ऊर्जा संसाधन पर निबंध | Essay on Energy Resources in Hindi language.

ऊर्जा संसाधनों का विकास औद्योगिक विकास का सूचक होती है । हमारे देश में व्यापारिक स्तर पर प्रयोग किए जाने वाले तीन प्रमुख ऊर्जा संसाधन हैं- कोयला, खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम एवं जलविद्युत । इसके अतिरिक्त प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा, पवन चक्की, ज्वारीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, भूगर्भिक ऊर्जा आदि भी कुछ योगदान करते हैं ।

महत्वपूर्ण ऊर्जा संसाधनों का उत्पादन एवं वितरण प्रतिरूप निम्नवत है:

1. कोयला (Coal):

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यह औद्योगिक ईंधन के साथ-साथ विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत भी है । कार्बन की घटती गुणवत्ता के अनुसार कोयले के प्रमुख प्रकार एन्थ्रासाइट (80-95%), बिटुमिनस (55-65%), लिग्नाइट (45-55%), पीट (35-45%) एवं केनाल है ।

1 अप्रैल, 2011 को किए गए कोयले की स्थिति 1,200 मी. गहराई तक कोयले के आधार पर भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के अद्यतन आकलन में कोयले का भंडार 285.87 अरब टन है इसमें कोकिंग कोयला 33.47 अरब टन तथा नन कोकिंग कोयला 252.40 अरब टन है । देश में कोयले का समस्त उत्पादन का लगभग 77% भाग बिजली उत्पादन में खपत होता है ।

भारत में आधुनिक ढंग से कोयला निकालने का प्रथम प्रयास पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र में किया गया । देश में प्राचीन काल की गोंडवाना शैलों में कुल कोयले का 98% भाग पाया जाता है, शेष 2% तृतीयक या टर्शियरी युगीन चट्‌टानों में मिलता है ।

गोंडवाना युगीन चट्‌टानों का सबसे प्रमुख क्षेत्र पश्चिम बंगाल, झारखंड तथा ओडिशा राज्यों में विस्तृत है जहाँ से कुल उत्पादन का 76% कोयला प्राप्त होता है । मध्य प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश गोंडवाना क्षेत्र के अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं । गोंडवाना युगीन कोयला मुख्यतः बिटुमिनस प्रकार का हैं, जिसका उपयोग कोकिंग कोयला बनाकर देश के लौह-इस्पात के कारखानों में किया जाता है ।

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प्रायद्वीपीय भारत की नदी घाटियाँ कोयला के प्रमुख प्राप्ति स्थल है, जिनमें दामोदर नदी घाटी, सोन-महानदी-ब्राह्मणी नदी घाटी, वर्धा-गोदावरी-इंद्रावती नदी घाटी तथा कोयल-पंच-कान्हन नदी घाटी प्रमुख है । पश्चिम बंगाल का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर घाटी में है जो देश का सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है ।

इस क्षेत्र से देश का लगभग 35% कोयला प्राप्त होता है । झारखंड राज्य में झरिया, बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा, रामगढ़ आदि क्षेत्रों से उत्तम कोटि का बिटुमिनस कोयला निकाला जाता है ।

छत्तीसगढ़ का तातापानी-रामकोला कोयला क्षेत्र, ओडिशा का तलचर कोयला क्षेत्र (ब्राह्मणी नदी घाटी) व आंध्र प्रदेश का सिंगरेनी कोयला क्षेत्र (कृष्णा-गोदावरी नदी घाटी) भी प्रमुख कोयला उत्खनन क्षेत्र हैं ।

टर्शियरी युगीन कोयला के सबसे प्रमुख क्षेत्र मालूम (असोम), नेवेली (तमिलनाडु, लिग्नाइट कोयले के लिए प्रसिद्ध) तथा पलना (राजस्थान) हैं । भारत में लिग्नाइट का सर्वाधिक भंडार तमिलनाडु के मन्नारगुडी (19,500 मिलियन टन) में होने का अनुमान लगाया जाता है ।

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2. खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम (Mineral Oil or Petroleum):

तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) द्वारा 26 स्थलीय एवं सागरीय तेल संभावी बेसिनों का पता लगाया गया है । इसके अनुसार देश का कुल खनिज भंडार 1,750 लाख टन है । अन्तर्राष्ट्रीय भूगर्भिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में खनिज तेल का भंडार 620 करोड़ टन है । देश के तीन प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ से खनिज तेल प्राप्त किया जा रहा है ।

i. असम तेल क्षेत्र (Assam Oil Region):

यह देश का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन तेल क्षेत्र है । यहाँ के तेल क्षेत्रों में डिगबोई, नहरकटिया, हगरीजान-मोरान व सुरमा नदी घाटी प्रमुख है । हगरीजान-मोरान क्षेत्र में प्राकृतिक गैस भी पाई जाती है ।

ii. गुजरात तेल क्षेत्र (Gujarat Oil Region):

गुजरात राज्य में खम्भात तथा अंकलेश्वर महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र हैं । इसके अलावा नवगाँव, कोसाम्बा, ओल्पाद, ढीलका, मेहसाना, कलोल आदि स्थानों पर भी तेल क्षेत्र का विस्तार है । सौराष्ट्र में भावनगर से 45 किमी. दूर अलियाबेट द्वीप में भी तेल का पता लगाया जा चुका है ।

iii. मुम्बई हाई क्षेत्र (Mumbai High Field):

मुम्बई तट से 176 किमी. दूर मुम्बई हाई क्षेत्र भी एक महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र हैं जहाँ से 1976 ई. से ही तेल की प्राप्ति हो रही है । इस क्षेत्र के गंभीर सागरीय भाग से तेल निकालने के लिए जापान से ‘सागर सम्राट’ नामक जहाज मंगाया गया था । देश के कुल उत्पादन के 60% खनिज तेल की आपूर्ति इसी क्षेत्र से होती है ।

अपतटीय क्षेत्र खनन विकास एवं नियमन अधिनियम-1957 के अनुसार भारत के समुद्री क्षेत्र एवं महाद्वीपीय ढाल, अनन्य (EEZ) आर्थिक क्षेत्र एवं अन्य समुद्री क्षेत्रों में खनिज उत्खनन हेतु संपूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार के पास है ।

अपतटीय क्षेत्र के उत्पादित खनिज को राज्य के हिस्से में न जोड़कर अलग से अपतटीय क्षेत्र में दिखाया जाता है । अतः इसके उत्पादन को महाराष्ट्र के उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता है । कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस के उत्पादन में गुजरात का भारत में प्रथम स्थान है ।

iv. वर्तमान में कृष्णा-गोदावरी नदी घाटी में ‘रावा अपतट’ से भी खनिज तेल का उत्खनन किया जा रहा है । राजस्थान के ‘बाड़मेर’ में केयर्न इनर्जी एवं ओएनजीसी के द्वारा संयुक्त रूप से ‘मंगला’ तेल क्षेत्र से वाणिज्यिक स्तर पर तेल उत्पादन प्रारंभ हो गया है ।

यह विगत दो दशकों में देश में तेल की सबसे बड़ी उपतटीय (On Shore) खोज है । इसके अलावा ‘भाग्यम’ व ‘ऐश्वर्य’ में भी तेल के प्रचुर भण्डार हैं । इन तीनों क्षेत्रों में संयुक्त रूप से निकासी योग्य तेल के भण्डार एक अरब बैरल आकलित किए गए है । मंगला क्षेत्र से अगले दो वर्षों में कुल स्वदेशी उत्पादन का 20% प्राप्त होगा ।

खनिज तेल प्राप्ति के अन्य संभावित क्षेत्रों का पता लगाने तथा उसके भंडारों के सर्वेक्षण के लिए 1956 ई. में ‘तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम’ (O.N.G.C.) की स्थापना की गई थी जबकि 1959 ई. में असम एवं अरूणाचल प्रदेश के तेल क्षेत्रों एवं भंडारों का पता लगाने तथा उनके विकास हेतु ‘ऑयल इण्डिया लिमिटेड’ (O.I.L.) का गठन किया गया ।

ओएनजीसी ने पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक ड्रिल शिप ‘बेल्फोर्ड डॉल्फिन’ के द्वारा गहरे समुद्र में तेल की खोज के लिए ‘सागर समृद्धि परियोजना’ प्रारंभ किया है । यह समुद्र में 3,000 मी. की गहराई तक खुदाई करने में सक्षम है ।

ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (OVL) ने पूर्वी रूस के सखालीन द्वीप के तेल क्षेत्र में तेल एवं प्राकृतिक गैस के उत्पादन हेतु निवेश किया है जहाँ उसकी हिस्सेदारी 20% है । किसी भारतीय कंपनी का यह विदेश में सबसे बड़ा निवेश है । रूसी तेल क्षेत्र से पहला लदान अप्रैल, 2006 में प्रारंभ हो गया है ।

