स्वास्थ्य पर निबंध | Essay on Health in Hindi!
स्वास्थ्य पर निबंध | Essay on Health
Essay # 1. स्वास्थ्य का अर्थ:
स्वास्थ्य का अत्यंत व्यापक अर्थ है । जहाँ किसी जीव-जंतु के संदर्भ में यह शारीरिक, क्रियात्मक या उपापचयी (मेटाबोलिक) स्थिति या क्षमता का द्योतक है, वहीं मानवीय संदर्भ में यह व्यक्ति के शरीर, मस्तिष्क एवं मनोवृत्ति को दर्शाता है । दूसरे शब्दों में, बीमारी व दुःख दर्द से मुक्ति की अवस्था ही स्वास्थ्य है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सन् 1946 में इसे व्यापक रूप से परिभाषित किया है, जिसके अनुसार, स्वास्थ्य का अर्थ बीमारी या कमजोरी का न होना ही नहीं है, बल्कि शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक कल्याण की पूर्ण अवस्था ही स्वास्थ्य है ।
यद्यपि यह परिभाषा विवाद का विषय रही है विशेषकर इस दृष्टि से कि इसमें परिचालनगत मूल्य का अभाव है तथा ‘पूर्ण’ शब्द के प्रयोग से उत्पन्न समस्या के कारण भी इसे सर्वथा स्वीकार करना कठिन है । फिर भी, यह सर्वाधिक टिकाऊ वर्गीकरण प्रणाली है जिसे स्वास्थ्य के उपादानों को परिभाषित करने एवं मापन की दृष्टि से सामान्यतः इस्तेमाल किया जाता है ।
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स्वास्थ्य की देखभाल एवं अभिवृद्धि शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक कल्याण के विभिन्न संयोजनों पर आधारित है, जिन्हें कभी-कभी सामूहिक रूप से ‘स्वास्थ्य त्रिभुज’ कहा जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के ओटावा स्वास्थ्य सवर्द्धन चार्टर के अनुसार स्वास्थ्य एक अवस्था मात्र नहीं है, बल्कि ”दैनंदिन जीवन का साधन-स्रोत है. न कि जीने का उद्देश्य मात्र । स्वास्थ्य एक सकारात्मक अवधारणा है, जो सामाजिक एवं व्यक्तिगत साधन स्रोतों तथा शारीरिक क्षमताओं पर बल देती है ।”
आरोग्य-प्रदाता मनुष्यों को रोगों से बचाने या उनकी स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण तथा अच्छे स्वास्थ्य के सवर्द्धन हेतु व्यवस्थित गतिविधियों का संचालन करते हैं । ‘स्वस्थ’ शब्द का प्रयोग बहुत से निर्जीव संगठनों तथा मनुष्यों पर उनके लाभकारी प्रभावों के संदर्भ में व्यापक रूप से किया जाता है ।
जैसे – स्वस्थ समुदायों, स्वस्थ नगरों या स्वस्थ पर्यावरणों के अर्थ में अच्छे स्वास्थ्य के उद्देश्य से किए जाने वाले उपायों तथा किसी व्यक्ति के परिवेश के अतिरिक्त, अन्य कई ऐसे तथ्य होते है, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति को प्रभावित करते हैं । ये तथ्य हैं – मनुष्य की पृष्ठभूमि, जीवन-शैली, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियों । इन्हें ही स्वास्थ्य का निर्धारक कहा जाता है ।
सामान्यतः जिस परिवेश में व्यक्ति रहता है, उसका महत्व उसके स्वास्थ्य की स्थिति एवं जीवन की गुणवत्ता की दृष्टि से अवश्य होता है । इस तथ्य को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि स्वास्थ्य की देखभाल एवं स्वास्थ्य सुधार केवल स्वास्थ्य-विज्ञान की प्रगति और प्रयोग के माध्यम से ही संभव नहीं है ।
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इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति एवं समाज निजी स्तर पर प्रयास करें तथा बुद्धिमतापूर्ण जीवन-शैली के विकल्पों को अंगीकार करे । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रमुख स्वास्थ्य निर्धारक हैं – सामाजिक एवं आर्थिक पर्यावरण, भौतिक पर्यावरण तथा व्यक्ति की निजी विशेषताएं एवं उसका व्यवहार ।
