नेतृत्व पर निबंध | Essay on Leadership in Hindi!
नेतृत्व पर निबंध | Essay on Leadership
Essay # 1.
नेतृत्व का अर्थ और परिभाषाएं (Meaning and Definition of Leadership):
सत्ता के शीर्ष तलों पर प्राधिकार या सत्ता मौजूद होती है । इसके उपयोग से संगठन में अधीनस्थों से काम लिया जाता है, लेकिन इस प्राधिकार की सत्ता के साथ व्यक्तित्व की सत्ता का होना भी आवश्यक है । यह व्यक्तित्व की सत्ता ही नेतृत्व शक्ति का निर्धारण करती है । अधीनस्थों को उद्देश्यों के साथ समन्वित करने की प्रेरणा दायी व्यक्तिगत विशेषता ही नेतृत्व कहलाती है ।
अर्थ:
ADVERTISEMENTS:
शब्दकोष के अनुसार नेतृत्व में दो अर्थ समाहित है, पहला अग्रणी होना और दूसरा आदेश देना । नेतृत्व निजी या प्रशासनिक दोनों संगठनों में लक्ष्य प्राप्ति के लिए अधीनस्थों से व्यवहार का एक उपकरण है । नेतृत्व वह है जो निर्धारित लक्ष्यों को अधीनस्थों के व्यवहार से एकीकृत कर दे ।
मिलेट ने इसे अधीनस्थों से इच्छानुसार व्यवहार करने का अर्थ प्रदान किया एवं चेस्टर बर्नार्ड ने इसे लक्ष्यों की प्राप्ति में अधीनस्थों के स्वेच्छिक योगदान को सुनिश्चित करने का माध्यम बनाया । इस प्रकार नेतृत्व का अर्थ है अधीनस्थों से सांगठनिक उद्देश्यों को प्राप्त कराने का गुण । इसमें नेतृत्वकर्ता अधीनस्थों का उचित मार्गदर्शन करता है ।
परिभाषाएं:
हाज एवं जानसन- “औपचारिक, अनौपचारिक परिस्थितियों में व्यक्तियों के व्यवहार को अनुकूल करने की योग्यता नेतृत्व है ।”
ADVERTISEMENTS:
टेरी- ”नेतृत्व अधीनस्थों को उनके ऐच्छिक संघर्ष के लिए प्रेरित करने का कार्य है, ताकि सामूहिक उद्देश्य प्राप्त हो सकें ।”
डगलस मैकग्रैगर- ”नेतृत्व, नेता और परिस्थितियों के संबंध का नाम है । परिस्थिति के सम्मुख उभरना ही नेतृत्व है ।”
चेस्टर बर्नाड- ”नेतृत्व “सामूहिक इच्छा शक्ति” को संचार के माध्यम से समन्वित करता है ताकि उद्देश्य प्राप्त हो सके ।”
कीथ डेविस- ”नेतृत्व परिभाषित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अन्य को सहमत करने की क्षमता है ।”
ADVERTISEMENTS:
कूंटज और ओडोनेल- “नेतृत्व समान उद्देश्य की प्रापित के लिये आवश्यक सहयोग हेतु लोगों को सहमत करने की गतिविधि है ।”
मूने- ”नेतृत्व सत्ता का ऐसा स्वरूप है, जो वह प्रक्रिया में आते ही ग्रहण करती है ।”
Essay # 2.
