चिपको आंदोलन पर निबंध | Essay on the Chipko Movement in Hindi!

Essay # 1. चिपको आंदोलन का अर्थ (Meaning of Chipko Movement):

चिपको आन्दोलन पर्यावरण के संरक्षण के लिए चलाया गया एक आन्दोलन है ।. इसके अंतर्गत पेड़ों के संरक्षण हेतु प्रयास किये गये थे । इसे चिपको आन्दोलन इसलिए कहते हैं कि पेड़ों को कटने से बचाने के लिए महिलाएँ तथा अन्य लोग आन्दोलन के दौरान पेड़ों से चिपक जाते थे ।

इस आन्दोलन की शुरुआत 1973 में वर्तमान उत्तराखण्ड के गढ़वाल जिले के गाँव रेनी से हुई थी । इसकी पृष्ठभूमि यह है कि गाँव वाले अपने कृषि उपयोग के लिए अंगू वृक्ष (Ash Tree) को काटना चाहते थे, लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें इसकी अनुमति प्रदान नहीं की । लेकिन कुछ ही समय बाद सरकार ने खेल का सामान बनाने वाली एक निजी कम्पनी को इन पेड़ों को काटने की अनुमति प्रदान कर दी ।

जिसका गाँव वालों ने बहुत विरोध किया । जब कम्पनी के ठेकेदार पेड़ काटने के लिए गाँव में आये तो महिलायें पेड़ों से चिपक गयीं तथा कम्पनी के ठेकेदार पेड़ों को नहीं काट सके । इस प्रकार चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई । बाद में यह आन्दोलन उत्तराखंड के समूचे टेहरी गढ़वाल और कुमायूं क्षेत्र में फैल गया ।

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इस आन्दोलन में सम्पूर्ण उत्तराखंड में पेड़ों को बचाने के लिए महिलाओं और अन्य लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया । इस आन्दोलन को सुन्दर लाल बहुगुणा ने प्रभावी नेतृत्व प्रदान किया । इस आन्दोलन में ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी इस आन्दोलन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता थी ।

Essay # 2. आन्दोलन की उपलब्धियाँ (Chipko Movement’s Achievements):

इस आन्दोलन की निम्न उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण हैं:

(i) आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने यह आदेश निकाला कि समुद्र तल से एक हजार मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में 15 वर्षों तक पेड़ों की कोई कटाई नहीं की जायेगी । इससे वनों के संरक्षण व विकास में सहायता मिली ।

(ii) चिपको आन्दोलन शांतिपूर्ण तरीके से लोकहित की पूर्ति का एक प्रमुख उदाहरण है । इसके प्रमुख नेता सुन्दर लाल बहुगुणा गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे । अतः यह आन्दोलन समकालीन युग में गांधीवादी विचारधारा की उपयोगिता को रेखांकित करता है ।

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चिपको आंदोलना की एक उपलब्धि यह भी है कि इसने देश के अन्य भागों में भी इस तरह के सामाजिक और आर्थिक विषयों पर आन्दोलन को प्रेरणा प्रदान की । इसी की तर्ज पर दक्षिण भारत में कर्नाटक में पर्यावरण संरक्षण के लिए एपिको आंदोलन चलाया गया था ।

एपिको आंदोलन (Appiko Movement):

उत्तराखंड के चिपको आंदोलन की तर्ज पर कर्नाटक के उत्तरा कन्नड़ जिले में सितम्बर 1983 में सामाजिक कार्यकर्ता पांगडुरांग हेगड़े द्वारा शुरू किया गया था । इस आन्दोलन में भी पेड़ों को कटने से बचाने के लिये उनसे चिपकने की रणनीति अपनाई गयी । एपिको का कर्नाटक की स्थानीय भाषा में शाब्दिक अर्थ ‘चिपकना’ होता है । इसीलिये इसका नाम एपिको रखा गया है ।

आन्दोलन की तीन गतिविधियां महत्वपूर्ण हैं:

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प्रथम, नाटकों, रैलियों, नाटकों, फिल्मों आदि द्वारा जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना । दूसरा, पश्चिमी घाट के समृद्ध वनों की करना तथा खाली जमीन पर वृक्षारोपण करना । तीसरा स्थानीय निवासियों को जंगली इंधन के प्रभावी व समुचित प्रयोग हेतु प्रेरित करना ।

इस आंदोलन को पर्याप्त सफलता मिली है । सरकार ने हरे पेड़ों के काटने पर रोक लगा दी है । यह आंदोलन धीरे-धीरे कर्नाटक चारों पहाड़ी जिलों में फैल गया है । इसने तमिलनाडु में पूर्वी के जंगलों के संरक्षण हेतु प्रेरित किया । पश्चिमी घाट के तथा पर्यावरण की रक्षा में इसका महत्वपूर्ण योगदान है ।

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