और अधिक स्पष्ट करें, तो लोग स्वस्थ हैं अथवा अस्वस्थ इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं:
विभिन्न संगठनों के अध्ययनों, रिपोर्टों तथा संदर्भों की एक बडी संख्या है, जिनमें स्वास्थ्य और विभिन्न तथ्यों के बीच अंतर्सम्बन्धों की छानबीन उपलब्ध होती है । ये तथ्य हैं – जीवन-शैलियाँ, पर्यावरण, स्वास्थ्य-रक्षा संगठन तथा स्वास्थ्य-नीति ।
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जहाँ तक अध्ययनों एवं रिपोर्टों का प्रश्न है कनाडा की 1974 लालोंड रिपोर्ट, कैलीफोर्निया का एलायेडा काउटी-अध्ययन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य रिपोर्टों की श्रृंखला । इन रिपोर्टों एवं अध्ययनों में वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है ।
इन समस्याओं में शामिल हैं – स्वास्थ्य-रक्षा की उपलब्धता तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिणामों में सुधार लाना, विशेषकर विकासशील देशों में ‘हेल्थ फील्ड’ की अवधारणा, जो मेडिकल केयर में अलग है, कनाडा के लालोंड रिपोर्ट से प्राप्त हुई है । रिपोर्ट में तीन परस्पर निर्भर फील्डों को चिन्हित किया गया है, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के प्रमुख निर्धारक हैं ।
ये फील्ड निम्नलिखित हैं:
1. जीवन-होली:
व्यक्तिगत निर्णयों का समुच्चय (जिस पर किसी व्यक्ति का नियंत्रण रहता है), जिससे बीमारी होने अथवा मौत होने की संभावना रहती है ।
2. पर्यावरण मानव:
शरीर के सभी बाह्य कारण, जिनका स्वास्थ्य से सम्बन्ध रहता है और जिन पर किसी व्यक्ति का नियंत्रण नहीं के बराबर अथवा बिल्कुल नहीं रहता ।
3. जैव:
चिकित्सा स्वास्थ्य के सभी पहलू चाहे शारीरिक, स्वास्थ्य के हों अथवा मानसिक स्वास्थ्य के, मानव-शरीर के अंदर विकसित किए जाते है एवं जेनेटिक मेकअप से प्रभावित होते हैं । जुडे एलायिडा काउंटी स्टडी ने जीवन-शैली से मुद्दों एवं क्रियात्मक स्वास्थ्य के साथ उनके सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए कुछ आँकडे संकलित किए हैं । इन आंकडों से यह पता चलता है कि लोग अपने स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं, जिसके लिए व्यायाम, पर्याप्त नींद, संतुलित वजन, अल्कोहल का सीमित इस्तेमाल तथा धूम्रपान का परित्याग आवश्यक है ।
मानव-स्वास्थ्य के लिए अनुकूलन एवं आत्म-नियंत्रण की क्षमता अत्यन्त आवश्यक है । पर्यावरण एक महत्वपूर्ण उपादान है, जो मानवीय स्वास्थ्य पर असर डालता है । पर्यावरण में प्राकृतिक पर्यावरण, निर्मित पर्यावरण एवं सामाजिक पर्यावरण की विशेषताएँ समाहित होती है ।
स्वच्छ जल एवं वायु, पर्याप्त आवास सुविधा तथा सुरक्षित समुदाय एवं सडके अच्छे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध होते है, विशेषकर शिशुओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में । कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि जहाँ आसपास मनोरंजन के स्थल नहीं होते, जिनमें प्राकृतिक पर्यावरण भी शामिल है, वहाँ व्यक्तिगत संतुष्टि का स्तर काफी निचला होता है, और इससे मोटापा बढता है ।
इस मोटापे से समग्र स्वास्थ्य प्रभावित होता है । इससे यह संकेत मिलता है कि सार्वजनिक नीति एवं भू-उपयोग के सिलसिले में शहरी इलाकों के आसपास पाए जाने वाले प्राकृतिक स्थलों का महत्व स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव की दृष्टि से निर्विवाद है ।