नेतृत्व का अवधारणा (Concept of Leadership):
नेतृत्व की अवधारणा के इस प्रकार दो पक्ष सामने आते हैं:
1. व्यैक्तिक पक्ष और
2. प्रशासनिक पक्ष ।
एलन के अनुसार एक व्यक्ति व्यक्तिगत नेतृत्व की क्षमता के साथ पैदा हो सकता है लेकिन प्रशासनिक नेतृत्व उसे सीखना पड़ता है । उदाहरणार्थ आई.ए.एस. या डी.सी. आदि को चुनते समय उनमें नेतृत्व की क्षमता का आकलन किया जाता है । चुने जाने के बाद भी उन्हें प्रशासनिक नेतृत्व सिखाया जाता है ।
इस प्रकार नेतृत्व की अवधारणा विवेक की शक्ति और प्राधिकार की शक्ति से गुथी हुई है । एक नेता तभी अधिनस्थों का नेतृत्व कर सकता है जब उसके पास सत्ता ही नहीं इन दोनों के व्यवहारिक प्रयोग की कुशलता भी हो ।
परंतु जहां शास्त्रीय विचारक नेतृत्व का विश्लेषण उसके गुणों के आधार पर करते है वहीं व्यवहारवादी और आधुनिक विचारक क्रमशः अनुयायियों और अनौपचारिक स्थितियों के संदर्भ में करते है। इसी आधार पर नेतृत्व की अवधारणा से संबंधित 3 सिद्धांत समूह प्रचलित हो गये ।
नेता और प्रबंधक:
प्रबंधक को नेतृत्व के अलावा अन्य कार्य भी करने होते है । अर्थात एक नेता आवश्यक रूप से प्रबंधक नहीं होता लेकिन एक प्रबंधक को आवश्यक रूप से नेता होना चाहिए तभी वह सफल हो सकता है । यद्यपि यह भी जरूरी नहीं कि प्रत्येक प्रबंधक एक नेता भी हो ।
वस्तुतः प्रबंध से भिन्न नेतृत्व का सर्वाधिक विशिष्ट लक्षण है, ”अनुयायियों को अनुसरण करने के लिये प्रभावित करने की क्षमता” । हिक्स-गुलेट- ”नेता और प्रबंधक अनिवार्यत: पर्यायवाची नहीं हैं । नेतृत्व प्रबंध का उपवर्ग है । एक नेता को जिसे अन्य के व्यवहार को प्रभावित करना होता प्रबंधक के सभी कार्य करना जरूरी नहीं होता ।”
Essay # 3.
नेतृत्व के तत्व (Elements of Leadership):
इसके 3 तत्व महत्वपूर्ण हैं:
1. नेता
2. अनुयायी और
3. परिस्थिति ।
महत्व:
(a) ग्लोबर- अधिकांश संगठन दुर्बल नेतृत्व के कारण असफल होते है ।
(b) पीटर इकर- जो नेता होते है, वह संगठन के मूल लेकिन दुलर्भ साधन होते है ।
(c) डेविस- “नेतृत्व के अभाव में संगठन मनुष्य और मशीन की खिचड़ी बन जाएगा । नेतृत्व ही है जो प्रतिभा को वास्तविकता में बदलता है । यह संगठन और कार्मिकों की प्रतिभा को सफलता की और ले जाने वाली अंतिम प्रक्रिया है ।”
Essay # 4.
