पर्यावरण और पर्यटन पर निबंध | Here is an essay on ‘Environment and Tourism’ for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Environment and Tourism’ especially written for school and college students in Hindi language.

पर्यावरण और पर्यटन पर निबंध | Essay on Environment and Tourism


Essay Contents:

  1. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessment)
  2. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal)
  3. भारत में टिकाऊ विकास के प्रयास (Efforts for Sustainable Development in India)
  4. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन (Environment and Climate Change)
  5. नेशनल ग्रीन अकाउंटिग सिस्टम (National Green Accounting System)
  6. ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission)
  7. देश का पहला अन्तर्राज्यीय जैव-विविधता कॉरिडोर (Country’s First Interstate Biodiversity Corridor)
  8. वायु गुणवत्ता मौसम पूर्वानुमान प्रणाली ‘सफर’ (System of Air Quality Weather Forecasting and Research)
  9. सिस्टम ऑफ राइस इन्टेन्सीफिकेशन (SRI) (System of Rice Intensification)
  10. आर्कटिक में भारतीय अभियान (Indian Expedition to Arctic)
  11. विश्व में पहला हिमनद प्राधिकरण (The World’s First Glacier Authority)
  12. पारिस्थितिकी पर्यटन (Ecotourism)
  13. नई राष्ट्रीय पर्यटन नीति-2015 (The New National Tourism Policy)

Essay # 1. पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessment):

भारत में पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन कार्यक्रम 1978 ई. में शुरू किया गया । जनवरी 1994 में जारी अधिसूचना के जरिए औद्योगिक, उत्खनन, सिंचाई, परिवहन, पर्यटन, संचार आदि विभिन्न क्षेत्रों की विकास परियोजनाओं की 29 श्रेणियों के लिए इस कार्यक्रम को अनिवार्य बना दिया गया, जो वर्तमान समय में बढ़कर 39 हो गई है ।

1997 ई. में इस अधिसूचना में संशोधन कर जन-सुनवाई को इस आकलन प्रक्रिया का अनिवार्य अंग बना दिया गया । पर्यावरण संबंधी मंजूरी मंत्रालय में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन एजेंसी द्वारा की जाती है ।

ADVERTISEMENTS:

किसी भी क्षमता के बिजली संयंत्रों के सह-उत्पादन के मामलों में यह अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया । पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए फरवरी 1999 से वन और पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति संबंधी जानकारी को वेबसाईट पर उपलब्ध कराया जाता है ।

परियोजनाओं की प्रकृति के अनुसार कुछ सुरक्षा उपायों की भी संस्तुति की जाती है । व्यवस्थाओं की निगरानी और समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए मंत्रालय ने शिलांग, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, बंगलुरु, लखनऊ और भोपाल में 6 क्षेत्रीय केन्द्र स्थापित किए गए हैं । अधिसूचना में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं ।

भारत में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन हेतु दो प्रमुख सिद्धांत व प्रविधियाँ विकसित की गई हैं, जिन्हें U.N.E.P. व U.N.D.P. भी मान्यता देती हैं ।

ये प्रविधियाँ हैं:

ADVERTISEMENTS:

(1) आकस्मिक मूल्यांकन विधि

(2) यात्रा लागत विधि ।

इन दोनों में पर्यावरणीय निम्नीकरण से उत्पन्न हानि को डॉलर में मापा जाता है ।

आकस्मिक मूल्यांकन विधि के अंतर्गत पर्यावरणीय ह्रास से उत्पन्न पर्यावरणीय विपदाओं से होने वाली हानि का मूल्यांकन किया जाता है । यह कार्य राज्य सरकारों के पर्यावरण मंत्रालय व राज्य प्रदूषण बोर्डों के द्वारा किया जाता है । इसमें मुख्य रूप से भू-स्खलन एवं प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली किसी प्रकार से की आकस्मिक बीमारी से उत्पन्न हानि पर विचार किया जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

