प्रशासन पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Administration: Top 4 Essays in Hindi!
प्रशासन पर निबंध | Essay on Administration
Essay # 1. प्रशासन का अर्थ (Meaning of Administration):
लोक प्रशासन प्रशासन रूपी व्यापक प्रक्रिया का ही एक भाग है । अत: प्रशासन को समझ लेना आवश्यक है, जिसका अर्थ होता है निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समन्वित सामूहिक प्रयत्न ।
ये प्रयत्न हम सैनिक संगठन में भी देख सकते है और सामाजिक संगठनों में भी । इन्हें निजी से लेकर सरकारी संस्थाओं तक सार्वभौमिक रूप से विद्यमान पाया जाता है, जहां निर्धारित उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों और सामग्रियों का संगठन निरंतर प्रयत्नशील रहता है ।
”प्रशासन” अंग्रेजी के ”एडमिनिस्ट्रेशन” का पर्याय है जो मूलतः लैटिन शब्द “मिनिस्ट्रेयर” (सेवा का अर्थ देने वाला) से बना है । Ministration भी मूलत: लैटिन शब्द Ministrare से बना है, जिसका अर्थ है सेवा देना । इसी प्रकार (Administer) (प्रशासन करना) भी दो लैटिन शब्दों Ad और Minister से बना है, उसका अर्थ है, सेवा करना या प्रबंध करना ।
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शाब्दिक अर्थ- उत्कृष्ट या श्रेष्ठ या विशिष्ट या पूर्ण रूप से शासन करना । सामान्य डिक्शनरी अर्थ- कार्यों का प्रबंध या व्यक्तियों की देखभाल । ब्रिटेनिका डिक्शनरी में दिया गया अर्थ- कार्यों का प्रबंध या कार्यों को पूर्ण करने की क्रिया ।
प्रशासन संस्कृत शब्द ”प्रशास्ता” से बना है, जो वैदिक यज्ञों के मुख्य पुजारी को कहा जाता था । प्रशास्ता अन्य अधीनस्थ पूजारियों का निर्देशन यज्ञ के दौरान करता था अर्थात प्रशास्ता का कार्य प्रशासन करना था । कामण्डकीय नीतिसार में प्रशासन को शासन संचालन के लिए या राजा के कार्यों के लिए प्रयुक्त किया गया ।
प्रशासन के व्यवहारिक अर्थ:
प्रशासन अनेकार्थी शब्द है । वर्तमान में प्रशासन का सरल अर्थ ”सेवा करने” से लिया जाता है ।
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प्रशासन को आम तौर पर चार अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है:
1. मंत्रिमंडल या सरकार के रूप में- नेहरू प्रशासन, बाजपायी प्रशासन ।
2. लोक नीति को पूरा करने वाली सरकारी एजेन्सी के रूप में शिक्षा प्रशासन, रेलवे प्रशासन ।
3. अध्ययन की शाखा के रूप में- लोक प्रशासन ।
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4. प्रबंधकीय कार्यों या क्रियाओं के रूप में- निर्देशन, नियंत्रण, समन्वय आदि ।
पहले अर्थ में प्रशासन राजनीतिक सत्ता का ही अधिक आभास देता है और इसीलिए वह यहां इतना महत्व नहीं रखता । राजनीतिक सत्ता के अंतर्गत कार्यरत प्रशासनिक सत्ता का संदर्भ और विश्लेषण ही हमारे लिए अधिक उपयोगी होने से, बाकि के तीन अर्थ महत्वपूर्ण हो जाते हैं ।
दूसरे अर्थ में प्रशासन एक सार्वजनिक नीति विशेष का ज्ञान कराता है । यह विषयगत हो सकता है जैसे शिक्षा या स्वास्थ्य प्रशासन, क्षेत्रगत हो सकता है जैसे जिला या नगरीय प्रशासन । ये सभी सार्वजनिक नीतियों के क्रियान्वयन से जुडे होते हैं ।
तीसरा अर्थ प्रशासन को सार्वजनिक घटनाओं के अध्ययन की एक शाखा के रूप में स्थापित करता है । लोक प्रशासन नामक विषय सरकारी प्रशासन के संगठन, उसके कार्य, उनमें आ रहे बदलाव का अध्ययन करता है, और तत्संबंधी सुझाव भी देता है ।
