जीवमंडल पर निबंध: शीर्ष छह निबंध | Essay on Biosphere: Top 6 Essays.
जीवमंडल पर निबंध | Essay on Biosphere
Essay Contents:
- जीवमंडल का आशय (Introduction to Biosphere)
- जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) (Biosphere Reserve)
- वन्य जीवन (वाइल्ड लाइफ) (Wildlife)
- आर्द्रभूमियाँ या जलग्रस्त भूमि (Wet Lands)
- कच्छ वनस्पतियाँ या मैंग्रोव (Mangroves)
- प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral Reefs)
Essay # 1. जीवमंडल काआशय (Introduction to Biosphere):
भारत में 75,000 प्रकार के जीव जन्तु तथा 2,500 प्रकार के ताजे व खारे पानी की मछलियाँ पायी जाती हैं । पक्षियों की लगभग 2,000 प्रजातियाँ हैं । भारत में 45,000 तरह की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं । इनमें से 5,000 प्रकार की वनस्पतियाँ सिर्फ भारत में ही पायी जाती हैं ।
भारत विश्व के 17 बड़े पारिस्थितिक विविधता वाले केन्द्रों में से एक है, जहाँ दुनिया की 60-70% विविधता है । भारत के उत्तरी पर्वतीय भाग और पश्चिमी घाट विश्व के 18 जैव-विविधता के स्थापित प्रमुख स्थानों के अंतर्गत शामिल हैं ।
Essay # 2. जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फेयर रिजर्व) (Biosphere Reserve):
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यह आनुवंशिक विविधता बनाए रखने वाले ऐसे बहुउद्देश्यीय संरक्षित क्षेत्र हैं, जहाँ पौधों, जीव-जंतुओं व सूक्ष्म जीवों को उनके प्राकृतिक परिवेश में संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है । यहाँ लोगों को इससे संबधित प्रशिक्षण भी दी जाती है एवं जैव विविधता तथा पारिस्थितिक तंत्र के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखने का प्रयास भी किया जाता है ।
1. केंद्रीय भाग (Core Area):
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प्राकृतिक या केंद्रीय परिक्षेत्र एक बाधारहित तथा प्राकृतिक रूप से रक्षित होता है । यह खंड जैव विविधता के संरक्षण के लिए होता है । विनाशरहित अनुसंधान कार्य तथा कम संघटन वाली क्रियाओं जैसे शिक्षा तथा पारिस्थितिक पर्यावरण को यहां संचालित किया जाता है ।
2. बफर क्षेत्र (Buffer Area):
यह क्षेत्र केंद्रीय परिक्षेत्र को चारों तरफ से घेरे रहता है और इसका प्रयोग सहायक क्रियाओं, जैसे पर्यावरण शिक्षा, मनोरंजन, मूल तथा प्रायोगिक अनुसंधान इत्यादि के लिए किया जाता है ।
3. संक्रमण क्षेत्र (Transition Area):
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जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र का बाहरी भाग जो बफर परिक्षेत्र के चारों तरफ से घेरे रहता है, संक्रमण क्षेत्र कहलाता है । इस परिक्षेत्र में आरक्षित प्रबंधनों एवं स्थानीय लोगों के मध्य सक्रिय सहभागिता सामंजस्यपूर्वक चलती है ।
जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र के निम्न उद्देश्य हैं:
a. पौधों, जीव-जंतुओं, सूक्ष्म जीवों के विविधता तथा संपूर्णता का संरक्षण करना ।
b. पारिस्थितिकी संरक्षण तथा अन्य पर्यावरण संबंधी तथ्यों पर शोध को प्रोत्साहन देना ।
c. शिक्षा, जागरूकता तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था करना ।
इस कार्यक्रम में गैर-सरकारी संगठनों को शामिल किया जा रहा है, व दूरसंवेदन जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग भी इस कार्यक्रम के अध्ययन के लिए किए जा रहे हैं । भारत सरकार द्वारा अब तक 18 जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए जा चुके हैं ।
Essay # 3. वन्य जीवन (वाइल्ड लाइफ) (Wildlife):
भारत में जैव विविधता संरक्षण के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय जैविक विविधता कार्यनीति और कार्य योजना तैयार की गई । भारत में 1972 में ‘वाइल्ड लाइफ एक्ट’ पारित किया गया जिसके अन्तर्गत नेशनल पार्कों तथा वन्य जीव अभ्यारण्यों की स्थापना हुई ।
