सूखे पर निबंध: प्रकोप और प्रभाव | Essay on Drought: Outbreak and Effects in Hindi!
Essay # 1. सुखे का प्रकोप (Outbreak of Drought):
“सुखा एक काफी घातक प्राकृतिक प्रकोप है जिसके कारण कृषि और वनस्पतियों को बहुत क्षति होती है, जीव-जन्तु पानी के अभाव में तड़पकर मर जाते हैं ओर अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है । साधारणतया वर्षा की कमी अथवा अभाव जनित शुष्क अवधि को सूखा कहते हैं ।”
संयुक्त राज्य अमेरिका में- “सूखा उस स्थिति को कहते हैं जब वर्ष में वर्षा सामान्य वर्षा का 85% से कम होती है, 21 दिनों की अवधि तक साधारण वर्षा 30% से कम वर्षा होती है ।”
भारत के मौसम विभाग के अनुसार- “सुखा उस स्थिति को कहते हैं जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से वास्तविक वर्षा 75% से कम होती है ।”
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ए.जे. हेनरी (1960) के शब्दों में- “सूखे की स्थिति उस वक्त पैदा होती है जब 21 दिनों तक वर्षा सामान्य वर्षा की 30% अथवा उससे कम होती है । अगर 21 दिनों तक प्राप्त होने वाली वर्षा सामान्य वर्षा के 10% से कम होती है तो भयानक सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है ।”
सी.जी.बैट्स (1935) के शब्दों में- “सुखे की स्थिति उस वक्त पैदा होती है जब वार्षिक वर्षा सामान्य वार्षिक वर्षा की 75% अथवा उससे कम और मासिक वर्षा सामान्य वर्षा की 60% अथवा उससे कम होती है ।”
सिंचाई आयोग के अनुसार भारत में- “जिन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 1000 मि.मी. से कम होती है, वर्ष के 20% अथवा उससे अधिक भाग में औसत वार्षिक वर्षा का 75% से कम वर्षा होती है तथा कृषि क्षेत्र के 20% से कम भाग पर सिंचाई होती है, उन्हें सूखाग्रस्त क्षेत्र कहते हैं ।”
Essay # 2. सूखे का विभक्तिकरण (Divisions of Drought):
ब्रिटिश वर्षा संगठन का विभक्तिकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है:
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(1) शुष्क सूखा- 15 दिनों तक लगातार दैनिक वर्षा 0.04 इंच से कम होने पर शुष्क दौर अथवा शुष्क आवेग कहते हैं ।
(2) वास्तविक सूखा- कम-से-कम 15 दिनों तक सतत् प्रतिदिन 0.01 इंच से कम वर्षा होने की दशा को वास्तविक सूखा कहते हैं ।
(3) आंशिक सूखा- कम-से-कम 29 दिनों तक सतत् 0.01 इंच अथवा उससे कम वर्षा होने की स्थिति को आंशिक सूखा कहते हैं ।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार सूखा दो तरह का होता है ।
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जो निम्नलिखित है:
(1) कठोर सूखा- जब सामान्य वर्षा के 50% से ज्यादा वर्षा की कमी होती है तो उसे कठोर सूखा कहते हैं ।
(2) साधारण सूखा- जब सामान्य वर्षा से 25 से 50% तक वर्षा की कमी पाई जाती है, तब उसे साधारण सूखा कहते हैं ।
क्षेत्रीय स्तर पर सूखा (Droughts at the Regional Level):
सूखे का संबंध वर्षा की अल्पता अथवा अवर्षण से है । परिणामत: विश्व के किसी-ने-किसी भाग में सूखा पड़ता अवश्य रहता है । एक तरफ उत्तरी अफ्रीका में सहेल प्रदेश में, जिसके अंतर्गत मैरीटोनीया, सेनेगल, माली, अपरवोल्टा, नाइजीरिया, चाड, यूगाण्डा, इथीयोपिया आदि अविकसित देश आते हैं ।
शुष्क जलवायु के कारण सूखे की चपेट में आता रहता है तो दूसरी तरफ विकसित देश दलिया, ब्रिटेन व संयुक्त राज्य अमेरिका में भी भयंकर सूखा पड़ता है । अनिश्चित व अनियमित मानसूनी वर्षा के कारण भारत सहित मानसूनी जलवायु प्रदेश के किसी-न-किसी भाग में सूखा अवश्य पड़ता रहता है ।