नेतृत्व के लक्षण या विशेषताएं (Features of Leadership):
(i) अनुयायियों को एकत्रित करना:
नेतृत्व का अनिवार्य लक्षण है उसके अनुयायी जो उसके प्रति निष्ठावान हों और उसके आदेशों के अनुरूप कार्य करें । बिना अनुयायियों के कोई नेता हो ही नहीं सकता ।
(ii) सामूहिक उद्देश्य:
नेतृत्व का लक्षण यह भी हैं कि वह अपने अनुयायियों को एक सामूहिक लक्ष्य की तरफ निर्देशित करें । नेता और अनुयायियों के सामान्य उद्देश्य होते है, अन्यथा अलग अलग उद्देश्य होने पर वहां नेतृत्व अनुपस्थित होगा ।
(iii) अनुयायियों को प्रभावित करना:
नेतृत्व का अनिवार्य लक्षण है कि वह अपनी इच्छानुसार अनुयायियों के व्यवहार को परिवर्तित कर सके ।
(iv) प्राधिकार या शक्ति:
लोक प्रशासन में नेता के पास अधिकार होते हैं, जिनके द्वारा वह अधीनस्थों का नेतृत्व करता है । निजी संगठनों में भी नेतृत्व की शक्ति नेता को प्रबन्ध मण्डल से ही मिलती है । समाज में जो नेता दिखाई देते हैं उनके पास व्यक्तित्व की शक्ति होती है, यह शक्ति ही नेतृत्व को स्थापित करती है ।
(v) नेता-अनुयायी सम्बन्ध:
मेक्ग्रेगर और फालेट जैसे व्यवहारवादी विचारक मानते हैं कि नेतृत्व की प्रमुख विशेषता नेता-अनुयायी सम्बन्धों में निहित है । नेतृत्व वही होता है, अनुयायी जिसके लक्ष्यों के साथ अपने को एकीकृत कर लेते हैं ।
वस्तुतः परम्परावादी विचारक नेतृत्व की उन विशेषताओं पर अधिक बल देते है जिनके द्वारा नेता अधीनस्थों को प्रभावित करने में सफल होता है । इसके विपरीत व्यवहारवादी अनुयायियों की स्वीकृति पर नेतृत्व का अस्तित्व और उसकी सफलता मानते है ।
Essay # 5.
नेतृत्व के प्रकार (Types of Leadership):
शक्ति के उपयोग, अधीनस्थों से व्यवहार तथा नेतृत्व शैली के आधारों पर नेतृत्व के अनेक प्रकार विद्वानों ने सुझाए है । वस्तुत: ओहियो विश्वविद्यालय का वर्गीकरण अधिक मान्य है ।
जिसने अनुसंधान के बाद 5 प्रकार के नेता बताए:
1. नौकरशाह:
जो वरिष्ठ अधिकारियों को खुश रखता है, तथा अधीनस्थों को कार्य पर लगाये रखता है । सरकारी प्रशासन विशेषकर विकासशील देशों के प्रशासन में यह मुख्यतः पाया जाता है । यह व्यक्तिवादी नेता है जो औपचारिक प्राधिकार के बल पर नेता होता है । कानून, नियम-प्रक्रिया की अधिक परवाह करता है । ऐसे नेता के प्रति अधीनस्थों में सम्मान मात्र उसके प्राधिकार के कारण होता है अन्यथा पीठ पीछे वे उसकी बुराई करते है और अवसर मिलने पर अवज्ञा भी कर देते हैं ।
2. अधिनायक:
जो दण्ड या दबाव (प्राधिकार) के बल पर लक्ष्य प्राप्ति पर विश्वास रखता है ।
3. कुटनीतिज्ञ:
यह अवसरवादी और शोषणवादी प्रकार का नेता है । विदेश मंत्रालय, प्रतिनिधि मण्डल आदि में इनकी जरूरत महसूस होती है । लेकिन ये विकास प्रशासन के सवर्था प्रतिकूल माने जाते है, जनता से जुड़ना इन्हें पसंद नहीं होता और अधीनस्थों पर ये विश्वास नहीं करते ।
4. विशेषज्ञ:
यह अपने ज्ञान के आधार पर अधीनस्थों का विश्वासपात्र होता है लेकिन अपने ज्ञान तक सीमित दृष्टिकोण रखता है । बढ़ते विशेषीकरण ने इसके महत्व को प्रशासन में बढ़ाया है । अधीनस्थों से सहयोग करने वाला और अधीनस्थों में लोकप्रिय ”विशेषज्ञ नेता” जब परिवर्तन की बात करता है तो अधीनस्थ साथ नहीं देते ।
5. सहभागी:
इसे अधीनस्थों के साथ सम्बन्ध बनाना अच्छा लगता हैं ।
अन्य प्रकार:
हेराल्ड गार्टनर ने नेता के तीन प्रकार बताए- अधिनायकवादी, करिश्मायी और प्रजातांत्रिक । उसने भी प्रजातांत्रिक नेता को सबसे श्रेष्ठ बताया जो अधीनस्थों से चर्चा उपरांत कोई निर्णय लेता है ।
फालेट ने नेतृत्व के तीन प्रकार बताये:
1. पद का नेतृत्व- इसमें नेता के पास औपचारिक प्राधिकार मात्र होता है ।
2. व्यक्तित्व का नेतृत्व- इसमें नेता के पास शक्तिशाली व्यैक्तिक गुण होते है ।
3. कार्य का नेतृत्व- इसमें नेता के पास औपचारिक प्राधिकार और व्यैक्तिक गुण दोनों होते है ।
वस्तुतः परिस्थितियों के अनुरूप नेतृत्व का प्रकार उभरना चाहिये अन्यथा सामान्यकाल में सहभागी या प्रजातांत्रिक नेतृत्व तुलनात्मक दृष्टि से श्रेयस्कर हैं ।
Essay # 6.