जेनिटिक्स/आनुवांशिकी/ अथवा माँ-बाप से विरासत में मिली विशेषताओं का प्रभाव व्यक्तियों एवं आबादियों के स्वास्थ्य पर अवश्य दिखाई पडता है । इसके दायरे में कुछ बीमारियों एवं स्वास्थ्य स्थितियों के प्रति संभावना के साथ-साथ उन आदतों एवं व्यवहारों का समावेश होता है, जिनका विकास पारिवारिक जीवन-शैलियों के जरिए होता है ।
इसे प्रकृति बरक्स पोषण भी कहा जाता है । दूसरे शब्दों में ऐसे तथ्यों की भूमिका जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है अथवा महरण । उदाहरण के लिए जेनेटिक्स ऐसी भूमिका अदा कर सकता है, जिससे लोग तनाव से मुकाबला कर सकते है – किसी भी प्रकार के तनाव का चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक अथवा मानसिक ।
Essay # 2. स्वास्थ्य की भूमिका:
i. स्वास्थ्य में विज्ञान की भूमिका:
स्वास्थ्य, विज्ञान की वो शाखा है जो स्वास्थ्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है । स्वास्थ्य के सम्बन्ध में मुख्य रूप से दो दृष्टिकोण हैं – पहला शरीर का अध्ययन एवं अनुसंधान तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें, ताकि ये समझा जा सके कि किस प्रकार मनुष्य (एवं पशु) कार्य करते हैं ।
दूसरा, उक्त ज्ञान का स्वास्थ्य सुधार में इस्तेमाल करना तथा बीमारियों का दूर (इलाज) करना तथा अन्य शारीरिक उप-क्षेत्रों पर आधारित है, जिनमें शामिल है – बायलॉजी, बायोकेमेस्ट्री, फिजिक्स, इपीडिमियोलॉजी, फार्माकोलॉजी, मेडिकल सोशियोलॉजी एवं अन्य ।
अनुप्रयोग स्वास्थ्य विज्ञानों (एप्लाइड हेल्थ साइन्सेज) का ये प्रयास रहता है कि मानवीय स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से समझा जाये तथा इसमें सुधार किया जाये और इस निमित्त कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य शिक्षा बायो मेडिकल इंजीनियरिंग, बायोटेक्नोलॉजी ओर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाये ।
स्वास्थ्य विज्ञानों के माध्यम से विकसित सिद्धान्तों एवं कार्य प्रणालियों पर आधारित स्वास्थ्य सुधार सम्बन्धी संगठित प्रयास ऐसे प्रैक्टिशनरों को उपलब्ध कराये जाने चाहिये; जो मेडिसिन, नर्सिंग, न्यूट्रीशन, फार्मेसी, सोशल वर्क, सायकोलॉजी, क्लीनिकल प्रैक्टिशनर मुख्य रूप से व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करते है, जबकि पब्लिक हेल्थ प्रैक्टिशनर्स समुदायों और आबादियों के समग्र स्वास्थ्य पर विशेष बल देते हैं ।
कंपनियों द्वारा वर्क प्लेस वेलनेस प्रोग्राम अक्सर संचालित कराये जाते हैं ताकि कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सामान्य कल्याण में निरन्तर सुधार लाया जा सके । इसी प्रकार बच्चों के स्वास्थ्य और उनके समग्र कल्याण की दृष्टि से स्कूल हेल्थ सेवायें संचालित की जाती है ।
ii. सार्वजनिक स्वास्थ्य की भूमिका:
सार्वजनिक स्वास्थ्य की व्याख्या एक ऐसे विज्ञान एवं कला के रूप में की गई है जिसका उद्देश्य बीमारी की रोकथाम करना, संगठित प्रयासों के माध्यम से जीवन को दीर्घ एवं स्वास्थ्य में सुधार लाना है । साथ ही समाज सार्वजनिक एवं निजी संगठनों, समुदायों एवं व्यक्तियों को इस सम्बन्ध में जागरूक करना है ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य किसी समुदाय के समग्र स्वास्थ्य पर आने वाले खतरों से भी सरोकार रखता है तथा जनसंख्या स्वास्थ्य विश्लेषण को इस सम्बन्ध में आधार बनाता