यात्रा लागत विधि में आर्थिक क्रिया कलापों एवं विकास कार्यों को उसके लागत-प्रभाविता (Cost-Effectivity) के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है । इसमें यह विश्लेषण किया जाता है कि किसी विकास कार्य से किस प्रकार की पर्यावरणीय हानि की आशंका हो सकती है ।

इस प्रकार वास्तविक लाभ को सिर्फ आर्थिक परिप्रेक्ष्य में ही नहीं वरन् पर्यावरणीय परिप्रेक्ष्य में भी विश्लेषित किया जाता है एवं इसके लिए पर्यावरण व वन मंत्रालय तथा विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय मूल्यांकन के कार्य करते हैं । 1999 ई. से 30 करोड़ से अधिक लागत के सभी विकास कार्यों के लिए पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति आवश्यक मानी गई है ।

पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के लिए पाँच प्रमुख कारकों पर ध्यान दिया जाता है । इनमें वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, मृदा-प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण व वनीय ह्रास से उत्पन्न होने वाली हानियों का मूल्यांकन किया जाता है ।

इन सभी कारकों के आधार पर यह अध्ययन किया गया है, कि भारत में प्रत्येक वर्ष पर्यावरणीय निम्नीकरण के परिणामस्वरूप 10 से 13.8 बिलियन डॉलर की हानि होती है, जो हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.5 से 6% भाग है । यह भारत के स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर होने वाले खर्च का दो गुना है ।

भारत में पर्यावरणीय निम्नीकरण के छः प्रमुख क्षेत्र हैं:

(1) हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र व पूर्वोत्तर राज्य

(2) हरित क्रांति का क्षेत्र

(3) तटीय क्षेत्र

(4) पश्चिमी घाट प्रदेश

(5) बंजर भूमि क्षेत्र

(6) महानगरीय व औद्योगिक क्षेत्र ।

इन क्षेत्रों की विभिन्न समस्याओं को पहचानते हुए इनके समाधान हेतु विविध पर्यावरणीय प्रबंध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इन्हें पाँच उपागमों में बाँटकर देखा जा सकता है जो निम्न हैं:

1. निषेधात्मक (Prohibitive):

इसके अंतर्गत वन ह्रास पर रोक, झूम खेती पर रोक (1976), वायु प्रदूषण निवारण कानून (1972), जल-प्रदूषण निवारण कानून (1982), पर्यावरण-संरक्षण अधिनियम (1986), वन-कानून (1988) आते हैं, जो कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में असंतुलित व्यवहार के लिए निषेधात्मक उपाय करते हैं ।

2. संरक्षणात्मक (Protective):

इसके अंतर्गत समस्त जीव-जंतुओं व पौध प्रजातियों के संरक्षण का प्रयास किया जाता है । इसके लिए जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र, बाघ परियोजनाएँ, राष्ट्रीय पार्क, वन्य जीव अभ्यारण्य आदि स्थापित किए गए हैं ।

3. पुनर्विकास (Redevelopment):

इसके अंतर्गत राष्ट्रीय वानिकी, क्षतिपूर्ति वानिकी, सामाजिक वानिकी आदि आते हैं । बंजर-भूमि विकास, मृदा-संरक्षण, जैविक-खादों का प्रयोग, फसल-चक्र के नियम का अनुपालन, कृषि जलवायविक प्रदेश का निर्धारण एवं उसके आधार पर कृषि की पद्धतियों का अपनाना आदि उपाय आते हैं ।

4. अनुसंधान (Research):

इस हेतु विभिन्न अनुसंस्थान स्थापित किए गए हैं । इनमें Central Arid Zone Research Institute (CAZRI) जोधपुर, Indira Gandhi National Forest Academy देहरादून, Wood Genetic Research Institute कोयम्बटूर, National Deciduous Forest Institute जबलपुर आदि प्रमुख संस्थान स्थापित किए गए हैं ।

विश्वविद्यालयों में पर्यावरण संबंधी शिक्षा व अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है । दूर-संवेदी उपग्रहों एवं भौगोलिक सूचनातंत्र (G.I.S.) व पर्यावरणीय सूचनातंत्र (E.I.S.) के माध्यम से पर्यावरण-ह्रास पर निगरानी रखी जा रही है ।

