, परन्तु व्यावहारिक और सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो इसके साथ कुछ समस्याएँ भी हैं दरअसल, हमने सरोगेसी को कानूनी रूप से वैध तो घोषित कर दिया है, परन्तु इस सन्दर्भ में हमारे नियम-कानून बेहद कमजोर है, जिसके कारण विदेशी दम्पति जब-तब इनका फायदा उठाते रहते है और अधिकांश मामलों में तो इनका पालन ही नहीं किया जाता ।
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भारत में सरोगेट माँ के अधिकार स्पष्ट रूप से परिभाषित न होने के कारण ही दलालों द्वारा मौखिक मध्यस्थता की जाती है, जिसमें सरोगेट माँ को बहुत कम भुगतान किया जाता है । कई बार दबाव के चलते या स्वयं महिला ही अपनी इच्छा से बार-बार सरोगेट माँ बनने के लिए राजी हो जाती है, जिससे उसके स्वास्थ्य के लिए गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
उस पर भी बच्चा पैदा हो जाने के बाद उसकी देखभाल की प्रायः उपेक्षा ही की जाती है और यदि बच्चे के माता-पिता उसे अपनाने से इनकार कर दे, तो उसके लिए स्थिति और भी विचित्र हो जाती है । हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें जैविक माता-पिता ने सरोगेट माँ से जन्मे बच्चे को अपनाने से ही मना कर दिया और बच्चे को साथ लिए बिना ही स्वदेश लौट गए । इसके अतिरिक्त, एक चौंकाने वाली यह बात भी सामने आई है कि सरोगेसी के कारण कन्या-प्रण हत्या के मामले भी बड़े हैं ।
लडका पाने के इच्छुक माता-पिता बच्चे का लिंग पता लगने पर कन्या-भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए सरोगेट माँ को विवश करते हैं । कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरोगेट माँ बनने बाली महिलाओं के हितों की कई बार अनदेखी की जाती है ।
सरोगेसी को व्यवसाय का रूप देना बुरा नहीं है, लेकिन इसके लिए पर्याप्त नियम होने चाहिए तथा उनका पालन भी सख्ती से किया जाना चाहिए, जिससे मानवीय मूल्यों की रक्षा की जा सके अन्यथा इसमें फैली अराजकता तथा अपारदर्शिता हमारे लिए खतरा बन जाएगी । वर्तमान समय में, हमारे यहाँ सरोगेसी के मामलों की निगरानी करने के लिए कोई विशेष संस्था या विधान नहीं है ।
इस सन्दर्भ में केवल भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश उपलब्ध है, जो नाकाफी है । हालाँकि सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी संबेदनशीलता व्यक्त की है परन्तु सरोगेट माँ के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया ‘असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेस्नोलॉक बिल, 2013’ अभी भी लम्बित है और अभी तक इसे संसद में पेश भी नहीं किया गया है ।
मौजूदा सरकार से यह आशा है कि वह इस विषय की गम्भीरता समझते हुए शीघ्र ही इस दिशा में प्रभावशाली कानून का निर्माण करेगी, जिससे गरीबी से जूझती भोली-भाली महिलाओं का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण रोका जा सके ।