3. प्राकृतिक गैस (Natural Gases):

प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ-साथ एवं स्वतंत्र रूप से भी पाई जाती है । इसका प्रयोग उद्योगों में मशीनों को चलाने के लिए व विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जाता है । रासायनिक उर्वरकों के निर्माण में भी इसका उपयोग किया जाता है । इसे पेट्रो रसायन उद्योग में एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO3) के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है । इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन कहा जाता है । इसका परिवहन पाइप लाइन द्वारा कम लागत पर आसानी से दूर तक किया जा सकता है ।

भारत में प्राकृतिक गैस को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:

i. घरेलू प्राकृतिक गैस

ii. आयातित LNG ।

a. कंप्रेस्ट नेचुरल गैस (CNG):

प्राकृतिक गैस को वाहनों में प्रयोग करने के लिए 200-250 किग्रा. प्रति वर्ग सेमी. तक दबाया जाता है । इसलिए प्राकृतिक गैस के दबाए हुए रूप को कंप्रेस्ड नेचुरल गैस कहते हैं ।

b. LNG (Liquefied Natural Gas):

मुख्यतः मीथेन निर्मित प्राकृतिक गैस होती है, जिसे भंडारण एवं परिवहन की सुविधा के दृष्टि से तरल रूप में परिवर्तित किया जाता है । LNG रंगहीन, गंधहीन एवं गैर विषैली होती है ।

कृष्णा-गोदावरी बेसिन (के.जी. बेसिन):

आंध्र प्रदेश में यनम-काकीनाडा तट से 6 किमी. की दूरी एवं 5,061 मी. की गहराई पर प्राकृतिक गैस के नए भंडार मिले हैं । यह देश में प्राकृतिक गैस का अब तक का सबसे बड़ा भंडार है । निजी क्षेत्र की रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने बंगाल की खाड़ी में स्थित कृष्णा-गोदावरी बेसिन (के.जी. बेसिन) के डी-6 ब्लॉक में 1 अप्रैल, 2009 से प्राकृतिक गैस का उत्पादन शुरू कर दिया ।

रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) को यह क्षेत्र नइ तेल खोज लाइसेंसिंग नीति के पहले दौर में आबंटित हुआ था । डी-6 ब्लॉक जब अपनी पूरी क्षमता से गैस का उत्पादन करेगा तब देश में गैस का घरेलू उत्पादन दोगुना हो जाएगा तथा इससे देश में गैस की मौजूदा आवश्यकता की 90 प्रतिशत भाग की पूर्ति हो जाएगी ।

गहरे समुद्र से प्राप्त की गई इस गैस की काकीनाडा के समीप ‘गाडीमोडा’ गाँव में स्थापित केन्द्र से पाइप लाइन के माध्यम से देश के उर्वरक व विद्युत कम्पनियों गैस की आपूर्ति की जाएगी । नागार्जुन फर्टीलाइजर्स इसकी पहली ग्राहक व पहली ऐसी इकाई है जो बाजार आधारित कीमत पर मिलने वाले स्वच्छ ईंधन से चलेगी ।

विदेशों में खोज (Looking Abroad):

म्यांमार के श्वे क्षेत्र में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार का पता लगा है । इसका उत्पादन दिसंबर 2005 से प्रारंभ हो गया है । ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (OVL) एवं भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (GAIL) की भागीदारी इसमें क्रमशः 20% व 10% है । दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में तेल व गैस की खोज हेतु भारत की ONGC तथा वियतनाम की कंपनी पेट्रो वियतनाम के बीच समझौता हुआ है ।

भारत-रूस गैस हाइड्रेट सेन्टर (Indo-Russian Centre for Gas Hydrate):

समुद्र के तलहटी में लगभग 2 किमी. की गहराई पर गैस हाइड्रेट या क्लैथरैट (बर्फ में फंसी मीथेन गैस) होते हैं । विश्व में रूस एकमात्र देश है, जिसने साइबेरिया में गैस हाइडेरट से मीथेन गैस निकाला है ।

भारत भी चेन्नई में रूस के सहयोग से गैस हाइड्रेट सेन्टर की स्थापना कर रहा है । गहरे समुद्र में इसके दोहन हेतु दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने मिलकर ‘रोसब’ नामक रिमोट कंट्रोल यंत्र का विकास किया है ।

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