समुद्री प्रदूषण पर निबंध: अर्थ और स्रोत | Essay on Marine Pollution: Meaning and Sources in Hindi!
Essay # 1. समुद्री प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Marine Pollution):
समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवत: हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं । समुद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं । प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है ।
कई सामर्थ्य जहरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं । इस तरह जहरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं ।
कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुए रासायनिक प्रक्रिया के जरिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं । जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं ।
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एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी । जहरीली धातुएं भी समुद्री फूड वेब में शामिल हो सकती हैं ।
ये उत्तकों, जीव रसायन, व्यवहार, प्रजनन में परिवर्तन ला सकती है ओर समुद्री जीवन के विकास को दबा सकती हैं । साथ ही कई जीव खाद्यों में मछली भोजन या फिश हायड्रोलायसेट तत्व होते हैं ।
इस तरह समुद्री विषाणु भू-थल जीवों में स्थानांतरित हो जाते हैं और बाद में मांस और अन्य डेरी उत्पादों में पाए जाते हैं । हालांकि समुद्री प्रदूषण का काफी लंबा इतिहास रहा है, लेकिन इससे निपटने के लिए सार्थक अंतर्राष्ट्रीय कानून बीसवीं सदी में ही बनाए गए ।
1950 के दशक की शुरुआत में समुद्र के कानून को लेकर हुए संयुक्त राष्ट्र के कई सम्मेलनों में समुद्री प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की गई । ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना था कि महासागर इतने विशाल हैं कि उनमें विरल करने की अपार क्षमता है और इसलिए प्रदूषण हानिरहित हो जाएगा ।
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1950 के दशक के अंत और 1960 के दशक के शुरुआती दौर में, अमेरिका में परमाणु ऊर्जा आयोग से लाइसेंस प्राप्त कंपनियों द्वारा तटीय इलाकों में, विंडस्केल स्थित ब्रिटिश संवर्धन संयंत्र द्वारा आईरिश सागर में, फ्रांस के कमीशरेट अ ला एनर्जी एटॉमीक द्वारा भूमध्यसागर में रेडियोधर्मी कचरा फेंकने को लेकर कई विवाद हुए ।
भूमध्यसागर विवाद के बाद, उदाहरण के तौर पर, जेक्स कॉस्तेऊ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुद्री प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाली एक नामी हस्ती बन गए ।
1967 में टॉरी कैन्यन नाम के ऑयल टैंकर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने और 1967 में कैलिफोर्निया के तटीय इलाके में सैंटा बारबरा के तेल रिसाव बाद समुद्री प्रदूषण ने अंतर्राष्ट्रीय मीडीया का ध्यान अपनी ओर और खींचा ।
1972 में स्टाकहॉम में मानव पर्यावरण पर हुए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में समुद्री प्रदूषण पर खूब चर्चा हुई । इसी साल समुद्री प्रदूषण रोकने के लिए कचरे ओर अन्य पदार्थों के समुद्र में फेंके जाने को लेकर संधिपत्र पर हस्ताक्षर हुए, इसे लंदन समझौता भी कहा जाता है ।
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लंदन समझौते ने समुद्री प्रदूषण पर प्रतिबंध नहीं लगाया, अपितु इसने काली और स्लेटी दो सूचियां तैयार की जिसके तहत प्रतिबंधित पदार्थों को काली सूची में रखा गया और राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा नियंत्रित पदार्थों को स्लेटी (ग्रे) सूची में डाला गया ।
उदाहरण के तौर पर सायनाइड ओर उच्च कोटि के रेडियोधर्मी पदार्थों को काली सूची में रखा गया । लंदन समझौता सिर्फ जहाजों द्वारा कचरा फेंके जाने से संबंधित था, इसलिए पाइपलाइनों द्वारा फेंके जा रहे कचरे को नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम नहीं उठाए गए ।
Essay # 2. समुद्री प्रदूषण के स्रोत (Sources of Marine Pollution):
1. सेप्टिक नदी (Septic River):
समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषण के रास्तों के वर्गीकरण और परीक्षण करने के विभिन्न तरीके हैं । पैटिन (एन.डी) लिखते हैं कि आम तौर पर महासागरों में प्रदूषण के तीन रास्ते हैं- महासागरों में कचरे का सीधा छोड़ा जाना, बारिशों के कारण नदी नालों में अपवाह से और वातावरण में छोड़े गए प्रदूषकों से ।
समुद्र में संदूषकों के प्रवेश का सबसे आम रास्ता नदियां हैं । महासागरों से पानी का वाष्पीकरण, वर्षण/अवक्षेपण से ज्यादा होता है । संतुलन की बहाली महाद्वीपों पर बारिश के नदियों में प्रवेश और फिर समुद्र में वापस मिलने से होती है ।
न्यूयार्क स्टेट में हडसन और न्यू जर्सी में रैरीटेन, जो स्टेटन द्वीप के उत्तरी ओर दक्षिणि सिरों में समुद्र में मिलती हैं, समुद्र में प्राणीमन्दप्लवक (कोपपॉड) के पारा संदूषण का मुख्य स्रोत हैं ।
फिल्टर-फीडिंग कोपपॉड में सबसे ज्यादा मात्रा इन नदियों के मुखों में नहीं बल्कि 70 मील दक्षिण में, एटलांटिक सिटी के नजदीक है, क्योंकि पानी तट के बिल्कुल नजदीक बहता है । इससे पहले कि प्लवक विषाणुओं का सेवन करें, कई दिन बीत जाते हैं ।
प्रदूषण अमूमन तयपॉइंट और अज्ञात नॉनपॉइंट स्रोत प्रदूषण में वर्गीकृत किया जाता है । तयपॉइंट स्रोत प्रदूषण तब होता है जब प्रदूषण का इकलौता, स्पष्ट और स्थानीय स्रोत मौजूद हो । इसका उदाहरण महासागरों में औद्योगिक कचरे और गंदगी का सीधे तौर पर छोड़ा जाना है ।
इस तरह का प्रदूषण खास तौर पर विकासशील देशों में देखने को मिलता है । नॉनपॉइंट स्रोत प्रदूषण तब घटित होता है जब प्रदूषण अस्पष्ट और बिखरे हुए स्रोतों से होता है । इन्हें नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो सकता है । कृषि अपवाह और वायु प्रवाह से पैदा हुआ कचरा इसके मुख्य उदाहरण हैं ।
2. रियो टिंटो नदी में एसिड खान निकासी जल (Acid Mine Clearance Water in Rio Tinto River):
प्रदूषक नदियों और सागरों में शहरी नालों और औद्योगिक कचरे के निस्सरण से सीधे प्रवेश करते हैं, कभी-कभी हानिकारक और जहरीले कचरे के रूप में भी । अंदरूनी भागों में तांबे, सोने इत्यादि का खनन, समुद्री प्रदूषण का एक और स्रोत है ।
ज्यादातर प्रदूषण महज मिट्टी से होता है, जो नदियों के साथ बहते हुए समुद्र में प्रवेश करती है । हालांकि खनन के दौरान खनिजों के निस्सरण से कई समस्याएं हो सकती है, जैसे की तांबा, जो एक आम औद्योगिक प्रदूषक है, मूंगा के जीवन वृत और विकास को हानि पहुंचा सकता है ।
खनन का बहुत घटिया पर्यावरण ट्रैक रिकॉर्ड है । उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक, खनन ने पश्चिमी महाद्वीपीय अमेरीका में चालीस प्रतिशत से ज्यादा जलोत्सारण क्षेत्रों के नदी उद्रमों के हिस्सों को प्रदूषित किया है । इस प्रदूषण का ज्यादातर हिस्सा समुद्र में मिलता है ।
3. भूमी अपवाह (Land Runoff):
कृषि से सतह का अपवाह, साथ-साथ शहरी अपवाह और सड़कों, इमारतों, बंदरगाहों ओर खाड़ियों के निर्माण से हुआ अपवाह, कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और खनिजों से लदे कणों और मिट्टी को अपने साथ ले जाता है ।
इस पोषक-तत्वों युक्त पानी से तटीय इलाकों में शैवाल और पादप प्लवक पनप सकते हैं, जिन्हें एल्गल ब्लूम्स कहा जाता है और जो मौजूद ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर ऑक्सीजन की कमी वाली स्थिति पैदा करने का सामर्थ्य रखते हैं ।
सड़कों और राजमार्गों से प्रदूषित अपवाह तटीय इलाकों में जल प्रदूषण का महत्वपूर्ण स्रोत है । प्यूजिट साउंड में प्रवेश करने वाले 75 प्रतिशत जहरीले रसायन, सड़कों, छतों, खेतों और अन्य विकसित भूमि से तूफानों के दौरान शुद्ध पानी के जरिए पहुंचते हैं ।
जहाज जलमार्गों और महासगरों को कई तरह से प्रदूषित करते हैं । तेल रिसाव के कई घातक नतीजे हो सकते हैं । समुद्री जीवन के लिए जहरीला होने के साथ-साथ, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हायड्रोकार्बन्स (पीएएच), जो कच्चे तेल में मौजूद होते हैं, को साफ करना बहुत मश्किल होता है और यह कई सालों तक तलछट और समुद्री वातावरण में बने रहते हैं ।
मालवाहक जहाजों द्वारा कूड़ा-कबार का छोड़ा जाना बंदरगाहों, जलमार्गों और महासागरों को प्रदूषित कर सकता है । कई बार पोत जानबूझ कर अवैध कचरे को छोड़ते हैं बावजूद इसके कि विदेशी ओर घरेलू नियमों द्वारा ऐसे कार्य प्रतिबंधित हैं ।
अनुमान लगाया गया है कि कंटेनर ढोने वाले मालवाहक जहाज हर साल समुद्र में दस हजार से ज्यादा कंटेनर समुद्र में खो देते हैं (खासकर तूफानों के दौरान) । जहाज ध्वनि प्रदूषण भी फैलाते हैं जिससे जीव-जंतु परेशान होते हैं ओर स्थिरक टैंकों से निकलने वाला पानी हानिकारक शैवाल और अन्य तेजी से पनपने वाली आक्रमक प्रजातियों को फैला सकता है ।
समुद्र में लिया गया ओर बंदरगाहों पर छोड़ा गया स्थिर पानी अवांछित असाधारण समुद्री जीवन का मुख्य स्रोत है । मीठे पानी में पाए जाने वाले आक्रामक जेबरा शंबुक, जो मूल रूप से ब्लैक, कैस्पियन ओर एजोव सागरों में पाए जाते हैं, अमेरिका और कनाडा के बीच पाई जाने वाली पांच बड़ी झीलों (ग्रेट लेक्स) में किसी पार-महासागरीय पोत के स्थिरक पानी के जरिए ही पहुंचे होंगे ।
मीनिस्ज मानते हैं कि पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली अकेली आक्रमक प्रजाति की बात की जाए तो सबसे बुरे उदाहरणों में से एक जैलीफिश है, जो उतनी हानिकारक प्रतीत नहीं होती । नीमियोप्सिस लीड्च्यी, कॉम्ब जैलीफिश की प्रजाति है जो इस कदर फैली कि आज ये दुनिया भर की कई खाड़ियों में मौजूद है ।
1982 में पहली बार इसका पता चला और माना जाता है कि ये कृष्ण सागर (ब्लैक सी) में किसी जहाज के स्थिरक पानी के जरिए पहुंची होगी । जैलीफिश की तादाद एकाएक बढ़ गई और 1988 तक ये स्थानीय मत्स्य उद्योग के लिए सिरदर्द का सबब बन गई ।
1984 में एंकवी मछली की पकड़ 204,000 टन थी जबकि 1993 में यह घटकर 200 टन रह गई । स्प्रैट 1984 में 24,600 टन से घटकर 1993 में 12,000 टन और हॉर्स मैकेरल जो 1984 में 4,000 टन पकड़ी गई थी, 1993 में एक भी नहीं पकड़ी गई ।
अब जब जैलीफिश ने मछलिओं के डिंबों सहित प्राणीमन्दप्लवकों को लगभग खत्म कर दिया है, इनकी संख्या नाटकीय ढंग से घट गई है, लेकिन यह अब भी पारिस्थितिक तंत्र के विकास को बढ़ने से रोके हुए है ।
आक्रामक प्रजातियां पहले से अधिकृत क्षेत्रों पर कब्जा कर सकती हैं, नई बीमारियों को फैलाने में मददगार साबित हो सकती हैं, नए आनुवंशिक पदार्थों की शुरूआत कर सकती है, जलमग्न समुद्री दृश्यों को बदल सकती हैं और स्थानीय प्रजातियों की भोजन प्राप्त करने की क्षमता को खतरे में डाल सकती हैं । यह आक्रमक प्रजातियां अकेले अमेरिका में ही सालाना 138 बिलियन डॉलर के राजस्व और प्रबंधन घाटे की वजह हैं ।
4. वायुमंडलीय प्रदूषण (Atmospheric Pollution):
संपूर्ण कैरेबियन सागर और फ्लोरिडा में विभिन्न वायुमंडलीय धूल के प्रवाल मृत्यु ग्राफ से जुड़ते हुए, के उपरांत अफ्रीका में सूखा पड़ने के कारण धूल भरे तूफान और भी बदतर हो गए हैं । कैरिबियन ओर फ्लोरिडा की ओर बहने वाली धूल में हर साल भारी विषमताएं देखने को मिलती हैं । हालांकि उत्तर प्रशांत दोलन के पॉसिटिव चरणों में ये प्रवाह और ज्यादा होता है । USGS धूल संबंधी घटनाओं को कैरिबिनयन और फ्लोरिडा में प्रवाल-भित्तियों की घटती सेहत से जोड़कर देखता है, खास तौर पर 1970 के दशक के उपरांत ।
जलवायु परिवर्तन महासागरों के तापमान को बढ़ा रहा है और वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड के स्तर को बढ़ा रहा है । कार्बन-डाइऑक्साइड के ये बढ़ते स्तर महासागरों को अम्लीय बना रहे हैं ।
परिणामस्वरूप ये जलीय पारिस्थितिक तंत्र को बदल रहा है और मछलियों के वितरण को परिवर्तित कर रहा है और ये मछली के कारोबार के बने रहने और उन समुदायों की जो इससे अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं उन्हें प्रभावित करता है । जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए स्वस्थ महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र का होना जरूरी है ।
Essay # 3. समुद्र तल में खनन (Mining in Sea Level):
समुद्र तल खनन, खनिजों के खनन की एक अपेक्षाकृत नई तकनीक है जो समुद्र तल में अमल में लाई जाती है । महासागरों में खनन के स्थान साधारणत: समुद्री सतह से 1,400-3,700 मीटर नीचे, पॉलीमैटलिक नॉड्च्यूल्स के बड़े हिस्सों के, या फिर सक्रीय और लुप्त हायड्रोथर्मल छिद्रों के आस-पास होते हैं ।
ये छिद्र सल्फाईड भंडार बनाते हैं जिनमें चांदी, सोना, तौबा, मैंगनीज ओर कोबाल्ट ओर जस्ता जैसी उत्कृष्ट धातुएं मौजूद होती हैं । इन भंडारों का खनन हायड्रालिक पंपों या फिर बकट प्रणाली द्वारा किया जाता है जिससे अयस्क को परिष्कृत करने के लिए जमीन पर लाया जाता है ।
जैसा सभी खनन प्रक्रियाओं के साथ है, समुद्र तल खनन से आस-पास के क्षेत्र में पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर भी सवाल उठे हैं । क्योंकि समुद्र तल खनन अपेक्षाकृत एक नया क्षेत्र है, इसलिए बड़े स्तर पर खनन की पूर्ण प्रक्रिया के नतीजे अभी अज्ञात हैं ।
हालांकि विषेशज्ञों को पूर्ण विश्वास है कि समुद्र तल के हिस्सों के हटाने से बेन्थिक परत में गड़बड़ी होगी, पानी स्तम्भ में विषाक्तता बढ़ेगी और सेडिमेंट प्ल्यूम्स में बढ़ोतरी होगी । समुद्र तल के हिस्सों को हटाने से बेन्थिक जीव-जंतुओं के प्राकृतिक वास को नुकसान पहुंचेगा, गड़बड़ी स्थायी भी हो सकती है, निर्भर करता है कि खनन का तरीका और स्थान कैसा है ।
क्षेत्र के खनन से पड़ने वाले सीधे प्रभाव के अलावा, रिसाव और क्षय भी खनन क्षेत्र की रासायनिक बनावट को बदल सकता है । समुद्र तल खनन के प्रभावों में, सेडिमेंट प्ल्यूम्स का सबसे ज्यादा प्रभाव हो सकता है । प्ल्यूम्स तब बनते हैं जब खनन से निकला मलबा (आम तौर पर सूक्ष्म कण) समुद्र में वापस फेंक दिया जाता है, जिससे पानी में कणों के बादल से तैरने लगते हैं ।
प्ल्यूम्स दो प्रकार के होते हैं- समुद्र तल पर पाए जाने वाले और सतह पर पाए जाने वाले समुद्र तल पर पाए जाने वाले प्ल्यूम्स तब बनते हैं जब मलबे को नीचे खनन स्थान में वापस पंप कर दिया जाता है ।
ये तैरते हुए कण पानी के गंदलेपन को बढ़ा देते हैं और बेन्थिक जीवों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फिल्टर-फीडिंग उपकरणों को अवरुद्ध कर देते हैं । सतह पर पाए जाने वाले प्ल्यूम्स और भी ज्यादा गंभीर समस्या को अंजाम देते हैं ।