चतुर्थ अर्थ प्रशासन को एक प्रबन्धकीय क्रियाविधि बना देता है । संगठन के उच्च पदाधिकारियों पर उन महत्वपूर्ण कार्यों का दायित्व होता है, जिनके बिना लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो सकती है । इन्हें ही प्रबंधकीय या प्रशासकीय कार्य कहा जाता है, जिन्हें करने वाले प्रशासक कहलाते हैं और वे जो कुछ भी इस निमित्त करते है, वही प्रशासन है ।
यह चौथा आशय प्रशासन के अर्थ में एक विवाद को जन्म देता है कि प्रशासन कार्य करवाने से संबंधित है या मिलकर कार्य करने से संबंधित है । दूसरे शब्दों में प्रशासन में मात्र उच्च कार्मिकों के कार्य शामिल है या उच्च से लेकर निम्न तक सभी कार्मिकों के । प्रबंध में भी इस विवाद का पटाक्षेप मानववादी विचारकों के हस्तक्षेप के बाद इस निष्कर्ष के साथ हुआ था कि प्रबंध तो एक सामूहिक गतिविधि है और उसे मात्र उच्च पदों तक सीमित नहीं किया जा सकता ।
प्रशासन के क्षेत्र में आने वाले प्रारंभिक लेखकगण प्रबंध से ही थे, अतएव उन्होंने परम्परागत प्रबंधकीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि प्रशासन कार्य करवाता है । यदि यह अर्थ स्वीकार किया जाए तो प्रशासन मात्र प्रबंध है और इसमें संगठन के उच्च पदाधिकारियों द्वारा संपन्न किये जाने वाले नियोजन, निर्देशन, नियंत्रण, समन्वय प्रबंधकीय कार्य सम्मिलित अर्थात संगठन की अन्य गतिविधियों जैसे लिपिकीय कार्य, तकनीकी वर्ग की सेवाएं, चपरासी के कार्य प्रशासन से बाहर है ।
यह प्रबन्धकीय दृष्टिकोण के नाम से जाना जाता है । इसकी मूल अवधारणा यह है कि प्रशासन एक सार्वभौमिक क्रिया है चाहे वह शिक्षा का प्रशासन हो या स्वास्थ्य का, सरकारी हो या निजी । इन सभी जगह उच्च प्रशासकीय वर्ग एक जैसे कार्य करता है जिन्हें प्रबन्धकीय कार्य कहते हैं ।
फेयोल, गुलिक इस दृष्टिकोण के प्रबल समर्थक हैं । इसके विपरीत एल.डी. व्हाइट जैसे लेखक संगठन की सभी गतिविधियों को प्रशासनिक कार्य मानते हैं । अन्य समर्थक विद्वानों का मानना है कि प्रशासन में उच्च से लेकर निम्न कार्मिक तक के कार्य शामिल होते हैं क्योंकि उद्देश्य प्राप्ति में सभी का योगदान रहता है । इसे एकीकृत दृष्टिकोण की संज्ञा दी जाती है ।
दोनों ही दृष्टिकोणों की आलोचना की जाती है । दैनिक जीवन में हम लिपिक या चपरासी को प्रशासक कतई नहीं मानते लेकिन यह जरूर समझते हैं कि वे प्रशासन के कार्यों में लगे हुए हैं । हम प्रशासक को प्रशासन का पर्याय मानना छोड़ दें तो यह समस्या थोडी सरलीकृत हो सकती है ।
हेनरी फेयोल इस समस्या को नया मोड़ देते है जब वे एक तरफ तो कहते हैं कि प्रशासन प्रत्येक कार्मिक के कार्यों का एक भाग होता है चाहे वह कितना ही छोटा कार्मिक क्यों न हो, तथा दूसरी तरफ यह भी कहते हैं कि उच्च पदाधिकारी प्रशासनिक कार्य अधिक करते है, निम्न कार्मिक कम ।
फेयोल प्रबंधकीय विचारधारा का समर्थन इसलिए करते हैं क्योंकि इससे प्रत्येक संगठन में प्रशासन की गतिविधियों एक समान होंगी और एक संगठन से दूसरे संगठन में उनमें अंतर नहीं होगा । उर्विक और गुलिक ने भी इसी दृष्टिकोण का समर्थन किया है ।
परंतु लेविस मेरियम प्रशासन की भिन्नता को ज्यादा महत्व देती हैं क्योंकि व्यवहार में यही सत्य है । दो संगठनों के प्रशासन में उच्च कार्मिक समान प्रबंधकीय कार्य जरूर करते हैं लेकिन उन्हें जिन अधीनस्थों के साथ काम करना होता है वे भिन्न गतिविधियों से जुड़े होते हैं । स्वास्थ्य प्रशासन और शिक्षा प्रशासन के संचालक समान कार्य करते है नियोजन, निर्देशन, नियंत्रण इत्यादि ।