जहां देश की 25% कृषि भूमि पाई जाती है और देश की 12% से अधिक जनसंख्या निवास करती है । भारत में सूखा वाले प्रमुख राज्य गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश व दक्षिणी उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार आदि हैं ।
Essay # 3. सूखे का प्रभाव (Effects of Drought):
सूखे का प्रभाव बहु आयामी होता है ।
इसके प्रभावों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत व्यक्त किया जा सकता है:
(1) राजनीतिक प्रभाव (Political Influence):
देश में सूखे के कारण चारा, खाद्यान्न, जल आदि की भारी मात्रा में कमी हो जाती है जिससे संबंधित देश में राजनीतिक उथल-पुथल और अस्थिरता आ जाती है । जो देश खाद्यान्नों और अन्य सूखा राहत सामग्रियों की आपूर्ति करते हैं वे सूखा-पीड़ित देशों के आन्तरिक मामलों में दखल देने लगते हैं ।
कभी-कभी सूखा का सामना करने में सक्षम नहीं होने पर सरकारें बदल जाती हैं । जैसे सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति खश्चेव को पश्चिमी यूरोपीय देशों से खाद्यान्न मंगाये जाने के कारण पद छोड़ना पड़ा था ।
विपक्षी राजनीतिक दलों को सत्ताधारी सरकार की आलोचना करने का मौका मिल जाता है जिसका फायदा वे चुनाव में प्राप्त करने की कोशिश करते हैं । ब्रिटेन में सूखा का मुकाबला करने के लिए सूखा मंत्री का पद बनाया गया था ।
(2) जनांकीय प्रभाव (Demographic Impact):
सूखे से प्रभावित क्षेत्रों के लोग प्रव्रजन कर जाते हैं जिससे वहां जनसंख्या कम हो जाती है । जब ये सूखा पीड़ित लोग अपने मवेशियों के साथ जहां जाते हैं वहां अर्थ-व्यवस्था को अस्थिर बना देते हैं और विभिन्न समस्याओं को जन्म देते हैं ।
(3) पारिस्थितिकीय प्रभाव (Ecological Impact):
लंबे वक्त तक सूखा पड़ने पर वनस्पतियां सूख जाती हैं, अनेकों जीव-जंतु मर जाते है या किसी अन्य स्थान पर पलायन कर जाते हैं या उनका विलोपन हो जाता है तथा अनेकों लोग विस्थापित हो जाते हैं । फलत: पारिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन की संभावना बढ़ जाती है ।
(4) आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):
कृषि उत्पादन में भयंकर सूखा पड़ने पर कमी आ जाती है जिससे विदेशों से खाद्यान्न आयात करना पड़ता है । पशुओं के मरने से पशु उत्पादों में काफी गिरावट आ जाती है । इसी तरह जल की कमी के कारण औद्योगिक उत्पादनों में भारी गिरावट आती है । सूखा राहत कार्यों में अधिक धन व्यय करना पड़ता है जिसके लिये विदेशों से आर्थिक सहायता लेनी पड़ती है । इस तरह सूखा के कारण देश की आर्थिक स्थिति चरमरा जाती है ।
Essay # 4. सूखे के प्रकोप से बचने के उपाय (Measures to Avoid Drought Outbreaks):
सूखा प्रकोप प्राकृतिक आपदा है जिसे समाप्त करना मनुष्य के वश की बात नहीं लगती ।
लेकिन उसके प्रभावों को निम्न उपायों द्वारा अवश्य कम किया जा सकता है:
1. मरुस्थलीकरण को रोकना ।
2. जल संरक्षण उपायों को प्रभावकारी बनाना ।
3. चारागाहों का विकास करना ।
4. सूखे का पूर्व अनुमान लगाकर राहत सामग्रियों की पूर्व व्यवस्था करना ।
5. सूखा संभावित क्षेत्रों में शुष्क कृषि विधि का उपयोग ।
6. नहरों का जाल बिछाना, कुआँ व नलकूप एवं जलाशयों का निर्माण ।
7. डी.पी.ए.पी. कार्यान्वित करना ।
8. वायु में नमी की मात्रा को वनारोपण द्वारा बढ़ाया जाना ।