5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International Cooperation):

भारत, विश्व में पर्यावरण से संबंधित सभी सम्मेलनों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है एवं सभी समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, सिवाय NPT व CTBT के । सैद्धांतिक रूप से भारत इन समझौतों पर भी हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है बशर्ते इसमें से भेद-भाव परक प्रावधान हटा लिए जाएँ ।

वस्तुतः CTBT व NPT में परमाणु संपन्न देश और गैर-परमाणु देशों में अधिकार संबंधी भेद-भाव है, जिसका भारत विरोधी रहा है । आमतौर पर भारत ने पर्यावरणीय सम्मेलनों के विभिन्न प्रस्तावों का पालन किया है । उदाहरण के लिए 1972 ई. के स्टॉकहोम सम्मेलन के पश्चात् भारत में वायु-प्रदूषण निवारक कानून लागू किए गए ।

वन्य जीवन अधिनियम पारित किया गया । टाइगर प्रोजेक्ट शुरू किया गया । जैव-विविधता के सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ किया गया । इसी प्रकार भारत ने मांट्रियल प्रोटोकॉल, रियो-डि-जेनेरियो में पारित एजेंडा-21, क्योटो प्रोटोकॉल आदि सभी के प्रति सहमति व्यक्त करते हुए इसके प्रावधानों के अनुसार कार्यक्रम निर्धारित किए गए हैं ।

1988 ई. में बेलग्रेड में भारत ने Planet Protection Fund की दिशा में भी अग्रणी कदम उठाये थे ।

इस प्रकार भारत में पर्यावरणीय प्रबंधन हेतु बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं । भारत उन देशों में आता है जहाँ पर्यावरण के संबंध में पर्याप्त जागरूकता आई है एवं विकास कार्यों के क्रम में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन पर बल दिया जाता है ।

परंतु भारत में पर्यावरणीय प्रबंधन की दिशा में कुछ समस्याएँ और बाधाएँ भी हैं । पूँजी व तकनीक की कमी के कारण पर्यावरणीय प्रबंधन के कार्यों में बाधाएँ आती हैं ।

अतः विकसित देशों को चाहिए कि इस संबंध में भारत को सहयोग उपलब्ध कराए । साथ ही सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन, गरीबी, जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि आदि की समस्याओं के समाधान के बिना भारत में पर्यावरणीय प्रबंधन का सही कार्यान्वयन नहीं हो सकता ।

अतः इस संबंध में दीर्घकालिक नीति बनाने की आवश्यकता है एवं जनभागीदारी व जनजागरूकता बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए जाने की आवश्यकता है ।


Essay # 2. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal):

पर्यावरण संबंधी कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन व पर्यावरण के अधिकारों की सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal-NGT) को दिल्ली में 19 अक्टूबर, 2010 को स्थापित कर दिया गया ।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम व जैव विविधता अधिनियम सहित जल एवं वायु प्रदूषण के बचाव के लिए बनाए गए सभी पर्यावरणीय कानूनों से संबंधित अपीलें इस न्यायाधिकरण में की जा सकेंगी । विभिन्न एजेन्सियों के बीच पर्यावरण संबंधी विवादों का निपटारा भी इस न्यायाधिकरण में होगा ।

मंत्रालय और पर्यावरण मंत्री के विरुद्ध वाद भी इसमें दायर हो सकता है । इससे अदालतों में मुकदमों से लंबित होने से मुक्ति मिलेगी । केन्द्र सरकार का लक्ष्य एक राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (National Environment Authority-NAE) के गठन का है जो पर्यावरण संबंधी कानूनों के अनुपालन की निगरानी का कार्य करेगा ।


Essay # 3. भारत में टिकाऊ विकास के प्रयास (Efforts for Sustainable Development in India):

आर्थिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा के मध्य एक वांछित संतुलन बनाए रखना ही निर्वहनीय या टिकाऊ विकास है । इसमें भावी पीढ़ियों के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमताओं से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए । भारत में टिकाऊ विकास के अंतर्गत विभिन्न कार्य हो रहे हैं ।

