बायो-उर्वरकों पर निबंध | Essay on Bio-Fertilizers in Hindi!

बायो-उर्वरकों पर निबंध | Essay on Bio-Fertilizers


Essay # 1. बायोफर्टिलाइजर्स का अर्थ (Meaning of Bio-Fertilizers):

पादप वृद्धि (Plant Growth) के लिए जैविक उद्गम (Biotic Origin) के सभी पोषक स्रोत (Nutrient Source) जैव उर्वरक (Bio-Fertilizers) कहलाते हैं ।

जैविक उद्गम (Bio Origin) में सूक्ष्म जैविक प्रक्रियाओं (Micro Biological Processes) से जटिल यौगिकों (Complex Compound) का संश्लेषण (Synthesis) होता है तथा बाहरी माध्यम में पौधों की जडों (Roots) के आसपास उनका निष्कासन (Released) होता है ।

जहाँ से पौधों के द्वारा उनका अवशोषण हो जाता है । इसलिए जैव उर्वरकों (Bio-fertilizers) को सूक्ष्म जैविक इनॉकुलेण्ट्स (Microbial Inoculants) भी कहते है । इस प्रकार सूक्ष्म जीवों (Micro-Organisms) द्वारा कार्बनिक पदार्थों (Organic Substances) के विघटन (Decomposition) से प्राप्त उर्वरकों बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-fertilizers) कहा जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

मिट्टी (Soil) में उपस्थित सूक्ष्म जीव (Microorganism) अमोनीकरण (Ammonification), नाइट्रीकरण (Nitrification) आदि क्रियाओं द्वारा नाइट्रोजन (N2) का संरक्षण या स्थिरीकरण (Fixation) करते हैं । जिनका उपयोग मृदा की उर्वरता (Soil Fertility) बढ़ाने के लिए किया जाता है ।

बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-fertilizers) मृदा (Soil) के खनिजीकरण (Mineralization) की प्रक्रिया में वृद्धि करते हैं । बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-fertilizers) को सूक्ष्म जैवीय संवर्धन (Microbial Cultures) प्रिपरेशंस (Preparation) या इनॉकुलेण्ट्स (Inoculants) के नाम से भी जाना जाता है ।

Essay # 2. बायोफर्टिलाइजर्स के प्रकार (Types of Bio-Fertilizers):

बायोफर्टिलाइजर्स मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(A) बैक्टीरियल बायोफर्टिलाइजर्स (Bacterial Bio-Fertilizers),

ADVERTISEMENTS:

(B) सायनो बैक्टीरियल बायोफर्टिलाइजर्स (Cyanobacterial Bio-Fertilizers),

(C) VAM बायोफर्टिलाइजर्स (VAM Bio-Fertilizers),

(D) फॉस्फोरस सॉल्युविलाइजिंग बायोफर्टिलाइजर्स (Phosphorus Solubilizing Bio-Fertilizers),

(E) साइडेरोफोरस बायोफर्टिलाइजर्स (Siderophores Bio-Fertilizers) ।

ADVERTISEMENTS:

(A) बैक्टीरियल बायोफर्टिलाइजर्स (Bacterial Bio-Fertilizers):

कुछ बैक्टीरिया (Bacterial) वायुमण्डल की नाइट्रोजन (Atmospheric Nitrogen) का स्थिरीकरण (Fixation) करते हैं । जिसके फलस्वरूप वायुमण्डल की नाइट्रोजन का विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकों (Nitrogenous Compounds) के रूप में परिवर्तन होता है । जिसका उपयोग पौधे (Plants) द्वारा उर्वरक (Fertilizer) के रूप में होता है ।

बैक्टीरियल बायोफर्टिलाइजर्स (Bacterial Bio-Fertilizers) को निम्न दो प्रकार में बांटा गया है:

(1) सिमबायोटिक बैक्टीरिया (Symbiotic Bacteria),

(2) नॉन सिमबायोटिक बैक्टीरिया (Non-Symbiotic Bacteria) ।

(1) सिमबायोटिक बैक्टीरिया (Symbiotic Bacteria):

ये बैक्टीरिया (Bacteria) लेग्यूमिनस पौधों (Leguminous Plants) जैसे मटर (Pea), चना (Gram), सोयाबीन आदि पौधों की गाँठदार जडों (Nodulated Roots) के भीतर पाए जाते हैं । उदाहरण- राइजोबियम (Rhizobium) ।

राइजोबियम (Rhizobium):