लेकिन उनके अधीनस्थ पृथक गतिविधियों में लगे होते हैं और इन गतिविधियों की सम्पन्नता से ही प्रशासन पूर्ण होता है । स्वास्थ्य प्रशासन में निचले स्तर पा डाक्टर्स, कम्पाउडर्स, नर्स आदि कार्य कर रहे होते है जिनके कार्य शिक्षा प्रशासन के निचले स्तरों पर कार्यरत शिक्षकों, प्राचार्यों के कार्यों से भिन्न होते है । प्रत्येक प्रशासन अपने इसी अधीनस्थ अमले के कामों से ही ग्राहकों तक पहुँचता है, अत: उनके कार्यों की अहमियत किसी भी रूप में कम नहीं हो सकती है ।
इसके अर्थ प्रयोगानुसार भी निकलते है, जैसे:
(i) सर्वाधिक प्रचलित अर्थ है- सेवा करना ।
(ii) एक सामूहिक गतिविधि जो उद्देश्य की दिशा में अग्रसर है ।
(iii) एक सरकारी या निजी नीति को लागू करने से संबंधित गतिविधि जैसे रेलवे प्रशासन या टाटा प्रशासन ।
(iv) प्रशासन एक सार्वभौमिक क्रिया है जो सभी प्रकार के कार्यों पर लागू होती है चाहे वे सरकारी हों या निजी । वस्तुत: प्रशासन के ये दो मुख्य प्रकार है जो संस्थागत आधार पर प्रकट होते हैं-लोक और निजी प्रशासन ।
निष्कर्षत:
प्रशासन एक सामूहिक गतिविधि है जिसमें प्रत्येक कार्मिक और संगठन का योगदान लक्ष्य प्राप्ति के लिए समान महत्व का होता है अत: किसी की भी उपेक्षा उचित नहीं हो सकती ।
Essay # 2. प्रशासन की परिभाषाएँ (Definitions of Administration):
प्रशासन की परिभाषाएं भी विद्वानों ने अनेक प्रकार से की:
ग्लेडन- “प्रशासन एक लम्बा और अलंकारिक शब्द है लेकिन इसका अर्थ सरल है कार्यों का प्रबन्ध या देखभाल ।”
हार्वेवाकर- “सरकार कानून को प्रभावी बनाने के लिए जो कार्य करती है वही प्रशासन है ।”
फिफनर-प्रेस्थस- “प्रशासन उद्देश्य प्राप्ति के लिए मनुष्यों और सामग्री दोनों का संगठन और निर्देशन है ।”
वालेस, “प्रशासन संगठन…… व्यक्तियों सामग्रियों के संगठन और निर्देशन का उसी प्रकार प्रबंधकीय व्यवसाय और कौशल, जिस प्रकार इंजिनियरों के पास भवन निर्माण का और डाक्टरों के पास रोग निदान का ।”
साइमन-स्मिथबर्ग-थामसन- “प्रशासन का अर्थ है, सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए (सहयोग के आधार पर) सामूहिक प्रयत्न ।”
लूथर गुलिक- “प्रशासन का अर्थ है उद्देश्य प्राप्ति के लिए व्यक्तियों से काम करवाना” ।
एल. डी. व्हाइट- “प्रशासन उद्देश्य प्राप्ति के लिए बहुत से व्यक्तियों (के संबंध में) के निर्देशन, नियंत्रण और समन्वयीकरण की कला है” ।
जान विग- “चेतन उदेश्यों की प्राप्ति के लिए नियोजित प्रयास ही प्रशासन है” ।
मेकननी- “प्रशासन उद्देश्य प्राप्ति के लिए स्थापित संगठन एवं मनुष्य तथा वस्तुओं का प्रयोग है” ।
डिमॉक-
i. कानून को कार्य रूप देना ही प्रशासन है ।
ii. सरकार की कार्यपालिका वाला भाग प्रशासन है ।
iii. प्रशासन सरकार के ”क्या” और ”कैसे” से संबंधित है ।
एफ.एम. मार्क्स-
i. प्रशासन चेतन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक संगठित प्रयास और साधनों का निश्चित प्रयोग है ।
ii. प्रशासन एक निश्चियात्मक प्रक्रिया है ।
निग्रो-
i. प्रशासन का अर्थ है, जनहित के उद्देश्य से की गयी मूल सेवा ।
ii. प्रशासन उद्देश्य प्राप्ति हेतु मनुष्यों और सामग्रियों का संगठन (और उपयोग) है ।
Essay # 3. प्रशासन की विशेषताएं (Characteristics of Administration):
उपर्युक्त अर्थ और परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में प्रशासन की निम्नलिखित विशेषताएं प्रकट होती हैं:
1. एक निश्चित उद्देश्य यह प्रशासन का पहला अनिवार्य लक्षण है । बिना उद्देश्य के कोई प्रशासन नहीं हो सकता । किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही प्रशासनिक क्रियाएं सम्पन्न की जाती हैं ।
