भूकंप पर निबंध | Essay on Earthquake in Hindi!

Essay # 1. भूकम्प का प्रारम्भ (Origin of Earthquake):

भूकम्प भू-पृष्ठ पर होने वाला आकस्मिक कंपन है जो भूगर्भ में चट्‌टानों के लचीलेपन या समस्थिति के कारण होनेवाले समायोजन का परिणाम होता है । यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से हो सकता है । प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी क्रिया, विवर्तनिक अस्थिरता, संतुलन स्थापना के प्रयास, वलन व भ्रंशन प्लूटोनिक घटनाएं व भूगर्भिक गैसों का फैलाव आदि शामिल किए जाते हैं ।

रीड के ‘प्रत्यास्थ-पुनश्चलन सिद्धांत’ के अनुसार प्रत्येक चट्‌टान में तनाव सहने की एक क्षमता होती है । उसके पश्चात् यदि तनाव बल और अधिक हो जाए तो चट्‌टान टूट जाता है तथा टूटा हुआ भाग पुनः अपने स्थान पर वापस आ जाता है । इस प्रकार चट्‌टान में भ्रंशन की घटनाएं होती है एवं भूकम्प आते हैं ।

कृत्रिम या मानव निर्मित भूकम्प मानवीय क्रियाओं की अवैज्ञानिकता के परिणाम होते हैं । इस संदर्भ में विवर्तनिक रूप से अस्थिर प्रदेशों में सड़कों, बांधों, विशाल जलाशयों आदि के निर्माण का उदाहरण लिया जा सकता है । इसके अलावा परमाणु परीक्षण भी भूकम्प के लिए उत्तरदायी हैं ।

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भूकम्प आने के पहले वायुमंडल में ‘रेडॉन’ गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । अतः इस गैस की मात्रा में वृद्धि का होना उस प्रदेश विशेष में भूकम्प आने का संकेत होता है । जिस जगह से भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न होती हैं उसे ‘भूकम्प मूल’ (Focus) कहते हैं तथा जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय लहरों का अनुभव किया जाता है उसे भूकम्प केन्द्र (Epi-Centre) कहते हैं ।

भूकम्पमूल की गहराई के आधार पर भूकम्पों को तीन वर्गों में रखा जाता है:

(1) सामान्य भूकम्प- 0-50 किमी.

(2) मध्यवर्ती भूकम्प- 50-250 किमी.

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(3) गहरे या पातालीय भूकम्प- 250-700 किमी.

भूकम्प के इस दौरान जो ऊर्जा भूकम्प मूल से निकलती है, उसे ‘प्रत्यास्थ ऊर्जा’ (Elastic Energy) कहते हैं ।

भूकम्प के दौरान कई प्रकार की भूकम्पीय तरंगें (Seismic Waves) उत्पन्न होती हैं जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है:

i. प्राथमिक अथवा लम्बात्मक तरंगें (Primary or Longitudinal Waves):

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इन्हें ‘P’ तरंगें भी कहा जाता है । ये अनुदैर्ध्य तरंगें हैं एवं ध्वनि तरंगों की भांति चलती हैं । तीनों भूकम्पीय लहरों में सर्वाधिक तीव्र गति इसी की होती है । यह ठोस के साथ-साथ तरल माध्यम में भी चल सकती है, यद्यपि ठोस की तुलना में तरल माध्यम में इसकी गति मंद हो जाती है । ‘S’ तरंगों की तुलना में इसकी गति 66% अधिक होती है ।

ii. अनुप्रस्थ अथवा गौण तरंगें (Secondary or Transverse Waves):

इन्हें ‘S’ तरंगें भी कहा जाता है । ये प्रकाश तरंगों की भांति चलती हैं । ये सिर्फ ठोस माध्यम में ही चल सकती है, तरल माध्यम में प्रायः लुप्त हो जाती है । चूंकि ये पृथ्वी के क्रोड़ से गुजर नहीं पाती, अतः ‘S’ तरंगों से पृथ्वी के क्रोड़ के तरल होने के संबंध में अनुमान लगाया जाता है । ‘P’ तरंगों की तुलना में इसकी गति 40% कम होती है ।

iii. धरातलीय तरंगें (Surface or Long Period Waves):

