उद्यमिता पर निबंध (उद्यमवृत्ति) | Essay on Entrepreneurship in Hindi!
Here is an essay on ‘Entrepreneurship’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Entrepreneurship’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay Contents:
- उद्यमवृत्ति का परिचय (Introduction to Entrepreneurship)
- उद्यमवृत्ति का अर्थ (Meaning of Entrepreneurship)
- उद्यमवृत्ति का उद्देश्य (Objectives of Entrepreneurship)
- उद्यमी के गुण (Qualities of Entrepreneur)
- उद्यमवृत्ति की भूमिका (Role of Entrepreneurship)
- उद्यमवृत्ति के मार्ग में बाधाएं (Obstacles in the Growth of Entrepreneur)
- उद्यमवृत्ति को उत्साहित करने के उपाय (Measures to Encourage Entrepreneurship)
Essay # 1. उद्यमवृत्ति का
परिचय (Introduction to Entrepreneurship):
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किसी अल्प विकसित देश में उद्यमवृत्ति द्वारा एक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभायी जाती है । स्वतन्त्र विकास के दिन समाप्त हो गये जब सरकार केवल नियामक प्रकृति के कार्य करती थी जैसे कानून व्यवस्था को बनाये रखने का कार्य आदि । परन्तु अब स्थिति पूर्णतया बदल गई है ।
कोई ही ऐसा देश होगा जहां सरकार लोगों के आर्थिक जीवन में सक्रियतापूर्वक भाग नहीं ले रही है । लार्ड केन्ज़ का प्रसिद्ध कार्य स्पष्ट प्रमाण है, जो प्रमाणित करता है कि आर्थिक प्रणाली स्वचालित रूप में कार्य नहीं कर सकती और राज्य को अर्थव्यवस्था के सुचारू ढंग से काम-काज में अपना उत्तरदायित्व अवश्य निभाना चाहिये ।
वास्तव में, यह सार्वभौमिक रूप में स्वीकार किया गया है और लगभग सभी विकासशील देश इसे सामाजिक-आर्थिक स्थानान्तरण के मौलिक उपकरण के रूप में दृढ़ता से अपना रहे हैं । ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में निजी उद्यमवृत्ति प्राय: संकोची होती है तथा नये कार्य आरम्भ करने का जोखिम उठाने से परहेज करती है ।
इसलिये सरकार स्वयं उद्यमी होती है और परिस्थितियों अनुसार उचित कार्य करती है, परन्तु उन्नत पूंजीवादी देशों में, निजी उद्यमियों ने आर्थिक विकास में युक्तियुक्त भूमिका निभायी है । इसलिये, देश की आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था की ओर ध्यान न देते हुये उद्यमवृत्ति आर्थिक विकास का आवश्यक भाग है ।
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Essay # 2.
उद्यमवृत्ति का अर्थ (Meaning of Entrepreneurship):
सरल शब्दों में- उद्यमी एक आर्थिक नेता है जिसमें नई तकनीकों, नई वस्तुओं, नये साजो-सामान को एकत्रित करने के लिये नये स्रोतों, संयंत्र, मशीनरी, प्रबन्ध तथा श्रम शक्ति को व्यवस्थित करने के सफल आरम्भ के लिये अवसरों को पहचानने की योग्यता होती है ।
पिछले कुछ वर्षों से उद्यमी के कार्य में परिवर्तन आया है । कई बार उसे जोखिम और अनिश्चितता सहन करनी पड़ती है तथा कई बार वह उत्पादक साधनों के तालमेल के लिये कार्य करता है । शुम्पीटर उसे नव प्रवर्त्तक कहते हैं क्योंकि वह नव प्रवर्त्तन लाने में सक्रिय भूमिका निभाता है ।
येल ब्रोजन (Yale Brozen) के शब्दों में- जो इसे किसी भी व्यवसाय संगठन का केन्द्रीय स्तम्भ मानता है उनका कहना है कि उद्यमी के बिना उद्योग का पहिया एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता । उसके शब्दों में- “दीर्घ काल में निजी उद्यमवृत्ति आर्थिक विकास का एक अभिन्न अंग है ।”
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Essay # 3.