इन्हें निम्न शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है:

1. वनारोपण व सामाजिक वानिकी

2. मृदा संरक्षण व परती भूमि विकास कार्यक्रम

3. कृषि जलवायुविक प्रादेशीकरण

4. वाटर शेड प्रबंधन

5. फसल चक्र के नियम का पालन

6. शुष्क कृषि विकास

इसके अलावा जीव-मंडल विकास कार्यक्रम राष्ट्रीय अभ्यारण्य, जलग्रस्त भूमि संरक्षण, मैंग्रोव संरक्षण, तटीय पारिस्थितिकी एवं मलिन बस्तियों में सुधार, प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के कानून आदि को भी शाश्वत विकास की दिशा में भारत में हो रहे प्रयासों के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है ।

वस्तुतः भारत उन विकासशील देशो में आता है, जहाँ पर्यावरण के संबध में व्यापक जागृति आई है एवं टिकाऊ विकास हेतु सराहनीय प्रयास किए गए हैं ।


Essay # 4. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन (Environment and Climate Change):

2008 में जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना प्रारंभ हुई थी । इसमें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने तथा विकास के पथ की पारिस्थितिकीय टिकाऊपन बढ़ाने की कार्यनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है । इसके अनुसरण में आठ राष्ट्रीय मिशनों की शुरूआत की जा रही है ।

जिनमें निम्न शामिल हैं:

a. राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन

b. ऊर्जा क्षमता बढ़ाने का मिशन

c. रहन-सहन के लिए मिशन

d. जल संरक्षण मिशन

e. हिमालय के लिए मिशन

f. ग्रीन इंडिया मिशन

g. टिकाऊ कृषि मिशन

h. ज्ञान का रणनीतिक मिशन

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जलवायु परिवर्तन पर एक्शन प्लान लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है । महाराष्ट्र के पुणे में जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के लिए समर्पित केन्द्र की स्थापना की गई है ।


Essay # 5. नेशनल ग्रीन अकाउंटिग सिस्टम (National Green Accounting System):

मई, 2011 में भारत सरकार द्वारा की गई घोषणा के अनुसार आर्थिक वृद्धि एवं विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन हेतु हाल ही में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया ।

यह विशेषज्ञ समूह ‘राष्ट्रीय हरित लेखा प्रणाली’ के लिए एक खाका तैयार करेंगे, जिसके तहत् वर्ष 2015 तक आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया जा सकेगा । पर्यावरणीय मूल्यों पर गौर करने के बाद यह विशेषज्ञ समूह वर्ष 2015 तक ‘सकल घरेलू उत्पाद (GDP)’ का विवरण प्रस्तुत करेगा ।


Essay # 6. ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission):

20 फरवरी, 2014 को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में ‘राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन’ को मंजूरी प्रदान की गई । इसका लक्ष्य भारत के घटते वन क्षेत्र का संरक्षण, पुनर्वनीकरण और वन क्षेत्र में वृद्धि करना है । राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन की क्रियान्वयन अवधि 12वीं एवं 13वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 वर्ष की होगी । संपूर्ण मिशन की लागत लगभग 46 हजार करोड़ रुपए है ।

संपूर्ण योजनावधि के दौरान चारों राज्यों (मणिपुर, मिजोरम झारखण्ड एवं केरल) में 1,08,335 हेक्टयेर कुल वन एवं गैर-वन क्षेत्र के लिए जाएंगे । इसमें से 81,939 हेक्टेयर वनों के घनत्व को बेहतर बनाने के लिए उपयोग किया जाएगा । 9 अक्टूबर, 2015 को देश के चार राज्यों को स्वीकृति प्रदान की गई ।


Essay # 7. देश का पहला अन्तर्राज्यीय जैव-विविधता कॉरिडोर (Country’s First Interstate Biodiversity Corridor):