नेतृत्व के कार्य (Functions of Leadership):
संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति में नेतृत्व के कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है । उसको संगठन के जीवन में विविध कार्य-दायित्वों का निर्वहन करना होता है जिन्हें विद्वानों ने तय करने की कोशिशें भी की हैं ।
हिक्स तथा गुलेट:
इन्होंने नेता के 8 कार्यों का उल्लेख किया है:
1. निर्णय देना
2. सुझाव देना
3. उद्देश्य सामने रखना
4. उत्प्रेरक का कार्य करना
5. सुरक्षा प्रदान करना
6. प्रतिनिधित्व करना
7. अभिप्रेरणा प्रदान करना
8. प्रशंसा करना ।
डाल्ट ई. मैक्फारलैंड ने नेता के सात कार्य बताए हैं:
1. समूह के लक्ष्यों का निर्धारण करना
2. योजना का निर्माण करना
3. नीति तथा कार्यविधि का निर्धारण करना
4. अधीनस्थों का मार्गदर्शन करना
5. कुशल कार्मिकों का समूह बनाना तथा उन्हें संरक्षण देना
6. अधीनस्थों के व्यवहार का उनकी उपलब्धियों के संदर्भ में मूल्यांकन करना
7. अनुयायियों के लिए एक आदर्श प्रदान करना
नारमैन एफ. वाशबर्न ने नेता के आठ कार्य महत्वपूर्ण माने हैं:
1. क्रियाओं का सूत्रपात करना
2. आदेश देना
3. समूह के संचार तंत्र का प्रयोग करना
4. अपने समूह के नियमों एवं परंपराओं को जानना एवं उनका पालन करना
5. अनुशासन बनाए रखना
6. अधीनस्थों को सुनना
7. अधीनस्थों की आवश्यकताओं के प्रति सचेत रहना
8. अधीनस्थों की सहायता करना
मेरी पार्कर फालेट ने नेता के तीन कार्य बताए हैं:
1. समन्वय करना
2. उद्देश्यों का निर्धारण करना
3. पूर्वानुमान लगाना
फिलिप सेल्जनिक:
इन्होंने नेता के 4 कार्यों का उल्लेख किया है:
1. संस्था के मिशन और भूमिका को नेता ही परिभाषित करता है । अर्थात सांगठनिक लक्ष्य और नीतियां निर्धारित करता है ।
2. उद्देश्यों का संस्थानीकरण करना अर्थात नीतियों को संगठन के निचले स्तरों तक अर्थपूर्ण ढंग से स्थापित करना ।
3. संस्था की अखंडता की सुरक्षा अर्थात संगठन के आधारभूत मूल्यों और विशिष्ट पहचान को बनाये रखना ।
4. आंतरिक संघर्ष का नियमन करना अर्थात संगठन में विभिन्न विरोधी हितों के मध्य संतुलन बनाये रखना ।