उद्यमवृत्ति का उद्देश्य (Objectives of Entrepreneurship):
ए. एन. बैनर्जी के अनुसार उद्यम के समिष्ट उद्देश्य नीचे दिये गये हैं:
1. औद्योगिक ढांचे में विशेष महत्व वाले अन्तरालों को भर कर तीव्र आर्थिक विकास का संवर्धन करना ।
2. अर्थव्यवस्था के संवर्धन के लिये मौलिक संरचनात्मक सुविधाएं उपलब्ध करवाना ।
3. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास प्राप्त करना, अल्प विकसित क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि की वृद्धि और विविधता द्वारा आर्थिक कार्यों का प्रसार जोकि पर्याप्त संरचना उपलब्ध करके और अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक साधनों के विकास और संरक्षण कार्यक्रमों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।
4. देश के विकास के लिये आवश्यक एवं मुक्ति संगत आर्थिक गतिविधि को आरम्भ करना, जिसे यदि निजी उपक्रमण पर छोड़ दिया जाता है तो राष्ट्रीय हितों को क्षति पहुंचेगी ।
5. सार्वजनिक बचत को गतिशील करके ठीक मार्गों पर प्रयोग करना ।
6. आर्थिक सत्ता के कुछ ही हाथों में केन्द्रीकरण को रोकना और समानता का नियम अपनाया ।
7. आय और धन की असमानताओं को कम करना और आर्थिक न्याय उपलब्ध करवाना ।
8. सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं की सहायता से दीर्घकालिक वित्त का सामाजिक नियन्त्रण और नियमन ।
9. संवेदनशील क्षेत्रों का नियन्त्रण अर्थात् दुर्लभ आयातित वस्तुओं का आबंटन, कृषि वस्तुओं का थोक व्यापार, विशेष खाद्य अनाजों के वितरण पर नियन्त्रण ।
10. विभिन्न तकनीकों में आत्म-निर्भरता प्राप्त करना जो मशीनरी, साजे-सामान और उपकरणों के विकास और इन वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये विदेशी अभिकरणों पर निर्भरता की समाप्ति द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।
11. उद्योग, खनन, यातायात और संचार सुविधाओं पर भारी निवेश द्वारा लाभप्रद रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाना ।
12. भुगतानों के सन्तुलन पर दबाव को कम करने के लिये निर्यात बढ़ाना और विदेशी विनिमय अर्जित करना ।
Essay # 4.
उद्यमी के गुण (Qualities of Entrepreneur):
आधुनिक विश्व में उद्यमी का शिक्षित, प्रशिक्षित और निपुण होना आवश्यक है अथवा यदि वह निरक्षर और अल्प-शिक्षित है तो उसमें उच्च व्यापारिक कुशाग्र बुद्धि का होना आवश्यक है जिसका अन्यों में अभाव है ।
मैककरोरी (Mc Crory) के अनुसार आधुनिक उद्यमी को निम्नलिखित गुणों का एक मॉडल होना चाहिये:
1. उसका ऊर्जावान, चतुर और सतर्क होना आवश्यक है ।
2. उसमें बदलती हुई परिस्थितियों के साथ सामंजस्यता प्राप्त करने का गुण अवश्य होना चाहिये ।
3. वह अनिश्चितताओं और व्यापार के विस्तार का जोखिम उठाने को तैयार हो ।
4. वह अपने उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये रुचि अवश्य रखे ।
5. वह प्रबन्ध और श्रमिकों के बीच तालमेल रखने के योग्य हो ।
6. उसमें कार्यों का पैमाना बढ़ाने, सम्बन्धित कार्य हाथ में लेने तथा अपने लाभों को पुन: निवेश करने के गुण अवश्य होने चाहिएं ।
Essay # 5.