है । सम्बन्धित जनसंख्या कम भी हो सकती है जैसे कि मुट्ठी भर लोग अथवा यह बहुत विशाल भी हो सकती है जैसे कि बहुत से उपमहाद्विपों में रहने वाले लोग (किसी महामारी के मामले में) ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य के कई उप क्षेत्र हैं, परन्तु इसमें विशेष रूप से परस्पर सम्मिलित विषयों की श्रेणियों शामिल हैं । ये श्रेणियाँ है – इपिडिमियोलॉजी, बायोस्टेटिस्टिक, स्वास्थ्य सेवायें । सार्वजनिक स्वास्थ्य के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र भी हैं, जैसे इनवायरनमेन्टल हेल्थ, कम्यूनिटी हेल्थ, बिहेवियरल हेल्थ एवं अकुपेशनल हेल्थ ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य बीमारियों की रोकथाम तथा घायलों का उपचार करना एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को बढावा देना । इसके लिये आवश्यक है कि ऐसे मामलों पर निगाह रखी जाये और हेल्दी बिहेवियर समुदायों और पर्यावरणों को प्रोत्साहित किया जाये ।
इसका उद्देश्य यह भी हे कि स्वास्थ्य समस्यायें दुबारा न पैदा हो, इस बात को ध्यान में रखते हुये शैक्षिक कार्यक्रम अमल में लाये जायें, नीतियाँ विकसित की जायें, सेवायें परिचालित की जायें तथा अनुसंधान संचालित किये जायें ।
बहुत से मामलों में, किसी बीमारी का उपचार करना अथवा एपेथोजेन को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण हो सकता है, जिससे कि अन्य लोग इसकी चपेट में न आयें । छुआछूत से पैदा होने वाली बीमारियों को रोकने के लिये टीकाकरण कार्यक्रम तथा कन्डोम का वितरण ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ सामान्य ढंग से सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के उपाय किये जा सकते हैं ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य के अन्तर्गत देश, उप महाद्वीप या विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य सम्बन्धी असमानताओं को कम करने के लिये बहुत से कदम उठाये जाने हैं । मुख्य समस्या यह है कि व्यक्तियों और समुदायों को स्वास्थ्य सेवा कैसे उपलब्ध हो, इस बात को देखते हुये कि वित्तीय, भौगोलिक अथवा सामाजिक-सांस्कृतिक समस्यायें मौजूद हैं । सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के प्रयोगों में कई क्षेत्र शामिल है, जैसे – मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य सेवा प्रशासन, आपातकालीन सेवा एवं संक्रामक तथा पुराने रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभाव को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है । सार्वजनिक स्वास्थ्य के माध्यम से विकसित की गई नीतियों एवं गतिविधियों के चलते शिशु एवं बच्चों की मृत्यु दर 20वीं शताब्दी में घटी है और विश्व के अधिकांश हिस्सों में जीवन दर में निरन्तर वृद्धि हुयी है । उदाहरण के लिये ये अनुमान है कि सन् 1900 से अमेरिका में जीवन दर 30 वर्ष बढी है, जबकि विश्व में सन् 1990 से यह वृद्धि 6 वर्ष रही है ।
Essay # 3. अच्छे स्वास्थ्य के निजी प्रयास:
निजी स्वास्थ्य के लिये अन्य बातों के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि इस बात को ध्यान में रखा जाये और अमल में भी लाया जाये कि अन्य लोग अच्छे स्वास्थ्य के लिये क्या-क्या कदम उठाते हैं । ऐसा करने से बीमारी के प्रभाव को रोका अथवा कम किया जा सकेगा, आमतौर पर पुरानी बीमारी की स्थित में और इसके लिये समन्वित दृष्टिकोण अपनाना होगा अच्छे स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है कि व्यक्तिगत स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाये, जैसे स्नान साबुन से हाथ धोना, दांतों को साफ-सुथरा रखना, भोजन को अच्छी तरह से बनाना, परोसना व रखना ।
