उदारवाद पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Liberalism: Top 4 Essays in Hindi!

Essay # 1. उदारवाद का अर्थ (Meaning of Liberalism):

‘उदारवाद’ अंग्रेजी के शब्द ‘Liberalism’ का हिन्दी रूपान्तरण है । ‘Liberalism’ शब्द लैटिन के ‘Liber’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ स्वतंत्रता या आजादी होता है । ‘Liberty’ शब्द भी इसी ‘Liber’ से बना है । अतः उदारवाद स्वतंत्रता के विचार का समर्थक है ।

मूलतः ‘Liberal’ शब्द ऐसे व्यक्ति या सिद्धांत के साथ प्रयुक्त होता था जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करे परंतु ‘लिबरल’ (Liberal) का अर्थ ‘उदार’, ‘सह्य’, ‘शालीन’, ‘सुसंस्कृत’, आदि भी होता है ।

एक विचारधारा के रूप में उदारवाद का उदय सामंतवाद (Feudalism) के पतन के साथ शुरु होता है । इसने राजनीति को बाजार-अर्थव्यवस्था (Market Economy) के अनुरूप ढालने का प्रयत्न किया । प्रारम्भ में तो इसने व्यक्ति (Individual) को राजनीति का केन्द्र मानकर ‘व्यक्तिवाद’ को बढावा दिया परन्तु कालातर में इसने राजनीति में समूहों (Groups) की भूमिका को स्वीकार करके ‘बहुलवाद’ (Pluralism) को अपना लिया ।

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इसी तरह इसने प्रारम्भ में मुक्त बाजार व्यवस्था को सामान्य हित का साधन मानते हुए ‘यद्‌याव्यम या अहस्तक्षेप की नीति’ (Laissez Faire) का सम्मान किया परन्तु आगे चलकर ‘कल्याणकारी राज्य’ (Welfare State) का सिद्धांत अपना लिया ।

Essay # 2. उदारवाद की उत्पत्ति (Origin of Liberalism):

इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश राजनीति दार्शनिक जॉन लॉक (1632-1704) ‘उदारवाद के जनक’ के रूप में जाना जाता है और 1688 ई॰ की रक्तहीन या गौरवमय क्रांति को ‘उदारवाद की विजय’ के रूप में याद किया जाता है ।

लीक ने सबसे पहले ‘जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार’ (Right to Life, Liberty and Property) को मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार मानते हुए तर्क दिया कि इन्हीं अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार की स्थापना एक ट्रस्ट न्यास के रूप में की जाती है ।

अतः सरकार अपने इस दायित्व से बँधी होती है और यदि वह अपने इस दायित्व को पूरा करने में विफल रहती है तो जनता को अपनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार मिल जाता है ।

Essay # 3. उदारवाद की कुछ आधरभूत मान्यताएं (Some Fundamental Beliefs of Liberalism):

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1. मनुष्य विवेकशील प्राणी होने के नाते अपने तर्कबुद्धि (Reason) के आधार पर अपनी और अपने समाज की प्रगति में असीम योगदान दे सकता है ।

2. व्यक्ति के स्वार्थ और सामान्य हित की सिद्धि में कोई आधारभूत विरोध नहीं है ।

3. मनुष्य को कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त हैं, जिसके उल्लंघन का अधिकार किसी भी सत्ता को प्राप्त नहीं है ।

4. चूँकि नागरिक सामाजिक समझौते का परिणाम है जिसका ध्येय मनुष्यों का हित-साधन है, अतः उदारवाद केवल सांविधानिक शासन को मान्यता देता है, अन्य किसी भी तरह के सत्तावादी या पूर्णसत्तावादी शासन को नहीं ।

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5. इसकी माँग है कि सभी व्यक्तियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त हो और ऐसी अभिव्यक्ति के प्रति सहिष्णुता बरती जाए । व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भी प्रतिबंध केवल इस आधार पर लगाया जा सकता है जब दूसरों को भी वैसी ही सर्वत्रता प्रदान करना आवश्यक हो ।

6. उदारवाद अनुबंध की स्वतंत्रता में विश्वास करता है । इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति केवल अपनी सहमति से किसी के. प्रति कोई दायित्व स्वीकार कर सकता है । सामाजिक लेन-देन में व्यक्ति की गरिमा (Dignity) का ख्याल रखा जाता है ।

7. अन्ततः, इसके अनुसार सरकारी नीतियां विभिन्न व्यक्तियों और समूहों की स्वतंत्र सौदेबाजी का परिणाम होनी चाहिए ।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि उदारवाद मुख्यतः दो विषयों पर जोर देता है-एक तो यह निरंकुश सत्ता को अस्वीकार करके उसकी जगह मनुष्यों की स्वतंत्रता पर आधारित व्यवस्था स्थापित करने का लक्ष्य सामने रखता है और दूसरा यह व्यक्ति के व्यक्तित्व की स्वतंत्र अभिव्यक्ति की मांग करता है । इनमें से एक उदारवाद का व्यावहारिक पक्ष है और दूसरा दार्शनिक पक्ष ।

