मनुष्य और पर्यावरण पर निबंध | Essay on Man and the Environment in Hindi!
Essay # 1. मानव तथा पर्यावरण का परिचय (Introduction to Man and the Environment):
भूगोल में प्रायः मानव तथा पर्यावरण के पारस्परिक संबंध का अध्ययन किया जाता है । अमेरिका की प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता मिस सेम्पल के अनुसार ‘मानव अपने पर्यावरण की उत्पत्ति है’ ‘Man is the Product of Environment’ । सन् 1859 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में संघर्ष करके वर्तमान स्वरूप में पहुँचा है ।
भूगोल में डार्विन के संघर्ष सिद्धान्त का सबसे पहले एफ. रेटजिल (F.Ratzel) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ऐंथरोपोज्योग्राफी (Anthropogeography) में किया था । रेटजिल महोदय ने मानव एवं पर्यावरण के संबंध में निश्चयवाद विचारधारा (Determinism) को जन्म दिया । निश्चयवाद विचारधारा के अनुसार मानव एवं पारस्परिक संबंध में पर्यावरण एवं प्रकृति (Nature) सक्रिय है और मानव निष्क्रिय (Passive) अर्थात् मानव की उन्नति, अवनति एवं विकास की दर पर्यावरण पर निर्भर रहती है । दूसरे शब्दों में, मानव के भाग्य का निर्धारण प्रकृति एवं पर्यावरण करता है ।
निश्चयवाद विचारधारा की मुख्यतः दो कारणों से आलोचना हुई । रेटजिल महोदय के अनुसार यदि दो देशों की अवस्थिति समान हो तो उन लोगों की जीवनशैली, इतिहास तथा संस्कृति भी समान होगी । वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि जीवन-शैली पर संस्कृति एवं सभ्यता का भी भारी प्रभाव पडता है ।
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दूसरे, मानव निष्क्रिय नहीं वह अपने कर्म से अपने भाग्य का निर्माण करता है । मानव जीवन को पर्यावरण प्रभावित करता है और, मानव भी पर्यावरण को प्रभावित करता है । इन्हीं आलोचनाओं के कारण निश्चयवाद विचारधारा का खंडन किया गया ।
निश्चयवाद की आलोचना विशेष रूप से फ्रांस के भूगोलवेत्ताओं ने की । निश्चयवाद के आलोचक विडाल डी लाब्लाश (Vidal de Lablache) ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया जिसको संभववाद (Possibilism) के नाम से संबोधित किया जाता है । संभववाद विचारधारा के अनुसार मानव अपने संसाधनों का उपयोग करने में स्वतंत्र है । मानव अपने व्यवहार में स्वतंत्र है । पर्यावरण, संसाधनों के उपयोग की बहुत-सी संभावनाएँ प्रस्तुत करता है और मानव अपनी संस्कृति एवं रीति-रिवाज के अनुसार अपने संसाधनों (पर्यावरण) के बारे में निर्णय लेता है । मानव सक्रिय है जो अपने भाग्य का स्वयं निर्धारण करता है ।
विडाल डी लाब्लाश महोदय संभववाद के प्रमुख प्रचारक थे । उन्होंने जीवन-शैली (Genres de vie) शब्दावली का उपयोग किया । उनके अनुसार आचार-व्यवहार (Attitude), धर्म-विश्वास (Religion), आदत (Habits), मूल्य (Value) इत्यादि का मानव के व्यवहार एवं संसाधनों के उपयोग पर भारी प्रभाव पड़ता है । यही अवधारणा संभववाद की आधारशिला है ।
यद्यपि संभववाद फ्रांस में काफी लोकप्रिय विचारधारा रही, परंतु इस विचारधारा की भारी आलोचना भी हुई । संभववाद के आलोचकों के अनुसार मानव कभी भी अपने भौतिक पर्यावरण से पूर्णरूप से मुक्ति नहीं पा सकता । मानव प्रकृति के विरुद्ध अपने संसाधनों का उपयोग नहीं कर सकता और यदि मानव ऐसा करता है तो उसको भारी आर्थिक मूल्य चुकाना पडेगा ।
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इसके अतिरिक्त जहाँ तक संभावनाओं (Possibilities) का प्रश्न है वह विश्व के कुछ प्रदेशों तक संभावित है । आलोचको के अनुसार विषुवतरेखीय प्रदेशों, टुंड्रा (Tundra) मरुस्थलों (Deserts) तथा ऊँचे पर्वतीय प्रदेशों में पर्यावरण की कठोरता के कारण संभावनाएँ बहुत सीमित हैं । वास्तव में मानव भौतिक पर्यावरण के विरुद्ध कुछ भी करने में असमर्थ है ।