यह सिमबायोटिक (Symbiotic) पोषक विशिष्ट (Host Specific) तथा ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया (Gram Negative Bacteroids) होते हैं । यह लेग्यूमिनस पौधों (Leguminous Plants) के साथ सिमबायोटिक संबंध (Symbiotic Relation) प्रदर्शित करते हैं ।

लेग्यूम (Legume) पौधों की जड़ों (Roots) में इसके संक्रमण (Infection) करने में रूटनोड्‌यूल्स (Root Nodules) का निर्माण होता है जिनमें वायुमण्डल की नाइट्रोजन (Nitrogen) को परोक्ष रूप (Directly) में ग्रहण करके विभिन्न नाइट्रोजिनस घटकों (Nitrogenous Components) जैसे एमीनो एसिड्‌स (Amino Acids) तथा पॉलीपेप्टाइड्‌स (Polypeptides) में परिवर्तन (Conversion) किया जाता है ।

यह परिवर्तन राइजोबियम (Rhizobium) तथा पौधों की कोशिकाओं (Plant Cells) के मध्य संयुक्त प्रक्रिया (Combined Action) के द्वारा नाइट्रोजिनेज एन्जाइम (Nitrogenase Enzyme) की सहायता से होता है ।

सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया-विधि (Mechanism as Symbiotic N2 Fixation in Root Nodules):

मूल ग्रन्थिकाओं की केशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में लेगहीमोग्लोबिन (Leghaemoglobin) नामक लाल रंगद्रव्य (Red Pigment) पाया जाता है जिसमें आयरन (Fe) होता है । यह रंगद्रव्य अधिक-से-अधिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होता है ।

राइजोबियम (Rhizobium), जीवाणु, ऑक्सी श्वसन (Aerobic Respiration) करते हैं । श्वसन के समय इन जीवाणुओं द्वारा अधिक-से-अधिक ऑक्सीजन (O2) ग्रहण की जाती है और अधिक-से-अधिक ऊर्जा निकलती है। यह ऊर्जा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के समय काम आती है ।

एलीन एवं एलीन के अनुसार- इस लाल रंग के रंगद्रव्य (Pigment) को राइजोबियम-लेग्यूमकम्प्लेक्स कहा जा सकता है । जिन पादपों की मूल ग्रन्थिकाओं में लेगहीमोग्लोबिन का अभाव होता है उनमें नाइट्रोजन स्थिरीकरण नहीं होता है ।

विर्टनेन एवं मीटिनेन के अनुसार- लेगहीमोग्लोबिन की सांद्रता तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण दर में घनिष्ठ संबंध होता है । जिससे स्पष्ट हो जाता है कि लेगहीमोग्लोबिन तथा सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण एक-दूसरे पर आधारित होते हैं ।

लेगहीमोग्लोबिन (Leg-hemoglobin) ऑक्सीजन (O2) वाहक (Carrier) होता है तथा O2 राइजोबियम बैक्टीरॉयड के इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट चैन के लिए आवश्यक होती है । गुडविन एवं मरकर के अनुसार- लेगहीमोग्लोबिन तथा O2 में बंधुता (Affinity) होती है अत: बहुत कम O2 की सांद्रता होने पर भी मूल ग्रन्थिका के जीवाणुओं को O2 प्राप्त होती रहती है ।

बैक्टीरॉयड (Bacteroid) में आण्विक O2 का स्तर लेगहीमोग्लोबिन के कारण कम रहता है, यह क्रिया महत्वपूर्ण होती है क्योंकि O2 की उपस्थिति में नाइट्रोजिनेज (Nitrogenase) एन्जाइम की क्रियाशीलता कम हो जाती है । अत: लेगहीमोग्लोबिन रहित मूल ग्रांथिकाएँ, नाइट्रोजन स्थिरीकरण नहीं कर सकती हैं ।

(2) नॉन-सिमबायोटिक बैक्टीरिया (Non-Symbolic Bacteria):

इसके अंतर्गत बैक्टीरिया (Bacteria) जैसे एजोटो बैक्टर (Bactor) तथा एजोस्पाइरिलम (Azospirillum) आते हैं ।

(a) एजोटो बैक्टर (Azotobactor):

यह एरोबिक (Aerobic), हेटरोट्रॉफिक (Heterotrophic) तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करने में सूक्ष्म बैक्टीरिया (Bacteria) हैं । यह ग्राम निगेटिव (Gram Negative), पॉलीमॉर्फिक फ्लैजिला युक्त (Polymorphic Flagillated) तथा पॉलीसैकेराइड्‌स (Polysaccharides) एवं मिलनिन (Melanin) उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म जीव (Micro Organism) है ।