इसी प्रकार की अन्य सावधानियों से स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है । अच्छे स्वास्थ्य के लिये यह आवश्यक है कि अपनी दिनचर्या में अनुभवों को शामिल करना चाहिए, जैसे – नींद के लिये हल्का-फुल्का व्यायाम, पौष्टिक भोजन तथा शुद्ध पर्यावरण ।
उदाहरण के लिये रात में अच्छी नींद न आने के कारण सुबह थकावट महसूस पर विभिन्न प्रयोग करना जैसे अलग तरह की तकिया लगाना, इसके साथ ही क्लीनिकल निर्णय एवं ट्रीटमेन्ट प्लान भी लाभकारी हो सकते हैं । व्यक्तिगत स्वास्थ्य कुछ हद तक किसी व्यक्ति के जीवन की सामाजिक संरचना पर भी निर्भर करता है ।
सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य से कुछ चीजे सीधी जुडी हुयी है, जैसे – मजबूत सामाजिक सम्बन्ध, स्वैच्छिक सेवा तथा अन्य सामाजिक कार्य और ऐसा होने पर व्यक्ति दीर्घायु भी होता है । 70 वर्ष से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों पर किये गये अमरीकी अध्ययन से यह पता चला है कि जो स्वैच्छिक कार्य में अधिक संलग्न रहते हैं उनमें मृत्यु का खतरा अपेक्षाकृत कम रहता है ।
सिंगापुर के एक अन्य अध्ययन से यह पता चला है कि सेवानिवृत्त व्यक्ति जो स्वैच्छिक गतिविधियों में शामिल होते रहे हैं उनके ज्ञान के स्तर पर परफारमेन्स अच्छी रही है, अवसाद के लक्षण कम रहे हैं तथा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होने के साथ-साथ जीवनगत संतोष भी अपेक्षाकृत कम रहा है ।
अगर लम्बे समय तक मनोवैज्ञानिक तनाव बना रहता है तो स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पडता है और इससे उम्र बढने के साथ-साथ व्यक्ति के ज्ञान का स्तर प्रभावित होता है, अवसाद जनित बीमारियाँ पनपती है । तनाव प्रबन्ध के अन्तर्गत ऐसी पद्धतियाँ आती है जिनसे तनाव में कमी आती है अथवा तनाव सहन करने की शक्ति बढती है ।
शरीर के शिथलीकरण की तकनीकों से भी तनाव की मात्रा को कम किया जा सकता है । मनोवैज्ञानिक पद्धति में काग्नीटिव थेरेपी, मेडीटेशन और सकारात्मक सोच शामिल होते हैं, जिनसे तनाव में काफी कमी आती है । महत्वपूर्ण कुशलता में सुधार लाना, जैसे – समस्या समाधान एवं समय प्रबन्ध स्थित ऐसी तकनीकें है जिनसे अनिश्चितता कम होती है तथा आत्मविश्वास बढता है । साथ ही तनाव पैदा करने वाली स्थितियों के संबंध में होने वाली प्रतिक्रिया में कमी आती है ।
Essay # 4. स्वास्थ्य का लैंगिक आयाम:
i. विश्व स्वास्थ्य संगठन:
लिंग शब्द महिलाओं एवं पुरुषों, लडकों एवं लडकियों की विशेषताओं, भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों की व्याख्या करने के लिये प्रयाग किया जाता है, जिनकी संरचना सामाजिक रूप से की जाती है । लिंग इस बात से सम्बन्धित है कि महिला और पुरुष के रूप में किस प्रकार समझे जाते हैं और विचार एवं कार्य के स्तर पर क्या अपेक्षा की जाती है । इसका कारण यह है कि समाज किस रूप में संगठित है, न कि हमारे जैविक अन्तरों पर आधारित है ।
ii. स्वास्थ्य कनाडा:
लिंग का अर्थ है – सामाजिक रूप से विरचित भूमिकायें एवं सम्बन्ध, व्यक्तित्व की विशेषतायें, दृष्टिकोण व्यवहार, मूल्य सापेक्ष शक्ति जो कि कोई समाज दो लिंगों को विभेदक आधार पर प्रदान करता है । लिंग सम्बन्धगत होता है लैंगिक भूमिकायें एवं विशेषताये निरपेक्ष रूप से नहीं पायी जाती, वरन् एक दूसरे के सापेक्ष इन्हें परिभाषित किया जाता है ।
साथ ही, महिला एवं पुरुष, लडकियों एवं लडकों के पारस्परिक सम्बन्धों के माध्यम से परिभाषित होती है । लिंग हमारी बायलॉजी है और इसके अतिरिक्त हर चीज लिंग है । यदि आप ये जानते हैं कि 100 प्रतिशत अन्तर बायलॉजिकल है तो यह लैंगिक अन्तर है ।
iii. जेण्डर लेंस का माध्यम:
जिस प्रकार हम अपनी दृष्टि को ठीक करने के लिये चश्मे का प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार लैंगिक अन्तरों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने के लिये तथा चिकित्सागत सुरक्षा एवं बीमारी के पहलुओं की पहचान करने के लिये और उन पर आगे के अनुसंधान हेतु हमें जेन्डर लेंस की मदद लेनी होगा ।
जेण्डर लेंस दूल्स से ऐसा फ्रेम वर्क उपलब्ध कराता है जिसके जरिये मेडिसिन के किसी भी क्षेत्र की जाँच जेण्डर को ध्यान में रखते हुये कर सकते हैं । जेन्डर लेंस टूल्स का प्रयोग स्वास्थ्य जानकारी में पायी जाने वाली कमियों और अन्तरों का पता लगाने हेतु किया जा सकता है ।
किसी बीमारी का मौजूद होना और उसका पाया जाना, उसका निदान करना, रिस्क फैक्टर इलाज की सक्षमता तथा बीमारी का बढते जाना आदि सभी बातों पर जेण्डर का प्रभाव पडता है । जेन्डर लेस टूल्स से ऐसा फ्रेम वर्क उपलब्ध होता है जिससे ये पता चलता है कि किसी व्यक्ति के जेन्डर पर निम्नलिखित क्षेत्रों का किस प्रकार योगदान रहता है ।
बॉयलॉजी, सामाजिक ढांचा, शिक्षा, मैकमास्टर विश्वविद्यालय की डॉ. कोहेन, प्रो इमेरिटस, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्यावान है जिनका जेन्डर के सम्बन्ध में विशेषकर स्वास्थ्य के निर्धारक के रूप में योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
इन्होंने अपने एक साक्षात्कार में निम्नलिखित निष्कर्ष दिये हैं:
a. सेक्स एवं जेण्डर के बीच अन्तर
b. जेण्डर स्वास्थ्य का निर्धारक तत्व
c. मनुष्यों पर जेण्डर अपेक्षाओं का प्रभाव
d. जेन्डर, निर्धनता एवं डॉक्टरों (फिजीशियनों) की भूमिका
e. निजी दृष्टिकोण एवं पसंदगियों के विषय में जागरूक होने की आवश्यकता ।
f. जेन्डर पर्सपेक्टिव को दृष्टिगत रखते हुये सम्भावित प्रणाली एवं चिकित्सा साहित्य
g. चिकित्सा शिक्षा में समानता, मेडिसिन में और अधिक महिलाओं का प्रभाव तथा क्या मेडिसिन में अभी भी महिलाओं के लिये अवरोध बने हुये है ।
h. महिला स्वास्थ्य सम्बन्धी कैरियर की सिफारिश करते हुये उनके अनुभव ।
i. आर्थिक तथ्य
j. स्वास्थ्य के जेन्डर पर्सपेक्टिव को समझने के लिये उपर्युक्त सभी तथ्यों का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि कार्डियक रिहैब कार्यक्रमों में महिलायें, पुरुषों की तुलना में 20 प्रतिशत कम इनरोल होती है ।
k. पुरुषों को अवसाद के बाद वाली स्थित में जबकि लक्षण बडे तीव्र हो जाते हैं । विशेषज्ञ की सेवा लेनी पडती है ।
l. अवसाद सम्बन्धी बीमारी मेजर डिप्रेसिव डिसआर्डर की शुराआती दौर में शैक्षिक उपलब्धियों एवं अर्जन शक्ति पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मामले में अधिक कम हो जाती है ।
m. विभिन्न हिस्ट्रोलॉजिकल टाईप्स का निदान होने के बावजूद, वर्तमान में पुरुष एवं महिलाओं को लंग कैंसर के निदान हेतु एक ही प्रकार की जाँच पडताल करानी पडती है । महिलाओं के मामलों में धूम्रपान का सम्बन्ध लोअर फर्टीलिटी । सर्विक्स कैंसर ओर-टियोपोरोसिस तथा मासिक धर्म एवं रजोनिवृत्ति से होता है ।