निश्चयवाद (Determinism) तथा संभववाद (Possibilism) के अतिरिक्त, मानव एवं पारस्परिक संबंध की विवेचना के लिए एक तीसरी विचारधारा सांस्कृतिक निश्चयवाद (Cultural Determinism) के रूप में प्रचलित हुई । सांस्कृतिक निश्चयवाद में मानव की सक्रियता पर बल दिया गया है ।
उनके अनुसार मानव स्वयं अपना इतिहास रचता है । ‘हमारी संस्कृति हमारी वर्तमान परिस्थितियों व आर्थिक उन्नति को निर्धारित करती है । इस विचारधारा को संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A) में विशेष रूप से लोकप्रियता प्राप्त हुई । सांस्कृतिक निश्चयवाद के जनक प्रो. कार्ल ओ. सावर (Carl O. Sauer) थे ।
प्रो. सावर ने संस्कृति के आधार पर विश्व का सांस्कृतिक प्रादेशीकरण किया । मानव अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपनी टेस्नोलॉजी (Technology) का विकास करता तथा अपने संसाधनों का उपयोग करता है । जैसे-जैसे समय गुजरता है, टेक्नोलॉजी में सुधार होता जाता है और मानव अपना आर्थिक एवं सांस्कृतिक व सामाजिक विकास करता है ।
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उपरोक्त विचारधाराएँ भूगोल में रूढ़िवादी (Conventional) विचारधाराएँ मानी जाती हैं, परंतु निश्चयवाद, संभववाद तथा सांस्कृतिक निश्चयवाद पूर्ण रूप से और शुद्धता के साथ मानव तथा पर्यावरण की पारस्परिक संबंध की व्याख्या नहीं करतीं । दूसरे महायुद्ध के पश्चात भूगोल में संख्यात्मक क्रांति (Humanism) जैसी विचारधाराएँ प्रचलित हुई ।
Essay # 2. पर्यावरण का मानव पर प्रभाव (Influence of Environment on Man):
विश्व की पूर्ण ग्रामीण तथा नगरीय जनसंख्या, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भौतिक पर्यावरण से प्रभावित होती है । पर्यावरण के भौतिक तत्व में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु का मानव समाज और उनकी जीवन-शैली पर पड़ता है । जलवायु का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से प्रजातियों (Races) के रंगरूप, आँख, नाक, शरीर की बनावट, बाल, ठोढ़ी, कपाल तथा चेहरे की आकृति पर पड़ता है ।
अरस्तू महोदय (Aristotle) के अनुसार ठंडे प्रदेशों के लोग बुद्धिमान परंतु आलसी होते हैं । प्रसिद्ध अरब इतिहासकार इबने-खल्दून, के अनुसार ठंडी जलवायु के लोगों में सजीवता (Vivacity) का अभाव है, जबकि ऊष्णकटिबंध के लोग सजीव तथा हँस-मुख तथा मिलनसार होते हैं ।
जलवायु का मानव समाज पर प्रभाव का अध्ययन उचित ढंग से अमेरिका के हंटिंगटन महोदय ने किया । हंटिंगटन महोदय के अनुसार शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में जहाँ चक्रवाती मौसम रहता है तापमान 20°C के आस-पास और सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) 60 प्रतिशत से अधिक रहती है, वहाँ के लोगों की कार्यक्षमता बढी रहती है और अधिक एकाग्रता (Concentration) के साथ कार्य करते हैं ।
यही कारण है कि शीतोष्ण जलवायु के लोगों का उत्पादन अधिक एवं उच्च कोटि का होता है । मानव भूगोल के विशेषज्ञों के अनुसार मौसम तथा अपराधों में भी एक घनिष्ठ संबंध है । उदाहरण के लिए आत्महत्या, कल्ल जैसे अपराध एक विशेष समय तथा मौसम में होते हैं ।
कल्ल जैसे अपराध प्रायः गर्मी के मौसम में अधिक होते है जबकि बलात्कार की घटनाएँ शीतऋतु में संध्या के समय अधिक होती हैं । बहुत-से भूगोलवेत्ताओं ने मानव के सुखद एवं दुःखद जीवन का भी जलवायु के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करने का प्रयास किया है ।
मानव अपने प्रयास तथा टेस्नोलॉजी की सहायता से मौसम व जलवायु के प्रभाव को परिवर्तित कर सकता है, परंतु फिर भी मानव अपने भोजन, कपडे तथा मकान जैसी आवश्यक आवश्यकताओं की आपूर्ति अपनी जलवायु तथा संसाधनों के अनुसार करता है ।
