नेपाल भूकंप पर निबंध | Essay on Nepal Earthquake in Hindi!
Essay # 1. भूकंप का अधिकेन्द्र (Epicenter of Nepal Earthquake):
नेपाल में भूकंप-25 अप्रैल, 2015:
प्रमुख भूकंप- दिनांक 25 अप्रैल, 2015, 11.41 पूर्वान्ह (आईएसटी)
रिक्टर पैमाने पर तीव्रता – 7.9
ADVERTISEMENTS:
भूकंप का अधिकेंद्र – बारपक ग्राम, लामजंग के समीप (गोरखा जिला)
मृतकों की संख्या – 15,000
घायल – 50,000
प्रभावित लोग – 8 मिलियन से अधिक
ADVERTISEMENTS:
पश्चवर्ती आघात (Aftershock) – 12, मई 12.37 अपराह्न
तीव्रता – 7.3, गहराई 15 कि.मी.
दोलखा जिले का कोहाटी ग्राम, काठमांडू से 80 किमी. पूर्व तथा एवरेस्ट पर्वत से 50 किमी. दक्षिण पश्चिम में । जब चट्टानें अपनी नम्य सीमा से अधिक दबाव सहन नहीं कर पाती है तो वे टूटकर अचानक हिलन-डुलने लगती है, जिससे पृथ्वी पर कंपन होता है । प्लेट के किनारों के आसपास आते है जैसे महासागरीय रिज, (भिन्न प्लेट सीमाएं) महासागरीय खाइयाँ (अभिसारी प्लेट के किनारे) और महासागरीय रिज पर रूपांतरण भ्रंश ।
Essay # 2. अभिसरण प्लेट सीमाएं व नेपाल भूकंप (Convergent Plate Boundaries and Nepal Earthquakes):
पृथ्वी पर सर्वाधिक व्यापक और प्रचंड भूकंप अधीनीकरण क्षेत्र के साथ भूकंप प्लेट के किनारों पर आते हैं । जिस क्षेत्र में प्लेटें टकराती हैं, वे जटिल भूगर्भिक प्रक्रियाओं के क्षेत्र हैं जहाँ आग्नेय गतिविधि, परतीय विकृति तथा पर्वत निर्माण जैसी गतिविधियाँ घटित होती रहती हैं ।
ADVERTISEMENTS:
कब कौन-सी विशेष प्रक्रिया अभिसरण प्लेट सीमा के साथ सक्रिय है यह अभिसरण प्लेटों की सीमाओं की टकराहट की प्रक्रिया में शामिल पर्पटी के प्रकार पर निर्भर है । यदि दोनों अभिसरण प्लेटों में महाद्वीपीय पर्पटी (भारतीय व यूरेशियाई प्लेटें) होती हैं तो दोनों में से कोई भी मेंटल में नहीं समा सकता, यद्यपि एक कुछ समय हेतु दूसरे को अधिरोहित कर लेता है ।
अभिसरण प्लेटे, सियाल, से निर्मित हैं । सियाल पदार्थ इतने उत्प्लावक हैं कि ये सिमा जैसे घने मेंटल इद में नहीं डूब सकते । ऐसी दशा में, दोनों महाद्वीपीय समूह संपीडित हो जाते हैं तथा महाद्वीप अंततः एक महाद्वीप खंड में जोड़ बनाते हुए एक पर्वत श्रृंखला में साथ मिल जाते हैं । नेपाल का भूकंप भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट के साथ अभिसरण का परिणाम था ।
प्रमुख सीमा भ्रंशन पर या उसके समीप (लघु हिमालय तथा बाहय हिमालय या शिवालिक) भ्रंशन के परिणामस्वरूप 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.9 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें भारतीय प्लेट ने यूरेशियाई प्लेट को आप्लावित कर दिया ।
(1) भूकंपविज्ञानियों के अनुसार इस भ्रंश पर भारतीय प्लेट यूरेशियाई प्लेट को उत्तर पूर्व की और हिमालय पर्वत की ऊँची श्रृंखला की ओर घुमाते हुए 45mm/वर्ष की दर से समाहित कर रही है । जहाँ पर अधीनीकरण की दर उच्च व आकस्मिक है वहाँ पर उच्च तीव्रता के भूकंप घटित होते हैं ।
परिणाम:
मानचित्रण पर आधारित प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार भूकंप की तीव्रता नेपाल के 39 जिलों के 8 मिलियन लोग इससे प्रभावित रहे हैं, तथा इनमें से लगभग 2 मिलियन लोग व्यापक रूप से प्रभावित ग्यारह जिलों में रहते हैं ।
भूआकृतयों में परिवर्तन (Changes in Landforms):
इस भूकंप ने काठमांडू के नाचे की भूमि को लगभग 3 मीटर (10 फीट) दक्षिण की ओर खिसका दिया है । एवरेस्ट पर्वत प्रमुख सीमा भ्रंश रेखा के प्रत्यक्षतः ऊपर नहीं है । परिणामतः इसकी ऊँचाई ज्यादा प्रभावित नहीं हुई है । जबकि पर्वत के शीर्ष पर हिमस्खलन, भूस्खलन तथा ग्लेशियरों के खिसकने से भारी क्षति हुई है ।
जान एवं माल की क्षति:
इस भूकंप से नेपाल में लगभग 1.4 लाख इमारतें पूर्णतया नष्ट हो गयीं, तथा 1.2 लाख घर आशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए । कुल मिलाकर 10,395 सरकारी इमारतें धराशायी हो गई तथा 13,000 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गई । 12वीं शताब्दी का विरासत नगर भक्तापुर (काठमांडू के दक्षिण पूर्व में स्थित) लगभग पूर्णतया नष्ट हो गया । इस नगर को पुनर्निर्माण करने में वर्षा का समय लगेगा ।
चिकित्सकीय जटिलताएं:
दूरदराज क्षेत्रों में रह रहे भूकंप के पीडितों को बचाने व उनकी अन्य प्रकार से सहायता करने में कई चिकित्सकीय समस्याओं व जटिलता का सामना करना पड़ा । कई बार तो मानव शरीर के विभिन्न अंग मलबे में दबे मिले जिनमें ग्रैंगीन हो गया था । शरीर के इस भाग को जब रक्त की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होती तो यह लगभग सड़ जाता है जिससे इसमें गैंग्रीन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
Essay # 3. भूकंप व एवरेस्ट के रोही (Earthquake and the Everest Climbers):
पिछले 81 वर्षों में आए सर्वाधिक खतरनाक भूकंप से हिमस्थलन की घटना के द्वारा एवरेस्ट पर्वत के बेस कैंप पर (5230 की ऊँचाई) 20 से अधिक पर्वतारोही मारे गए । सैकड़ों इसमें लापता हो गए ।
समुचित बचाव व राहत रणनीति तथा सतर्क आपदा नीति के अभाव में हजारों लोगों को ठंडे में भूखों रहना पड़ा । वास्तव में, सरकार इस तीव्रता की आपदा से निपटने के लिए तैयार नहीं थी । नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोयराला ने माना कि बचाव, राहत व अनुसंधान कार्यवाही अप्रभावी व अपर्याप्त थी । भूकंप के बाद का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण था । नेपाल सरकार के प्रयत्नों को खराब मौसम ने बाधित किया । काठमांडू में वर्षा हुई तथा भूकंप के पश्चात ओलावृष्टि हुई ।
Essay # 4. नेपाल सरकार की तैयारी (Nepal’s Preparedness of Government):
नेपाल सरकार ऐसी विपदा से निपटने के लिए तैयार नहीं थी । उसे कम्बलों, खाद्य सामग्री, जल, डाक्टर, चिकित्सा, ड़ाक्टर तथा हेलीकाप्टर के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पडा । भारत के प्रधानमंत्री ने ‘आपरेशन मैत्री’ का अभियान संचालित किया । अन्तत: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इरान, पाकिस्तान, तुर्की, सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड, यूके, यू.एस.ए. ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया ।
विश्व खाद्य कार्यक्रम ने लगभग 1.4 मिलियन लोगों को नेपाल में तुरत सहायता की आवश्यकता पर बल दिया । ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकेन्द्र (गोरखा जिला) में दूरदराज के क्षेत्रों की स्थिति नाजुक थी । अधिकेन्द्र के आसपास के गाँवों में पहुँचना मुश्किल था क्योंकि भूस्खलन की वजह से उनसे संपर्क टूट गया था । गोरखा जिला का लगभग 90% भाग नष्ट हो गया था । एक पीड़ित शेरपा के शब्दों में ”जो मृत थे वे जा चुके हैं, जो जिंदा हैं वे नर्क में जी रहे हैं ।”
गोरखा मार्शल परंपरा का गढ नष्ट हो गया । उस मंदिर का विनाश जहाँ गोरखाओं ने अपनी मार्शल परम्परा 400 वर्ष पूर्व प्रारंभ की थी, से यहाँ के निवासियों के गौरव को प्रचंड आघात पहुँचा है । 1636 में निर्मित गुरु गोरखनाथ को समर्पित पुण्य स्थल गोरखा दरबार का एक भाग है । यह चिंता का विषय है कि गुरु गोरखनाथ का मंदिर नष्ट हो गया । इसी स्थान पर गुरु जी की पलटन (गोरखा सेना) बनायी गयी थी ।
नेपाल का भूकंप भारत के लिए चेतावनी की घंटी:
भूकंप के विशेषज्ञों के अनुसार भूकंप से किसी की मृत्यु नहीं होती वरन इन मौतों के लिए इमारतें व उनकी निर्माण संरचनाएँ उत्तरदायी हैं । वास्तव में, पुराने घर व इमारतों आदि के गिर जाने से लोग इनके नीचे दब जाते हैं । जिससे भारी मात्रा में जान-माल की भारी क्षति होती है । नेपाल की भूकंप त्रासदी ने एक बार फिर भारत को भी इस तरह की भीषण आपदाओं से बचने के लिए उपाय अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है ।
भूकंपवेत्ता एम.एल. शर्मा की राय में ”भारतीयों का मानना है कि भूकंप से अन्य देशों के लोग ही प्रभावित होते हैं ।” भारत के कल क्षेत्रफल का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा उच्च भूकंपीय क्षेत्र (4&5) के अंतर्गत है । भारत के उच्च जोखिम वाले शहर है ।
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, अल्मोड़ा, देहरादून, मसूरी, नैनीताल, चंढ़ीगढ़, चम्बा, डलहौजी, शिमला, जम्मू, श्रीनगर, गंगटोक, गुवाहाटी, आइजोल तथा समस्त मिलियन बड़े व छोटे नगर जिसमें भारत के वृहत मैदान की ग्रामीण बस्तियाँ शामिल हैं । मात्र एक मुख्य भूकंप कई लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैलकर अत्यंत विनाशकारी हो सकता है तथा लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डाल सकता है ।
अफगानिस्तान से अरुणाचल प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बीच एक भीषण तबाही की भविष्यवाणी की गयी है । राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, यदि उत्तरी भारत में भीषण भूकंप आता है तो एक मिलियन से अधिक लोग अपनी जान खो सकते हैं । दुर्भाग्यवश, एक बड़ा भूकंप आने वाला है पर हम नहीं जानते यह कब व कैसे आयेगा ।
भारत में सर्वप्रथम जिससे क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है वह है सिविल इंजीनियरी शिक्षा । हालांकि भारत में लगभग 85 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहाँ पक्की/अनपक्की ईटों या पत्थरों से मकानों की दीवारें बनी हैं, सिविल इजीनियरिंग व आर्किटेक्ट केवल 3 प्रतिशत पूर्वस्नातक इन पदार्थों का प्रयोग करते हैं । (भारत की जनगणना 2011) । वास्तव में यह अनिवार्य है कि सिविल इंजीनियर गृह निर्माण के पारम्परिक विन्यास में भी प्रशिक्षित हों ।
अन्य प्रमुख चिंता का विषय है बहुमंजिला इमारतें जिनकी संख्या शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती जा रही है । इन इमारतों का निर्माण आर सी सी बीम तथा खंभों के फ्रेमवर्क पर निर्मित होते हैं जिनमें बाद में ईट की दीवारें जोड़ी जाती हैं । इस प्रकार की बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में सामग्री चयन व उसकी गुणवत्ता के संदर्भ में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए ।
जनता को नियमित रूप में भूकंप व उसके परिणामों के संबंध में व्यापक रूप से अवगत कराया जाना चाहिए । जापान के विद्यालयों व कॉलेजों के पैटर्न पर हमारे देश के स्कूलों व कॉलेजों में भी प्रदर्शनी का आयोजन कर यह बताया जाना चाहिए कि कैसे हम भूकंप जैसी विपदा में स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं ।
जितनी जल्दी हो हमारे नीति-नियोजक, निर्माता सिविल इंजीनियर, वास्तुशिल्पी तथा आपदा प्रबंधन के प्राधिकारी इन मुद्दों को हलकर लें उतना ही अच्छा है ।