n. हेट्रोसेक्सुअल काउन्टर पार्टस की तुलना में ‘गे’ व्यक्तियों एवं लेरिचयन महिलाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति की संभावना क्रमशः 6 गुना एवं दुगुना अधिक पायी जाती है ।
o. गर्भवती महिलायें जो धूम्रपान करती है उनके बच्चे जन्म के समय कम वजन वाले होते हैं ।
p. एक ही प्रकार के प्रतियोगिता स्तर पर, महिला खिलाडियों में पुरुष खिलाडियों की अपेक्षा नान कान्टैक्ट एनटीरियर क्रुशियेट लिगामेंट (एसीएल) से सम्बन्धित इन्जरी अधिक होती है । ये अनुमान है कि आबादी के 10 प्रतिशत तक व्यक्ति लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल अथवा ट्रांसजेन्डर्ड हैं ।
q. अतः यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि पुरुषों एवं महिलाओं की अलग-अलग सामाजिक भूमिकायें उनके स्वास्थ्य को अलग ढंग से प्रभावित करती हैं और हेल्थ एडवोकेसी का यह तकाजा है कि किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पडने वाले सामाजिक आर्थिक एवं जेन्डर प्रभावों को भली प्रकार समझा जाये ।
r. जेन्डर से स्वास्थ्य का पता चलता है । विशेषज्ञता, प्रमाण आधारित ऐसी देखभाल जो वास्तव में रोगी पर केन्द्रित होती है, यह आवश्यक है कि निम्नलिखित बिन्दुओं पर कार्य किया जाये ।
s. मेडिकल केयर के बायलॉजिकल एवं टेक्निकल पहलुओं को समझना ।
t. व्यक्ति और सामाजिक सन्दर्भ के बीच सह-सम्बन्ध को समझना ।
प्रायः सभी संस्कृतियों एवं सामाजिक संरचनाओं में पूरे विश्व में तथा सामाजिक समूहों में, पुरुषों की में महिलाओं का संसाधनों पर नियंत्रण अपेक्षाकृत कम होता है । उन्हें शिक्षा एवं प्रशिक्षण जैसी सुविधायें मिलने के समान अवसर भी कम उपलब्ध होते है ।
फिर भी पुरुष अथवा महिला का अभिप्राय विभिन्न संस्कृतियों, जातियों एवं वर्गों में अलग-अलग होता है । यह महत्वपूर्ण है कि पुरुष अथवा महिला की अवधारणा को स्पष्ट किया जाये तथा यह मालूम किया जाये कि किन पुरुष अथवा महिला समूहों के विषय में बात कर रहे हैं ।
चिकित्सा व्यवसाय जो हमें प्रतीत होता है, पूर्णतः हमारे व्यक्तिगत एवं संस्थागत दृष्टिकोणों से प्रभावित है और इन्हीं लेंसों के माध्यम से जीवन को देखते है जेन्डर लेंस इस बात को रंग देते हैं कि मेडिकल समस्याओं को किस प्रकार देखते हैं तथा बीमारी को कैसे परिभाषित करते हैं यह भी संभव है कि जिस लिट्रेचर डाटा बेस से अपना प्रमाण हासिल करते हैं और जिस पर थेरेपी निर्णय आधारित करते हैं, उसकी कमियों की अनदेखा कर जायें ।
संसाधनों, शक्ति अथवा निर्णय करने तथा भूमिका एवं उत्तरदायित्वों के सम्बन्ध में पहुँच बनाने अथवा नियंत्रण करने में जो जेन्डर आधारित अंतर पाये जाते हैं, उनका महिलाओं और पुरुषों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पडता है निम्नलिखित तरीकों से जेन्डर स्वास्थ्य की स्थिति को प्रभावित कर सकता है:
I. खतरा, जोखिम एवं संवेदनशीलता
II. स्वास्थ्य समस्याओं की प्रकृति, गहनता अथवा बारम्बारता
III. वे तरीके जिनके माध्यम से लक्षणों की पहचान होती है
IV. स्वास्थ्य रक्षा संबंधी उपाय
V. स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता
VI. निर्धारित उपचारों को अपनाने की योग्यता
VII. दीर्घकालिक सामाजिक एवं स्वास्थ्य परिणाम
VIII. गहरी समझ से उत्पन्न पेशेवर प्रवृत्तियों का प्रदर्शन तथा अंतरों विविधताओं के प्रति सम्मान ।