2. सामूहिक गतिविधि यह इसकी दूसरी विशेषता है । प्रशासन एक सामूहिक गतिविधि है अर्थात एकल व्यक्ति के कार्य प्रशासन नहीं है, लेकिन समूह में प्रत्येक व्यक्ति के कार्य प्रशासन है ।
3. सांगठिनक तंत्र प्रशासन को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये मनुष्यों और भौतिक सामग्रियों को जुटाकर उनमें समन्वय करना होता है अर्थात औपचारिक संगठन ढांचा प्रशासन का मूलत: अनिवार्य अंग है । संगठन प्रशासन का मूर्तरूप है । संगठन की उपस्थिति की अनिवार्यता ही प्रशासन को औपचारिक प्रक्रिया बनाती है और इसलिए परिवार जैसी अनौपचारिक संस्थाओं में प्रशासन की उपयोगिता सीमित ।
4. अपेक्षाकृत बड़ी संरचना प्रशासन एक व्यवस्थित प्रक्रिया है । अत: यह परिवार, परचून की छोटी दुकानों में संभव नहीं होता, अपितु औपचारिक रूप से गठित संगठनों जैसे अस्पताल, महाविद्यालय, प्राइवेट कंपनियों, सरकारी संगठनों आदि में ही अपने वास्तविक अर्थों में विद्यमान रहता है ।
5. व्यक्तिगत उद्देश्य बनाम सामूहिक उद्देश्य प्रशासन के कार्यों में लगे व्यक्तियों का व्यक्गित उद्देश्य जीविकोपार्जन हेतु धन प्राप्त करना होता है, जबकि वे जिस प्रशासन के लिए काम कर रहे है उसका उद्देश्य जनता या ग्राहकों को कोई सेवा देना या उत्पाद बेचना है । यद्यपि इन दोनों उद्देश्यों में भेद है तथापि इनमें कोई अन्तर्विरोध नहीं है ।
6. प्राधिकार की मौजूदगी प्रशासन में लगे व्यक्तियों के पास अपने दायित्वों को पूरा करने हेतु पर्याप्त अधिकार होते हैं ।
7. एक सर्वव्यापी प्रक्रिया प्रशासन क्रियायें सभी स्थानों पर घटती हैं । देश, सीमा काल का प्रतिबंध नहीं होता ।
8. अन्य विशेषताएं:
(i) सहयोगात्मक प्रयास है अर्थात कार्मिकों के मध्य परस्पर सहयोग अनिवार्य है।
(ii) इसके संस्थागत आधार पर दो स्वरूप हैं, सरकारी या लोक प्रशासन और व्यैक्तिक या निजी प्रशासन ।
(iii) एक अनेकार्थी शब्द है ।
(iv) एक क्रिया के रूप में प्राचीनकाल से अस्तित्व में हैं ।
(v) इसमें लगे प्रत्येक कार्मिक के कार्यों का योग है ।
(vi) यह प्रबन्ध से व्यापक है ।
Essay # 4. प्रशासन का दर्शन (Philosophy of Administration):
डिमॉक पहला विद्वान है जिसने प्रशासन को दर्शन की संज्ञा दी । अपनी पुस्तक ”ए फिलासफी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन का दर्शन) (1958)” में डिमॉक कहता है कि प्रशासन का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत होने के कारण प्रशासन का दर्शन ही जीवन दर्शन हो गया है ।
“डिमॉक दर्शन के क्षेत्र को ”रचनात्मक विकास के क्षेत्र” की संज्ञा देते हैं । एम.पी. शर्मा के अनुसार प्रशासन का दर्शन प्रशासन के कार्यों और उद्देश्यों को परिभाषित करने का नया दृष्टिकोण है ।
क्रिस्टोफर हागकिन्सन (पुस्तक-टू वडर्स ए फिलासफी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) – प्रशासन निश्चित और स्पष्ट दार्शनिक मूल्यों को ग्रहण कर रहा है । इन्होंने ”सक्षम मूल्यों के सिद्धांत” द्वारा प्रशासनिक दर्शन के साहित्य को नई ऊँचाइयों पर प्रतिष्ठित कर दिया ।
आर्डवे टीड- इसने डिमॉक की पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है और उसमें प्रशासन के दर्शन की वकालत की ।
चार्ल्स बीयर्ड- सभ्यता का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हम एक अच्छे प्रशासनिक दर्शन को विकसित कर लें ।
प्रशासनिक दर्शन पर गत शताब्दी में लिखने वाले महत्वपूर्ण लेखक रहे: बर्नाड, विचनर्ज, बेयर्ड, कहेशाट, लैसम, साइमन, थाम्पसन डिमॉक और हागकिन्सन ।