एजोटो बैक्टर (Azoto Bacter) द्वारा निम्नलिखित पौधों की वृद्धि (Growth) तथा उत्पादकता बढ़ जाती है । जैसे अनाज, मिलेट्स (Millets), दालें (Pulses) तथा सब्जियाँ (Vegetables) फल वाले पौधे (Fruit Plants) आदि धान (Rice) के पौधों में इनके द्वारा 50% तथा गेहूँ (Wheat) के पौधों में 16 से 30% तक उत्पादकता (Productivity) बढ़ जाती है ।

(b) एजोस्पाइरिलम (Azospirillum):

ये ग्राम निगेटिव (Gram Negative), गतिशील (Motile), सूक्ष्म आकार के एरोबिक (Aerobic), बैक्टीरिया (Bacteria) हैं, जो कि पोषक पौधों (Host Plants) के साथ सिमबायोटिक संबंध (Symbiotic Association) प्रदर्शित करते है ।

इन बैक्टीरिया (Bacteria) में नाइट्रोजन युक्त माध्यम (Nitrogenous Medium) में कार्बन (Carbon) के माध्यम से ग्लूकोज (Glucose) को उपयोग करने की क्षमता होती हैं । इनके उपयोग से अनाजों (Cereals) तथा घासों (Grasses) में उत्पादकता (Productivity) बढ़ जाती है ।

इसके अतिरिक्त बैक्टीरियल बायोफर्टिलाजर्स (Bio-Fertilizers) के अतिरिक्त निम्नलिखित बैक्टीरिया (Bacteria) भी जैविक खाद (Bio-Fertilizers) के रूप में उपयोगी होते हैं:

(i) क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium) नामक Bacteria Rod Shaped के होते हैं जो O2 की अनुपस्थिति में जीवित रहते हैं ।

(ii) बैजेरिकिया (Beijerinckia), क्लेब्सियेला (Clibsiella) ।

(iii) क्लेब्सियेला (Clebsiella), रोडोस्पाइरिलम (Rhodospirillum) एवं डिजिटेरिया क्लेकुम्बेंस (Digitaria Clecumbens) तथा एजीस्पाइरिलम लाइपोफेरम (Azospirillum Lipoferum) के मध्य सहजीविता (Symbiosis) से नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) प्रभावी रूप से होता है ।

(B) सायनो बैक्टीरियल बायोफर्टिलाइजर्स (Cyanobacterial Bio-Fertilizers):

सायनो बैक्टीरिया (Cynobacteria) ऑक्सीजेनिक प्रकाश संश्लेषी जीवाणु (Oxygenic Photosynthetic Bacteria) हैं जो हेटरोसिस्ट (Heterocyst) संरचना द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करते हैं ।

ये साइनो बैक्टीरिया पौधों की वृद्धि सतह (Growth Surface) पर कार्बनिक पदार्थों (Organic Substances) को धीरे-धीरे एकत्रित करके मृदा (Soil) को उर्वरक (Fertile) बनाते हैं ।

हेटरोसिस्ट (Heterocyst) धारण करने वाले तंतुमय सायनों बैक्टीरिया (Cynobacteria) की जातियाँ (Species) जैसे ऑलोसीरा (Aulosira), टोलीपीथ्रीक्स (Tolyprothrix), एनाबेना (Anabaena), नास्टॉक (Nostoc), सिलिण्ड्रो स्पर्मम (Cylindrospermum), वॉलिया (Wollea), लिंगबया (Lyngbya) तथा ग्लियोट्राइकिया (Gloeotrichia) आदि धान के खेतों (Rice Field) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करते हैं ।

इनमें नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) नाइट्रोजिनेज एंजाइम (Nitrogenase Enzyme) की उपस्थिति में होता है । इन जीवों की मृत्यु होने पर इनके शरीर से प्राप्त अमोनिया (NH3) को नाइट्रीफाइंग जीवाणुओं (Nitrifying Bacteria) द्वारा नाइट्रेट्‌स (Nitrates-NO3) में बदल दिया जाता है । जिनका अवशोषण (Absorption) पौधों द्वारा कर लिया जाता है ।

उदाहरण (1) एनाबेना (Anabaena) (Blue Green Algae):

एनाबेना नीलहरित एल्गी कहलाता है क्योंकि इसका जीवाणु (Bacteria) से घनिष्ठ संबंध है । अत: जीव जगत मोनेरा (Monera) की प्रथम शाखा साइनो बैक्टीरिया (Cynobacteria) तथा दूसरी शाखा शाइजोण्टा (Schizonta) को प्रदर्शित करती है ।

