बैंकों पर निबंध: परिभाषा, लक्षण और लाभ | Essay on Banks: Definition, Characteristics and Advantages in Hindi language!

Essay # 1. बैंक की परिभाषा (Definition of Banks):

बैंक का तात्पर्य उस संस्था से है जो जनता से जमा के रूप में रूपया प्राप्त करती है और ऋण के रूप में या जमाकर्ताओं की माँग पर उन्हें रुपया देती है । अन्य शब्दों में, वे संस्थाएँ जो धन का लेन-देन करती है बैंक कहलाती है । आधुनिक युग में बैंकिंग क्रियाओं का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है । अतः बैंक के कार्यों में भी वृद्धि होती जा रही है ।

बैंक शब्द को समझ लेना सरल है किन्तु उसकी परिभाषा देना कठिन है ।

अनेक विद्वानों ने बैंक की परिभाषाएँ दी हैं जिन्हें मुख्यतः तीन शीर्षकों में विभाजित कर सकते हैं:

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(1) कार्य पर आधारित परिभाषाएँ,

(2) वैधानिकता पर आधारित परिभाषाएँ और

(3) साख व्यावसाय पर आधारित परिभाषाएँ ।

ये परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं:

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(1) कार्य पर आधारित परिभाषाएँ:

प्रो. गिलबर्ट – ”बैंक पूंजी अथवा सही शब्दों में ”मुद्रा” का व्यवसाय है ।”

प्रो. सरजान पेजट – ”कोई भी संस्था तब तक बैंक नहीं कही जा सकती है जब तक कि वह सामान्य जनता की राशि जमा न करे, उसके नाम पर चालू खाते न खोले और अपने ग्राहकों का भुगतान एवं संकलन न करें ।”

प्रो. ए.जी. हार्ट – ”बैंक वह है, जो अपने साधारण व्यावसाय में धन प्राप्त करता है और जिससे वह उन व्यक्तियों के चैकों का भुगतान करता है जिनसे या जिनके खातों में वह धन प्राप्त करता है ।”

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उक्त परिभाषाओं में बैंक के स्थायी व चालू जमा करने, चैकों का भुगतान एवं चैकों के संग्रह करने को महत्व दिया है । किन्तु इनमें बैंक के सबसे महत्वपूर्ण कार्य-ऋण देने एवं साख के व्यवसाय ये भुला दिया है । अतः इन परिभाषाओं को पूर्ण नहीं माना जाता है ।

(2) वैधानिकता (Legal) पर आधारित परिभाषाएँ:

ब्रिटिश विनिमय बिल अधिनियम – ”बैंक के अंतर्गत बैंकिंग व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों का एक समूह (नियमित और अनियमित) शामिल होता है ।”

भारतीय बैंकिंग अधिनियम धारा 5 (ब) – ”बैंकिंग से तात्पर्य ऋण देने अथवा विनियोग के लिए जनता से धन जमा करना है जो कि मांग करने पर लौटाया जा सकता है तथा चैक, ड्राफ्ट तथा अन्य प्रकार की आज्ञा द्वारा निकला जा सकता है ।”

उक्त परिभाषाएँ दोषपूर्ण हैं क्योंकि:

(अ) इन्होंने बैंक शब्द का अर्थ बताया ही नहीं । ये यह मानकर चलती है कि इस शब्द का अर्थ सभी जानते हैं ।

(ब) इनमें बैंक द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य शामिल नहीं किये गये हैं ।

(3) साख व्यवसाय (Credit Transactions) पर आधारित परिभाषाएँ:

प्रो. क्राउथर – ”बैंकर अपने तथा अन्य लोगों के ऋणों का व्यवसायी होता है । अर्थात बैंकर का व्यवसाय अन्य लोगों से ऋण लेना है । और बदले में ऋण देना एवं इस प्रकार मुद्रा का सृजन करना है ।”

प्रो. सेयर्स – ”बैंक वह संस्था है जिसके कणों से अन्य व्यक्तियों के पारस्परिक भुगतान के लिए विस्तृत रूप से स्वीकार किया जाता है ।”

प्रो. फिण्डले शिराज- ”बैंकर वह व्यक्ति या फर्म या कम्पनी है जिसके पास व्यवसाय के लिए ऐसा स्थान हो जहां जमा या मुद्रा संग्रह या ड्राफ्ट संग्रह और चैक से भुगतान या वसूल की जाने वाली राशियों के खाते खोले जाते हो अथवा बॉण्ड और धातु के आधार पर मुद्रा के अग्रिम या ऋण लिए जाते हों और विनिमय बिलों व साख पत्रों का कटौती और बिक्री के लिए स्वीकार किये जाते हों ।”

उक्त परिभाषाओं में बैंक का महत्वपूर्ण कार्य केवल साख का निर्माण बताया है । अतः ये परिभाषाएं बैंक के सही स्वरूप को प्रगट नहीं करतीं ।

उचित परिभाषाएं (Proper Definitions):

उपर्युक्त परिभाषाओं में कुछ न कुछ दोष है । अतः वेब्स्टर के शब्दकोष में दी गई परिभाषा को उचित परिभाषा के रूप में रखा जा सकता है ।

वेब्स्टर शब्द कोष ”बैंक वह संस्था है जो द्रव्य में व्यवसाय करती है, एक ऐसा प्रतिष्ठान है जहाँ धन जमा, संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा ऋण एवं कटौती की सुविधाएँ प्रदान की जाती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था की जाती है ।”

उक्त परिभाषा इसलिए उचित है क्योंकि इसमें ”द्रव्य में व्यवसाय” शब्द का अर्थ अत्यधिक व्यापक लिया गया है । ”द्रव्य के लेन-देन” में बैंक की सभी क्रियाएं व्यापक रूप से आ जाती हैं । इस प्रकार बैंक की आदर्श परिभाषा इस प्रकार दी जाती है, ”बैंक वह संस्था है जो अपने ग्राहकों के लिए धन से सम्बन्धित लेन-देन के सभी कार्य करती है ।”

Essay # 2. बैंक की विशेषताएं (Characteristics of Banks):

प्रो. सरजान पेजेट ने किसी व्यक्ति या संस्था के बैंकर होने की निम्नलिखित तीन विशेषताएं बताई हैं:

(i) मुख्य व्यवसाय:

बैंक या बैंकर वह संस्था या व्यक्ति है जो बैंकिंग के काम को ”मुख्य व्यवसाय” के रूप में चलाती है । यदि उसका आर्थिक लेन-देन का काम गौण हो तो वह बैंकर नहीं है ।

(ii) प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि:

बैंक या बैंकर वही संस्था या व्यक्ति होता है जो समाज में बैंकर के काम के लिए प्रसिद्ध है ।

 

(iii) आय का साधन:

कोई व्यक्ति या संस्था बैंकर तभी होती है जब उसकी आय का एकमात्र साधन बैंकिंग व्यवसाय हो । यदि वह इस व्यवसाय को जीवन निर्वाह के मुख्य साधन के रूप में नहीं अपनाता है तो वह बैंकर नहीं है ।

Essay # 3. बैंकों के लाभ (Advantages of Banks):

आधुनिक युग में आर्थिक विकास की दृष्टि से बैंकों का महत्वपूर्ण स्थान है । सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के लिए चाहे वे विकसित हों या विकासशील, बैंकों की नितान्त आवश्यकता होती है । बैंक शरीर रूपी अर्थव्यवस्था में रक्तवाहिनी नाड़ियां की भांति कार्य करते हैं ।

जिस प्रकार रक्तवाहिनी नाड़ियाँ सारे शरीर में रक्त पहुंचाकर उसे स्वस्थ, सबल और सक्रिय रखती है, उसी प्रकार बैंक सम्पूर्ण अर्थ-व्यवस्था में वित्त का संचार कर उसे सक्रिय, सबल एवं विकसित करते हैं । बैंकिंग क्रियाओं के अभाव में आर्थिक विश्वास का मार्ग रुक जाता है ।

इसलिए बैंकिंग व्यवस्था को आर्थिक जगत का प्राण कहा जाता है । किसी भी देश का उत्पादन, व्यापार-व्यवसाय तथा उद्योग-धन्धे आदि सभी बैंकिंग विकास पर निर्भर हैं । बैंकों के बिना आर्थिक विकास कल्पना लगता है ।

बैंकों के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

1. बचतों को प्रोत्साहन:

बैंक समाज में बचत की आदत को प्रोत्साहित करते हैं । बैंक छोटी-छोटी बचतों को संग्रहित कर उन पर ब्याज देते है । व्याज के प्रलोभन में बचत की प्रवृत्ति बढ़ती है । इससे अपव्यय पर नियंत्रण लगता है । बैंक छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित कर उद्योग व व्यापार के लिए वित्त प्रदान करते हैं ।

2. पूँजी निर्माण:

बैंक छोटी-छोटी एवं बिखरी हुई बचतों को एकत्रित कर उद्योगपतियों एवं व्यापारियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं । बैंक अपनी जमाओं में वृद्धि कर साख सृजन करते हैं । यह साख एवं वित्त उद्योगों के लिए पूँजी का काम करता है । बैंक बेकार पड़े हुए एवं बिखरे हुए धन में एकत्रित कर उसे निर्माण कार्यों में लगाकर पूँजी निर्माण में सहायता करते हैं ।

3. व्यापार व उद्योगों के लिए वित्त प्रबन्ध:

बैंक उद्योग व व्यापारिक कार्यों के लिए वित्त की व्यवस्था करते हैं । आधुनिक युग में उद्योग व व्यापार में बडी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है । बिना पूंजी के इनका संचालन सम्भव नहीं है । बैंक जनता के अतिरिक्त धन से एकत्रित कर उद्योग व व्यापारिक कार्यों के लिए उधार देते है ।

इससे समाज का अतिरिक्त धन उत्पादन कार्यों में लग जाता है । उद्योगपतियों व व्यापारियों को पर्याप्त वित्त मिल जाता है एवं बचतकर्ताओं को अचित ब्याज मिल जाता है ।

4. पूँजी की गतिशीलता:

बैंक, पूँजी को गतिशीलता प्रदान करते हैं । कोई भी पूँजीपति अपनी पूंजी ऐसे कार्यों में लगाना चाहता है जहाँ जोखिम कम हो एवं प्रतिफल अधिक मिले । बैंक पूंजी की पूरी सुरक्षा के साथ उचित प्रतिफल भी देते हैं । इससे पूँजी कम उपयोगी स्थान से हटकर अधिक उपयोगी एवं उत्पादक कार्यों में लगती है । इससे उत्पादन, रोजगार, राष्ट्रीय आय आदि में वृद्धि होती है एवं आर्थिक विकस का मार्ग प्रशस्त होता है ।

5. मुद्रा प्रणाली में लोचता एवं कीमत स्थायित्व:

बैंक साख का निर्माण करते हैं इससे मुद्रा की पूर्ति आवश्यकतानुसार कम या अधिक की जा सकती है । मुद्रा की पूर्ति व माँग में सन्तुलन स्थापित होने से कीमतों में भी स्थायित्व बना रहता है । इस प्रकार बैंक मुद्रा प्रणाली में लोचता प्रदान कर कीमत स्थायित्व में सहयोग देते हैं ।

6. मुद्रा भेजने की सुविधा:

बैंक मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में सहायता करते हैं । इससे जोखिम व व्यय में कमी आती है ।

7. राजकीय वित्त व्यवस्था:

बैंक सरकारी ऋणों की व्यवस्था करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । आवश्यक होने पर ये सरकार अपनी वित्तीय परामर्श व वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं । बैंकों द्वारा अर्जित लाभ को सरकार अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के कम में ले सकती है । इस प्रकार बैंक सार्वजनिक वित्त की व्यवस्था करते हैं ।

8. बैंकिंग प्रवृत्ति का विकास:

बैंकों के करण जन सामान्य में बैंकिंग प्रवृत्ति का विकस हुआ है । अब जनता आपसी लेन-देन में धातु मुद्रा व पत्र मुद्रा का प्रयोग न कर साख पत्रों का प्रयोग अधिक करती है । इससे विधिग्राह्य मुद्रा की आवश्यकता कम हो गयी है । बहुमूल्य धातु के सिक्कों के चलन में न रहने से धातु की घिसावट से होने वाली हानि पर नियंत्रण लगा है ।

9. प्रतिनिधित्व एवं परामर्शदाता:

बैंक की क्रियाएं उद्योगपतियों एवं व्यापारियों के लिए बहुत उपयोगी हैं । बैंक उनके प्रतिनिधि एवं परामर्शदाता का काम कर उन्हें सस्ती सेवायें प्रदान करते हैं । इससे उद्योगपतियों व व्यापारियों के समय व श्रम की बचत होती है ।

10. रोजगार में वृद्धि:

बैंकिंग क्रियाओं के विकास से औद्योगिक एवं व्यापारिक क्रियाओं का विस्तार हुआ है । बैंकों ने आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है । उद्योग, व्यापार, बैंकिंग सेवाओं आदि के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़े हैं ।

11. अन्य लाभ:

इसके अतिरिक्त बैंक ग्राहकों के धन एवं महत्वपूर्ण प्रपत्रों को सुरक्षित रखने के लिये लॉकर्स की सुविधा प्रदान करते हैं । बैंक अपने ग्राहकों को विभिन्न व्यक्तियों की साख एवं आर्थिक स्थिति की सही सूचना देकर निर्णयों को सही दिशा प्रदान करते है । बैंक बिलों की स्वीकृति एवं कटौती की सुविधा देकर राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में सहयोग देते हैं ।

इसके अतिरिक्त बैंक यात्री चैक जारी कर धन को यात्रा में साथ ले जाने की जोखिम से छुटकारा दिलाते हैं । बैंक ग्राहकों के साख पत्रों का संग्रह करते हैं, उनकी ओर से भुगतान देते है तथा भुगतान प्राप्त करते हैं ।

आधुनिक युग में बैंकों के बिना उद्योग व व्यापार की क्रियायें सीमित व नियंत्रित हो जायेगी, आर्थिक विकास व रोजगार के अवसर समाप्त हो जायेंगे तथा सारी अर्थव्यवस्था गतिहीन हो जायेंगी । अतः बैंक आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक है ।

प्रो. टॉमस ने बैंकों के महत्व के संबंध में लिखा है कि – ”बैंक साख पत्रों के चलन तथा निर्गमन को संगठित एवं नियंत्रित करते हैं । वे उधार देय पूँजी के विनियोग को सुविधाजनक बनाते हैं तथा उसका सबसे लाभदायक प्रयोग तथा वितरण सम्भव बनाते हैं । जब और जहाँ चलन मुद्रा की आवश्यकता होती है, उसकी पूर्ति करते हैं तथा कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक चलन मुद्रा को कम पूर्ति वाले स्थानों पर स्थानान्तरित करते हैं ।”

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