उद्यमवृत्ति की भूमिका (Role of Entrepreneurship):
उद्यमवृत्ति अनेक व्यक्तियों में निहित है जैसे पूंजीपत्ति, प्रबन्धक तथा स्वयं उद्यमी में । कम्पनी के अंशधारक प्राय: पूंजीपति की भूमिका निभाते हैं । प्रबन्धकीय गतिविधियां अनेक व्यक्तियों द्वारा निभायी जाती हैं जो विभिन्न क्षेत्रों जैसे विक्रय, क्रय, उत्पादन तथा कार्मिक आदि के विशेषज्ञों होते हैं ।
उद्यमीय कार्य का उत्तरदायित्व निर्देशक मण्डल के अध्यक्ष द्वारा निभाया जाता है । वह परस्पर सहमति और उच्च अधिकारियों के परामर्श से निर्णय लेते हैं । इसी प्रकार अधिकांश विकासशील देशों में उद्यमवृत्ति गतिविधियों का नियन्त्रण और प्रबन्ध राज्य द्वारा किया जाता है । उन्हें सार्वजनिक उद्यम कहा जाता है ।
पूंजी और प्रबन्ध उपलब्ध करवाना पूर्णतया राज्य सरकार का दायित्व होता है । सभी उद्यमीय निर्णय कार्मिक विभाग द्वारा सत्ता दल की इच्छानुसार लिये जाते हैं ।
आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका शक्तिशाली और कुशल होती है । शुम्पीतर का विचार है कि उद्यमी एक सामान्य प्रबन्धकीय योग्यता वाला व्यक्ति नहीं बल्कि अनेक गुणों वाला व्यक्ति नहीं है बल्कि अनेक गुणों वाला व्यक्ति है जो कुछ नया करने की योग्यता रखता है । वास्तव में वह अप्रयुक्त तकनीकी ज्ञान का भण्डार है जिसका वह उचित उपयोग कर सकता है ।
फ्रिटज रैडलिच (Fritz Redlich) के अनुसार- “उद्यमी को पूंजीपति, प्रबन्धक और स्वयं उद्यमी में विभाजित किया जा सकता है । इस प्रकार उद्यमी कोष और अन्य साधन तथा योजनाएं उपलब्ध करवाता है, नव प्रवर्त्तन करता है और अन्तिम निर्णय लेता है । एक छोटे उद्यम में यह सभी कार्य उद्यमी द्वारा किये जाते हैं । उसकी सम्पत्ति उसकी संस्था से बंधी होती है जो व्यापारिक जोखिमों के लिये खुली होती है । वह कार्य में पूर्णतया भाग लेता है और प्राय: वास्तविक उत्पादन प्रक्रिया में भी निरन्तर भाग लेता है ।”
इसी प्रकार होसलिटज (Hoselitz) के शब्दों में- “एक छोटे औद्योगिक उद्यमी की मुख्य विशेषता इतनी अधिक साहसिक नहीं होती, न ही लाभ कमाने की प्रेरणा अधिक होती है परन्तु उसकी लाभ कमाने और अन्यों का नेतृत्व करने की क्षमता तथा नव प्रवर्त्तन लागू करने की उसकी प्रवृत्ति औद्योगिकीकरण के आरम्भिक सोपानों पर अधिक होती है ।”
आजकल जबकि अल्प विकसित देश स्वस्थ औद्योगिकीकरण के लिये उत्साही और दृढ़ नींव नहीं रखते, उद्यमवृति की भूमिका, निजी अथवा सार्वजनिक अर्थव्यवस्था के वृद्धि दर को बढ़ाने के लिये ओर भी आवश्यक हो जाती है । सार्वजनिक उद्यम की भूमिका का विस्तृत वर्णन अगले भाग में किया गया है ।
Essay # 6.