वन्य जीव अभ्यारण्यों (वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी) का गठन किसी एक प्रजाति अथवा कुछ विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिए किया जाता है अर्थात् ये ‘विशिष्ट प्रजाति आधारित संरक्षित क्षेत्र’ होते हैं । इसके विपरीत राष्ट्रीय उद्यानों (नेशनल पार्कों) का गठन विशेष प्रकार की शरणस्थली के संरक्षण के लिए किया जाता है अर्थात् ये ‘हैबिटेट ओरियेन्टेड’ होते हैं ।
इनके अंतर्गत एक विशेष प्रकार के शरण क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों का संरक्षण किया जाता है । भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान जम्मू-कश्मीर के लेह जनपद में है जिसका नाम ‘हेमिस हाई’ है ।
देश का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान अण्डमान-निकोबार जिले में ‘साउथबटन’ (0.03 वर्ग किमी.) है । भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान ‘जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय पार्क’ था । देश में सर्वाधिक वन्यजीव अभ्यारण्य (94) अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में है ।
राष्ट्रीय वन्य जीवन कार्ययोजना (2002-2016), वन्य जीवन संरक्षण के लिए कार्यनीति और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है । ‘भारतीय वन्य जीवन बोर्ड’ के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं । यह वन्य जीवन संरक्षण की अनेक योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी और निर्देशन करने वाली शीर्ष सलाहकारी निकाय है ।
इस ममय संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत 102 राष्ट्रीय उद्यान, 515 वन्य प्राणी अभ्यारण्य, 43 संरक्षण रिजर्व तथा चार सामुदायिक रिजर्व शामिल हैं जो देश के सकल भौगोलिक क्षेत्र के 1 लाख 56 हजार वर्ग कमी. पर फैले हुए हैं । वन्य जीवन (सुरक्षा) अधिनियम-1972 जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्यों में लागू है ।
इसमें त्रन्य जीवन संरक्षण और विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं । इन प्रजातियों के व्यापार पर डस अधिनियम के द्वारा रोक लगा दी गई है ।
Essay # 4. आर्द्रभूमियाँ या जलग्रस्त भूमि (Wet Lands):
जलग्रस्त भूमि वैसे दलदली या पानी वाले क्षेत्र हैं, जहाँ सालोंभर या साल के एक हिस्से में प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से शांत या बहता हुआ, मीठा या खारा पानी वाला, समुद्री या गैर-समुद्री ऐसा जल जमाव क्षेत्र हो जिसकी गहराई 6 मी. से अधिक नहीं होता है । अधिकांश जलग्रस्त भूमि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, कावेरी, ताप्ती, गोदावरी आदि जैसी बड़ी नदियों से जुड़ी हुई हैं ।
जलग्रस्त भूमि की निम्न विशेषताएँ हैं:
a. यह पत्तियों, जंतुओं, कीटों तथा पौधों की कई दुर्लभ प्रजातियों का निवास स्थान होती है ।
b. पारिस्थितिक व्यवस्था बनाए रखते हुए ये पोषक तत्वों का पुनर्निर्माण व जहरीले तत्वों को निष्क्रिय करती हैं इसलिए इसे प्रकृति का गुर्दा भी कहा जाता है ।
c. यह अवसादों को रोककर नदियों में गाद के जमाव को कम करती हैं ।
d. यह बाढ़ के प्रभाव को कम करती है व मिट्टी के कटाव को रोकती है ।
1971 ई. में जलग्रस्त भूमि के संरक्षण के लिए बहुद्देशीय समझौता हुआ था, जिसे रामसर सम्मेलन (ईरान) के नाम से जाना जाता है । भारत इसमें 1982 ई. में शामिल हुआ एवं पर्यावरण व वन मंत्रालय द्वारा इनके संरक्षण हेतु 1987 ई. से राष्ट्रीय आर्द्र या दलदली भूमि संरक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है ।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत 24 राज्यों में कुल 103 आर्द्रभूमियों को संरक्षण के लिए चुना गया है तथा 26 जलग्रस्त भूमियों की प्रबंध वाली योजनाएँ अनुमोदित हो गई हैं ।
Essay # 5. कच्छ वनस्पतियाँ या मैंग्रोव (Mangroves):
