एपिकल्चर पर निबंध | Essay on Apiculture in Hindi.
मधुमक्खियों के पालने तथा उनके प्रबन्धन को मधुमक्खी पालन कहते हैं । मधुमक्खी पालन को घरेलू उद्योग से लेकर बड़े पैमाने पर किया जाता है । इस उद्योग से शहद के अतिरिक्त मोम भी प्राप्त किया जाता है ।
मधु एक संतुलित आहार के रूप में जाना जाता है । मोम से 300 से अधिक प्रकार की वस्तुयें तैयार की जाती हैं । इसका इस्तेमाल दवाइयों, मोमबत्ती, लोशन, लिपस्टिक, पॉलिश, पेंट और वॉर्निश आदि बनाने में उपयोग होता है ।
मधुमक्खी पालन से किसानों की आय में वृद्धि होती है तथा इस अधिक धन की आवश्यकता नहीं होती इसलिये छोटे और सीमांत किसान भी इसको करके अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं ।
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वर्तमान समय में मधुमक्खी पालन कृषि में एक लागत (Input) के तौर पर समझा जाने लगा है, क्योंकि जिन क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन किया जाता है उनमें परागण की मात्रा में वृद्धि होती है और फसलों का उत्पादन बढ़ता है । भारत के सभी राज्यों एवं केन्द्रीय शासिक प्रदेशों में मधुमक्खी पालन किया जाता है।
मधुमक्खियों की प्रजातियां (Species of Honeybee):
मधुमक्खियों की मुख्यत: निम्नलिखित चार प्रजातियां हैं:
(i) लघु मधुमक्खी (Little Honey Bee or Apis Floras):
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प्राकृति में रहने वाली ये छोटी मधुमक्खियां होती हैं और प्रायः मैदानों में 300 मीटर तक की ऊँचाई तक आवास करती हैं । ये आमतौर पर झाड़ियों में अपना छत्ता बनाती हैं । छत्ते के ऊपर ये एक से अधिक परतों में बैठी रहती हैं । शहद के एक छत्ते से 200-250 ग्राम शहद प्राप्त होता है ।
(ii) चट्टानी मधुमक्खी (Apis dor Sata):
ये मधुमक्खियां बड़े आकार की होती हैं । ये अपना छत्ता वृक्ष की शाखा पर बनाती हैं । ये अपने छत्ते को एक पर्दे (Curtain) की भांति ढके रहती हैं । एक छत्ते से 5 किलो तक मधु प्राप्त हो सकता है । ये मक्खियां मैदानों से पर्वतों तक काफी दूरी तक पलायन करती रहती हैं । इस प्रकार ये विपरीत जलवायु परिस्थितियों एवं खराब मौसम का सामना करने में सक्षम हैं ।
(iii) भारतीय मधुमक्खी (Apis Cerana):
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एशियाई मूल की ये मधुमक्खियां भारतीय मधुमक्खियां भी कहलाती हैं । भारत के अधिकतर भागों में इनको पाला जाता है और व्यापारिक स्तर पर शहद का उत्पादन किया जाता है । यह प्रतिवर्ष 12 से 15 किलो शहद का उत्पादन करती हैं ।
(iv) पाश्चमी मधुमक्खी (Western Bee or Apis Melifera):
विश्व में सबसे अधिक इसी मधुमक्खी का पालन किया जाता है और सबसे अधिक व्यापार इसी के शहद का किया जाता है । अन्य मधुमक्खियों की तुलना में इनका आकार लम्बा होता है । उत्तरी-पश्चिमी भारत में इसका पालन करने में भारी सफलता मिली है । ये एक वर्ष में 40 किलो शहद का उत्पादन करती हैं ।