प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर शिवालिक पर्वत शृंखला क्षेत्र में स्थित प्राकृतिक वासों, वनस्पतियों एवं जीवों के संरक्षण के उद्देश्य से यहाँ देश का पहला अंतर्राज्यीय जैव-विविधता कॉरिडोर स्थापित करने की घोषणा 6 सितम्बर 2010 को की गई ।

वैसे तो नीलगिरि, अचनकमार-अमरकंटक तथा अगस्त्यमलाई जीवमण्डल अभ्यारण्य भी एकाधिक राज्यों में स्थित है परंतु इन अभ्यारण्यों का प्रबंधन सम्मिलित राज्यों के मध्य बँटा हुआ है । यह अपनी तरह की पहली परियोजना होगी जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तराखंड राज्य सम्मिलित होंगे ।


Essay # 8. वायु गुणवत्ता मौसम पूर्वानुमान प्रणाली ‘सफर’ (System of Air Quality Weather Forecasting and Research):

सफर (SAFAR: System of Air Quality Weather Forecasting And Research) प्रथम भारतीय वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली है, जिसका विकास भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के साथ मिलकर किया गया है ।

इस प्रणाली के एंड्रायड मोबाइल आधारित एप्लीकेशन (App) ‘सफर-एयर’ को 17 फरवरी 2015 को राष्ट्र को समर्पित किया गया । ‘सफर-एयर’ एप्लीकेशन से स्थानीय वायु गुणवत्ता सम्बंधी सूचनाओं के साथ-साथ भावी 3 दिनों की वायु गुणवत्ता का पूर्वानुमान भी प्राप्त किया जा सकता है ।

यह मोबाइल एप कलर कोडेड सिस्टम (जिसमें अच्छे से खराब तक 6 वायु गुणवत्ता स्तरों के लिए पृथक रंग निर्धारित हैं) के माध्यम से वायु गुणवता सूचनाएँ उपलब्ध कराएगा ।

ऑयलजैपर:

भारत के ‘द इनर्जी रिसर्च इंस्टीट्‌यूट’ (TERI) द्वारा विकसित ऑयलजैपर एक विशिष्ट बैक्टीरिया है, जो समुद्री तट पर ऑयल टैंकरों से तेल रिसने पर उसके जैव उपचार में सहायक होता है । येह बैक्टीरिया 80C से 40C तापमान के बीच पूरी तरह क्रियाशील रहता है एवं तेल के चारों परतों को नष्ट कर देता है ।

ऑयलजैपर एक पाउडर की तरह होता है, जिसे तेल रिसाव वाले परत पर छिड़का जाता है । तीन-चार महीने के अंदर बैक्टीरिया पूरे तेल को खा जाती है । इस प्रकार समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करने व सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में इसकी महती भूमिका हो सकती है । यह तकनीक अन्य विकल्पों की तुलना में 40% सस्ता है ।


Essay # 9. सिस्टम ऑफ राइस इन्टेन्सीफिकेशन (SRI) (System of Rice Intensification):

W.W.F. ने धान की खेतों से निकलने वाले नुकसानदेह मिथेन गैस को कम करने हेतु धान की कृषि का ऐसा तरीका निकला है, जिससे 40% पानी भी बचेगा तथा 30% ज्यादा फसल भी उत्पादित होगी । टिकाऊ कृषि के विकास के दिशा में किए जा रहे इस प्रयास में रासायनिक खाद के बदले कम्पोस्ट और जैविक खाद उपयोग पर बल दिया जाएगा ।

कम पानी वाले और पोषक तत्वों वाली नर्सरी तैयार करना व नन्हें पौधों के बीच पर्याप्त जगह छोड़ना इस पद्धति में शामिल हैं । धान की खेती के इस तरीके को सिस्टम ऑफ राइस इन्टेन्सीफिकेशन (SRI) कहा गया है । ऐसा अनुमान है कि SRI तकनीक के द्वारा हम बेहतर खाद्य सुरक्षा हेतु चावल उत्पादन में गत्यात्मकता ला सकेंगे एवं सतत् कृषि विकास के दिशा में भी बढ़ पाएंगे ।