ये उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों की समुद्र तटवर्ती पश्चजलों (Backwaters), मुहानों, क्षारीय दलदलों व दलदली मैदानों की विशिष्ट पारिस्थितिकी वाले क्षार-सहवानिकी क्षेत्र हैं ।
ये बड़ी तादाद में पौधों और जीव-जन्तुओं की ऐसी प्रजातियों के संग्रहण क्षेत्र हैं, जिनमें क्षार सहन करने की उल्लेखनीय क्षमता है । ये समुद्री जल की उर्वरता बढ़ाते हैं, मृदा अपरदन रोकते हैं, समुद्री तूफानों की तीव्रता कम करते हैं, तथा समुद्री सूक्ष्म जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हैं ।
भारत में मैंग्रोव वनस्पतियाँ विश्व का लगभग 50% है और ये तटीय राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों में लगभग 4,639 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैली हुई हैं, जिनका लगभग आधा भाग पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में है ।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006 कच्छ (मैंग्रोव) वनस्पतियों और प्रवाल भित्तियों को महत्वपूर्ण तटीय पर्यावरण संसाधन मानता है, जिनसे समुद्री जीव प्रजातियों को आश्रय मिलता है, उन्हें तीव्र मौसमी बदलाव से सुरक्षा मिलती है । इसके साथ ही ये सतत् पर्यटन के लिए संसाधन का आधार है ।
भारतीय वन सर्वे पूरे देश में कच्छ वनस्पति क्षेत्र का मूल्यांकन कर रहा है । पर्यावरण मंत्रालय 1987 ई. इसके संरक्षण हेतु कार्यक्रम चला रहा है । मंत्रालय ने ओडिशा में ‘राष्ट्रीय कच्छ वनस्पति आनुवंशिक संसाधन केन्द्र’ स्थापित किया है । भारत में विश्व की कुछ सर्व श्रेष्ठ कच्छ वनस्पतियाँ हैं । मैंग्रोव वनस्पति संरक्षण और प्रबंधन योजना में 39 मैंग्रोव वनस्पति क्षेत्रों की पहचान की गई है ।
दो कच्छ वनस्पतियां भारत में लुप्त होने के कगार पर हैं । इनमें से एक है तमिलनाडु के पिछावरम में पाई जाने वाली ‘राइजोफोरा अन्नामलाय’ और दूसरी है ओडिशा के भीतर-कणिका में पाई जाने वाली ‘हेरीटेरिया कनिकेंसिस’ । यूनेस्को के जीवमंडलीय के आरक्षित क्षेत्रों की विश्व सूची में पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन को शामिल किया गया है ।
यह देश का सबसे बड़ा कच्छ (मैंग्रोव) वनस्पति क्षेत्र है । न्यू सेवन वंडर्स (सात प्राकृतिक आश्चर्यों की पहचान के लिए) मनोनीत एकमात्र स्थल ‘सुन्दरवन’ ही है । ‘राष्ट्रीय कच्छ वनस्पति और तटीय जैव विविधता अनुसंधान संस्थान’ पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में प्रस्तावित है ।
Essay # 6. प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral Reefs):
ये उष्णकटिबंधीय उथले क्ल की सामुद्रिक पारिस्थितिकी हैं एवं जैव विविधता के विशाल भंडार हैं । मन्नार की खाड़ी, पाक की खाड़ी तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं । कच्छ की खाड़ी में तटीय प्रवाल भित्तियाँ एवं लक्षद्वीप में प्रवाल वलय अर्थात् एटॉल (Atoll) भित्तियाँ पाई जाती हैं । संरक्षण व प्रबंध के लिए 4 प्रवाल भित्तियों की पहचान की गई है ।
ये हैं, मन्नार की खाड़ी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और कच्छ की खाड़ी । भारतीय प्रवाल भित्ति क्षेत्र लगभग 2,375 वर्ग किमी. है । कठोर व नरम प्रवाल भित्ति के संबंध में बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान केन्द्र’ अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर में स्थापित किया है । वर्ष 2008 को विश्व प्रवाल भित्ति वर्ष के रूप में मनाया गया ।
इस उपलक्ष्य में लक्षद्वीप के कदामत द्वीप पर लक्षद्वीप सरकार और गोवा के राष्ट्रीय सामुदायिक संस्थान द्वारा प्रवाल भित्ति की स्थिति पर संयुक्त रूप से कार्यशाला आयोजित की गई । भारत में ‘सेंटर फार मेरीन लिविंग रिसोर्सेज एंड इकोलॉजी’ (CMLRE) कोच्चि को समुद्री पर्यावरण के संरक्षण व विकास हेतु कार्यनीति बनाने का अधिकार दिया गया है ।