उद्यमवृत्ति के मार्ग में बाधाएं (Obstacles in the Growth of Entrepreneur):
विकासशील देशों में उद्यमवृत्ति के विकास में अनेक बाधाएं हैं ।
वे इस प्रकार हैं:
1. सामाजिक संरचना (Social Structure):
उद्यमवृत्ति के निर्विघ्न विकास में सामाजिक संरचना मुख्य बाधा है जो रचनात्मक सुविधाओं के अवसर नहीं उपलब्ध करवाती ।
2. प्राचीन और परम्परावादी दृष्टिकोण (Old and Traditional Attitude):
उद्यमवृत्ति प्राचीन और परम्परावादी दृष्टिकोण द्वारा हतोत्साहित की जाती है । लोग परम्परागत व्यापार और व्यवसाय में रुचि रखते हैं तथा नये व्यापार में उन्हें कोई रुचि नहीं होती । इसके अतिरिक्त उनका पदक्रम उनकी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि उनके लिये, कुनबे और रिश्ते-नातेदारी के आधार पर होता है ।
वास्तव में मूल्य प्रणाली आर्थिक प्रोत्साहनों के महत्व को न्यूनतम बनाती है । यह सत्य ही कहा गया है कि अनेक निर्धन देशों में सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली आर्थिक वृद्धि के अनुकूल नहीं है ।
3. समृद्ध और निर्धन के बीच खाई (Gulf between Rich and Poor):
उद्यमवृत्ति के मार्ग में एक अन्य अड़चन यह है कि अधिकांश विकसित देशों में समृद्ध और निर्धन के बीच एक खाई होती है । समाज दो भागों में बटा होता है अर्थात् सधन और निर्धन ।
जिन लोगों के पास पर्याप्त धन होता है, वह इन देशों की जनसंख्या का कठिनता से 2 या 3 प्रतिशत होते हैं और वे नये कार्यों में कोई जोखिम मोल नहीं लेते तथा अपने धन को अनुत्पादक साधनों में निवेश करते हैं जैसे आभूषण, निष्क्रिय समान का जमाव, विलासतापूर्ण उपभोग भूमि और सट्टेबाजी आदि फलत: उद्यमवृत्ति पिछड़ी हुई रहती है ।
4. संरचना का अभाव (Lack of Infrastructure):
संरचना का अभाव भी उद्यमवृत्ति के मार्ग में बाधा बनता है । इन सुविधाओं का अभाव अनिश्चितता के जोखिम को बढ़ाता है । यह सुपरिचित तथ्य है कि ऐसे अल्प विकसित देशों में संचार साधनों का अभाव होता है तथा यातायात, सस्ती और नियमित विद्युत पूर्ति, कच्चे माल की पर्याप्त पूर्ति, प्रशिक्षित एवं निपुण श्रम, सुविकसित पूंजी और मुद्रा बाजार की सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती ।
5. पिछड़ी हुई और पुरानी हो चुकी तकनीकें (Backward and Outdated Technology):
अल्प विकसित देशों में उद्यमवृत्ति का विकास पिछड़ी हुई तथा पुरानी हो चुकी तकनीक के कारण भी अवरुद्ध होता है । वास्तव में इससे प्रति इकाई उत्पादन कम होता है और उत्पादन की गुणवत्ता भी घटिया होती है । इस प्रकार के अधिकांश देश आयात की गई पूंजी गहन तकनीकों पर निर्भर करते हैं जो उनके कारक कोष के लिये अधिक उपयुक्त नहीं होतीं ।
6. अदक्ष प्रशासनिक व्यवस्था (Inefficient Administrative Set up):
अल्प विकसित देशों में प्रशासनिक व्यवस्था सहायक नहीं होती और उद्यमवृत्ति के निर्विघ्न विकास में अनावश्यक समस्याएं खड़ी करती है । होसलिटज़ ने कहा है कि अनेक आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक बाधाएं उन्हें नवीनतम और उत्पादन बढ़ाने वाली तकनीकों को छोड़ कर पुरानी हो चुकी तकनीकों को अपनाने के लिये बाध्य करती है ।
Essay # 7.