Essay # 4. उदारवाद का विकास (Development of Liberalism):

14वीं सदी के यूरोप का पुनर्जागरण आंदोलन (Renaissance) (इटली के फलोरेंस नगर से शुरू होकर यूरोप के विभिन्न देशों में फैल गया) ने कला और संस्कृति के क्षेत्र में चर्च के अधिकार का अंत कर दिया और राजनीति के क्षेत्र में मानवतावाद और धर्मनिरपेक्षता को बढावा दिया ।

16वीं सदी में यूरोप में धर्मसुधार आंदोलन हुआ जिसका नेतृत्व जर्मनी के मार्टिन लूथर (1483-1546) ने किया । लूथर ने यह तर्क दिया कि मोक्ष प्राप्ति का साधन केवल आस्था और धर्मग्रंथों का पालन नहीं है । इस आंदोलन के फलस्वरूप एक नए धर्म प्रोटेस्टेंट का उदय हुआ जिसने कैथोलिक चर्च के अनन्य अधिकार को चुनौती दी ।

16-17वीं सदी की वैज्ञानिक क्रांति ने सत्य के अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक विधि को प्रोत्साहन दिया । 18वीं सदी के ज्ञानोदय (बौद्धिक क्रांति) में वाल्टेयर, रूसो, दिदेरो, मांटेस्क्यू, लॉक हम, एडम स्मिथ, गेटे, काण्ड, जैफर्सन, टामस पेन, आदि विचारकों का योगदान था ।

इन्होंने इस विचार को बढ़ावा दिया कि मनुष्य की तर्कबुद्धि या विवेक जीवन के किसी क्षेत्र में सत्य का पता लगाने का सर्वोत्तम साधन है । वैज्ञानिक क्रांति के परिणामस्वरूप मशीनी और औद्योगिक क्रांति ने प्राचीन कृषि व्यवस्था को उद्योग प्रधान व्यवस्था में बदल दिया, जिससे एक मध्य वर्ग (व्यावसायिक वर्ग) का उदय हुआ । इस वर्ग ने स्वतंत्रता व समानता का नारा बुलंद किया जिससे राजनीति बाजार-व्यवस्था की तरफ मुड़ गई ।

उपरोक्त घटनाओं ने उदारवाद के उद्‌भव और विकास में महती भूमिका निभाई । हेराल्ड जे. लॉस्की के शब्दों में, ”वस्तुतः उदारवादी परंपरा के जन्म की व्याख्या एक ही तरह से दी जा सकती है, वह इस तरह कि इसके जन्म के साथ-साथ आर्थिक शक्ति एक वर्ग के हाथों से निकलकर दूसरे वर्ग के हाथों में चली गई थी ।”

पहले यह शक्ति उच्चवर्गीय जमींदारों के हाथों में थी अब यह मध्यवर्गीय व्यापारियों के हाथों में आ गई थी । लास्की कहता है कि ”ऐतिहासिक तथ्य यह है कि उदारवादी परंपरा एक बौद्धिक क्रांति थी और इसका प्रमुख ध्येय नए औद्योगिक क्षेत्र में संपत्ति के स्वामियों के हितों की रक्षा करना था ।”

राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में उदारवाद की दो धाराएँ हैं- परम्परागत और आधुनिक । इन दोनों धाराओं के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण अंतर देखने को मिलता है । परम्परागत उदारवाद (Classical Liberalism) में ‘अहस्तक्षेप की नीति’ और ‘व्यक्तिवाद’ को प्रमुखता दी जाती थी, अतः इसे नकारात्मक उदारवाद कहा जाता है, जबकि आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) में व्यक्तियों के कल्याण के लिए राज्य की सकारात्मक भूमिका पर बल दिया जाता है, अतः इसे सकारात्मक उदारवाद कहा जाता है ।

परम्परागत उदारवाद के समर्थक एडम स्मिथ, बेंथम, जेम्स मिल, हर्बर्ट स्पेंसर आदि हैं जबकि जॉन स्टुअर्ट मिल ने प्रारम्भ में व्यक्तिवाद (Individualism) का समर्थन किया परन्तु बाद में राज्य की नकारात्मक भूमिका को सकारात्मक भूमिका में बदलने का प्रयत्न करके आधुनिक उदारवाद को बढावा दिया । आधुनिक उदारवाद के प्रवर्तकों में जे.एस. मिल के अलावा टी.एच.ग्रीन, एलटी हॉबहाउस, मैकाइवर, लॉस्की, आदि हैं ।

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