इन्हें ‘L’ तरंगें भी कहा जाता है । ये पृथ्वी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती है । ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगें हैं एवं सबसे लंबा मार्ग तय करती है । इनकी गति काफी धीमी होती है एवं यह सबसे देर में पहुँचती है, परंतु इनका प्रभाव सबसे विनाशकारी होता है ।

‘P’ और ‘S’ लहरें युग्म में चलती हैं । P-S की गति सर्वाधिक होती है; Pg-Sg की गति न्यूनतम होती है जबकि P*-S* की गति दोनों के मध्य होती है । इन तरंगों की गति तथा भ्रमण-पथ के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।

जिन संवेदनशील यंत्रों द्वारा भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्हें ‘भूकम्प लेखी’ या ‘सीस्मोग्राफ’ (Seismograph) कहते हैं ।

इसके तीन स्केल (Scale) हैं:

a. रॉसी – फेरल स्केल (Rossy Feral Scale):

इसके मापक 1 से 11 रखे गए थे ।

b. मरकेली स्केल (Mercali Scale):

यह अनुभव प्रधान स्केल है । इसके 12 मापक हैं ।

c. रिक्टर स्केल (Richter Scale):

यह गणितीय मापक (Logarithmic) है, जिसकी तीव्रता 0 से 9 तक होती है और रिक्टर स्केल पर प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता रखता है ।

समान भूकम्पीय तीव्रता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को ‘समभूकम्पीय रेखा’ या ‘भूकम्प समाघात रेखा’ (Iso-Seismal Lines) कहते हैं । एक ही समय पर आनेवाले भूकम्पीय क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखा होमोसीस्मल लाइन (Homoseismal Lines) कहलाती है ।

Essay # 2. भूकम्पों का विश्व वितरण (Distribution of Earthquakes across the World):

विश्व में भूकम्पों का वितरण उन्हीं क्षेत्रों से संबंधित है जो भूगर्भिक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर तथा अव्यवस्थित हैं ।

भूकम्प के ऐसे क्षेत्र मोटे तौर पर दो विवर्तनिकी घटनाओं से संबंधित है:

(1) प्लेट के किनारों के सहारे तथा

(2) भ्रंशों के सहारे ।

विश्व में भूकम्प की कुछ विस्तृत पेटियाँ इस प्रकार हैं:

i. प्रशान्त महासागरीय तटीय पेटी (Pacific Coastal Belt):

यह विश्व का सबसे विस्तृत भूकम्प क्षेत्र है जहाँ पर सम्पूर्ण विश्व के 63% भूकम्प आते हैं । इस क्षेत्र में चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फिलीपींस, न्यूजीलैंड आदि आते हैं । यहाँ भूकम्प का सीधा संबंध प्लेटीय अभिसरण, भूपर्पटी के चट्‌टानी संस्तरों में भ्रंशन तथा ज्वालामुखी सक्रियता से है ।

ii. मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt):

इस पेटी में विश्व के 21% भूकम्प आते हैं । यह प्लेटीय अभिसरण का क्षेत्र है एवं इसमें आनेवाले अधिकांश भूकम्प संतुलनमूलक तथा भ्रंशमूलक हैं ।

यह पट्‌टी केप वर्डे से शुरू होकर अटलांटिक महासागर, भूमध्यसागर को पारकर आल्प्स, काकेशस, हिमालय जैसी नवीन पर्वतश्रेणियों से होते हुए दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और दक्षिणी पूर्वी द्वीपों में जाकर प्रशान्त महासागरीय पेटी में मिल जाती है । भारत का भूकम्प क्षेत्र इसी पेटी के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है ।

iii. मध्य अटलांटिक पेटी (Mid-Atlantic Belt):

यह मध्य अटलांटिक कटक में स्पिटबर्जन तथा आइसलैंड (उत्तर) से लेकर बोवेट द्वीप (दक्षिण) तक विस्तृत है । इनमें सर्वाधिक भूकम्प भूमध्यरेखा के आसपास पाये जाते हैं । सामान्यतः इस पेटी में कम तीव्रता के भूकम्प आते हैं एवं इनका संबंध प्लेटों के अपसरण व रूपांतरण भ्रंशों से है ।

iv. अन्य क्षेत्र (Other Regions):

इसमें पूर्वी अफ्रीका की लंबी भू-भ्रंश घाटी, अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र तथा हिन्द महासागर की भूकम्पीय पेटी सम्मिलित की जाती है ।

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