एनाबेना (Anabaena) एक एण्डोफाइटिक (Endophytic) सायनोबैक्टीरिया के Group में रखा गया है तथा यह एजोला (Azolla) की पत्तियों की कोशाओं (Cells) के भीतर पाया जाता है ।

एजोला (Azolla) तेजी से वृद्धि (Growth) करने वाला जलीय फर्न (Aquatic Fern) है जो कि तालाबों (Ponds) गड्ढों (Ditches) तथा रुके हुए जल से भरी नहरों (Channels Containing Stagnant Water) में वृद्धि करता है । इनकी पत्तियों की गुहा (Leaves Cavity) में एनाबेना एजोली (Anabaena Azollae) सायनीबैक्टीरिया (Cynobacteria) पाए जाते हैं ।

जिन्हें Blue Green Algae भी कहा जाता है । ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन (Atmosperic Nitrogen) का स्थिरीकरण (Fixation) करके पत्तियों की कैविटी (Cavity) में नाइट्रोजिनस यौगिकों (Nitrogenous Compound) को उत्सर्जित (Excrete) करते हैं जिनका उपयोग पौधे की पत्तियाँ करती हैं ।

इसी प्रकार धान के उत्पादन (Rise Production) में बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) के रूप में एजोला पिन्नाटा (Azolla Pinnata) का अधिकता में प्रयोग किया जाता है ।

उदाहरण (2) नॉस्टॉक पंक्टिफार्मी (N):

यह एक एण्डीफाइटिक (Endophytic) सिमबायोटिक सायनोबैक्टीरिया (Symbiotic Cynobacteria) होता है जो कि एंथोसिरोस (Anthoceros) के थैलस (Thallus) की कोशिकाओं (Cells) के भीतर पाया जाता है तथा यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन (Atmospheric Nitrogen) का स्थिरीकरण (Fixation) करके पौधे की कोशिकाओं को नाइट्रोजनी यौगिक (Nitrogenous Compound) प्रदान करता है ।

सायनो बैक्टीरिया का महत्व (Importance of Cyanobacteria):

बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) के रूप में सायनो बैक्टीरिया का निम्नलिखित प्रकार से महत्व हैं:

 

(1) भारत में ऑलोसीरा फर्टीलिसीमा (Aulosira Fertilissima) नामक सायनो बैक्टीरिया (Cynobacteria) बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) का उपयोग करने पर धान के खेतों (Paddy Field) में चावल की पैदावार 30% अधिक हो जाती है । राजस्थान में एनाबिनोप्सिस (Anabaenopsis) तथा स्पाइरूलिना (Spirulina) का प्रयोग उर्वरक (Fertilizers) के रूप में किया जाता है ।

(2) इनके प्रयोग से चावल (Rise) के उत्पादन में 10-30% तक वृद्धि होती है । ऐसा अनुमान है, कि सायनोबैक्टीरिया (Cynobacteria) उर्वरक (Fertilizers) का प्रयोग करने से प्रति हैक्टेयर 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (Nitrogen) की पूर्ति की जा सकती है ।

(3) आधुनिक युग में प्रयोग शालाओं में व्यापारिक स्तर (Commercial Scale) पर सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) जैसे एनाबेना (Anabaena), ऑलोजीरा (Aulosira), नास्टॉक (Nostoc) तथा प्लेक्टोनीमा (Plectonema) आदि को कल्चर (Culture) किया जाता है जिसे कृषकों (Farmers) द्वारा बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) के रूप में उपयोग किया जाता है ।

(C) VAM बायोफर्टिलाइजर्स (VAM Bio-Fertilizers):

VAM Bio-Fertilizers या माइकोराइजा (Mycorrhiza) एक बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) है जो कि फंगस (Fungus) तथा उच्चवर्गीय पौधों (Higher Plants) की जड़ों (Roots) के बीच सिमबायोटिक संबंध (Symbiotic Association) प्रदर्शित करता है । उदाहरण मोनाट्रॉपा (Monotropa) तथा निओटिया (Niottia) ।

VAM (Vesicular Arbuscular Mycorrhiza) एक एण्डोमाइकोराइजल (Endomycorrhizal) फंगस (Fungus) है जो कि पौधों की जड़ों (Roots) की कार्टिकल केशिकाओं (Cortical Cells) तथा इट्रांसेलुलर स्थानों (Intracellular Spaces) में पाए जाते हैं । अत: इन्हें VAM कहते हैं ।

यह फंजाई (Fungi) मृदा (Soil) से फास्फोरस (Phosphorus) ग्रहण करके अपने हाइफी (Hyphae) द्वारा पौधों की जड़ों (Roots) में स्थानांतरित करता है । जिसे पौधों द्वारा उपयोग में लाया जाता है ।

अनाज वाले पौधे (Cereals) के लेग्यूम पौधों (Legume Plants) के साथ फसल चक्रीकरण (Crop Rotation) करने पर पौधों की जड़ों में उच्च समूहीकरण (Higher Root Colonization) तथा VAM की अधिक संख्या पाई जाती है । जिससे पौधों को भरपूर मात्रा में उर्वरक (Fertilizer) की प्राप्ति होती है ।

उदाहरण-1 एक्टोमाइकोराइजा (Ectomycorrhiza):

 

इसमें कवक (Fungi) तंतु (Hyphae), पोषक पौधे (Host Plant) की जड़ों (Roots) की सतह पर एक स्तर (Layer) या मेण्टल (Mantle) बना लेते हैं । जिससे जड़ों की आकारिकी (Morphology of Roots) बदल जाती है तथा मूल रोम (Root Hairs) भी विकसित नहीं हो पाते हैं ।

ऐसे कवक (Fungi) तंतु (Hyphae) जो जड़ की सतह (Root Surface) पर फैले रहते हैं । उनमें से अधिकांश तंतु कार्बनिक (Filamentous Organic Substance) युक्त मिट्टी (Soil) में प्रवेश करते हैं । जो कुछ एंजाइम (Enzyme) का स्रावण (Secretion) करके कार्बनिक पदार्थों (Organic Substance) को घुलनशील (Soluble) बनाकर उनका अवशोषण (Absorption) करते हैं ।

इस प्रकार से अवशोषित (Absorbed) कार्बनिक पदार्थ (Organic Substance) कवक (Fungi) तंतुओं (Hyphae) द्वारा पौधों की जड की कोशिकाओं (Root Cells) में पहुंच जाता है । जिसके द्वारा पोषक पौधों (Host Plant) को पोषण (Nutrition) प्राप्त होता है ।

उदाहरण- निओटिया (Neottia) कवक (Fungus) ।

उदाहरण-2 एण्डोमाइकोराइजा (Endomycorrhiza):

इसमें कवक (Fungi) तंतु (Hyphae) पोषक पौधे (Host Plants) की जड़ की सतह (Root Surface) पर फैले रहते हैं । किंतु स्तर (Layer) नहीं बनाते हैं । इसमें जड़ की आकारिकी (Morphology Root) अपरिवर्तित रहती है तथा मूल रोम (Root Hairs) भी पाए जाते हैं ।

इन कवक (Fungi) तंतुओं (Hyphae) में से कुछ मिट्टी (Soil) में प्रवेश कर जाते हैं तथा कुछ (Fungi Hypae) पौधों की जड़ों (Roots) की कार्टेक्स (Cortex) की कोशिकाओं (Cells) के भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं तथा इण्टरसेलुलर स्पेस (Intercellular Space) में पड़े रहते हैं ।

इस प्रकार के सहजीवी संबंध (Symbiotic Association) में कवकों (Fungi) के पोषक पौधों (Host Plants) से शर्कराएँ (Sugars) तथा विटामिन्स (Vitamins) प्राप्त होते हैं तथा पोषक पौधों (Host Plants) को कवकों (Fungi) के द्वारा मृदा (Soil) से अवशोषित (Absorbed) कार्बनिक पदार्थ (Organic Substance), खनिज (Minerals) तथा नाइट्रोजनी पदार्थ (Nitrogenous Substances) प्राप्त होते है ।

इस प्रकार का संबंध (Association) ऑर्स्किड्स (Orchids) तथा मोनोट्रॉपा (Monotropa) में पाया जाता है । यदि पोषक पौधों (Host Plants) तथा इनमें मिलने वाले कवकों (Fungi) को अलग-अलग विकसित किया जाए तो दोनों की वृद्धि (Growth) अधिक धीमी हो जाती है । इस प्रकार माइकोराइजा (Mycorrhiza) कुछ पौधों में बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) का कार्य करते है ।

उदाहरण-3 एक्टेण्डेट्रॉफिक माइकोराइजा (Ectendotrophic Mycorrhiza):

यह एक्टो (Ecto) तथा एण्डोट्रॉफिक (Endotrophic) के बीच एक माध्यमिक (Intermediate) प्रकार का होता है । इस प्रकार के माइकोराइजा (Mycorrhiza) में संक्रमण (Infection) एण्डोट्रॉफिक (Endotrophic) होता है । किंतु हाइफी (Hyphae) का प्रवेश इण्टर सेलुलर (Inter Cellular) या एण्डोट्रॉफिक (Endotrophic) होता है ।