वास्तव में विश्व की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या गाँव में रहती है और उनमें से अधिकतर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि इत्यादि (Primary Activities) पर निर्भर करते है । कृषि और कृषि संबंधित कारोबार पर मौसम एवं जलवायु का भारी प्रभाव पड़ता है ।
संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि मानव की आवश्यक और आरामदेह आवश्यकताएँ, टेक्नोलॉजी तथा आर्थिक उन्नति, सामाजिक प्रगति पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है ।
Essay # 3. मानव का पर्यावरण पर प्रभाव (Man’s Impact on the Environment):
पर्यावरण में निरंतर परिवर्तन होता रहता है अर्थात् पर्यावरण सदैव गतिशील है । लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तब ही से पृथ्वी के धरातल एवं पर्यावरण में परिवर्तन होता है । पृथ्वी के अधिकतर इतिहास में पृथ्वी के अंतर्जात तथा बर्हिजात बलों के कारण तब्दीली होती रही है परंतु वर्तमान में पृथ्वी और पर्यावरण में भारी परिवर्तन मानव के द्वारा हो रहा है । वास्तव में वर्तमान समय में मानव पर्यावरण का सबसे प्रमुख कारक है ।
मानव अब अपने पर्यावरण की उत्पत्ति नहीं, वरन् वह पर्यावरण का एक ऐसा महत्वपूर्ण अंग है जो तीव्र गति से इसमें परिवर्तन कर रहा है । यूँ तो मानव आदि काल से पर्यावरण को तब्दील करता रहा है, फिर भी आज के युग में परिवर्तन की गति में भारी तीव्रता देखी जा सकती है ।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Technology) की सहायता से मानव अपने पर्यावरण में तीव्रता से परिवर्तन करने में सक्षम हो गया है । महानगरों एवं सन्त नगरों में मानव द्वारा लाई गई तब्दीली विशेष रूप से देखी जा सकती है । महानगरों ने प्राकृतिक पर्यावरण को पूर्ण रूप से परिवर्तन कर दिया है ।
मानव भूगोल के विशेषज्ञ, वास्तविक (Objectives) पर्यावरण तथा ज्ञानात्मक (Cognitive) पर्यावरण में अंतर करते हैं । उनके अनुसार मानव अपने संसाधनों का उपयोग अपने ज्ञानात्मक पर्यावरण के आधार पर करता है । उदाहरण के लिये एक खेत (संसाधन) को विभिन्न प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है ।
उस खेत में कोई सब्जी बोना चाहता है तो कोई उसमें गेहूँ, चावल अथवा गन्ने की खेती करना चाहता है और कोई ऐसे खेत में पशु-पालन करना चाहता है अर्थात् वास्तविक पर्यावरण एक है परंतु उसका उपयोग करने वाले उसका उपयोग अपने-अपने ज्ञानात्मक पर्यावरण के आधार पर करता है ।
वर्तमान समय में भूगोलवेत्ता, पर्यावरण के संबंध में निम्न विषयों का विशेष रूप से अध्ययन कर रहे हैं:
(i) मानव द्वारा पर्यावरण में तापमान वृद्धि ।
(ii) वायुमंडल में तापमान वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन ।
(iii) ओजोन परत (Ozone Layer) का ह्रास ।
(iv) महानगरों तथा अन्य स्थानों पर वायु प्रदूषण ।
(v) प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन, विशेष रूप से भूकंप, सुनामी (Tsunami), ज्वालामुखी, ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात, हरिकेन (Hurricanes), टाइफून (Typhoons), सागरीय लहरों का थल में चढ़ना (Sea Surge), भू-स्थलन (Land Slide), सूखा (Drought), बाढ (Floods) इत्यादि ।
(vi) मानव द्वारा जंगलों का विनाश ।
(vii) जैविक-विविधता का ह्रास ।
(viii) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) उत्पादन केंद्रों में होने वाली दुर्घटनाएँ, जैसे- 1986 में चर्नोबिल (Chernobyl) दुर्घटना तथा 11 मार्च, 2011 में जापान की भूकंप-सुनामी दुर्घटना जिसमें फूकुशिया-डायशी (Fukushima-Daiichi) न्यूक्लियर प्लांट नष्ट हो गए थे ।
(ix) जैविक-विविधता (Biodiversity) का विनाश तथा उसका संरक्षण (Conservation) ।
(x) संसाधनों का सदुपयोग तथा उनका संरक्षण ।
(xi) प्राकृतिक संसाधनों का लेखा-जोखा तैयार करना ।
(xii) जैविक-विविधता का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाना ।