Here is an essay on ‘Globalisation’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Globalisation’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. वैश्वीकरण का अर्थ  (Meaning of Globalisation):

वैश्वीकरण का अर्थ भिन्न-भिन्न लोगों के लिये भिन्न-भिन्न है सरल शब्दों में यह विश्वस्तरीय प्रतियोगिता की प्राप्ति द्वारा अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिये खोलने के संदर्भ में है । सम्पूर्ण विश्व को ग्लोबल गांव कहा जा सकता हे । विशेषतया इसका अर्थ है- आर्थिक एकीकरण को गहरा करने की प्रक्रिया, बढ़ता हुआ आर्थिक खुलापन और विश्व अर्थव्यवस्था में देशों के बीच बढ़ती हुई आर्थिक निर्भरता ।

दीपक नैय्यर के अनुसार – ”वैश्वीकरण की परिभाषा आर्थिक गतिविधियों के राष्ट्र राज्यों की राजनीतिक सीमाओं से बाहर के विस्तार के रूप में की जा सकती है ।”

सटिग्लिटज (Stiglitz) के अनुसार – ”वैश्वीकरण विश्व के देशों और लोगों का समीपी संघटन है जो परिवहन और संचार की लागतों में अत्यधिक कमी और वस्तुओं तथा सेवाओं, पूंजी, ज्ञान और सीमाओं से पार लोगों (कम) के प्रवाह में कृत्रिम बाधाओं को तोड़ने से आया है ।”

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भागवती (Bhagwati) के अनुसार – ”आर्थिक वैश्वीकरण में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं का अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में व्यापार, सीधे निवेश, लघुकालिक पूजी बहावों, सामान्यतया श्रमिकों और मानवता के अन्तर्राष्ट्रीय बहावों तथा शिल्प शास्त्रीय बहावों द्वारा समावेशन सम्मिलित है ।”

Essay # 2. भारतीय वैश्वीकरण के लक्षण (Features of Indian Globalisation):

भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य लक्षणों को इस प्रकार बताया जा सकता है:

1. व्यापार का वैश्वीकरण (Globalisation of Trade):

इसका अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर सरकारी नियन्त्रण को कम करना और आयात और निर्यात संबंधित उदारीकरण नीति को अपनाना है । भारत सरकार 1991 से व्यापार के वैश्वीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उदारीकरण की नीति को अपना रही है ।

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सरकार के नियन्त्रण से विदेशी व्यापार को उदारीकृत करने के लिए और स्वतन्त्र ढंग में इसके विकास की अनुमति देने के लिए निम्न चरणों को उठाया गया:

i. जुलाई 1991 में, भारतीय रुपये का अवमूल्यन 22 प्रतिशत तक दो किश्तों में हुआ ताकि रुपया अपनी वास्तविक विनिमय दर को पहचान सके ।

ii. 1993-94 में, व्यापार पर पूर्ण परिवर्तनशीलता को लागू किया गया और एकीकृत विनिमय दर प्रणाली को अपनाया गया ।

iii. 1994-95 में चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनशीलता को लागू किया है । इसमें चालू खाते पर अन्तर्राष्ट्रीय लेने-देन के लिए विदेशी मुद्रा को खरीदने और बेचने की आजादी थी ।

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iv. आयातों और विचारों पर प्रतिबन्धों को कम किया गया । कई वस्तुओं का आयात खुले साधारण लाइसेंस श्रेणी में रखा गया । कई वस्तुओं दर से आयात प्रतिबन्धों को वापिस ले लिया गया ।

v. आयात शुल्कों के क्वांटम को कम किया गया ।

vi. 2000-2001 की आयात-निर्यात नीति में, 751 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबन्धों को वापिस ले लिया गया । 2001-02 में, सभी वस्तुओं का आयात मुक्त कर दिया गया ।

vii. 2000-2001 के आयात-निर्यात नीति के अनुसार, पुरानी मशीनों का बिना लाइसैंस के अगले 10 वर्षों के लिए आयात किया जा सकता है ।

2. निवेश का वैश्वीकरण (Globalisation of Investment):

इसका अर्थ विदेशी निवेश पर प्रतिबन्धों को हटाना और इसे आकर्षित करने के लिए छूटो को प्रदान करना है ।

1991 की नयी आर्थिक नीति में, सरकार ने विदेशी निवेश नीति को उदारीकृत किया और निम्न उपायों को किया:

i. 1991 में, विदेशी पूजी निवेश की आज्ञा 51% तक 34 उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में सरकार के बिना दी गई ।

ii. 1996 में, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की आज्ञा 74% तक 9 उद्योगों में दी गई । विदेशी कम्पनियों को मूल देश के निवेश पर लाभ देने की आज्ञा दी गई ।

iii. एक गैर-प्रवासी भारतीय द्वारा अंशों के अन्य गैर-प्रवासी भारतीयों के साथ स्थानान्तरण पर प्रतिबन्धों को वापिस ले लिया गया ।

iv. यदि विदेशी कम्पनियां भारत में संयुक्त उपक्रम का पूर्ण स्वामित्व चाहती है या पूर्ण स्वामित्व के साथ सहायक कम्पनियों को स्थापित करना चाहती है तो वे ऐसा करने के लिए स्वतन्त्र होती है ।

v. कई रियायतों की बुनियादी ढांचे जैसे सड़कों, बिजली, संचार आदि के विकास के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर दिया जाता है । बिजली घरों के लिए इक्विटी 100% होती है ।

vi. विदेशी निवेशकों को बाजार मूल्य पर अनिवेशित इक्विटि गे की आज्ञा दी जाती है । वे मूल देश के लिए अनिवेश के करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं ।

vii. बहुराष्ट्रीय कम्पनियां देश में निर्यात उन्मुख इकाईयों को स्थापित करने के लिए कई छूटे दी जाती हैं ।

viii. विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड की स्थापना विदेशी निवेश की मंजूरी के लिए एकल विंडो सुविधा के लिए दी जाती है ।

ix. गैर प्रवासी भारतीयों को निर्यात घरों, व्यापारिक घरों, अस्पतालों, निर्यात उन्मुख इकाईयों, होटलों आदि में 100% निवेश की आज्ञा दी जाती है ।

x. 2001-2002 की निर्यात-आयात नीति, विदेशी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 100% निवेश की आज्ञा दी जाती है ।

xi. नया बीमा अधिनियम निजी क्षेत्र की कम्पनियों की अंश पूजी में 26% विदेशी निवेशों को प्रदान करता है ।

3. वित्त का वैश्वीकरण (Globalisation of Finance):

आर्थिक नीति 1991 के अनुसार, उदारीकरण नीति को अन्तर्राष्ट्रीय वित्त के सम्बन्ध में अपनाया गया । अन्तर्राष्ट्रीय वित्त का सम्बन्ध विदेशी सरकारों, अन्तर्राष्ट्रीय और निवेश के साथ होता है । इसमें विदेशी वित्तीय संस्थानों और विदेशी बैंकों को भी शामिल किया जाता है ।

यह विदेशी पूंजी बहाव पर प्रतिबन्धों को कम करने के लिए सरकार की नीति है जो विदेशी बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को स्थापित करने के लिए विभिन्न सुविधाएं देती के लिए निम्न कदमों को उठाया जाता है:

(i) विदेशी विनिमय अधिनियम द्वारा शासित कम्पनियों को भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना धार लेने की आज्ञा दी जाती है ।

(ii) गैर प्रवासी भारतीयों की जमा को गतिवान करने के लिए प्रयास किए जा सकते हैं ।

(iii) विदेशी संस्थानिक निवेशकों को भारतीय पूंजी बाजार में निवेश करने की आज्ञा दी जाती है ।

(iv) कई सुविधाओं को भारत में बैंकों को अपने आप को स्थापित करने के लिए दी जाती है ।

(v) भारतीय वित्तीय संस्थान जैसे भारतीय स्टेट बैंक, विदेशी पूंजी को गतिवान करने के लिए India Resurgent Bonds को बेचते हैं ।

Essay # 3. वैश्वीकरण के प्राचल (Parameters of Globalisation):

वैश्वीकरण के प्रायः चार प्राचल होते हैं जिनका नीचे वर्णन किया गया है:

1. देशों के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करके अथवा कम करके वस्तुओं के स्वतन्त्र प्रवाह की आज्ञा ।

2. देशों के बीच पूजी के प्रवाह के लिये वातावरण की रचना ।

3. शिल्प शास्त्र के स्थानान्तरण के स्वतन्त्र प्रवाह की इजाजत ।

4. विश्व के देशों में श्रमिकों के स्वतन्त्र आने-जाने के लिये वातावरण की रचना ।

वैश्वीकरण की धारणा जो सभी राष्ट्र राज्यों को ‘विश्व व्यापार संगठन’ के विषय वस्तु में सम्मिलित करती है ‘तुलनात्मक लागत लाभ के सिद्धान्त’ (Theory of Comparative Cost Advantage) का एक वैकल्पिक वृतांत है जिसे परम्परागत अर्थशास्त्रियों ने परस्पर लाभों के लिये देशों के बीच वस्तुओं के अबाध प्रवाह की कल्पना से प्रस्तुत किया ।

यह एक मुक्त व्यापार नीति है । यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों का दावा है कि यह अल्पविकसित और विकासशील देशों की प्रतियोगिता शक्ति के दृढ़ीकरण और उच्च वृद्धि दर की प्राप्ति में सहायक होंगे ।

भारत वैश्वीकरण की नीति का कोई अपवाद नहीं है । अनेक कारकों जैसे व्यापार धारा, खाड़ी युद्ध, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा भारी हानि, घटते हुये विदेशी विनिमय कोष आदि ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरे सकट में धकेल दिया । इस गम्भीर त्रुटि को IMF और विश्व बैंक द्वारा सुझाये गये सूत्र द्वारा सुधारा जा सकता है । इन परिस्थितियों के लिये ”स्थिरीकरण और संरचनात्मक समन्वय कार्यक्रम” को अपनाने की आवश्यकता है ।

अतः इस कार्यक्रम में सम्मिलित हैं:

(i) राजकोषीय घाटे और मुद्रा पूर्ति की वृद्धि को कम करके स्थिरीकरण की प्राप्ति

(ii) उत्पादन, निवेश, कीमतों पर बाधाओं को ढीला करके तथा साधन निर्धारण के लिये बाजार की भूमिका बढ़ाना और

(iii) बाहरी क्षेत्र का उदारीकरण ।

भारत सरकार उदारीकरण की नीति को 1991 से अपना रही है तथा इसने व्यापार बाधाओं को समाप्त करने की प्रक्रिया तथा मात्रात्मक बाधाओं को क्रमिक ढंग से समाप्त करना आरम्भ कर दिया है । अन्य उपाय जो वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था के विश्व अर्थव्यवस्था के साथ समाकलन की ओर ले जाते हैं वे हैं-विनिमय दर समन्वय और रुपये की परिवर्तनीयता, आर्थिक सुधारों के साथ विदेशी पूंजी और आयात उदारीकरण । भारत में वैश्वीकरण एक मिश्रित वरदान है ।

Essay # 4. वैश्वीकरण का समर्थन (Advocacy of Globalisation):

वैश्वीकरण मुख्यता एक रोमानी शब्द है । यह राष्ट्र राज्यों को WTO के सम्पूर्ण ढांचे में समाकलित करने की इच्छा की ओर सकेत करता है । इसे, इस आधार पर भी अच्छा समझा जाता है कि अन्तर्राष्ट्रीय विशेषीकरण, व्यापार सम्बन्धों में प्रवेश करने वाले दोनों देशों को लाभ पहुंचाता है ।

समर्थकों ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि यह ‘वृद्धि का निर्यातित प्रतिरूप’ (Exported-Pattern of Growth) लायेगा, जो पहले अनुसरित आयात प्रतिस्थापन नीतियों को बदलेगा । साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने 18वीं, 19वीं और 20वीं शताब्दी में ‘पूंजी और प्रौद्योगिकीय प्रवाह’ के उपनिवेशी राज्यों में आगमन पर बल दिया । परन्तु वह अपनी इच्छा को थोप सकते थे क्योंकि उस समय शासन उनके हाथ में था ।

इतिहास साक्षी है कि यह सब व्यापार, पूंजी, शिल्प शास्त्रीय, बहावों ने निर्धन उपनिवेशी राष्ट्रों से साधनों को साम्राज्यवादी राष्ट्रों की ओर पहुंचाने में सहायता की । इस प्रकार समाजवादी देश उपनिवेशी देशों की लागत पर सम्पन्न हो गये है जबकि उपनिवेशी देश निर्धन और स्थिर बने हुये हैं ।

संक्षेप में, वैश्वीकरण को वृद्धि, तकनीकी उन्नति, बढ़ते हुये उत्पादन, विस्तृत रोजगार और निर्धनता कम करने के साथ आधुनिकीकरण लाने का इंजन समझा जाता है ।

वैश्वीकरण के विशेषज्ञ निम्नलिखित तर्कों के वृतान्त का समर्थन करते हैं:

(i) वैश्वीकरण स्पष्ट विदेशी निवेश का प्रोत्साहन करता है और इस प्रकार, अन्तर्राष्ट्रीय ऋण का सहारा लिये बिना विकासशील देशों की पूजी निर्माण में सहायता करता है ।

(ii) वैश्वीकरण अनुसंधान और विकास में निवेश के बिना उन्नत देशों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का प्रयोग विकासशील देशों के लिये सम्भव बनाता है ।

(iii) वैश्वीकरण विकासशील देशों की पहुंच को विस्तृत करता है और वह अपने उत्पाद विकसित देशों में बेचने के योग्य बनते हैं । इसके साथ ही विकासशील देशों के उपभोक्ता गुणवत्ता पूर्ण वस्तुएं विशेषतया टिकाऊ वस्तुएं कम कीमतों पर प्राप्त करने के योग्य बनते हैं ।

(iv) वैश्वीकरण परिवहन और संचार की लागतों को कम करता है । यह टैरिफ कम करता है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की प्रतिशतता के रूप में विदेशी व्यापार के भाग को विस्तृत करता है ।

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