(D) फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाइजिंग बायोफर्टिलाइजर्स (Phosphorus Solubilizing Bio-Fertilizers):

विभिन्न सूक्ष्म जीव (Micro-Organisms) जैसे बैक्टीरिया (Bacteria), फंजाई (Fungi) तथा यीस्ट (Yeast) आदि फास्फेट सोल्युबिलाइजर (Solubilizer) होते हैं । अत: इन सूक्ष्म जीवों को फास्फोरस सोल्युबिलाइजिंग माइक्रो आर्गेनिज़्म (PSM) भी कहते हैं ।

ये PSM अघुलनशील (Insoluble) मृदा (Soil) फॉस्फेट एवं फॉस्फेटिक फर्टिलाइजर्स (Phosphatic Fertilizers) जैसे रॉक फॉस्फेट (Rock Phosphate) बोनमील्स (Bone Meals) आदि को घुलनशील (Soluble) बनाने के साथ ही मृदा (Soil) में उपयोग किए जाने वाले घुलनशील फास्फेटिक फर्टिलाइजर्स (Phosphatic Fertilizers) की क्षमता (Efficiency) में भी वृद्धि करते हैं ।

PSM के रूप में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न सूक्ष्मजीव (Micro-Organisms) निम्न हैं:

(i) जीवाणु (Bacteria)- जैसे स्युडोमोनास (Pseudomonos Strata), बैसिलस पालीमिक्सा (Bacillus Polymyxa) ।

(ii) कवक (Fungi)- जैसे एस्परजिलस अवामोरी (Aspergillus Awamori), पेनिसीलियम डिजीटेटम (Penicillium Digitatum) ।

(iii) यीस्ट (Yeast)- जैसे सिम्फोरीकारपस ऑक्सीडेण्टेलिस (Symphoricarpos Occidentalis) ।

(E) सिडेरोफोरस बायोफर्टिलाइजर्स (Siderophores Bio-Fertilizers):

बहुत से एरोबिक (Aerobic), विकल्पीय अवायुवीय सूक्ष्मजीव (Facultative Anaerobic Micro-Organisms) मिट्टी में आयरन (Iron) की कमी होने पर बाह्य कोशिकीय (Extracellular), आयरन अणुओं (Iron Molecular) का ट्रांसपोर्ट (Transport) करने वाला कारक (Agent) या संरचना सिडेरेफोरस बनाते हैं ।

ये कारक पौधों की कोशिकाओं (Cells) में आयरन (Iron) की पूर्ति (Supply) करते है तथा ये मिट्टी (Soil) में विभिन्न सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) के पॉपुलेशन (Population) को बनाए रखते हैं ।

Essay # 3. बायोफर्टिलाइजर्स का महत्व (Importance of Bio-Fertilizers):

(1) बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) अन्य उर्वरकों की अपेक्षा सस्ते (Cheap) एवं आसानी से उपयोग किए जा सकते हैं ।

(2) ये प्रकृति के साथ सामंजस्य (Hormony) बनाए रखते हैं ।

(3) इन्हें लंबे समय तक संग्रहित (Stored) करके रखा जा सकता है ।

(4) ये पर्यावरण (Environment) को नुकसान (Hazards) नहीं पहुँचाते ।

(5) कृषकों (Farmers) हेतु कृषि उपयोग के लिए बायोफर्टिलाइजर्स (Bio-Fertilizers) अनुकूल होते हैं ।

Essay # 4. ब्लू-ग्रीन ऐल्गी का बायोफर्टिलाइजर्स के रूप में उपयोग (Use of Blue-Green Algae as Bio-Fertilizers):

मृदा (Soil) एक जीवित पिंड (Living Mass) है । मृदाकणों (Soil Particles) के अतिरिक्त इसमें बैक्टीरिया (Bacteria), कवक (Fungi), शैवाल (Algae) तथा अन्य सूक्ष्मजीव (Micro-Organisms) होते हैं । शैवाल (Algae), मृदा (Soil) में तीन गुना अधिक मात्रा में पायी जाती है ।

इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नील-हरित शैवाल (Blue-Green Algae) हैं । ये नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) में उपयोगी है । पी.के.डे. के अनुसार चावल के खेतों (Rice Fields) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) के मुख्य कारक (Agents) नील-हरित शैवाल (Blue-Green Algae) हैं ।

ये भूमि की उर्वरता (Fertility) में वृद्धि करते हैं । नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करने वाली कुछ प्रमुख नील-हरित शैवाल (Blue-Green Algae) है । उदाहरण ऑसिलेटोरिया प्रिन्सेप्स (Oscillatoria Princeps), ऑ-फारमोसा (O-Farmosa), एनाबीना (Anabeana), स्पाइरुलिना (Spirulina), नॉस्टॉक (Nostoc) तथा सिलिण्ड्रोसपर्मम (Cylindrospermum) आदि ।

नील-हरित शैवालों के (Blue-Green Algae) उपयोग से अनुर्वर (Barren) क्षारीय (Alkaline) मृदा का सुधार भी किया जा सकता है । क्लोरैला (Chlorella) का उपयोग जल के वातन (Aeration) के लिए किया जाता है ।

यह शैवाल (Algae) प्रकाश संश्लेषण में (Photosynthesis) अत्यधिक दक्ष (Efficient) है, जो कार्बन डाइ-ऑक्साइड (Carbon Di-Oxide) को हटाकर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है । जल में पायी जाने वाली मछलियों के लिए यह वातन महत्वपूर्ण है ।

इसी प्रकार समुद्र में पायी जाने वाले शैवालों (Algae) में सोडियम (Sodium), कैल्शियम (Calcium), मैग्नीशियम (Magnesium), आयरन (Iron), सल्फर (Sulphur), कॉपर (Copper), मैंग्नीज (Magnese), कोबाल्ट (Cobalt), बोरोन (Boron), आयोडीन (Iodine) जैसे खनिज (Minerals) का संग्रह करने की क्षमता होती है ।

ऐसे शैवालों को कार्बनिक पदार्थों (Organic Matters) के साथ खेतों में सड़ने-गलने दिया जाता है, जिससे वे उर्वरकों (Fertilizers) में बदल जाते हैं । ये उर्वरक (Fertilizers) भूमि को अधिक उपजाऊ (Fertile) बनाते हैं तथा मिट्टी के कणों (Particles) को आपस में जकड़े रहने की क्षमता भी बढ़ाते हैं ।

जैसे- लिथोफायलम (Lithophyllum) थिवे के अनुसार केवल कम्पोस्ट खाद (Compost Manure) की अपेक्षा शैवाल (Algae) मिश्रित खाद में भिण्डी (Abelmochus Exulenrtus) की पैदावार अधिक होती है ।

राइजोबियम का व्यापारिक स्तर पर कल्चर (Rhizobium Culture on Commercial Scale):

आधुनिक युग में जीवाणु (Bacteria) जैसे राइजोबियम (Rhizobium) का कल्चर (Culture) व्यापारिक स्तर (Commercial Scale) पर किया जाता है । जिनके द्वारा जैविक उर्वरक (Bio-Fertilizers) का निर्माण किया जाता है । इसके कल्चर (Culture) हेतु यीस्ट एक्सट्रेक्ट मैनीटॉल (Yeast Extract Manitol – YEM) माध्यम (Medium) को उपयोग में लाते हैं ।

जिसका संगठन (Composition) निम्नलिखित प्रकार का होता है:

YEM Composition:

 

यीस्ट एक्सट्रेक्ट – 1 gm. (Yeast Extract)

मैनीटाल (Mannitol) – 10 gm.

K2HPO4 – 0.5 gm. (Potasium Hydrogen Phosphate)

MgSO47H2O – 0.2 gm. (Magnessium Sulphate)

NaCl – 0.1 gm. (Sodium Chloride)

Distill H2O – 1000 ml. (Distilled Water)

pH – 6.5-7

उत्पादन विधि:

राइजोबियम (Rhizobium) के Mass-Cultivation में निम्नलिखित चरण होते हैं:

(1) ग्रोथ मीडियम (Growth Medium) को Sterlize करें तथा इसे पहले से उपस्थित Culture Medium के द्वारा Inoculate किया जाता है ।

(2) (30-32°C) पर 3-4 दिन के लिए Incubate करते हैं ।

(3) जब यह जांच हो जाती है कि Culture संक्रमण रहित है, तब इसे बड़े Fermenter में डाल देते हैं ।

(4) 4-9 दिन तक बैक्टीरिया की वृद्धि होने देते हैं ।

(5) बैक्टीरिया (Bacteria) को आवश्यकतानुसार बड़े Fermenter अथवा छोटे-छोटे Flasks में वृद्धि के लिए रखते हैं ।

(6) यूष (Broth) की गुणवत्ता की जाँच करें ।

(7) यूष (Broth) को वाहक (Carrier) में मिलायें, यह वाहक Peat Lignite कोयला अथवा Fermented Manure हो सकते हैं ।

(8) संवर्धन को प्लास्टिक बैग में डालकर 25°C पर संग्रहित करें ।

(9) संवर्धन की शुद्धता को नापें ।

(10) बैक्टीरिया को 4°C पर ठंडे कमरों में संग्रहित करें ।

(11) इसके बाद किसानों तक पहुंचायें ।

Method of Seed Inoculation with Rhyzobial Culture:

भारत में भी जैविक खाद हेतु जीवाणु कल्चर (Bacterial Culture) के लिए YEM को प्रयोग में लाया जाता है । भारत में राइजोबियम (Rhizobium) के अतिरिक्त एजोटोबैक्टर क्रुकोकम (Azotobacter Chroococum) तथा बैसिलस मेगाथीरियम (Bacillus Megatherium) द्वारा भी व्यापारिक स्तर (Commercial Scale) पर जैविक खाद तैयार की जाती है ।

Mass Cultivation of Azotobacter:

B.F के रूप Azotobacter का उपयोग भी काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है ।

इसके उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले Media का Composition निम्नलिखित है:

Potassium Hydrogen Phosphate – KH2P04 -1.0 gm.

Magnessium Sulphate – MgS04 7H20 – 0.5 gm.

Sodium chloride – NaCl – 0.5 gm.

Calcium carbonate – CaC02 – 2.0 gm.

Ferrous Sulphate – FeS04 – 0.1 gm.

Sucrose – 20.0 gm.

Distill H2O – 1000 ml.

इसके उत्पादन की विधि राइजोबियम (Rhizobium) के उत्पादन के समान हैं तथा Seed Inoculation भी उसी प्रकार किया जाता है । जिस प्रकार राइजोबियम (Rhizobium) का किया जाता है । ऐसी फसलें जिन्हें उखाड़कर एक स्थान से दूसरे पर लगाया जाता है ।

उन्हें रोपने से पहले उनकी जड़ों को Azotobacter Culture के जलीय विलयन में डुबोया जाता है । एजोटोवेक्टर (Azotobacter) के लिए भी Peat Lignity Coal अथवा Farmyard Manure का उपयोग Carrier की तरह किया जा सकता है ।

मिट्टी एवं Farmyard Manure का 1:1 का अनुपात अधिक उपयोग में लाया जाता है । एजोटोवेक्टर (Azotobacter) के उपयोग के द्वारा Sorghum, Pearl Millet तथा Finger Millet के उत्पादन में काफी अधिक बढ़ोत्तरी होती है ।

Mass Cultivation of Blue-Green Bacteria:

आधुनिक युग में प्रयोगशालाओं में व्यापारिक स्तर (Commercial Level) पर नील-हरित जीवाणु (Blue-Green Bacteria or Algae) जैसे एनाबिना (Anabaena) टोलीपोथ्रिक्स (Tolypothrix) ऑलोसीरा (Aulosira), नॉस्टॉक (Nostoc) तथा प्लेक्टोनिमा (Plectonema) आदि को कल्चर (Culture) किया जाता है, जिसे जैविक खाद (Bio-Fertilizer) के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

कल्चर (Culture) तैयार करने के लिए लोहे की ट्रे (Tray) को प्रयोग में लाया जाता है । जिसकी लंबाई 9 इंच, चौड़ाई 6 इंच तथा गहराई 3 इंच होती है । जिस शैवाल (Algae) का कल्चर करना होता है, उसे शुद्ध रूप में मिट्टी सहित ट्रे (Tray) में रखते हैं और इसमें 10 किलोग्राम मिट्टी तथा 200 ग्राम सुपर फास्फेट (Super Phosphate) डाल देते हैं और फिर ट्रे (Tray) में 2 से 2.5 इंच तक पानी भर देते हैं ।

ऐसा करने से मिट्टी तली में बैठ जाती हैं । इसके बाद ट्रे में भरे पानी के ऊपर लकड़ी क बुरादा (Saw Dust) छिड़क कर धूप (Sunlight) में रख देते हैं । एक या दो सप्ताह बाद नील-हरित जीवाणु (Cyanobacteria) वृद्धि करके पानी की सतह पर तैरने लगते हैं ।

इन्हें एकत्रित करके पोलीथीन थैलियों (Polythene Bags) में भर कर बाजारों में भेज दिया जाता है । जहाँ से कृषक इन्हें खरीद कर अपने खेतों में उर्वरक के रूप में प्रयोग करते हैं । यह उर्वरक बहुत सस्ता होता है । एक हेक्टर भूमि के लिए 30 रुपये का उर्वरक पर्याप्त होता है ।


Home››Essay››Biofertilizers››