Essay # 10. आर्कटिक में भारतीय अभियान(Indian Expedition to Arctic):

भारत का प्रथम आर्कटिक अभियान ‘हिमाद्रि’ अगस्त 2007 को नार्वे के स्वालबर्ड के स्पिटबर्जन में भेजा गया । उत्तरी ध्रुव से 1200 किलोमीटर दूर ‘नि-एलीसंड’ में हिमादि अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया है ।

नार्वे के स्पिटबर्जन के पश्चिमी तरफ नि-एलींसड ही सूदूर उत्तर में ऐसा स्थान है, जहाँ मनुष्य रह मकते हैं । आर्कटिक क्षेत्र में मुख्यतः जलवायु परिवर्तन, पुराजलवायु हिमनद विज्ञान, भू-विज्ञान, समुद्री जीव विज्ञान और सूक्ष्म जीव विज्ञान के क्षेत्रों में अनुसंधान किया जाएगा ।


Essay # 11. विश्व में पहला हिमनद प्राधिकरण (The World’s First Glacier Authority):

उत्तराखण्ड के हिमनदों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने अनूठी पहल की है । सरकार ने इनके संरक्षण के लिए हिमनद प्राधिकरण बनाने का निर्णय 14 जून, 2010 को लिया है ।

हिमनद प्राधिकरण बनाने वाला उत्तराखंड विश्व का पहला राज्य होगा । सूत्रों के अनुसार इस प्रस्तावित प्राधिकरण का नाम ‘स्नो एंड ग्लेशियर अथॉरिटी’ रखा गया है । राज्य के मुख्यमंत्री प्राधिकरण के अध्यक्ष होंगे । प्राधिकरण करीब 1400 छोटे बड़े हिमनदों में जलवायु परिवर्तन से आए बदलाव का अध्ययन करेगा ।


Essay # 12. पारिस्थितिकी पर्यटन (Ecotourism):

अपने स्वयं के मूल स्थान के बाहर की यात्रा, जो व्यक्ति एक वर्ष से कम अवधि के लिए अवकाश या अन्य उद्देश्य के लिए करता है । उस व्यक्ति के क्रियाकलापों को पर्यटन की संज्ञा दी गई है । यात्रा भ्रमण के दौरान प्रकृति-प्रदत जिन जैविक व अजैविक वस्तुओं तथा पर्यावरण का आनन्द पारिस्थितिकी-प्रणाली को प्रभावित किए बिना लिया जा सकता है, उसे हही पारिस्थिातिकी-पर्यटन कहा जाता है ।

प्रमुख आर्कषण के रूप में प्राकृतिक पर्यावरण, पर्यावरणीय रुचि के दर्शकों की पर्याप्त संख्या, पारिस्थितिकी को प्रभावित न करने वाले क्रियाकलाप तथा पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने के लिए स्थानीय समुदाय की भागीदारी इसके प्रमुख तत्व हैं । संरक्षण सत्ता तथा जैव विविधता पर्यावरण पर्यटन के तीन अंतर संबंधित पहलू हैं ।


Essay # 13. नई राष्ट्रीय पर्यटन नीति-2015 (The New National Tourism Policy):

1 मई, 2015 को केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2002 की राष्ट्रीय पर्यटन नीति के स्थान पर प्रस्तावित ‘नई राष्ट्रीय पर्यटन नीति-2015’ का मसौदा जारी किया गया । वर्तमान में वैश्विक पर्यटक आगमन में भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.68 प्रतिशत है, जिसे वर्ष 2020 तक बढ़ाकर 1 प्रतिशत और 2025 तक 2 प्रतिशत के स्तर पर लाने का लक्ष्य प्रस्तावित नीति में रखा गया है ।

राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2002 पर पुनः ध्यान देते हुए ठोस ‘कार्य योजना’ के साथ सतत् एवं उत्तरदायित्वपूर्ण रूप से पर्यटन के विकास पर बल दिया गया था । इसमें एक ‘राष्ट्रीय पर्यटन सलाहकार बोर्ड’ के गठन का प्रस्ताव किया गया है ।


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