उद्यमवृत्ति को उत्साहित करने के उपाय (Measures to Encourage Entrepreneurship):
वास्तव में उद्यमवृत्ति एक श्रेणी के रूप में उभर कर सामने आई है जो किसी देश में विकास के प्रोत्साहन का आधार है । जैसे कि ऊपर व्याख्या की गई है, ऐसे देशों में कुछ कारक हैं जो उद्यमवृत्ति की वास्तविक भावना के मार्ग में बाधा है । परन्तु उद्यमवृत्ति की अनिवार्य भूमिका को ध्यान में रखते हुये ऐसी परिस्थितियों की रचना की जाये जो उद्यमवृत्ति के अनुकूल हों ।
उद्यमवृत्ति को उत्साहित करने वाले पग निम्नलिखित हैं:
1. उचित वातावरण (Suitable Climate):
सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है उद्यमवृत्ति के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करना ।
”ऐसे वातावरण की रचना जो एक और तो ऐसी सामाजिक संस्थाओं की स्थापना करती है जो स्वतन्त्र व्यक्तिगत उद्यमों के अभ्यास को निष्पक्ष दृष्टि से सम्भव बनाती है और दूसरी और व्यक्तित्वों की परिपक्वता और विकास पर ध्यान देता है जिनका प्रभुत्वपूर्ण अनुकूलन उत्पादकता की दिशा, कार्यशैली और रचनात्मक सम्बद्धता है ।” –होसलिटज
इसलिये अनुकूल वातावरण उद्यमवृत्ति के विकास में बहुत सहायक है ।
2. तर्कशीलता (Rationalization):
उद्यमवृत्ति के प्रोत्साहन के लिये आवश्यक है कि संरचना को तर्कसंगत बनाया जाये । इसके लिये वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रबन्धकीय, प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थाओं की स्थापना की आवश्यकता है ।
3. सामाजिक ढांचे का संशोधन (Modification of Social Set up):
सफल उद्यमवृत्ति के लिये आवश्यक है कि सामाजिक ढांचे को संशोधित किया जाये । जब लोग शिक्षित और सभ्य होंगे तो वे सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन लाने के प्रयत्न करेंगे ।
4. साख सुविधाएं (Credit Facilities):
आधुनिक उद्यमवृत्ति एक खर्चीला मामला है जिसके लिये अनन्त साख सुविधाओं की आवश्यकता होती है, परन्तु अल्प विकसित देशों में ऐसी साख सुविधाओं का सदा अभाव रहता है ।
इसलिये वित्तीय संस्थाओं की स्थापना होनी चाहियें जो बचतें एकत्रित करने में सहायक हों तथा इन्हें उद्यमीय गतिविधियों के लिए दिया जा सके । इसके अतिरिक्त बचत बैंक, निवेश बैंक, वाणिज्यात्मक बैंक और ऐसी अन्य संस्थाएं स्थापित की जानी चाहिये जिनसे उद्यमवृत्ति की वृद्धि उत्साहित होगी ।
5. उद्यमवृत्ति के केन्द्र की स्थापना (Establishment of Entrepreneurship Cell):
उद्यमवृत्ति को उत्साहित करने की एक अन्य विधि है कर्मचारियों को उद्यमी के रूप में प्रशिक्षित करने के लिये उद्यमवृत्ति केन्द्रों की व्यवस्था की जाये ।
6. संरचना की व्यवस्था (Provision for Infrastructure):
उद्यमवृत्ति के सफल काम-काज के लिये संरचना की व्यवस्था आवश्यक है जिसमें कच्चे माल की पूर्ति, बाजार की विस्तृत सीमा और वित्त सुविधाएं आदि सम्मिलित हैं ।