कणों के आकार और पानी के बहाव पर निर्भर करते हुए ये प्ल्यूम्स बहुत बड़े क्षेत्र में फैल सकते हैं । ये प्ल्यूम्स प्राणीमन्दप्लवकों और प्रकाश के प्रवेश को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे क्षेत्र के फूड वेब को नुकसान पहुंच सकता है ।
अम्लीकरण (Acidification):
महासागरों के अम्लीकरण के संभावित परिणाम अभी पूरी तरह ज्ञात नहीं हुए हैं, हालांकि इस बात को लेकर चिंता जरूर है कि कैल्शियम कार्बोनेट से बने ढांचे आसानी से घुल सकते हैं, जिससे मूंगा-चट्टाने और साथ ही सीपदार मछलियों की घोंघा या सीप बनाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है ।
महासागर और तटीय पारिस्थितिक तंत्र वैश्विक कार्बन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं और इन्होंने साल 2000 से 2007 के बीच मानव गतिविधियों द्वारा स्कंदित कार्बन डाइऑक्साइड को करीब 25 प्रतिशत तक हटाया है और औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से मानवों द्वारा वायुमण्डल में छोड़ी गई CO2 की आधी मात्रा खत्म की है ।
महासागरों के बढ़ते तापमान और महागारों के अम्लीकरण का मतलब है कि महासागरीय कार्बन हॉद की क्षमता वक्त के साथ कम होती जाएगी, जिससे मोनेको और मैनेडो घोषणाओं में वर्णित वैश्विक चिंताओं का जन्म होगा ।
मई 2008 में प्रकाशित प्रख्यात विज्ञान पत्रिका साईस में NOAA वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट में पाया गया कि उत्तरी अमेरिका के प्रशांत महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र के चार मील के दायरे में अपेक्षाकृत अम्लीय पानी अधिक मात्रा में सतह पर आ रहा है ।
ये क्षेत्र एक नाजुक जोन है जहां ज्यादातर समुद्री जीवन जन्म लेता है या जीता है । हालांकि ये रिपोर्ट सिर्फ वैनकुवर से उत्तरी कैलिफोर्निया तक के इलाकों के संबंधित थी, दूसरे महाद्वीपीय शेल्क क्षेत्र भी समान प्रभाव अनुभव कर रहे होंगे ।
एक संबंधित मुद्दा समुद्र तल के नीचे पाए जाने वाले मीथेन क्लेथरेट भंडारों का है । ये बड़ी मात्र में ग्रीनहाउस गैस मीथेन को सोखते हैं, जो महासागरीय तापन के जरिए निकल सकती है । 2004 में लगाए गए अनुमान के मुताबिक विश्व में एक से लेकर पांच मिलियन क्यूबिक किलोमीटर क्षेत्र में महासागरीय मीथेन क्लेथरेट मौजूद हैं ।
अगर ये क्लेथरेट समुद्र तल पर समरूप बिछाए जाते हैं तो इनकी परत तीन से चौदह मीटर मोटी होगी । ये अनुमान 500 से 2500 गीगाटन कार्बन के बराबर है और इसकी तुलना दूसरे जीवाश्म ईंधन भंडारों से की जा सकती है जिनका अनुमान भी 5000 गीगाटन है ।
Essay # 4. अपक्षरण का समुद्री जीवन पर प्रभाव (Effect of Erosion on Marine Life):
यूट्रोफिकेशन पारिस्थितिक तंत्र में रासायनिक पोषक तत्वों का बढ़ना है, खासकर वो यौगिक पदार्थ जिनमें नाईट्रोजन और फोस्फोरस होता है । ये पारिस्थितिक तंत्र की मूलभूत उर्वरता को बढ़ा सकता है (पौधों का अत्यंत बढ़ना और क्षय होना) और साथ ही ये ऑक्सीजन की कमी समेत पानी की गुणवत्ता कम करता है और इससे मछलियों और दूसरे जलचर जीवों की संख्या प्रभावित होती है ।
इसकी सबसे बड़ी दोषी नदियां है जो महासागरों में मिलती हैं और इसके साथ ही कृषि में इस्तेमाल किए गए कई उर्वरक और जानवरों एवं मनुष्यों का मल समुद्र में मिलता है । पानी में ऑक्सीजन घटाने वाले रसायनों का जरूरत से ज्यादा होना हायपोक्सिया को अंजाम देता है और डेड जोन की रचना करता है ।
खाड़ियां स्वाभिक तौर पर यूट्रोफिक होती हैं, क्योंकि थल से आए पोषक तत्व वहां केन्द्रित होते हैं जहां अपवाह एक सीमित मार्ग से समुद्री वातावरण में प्रवेश करता है । वर्ल्ड रिसोर्सिस इंस्टीट्च्यूट ने दुनिया भर में 375 हायपॉक्सिक तटीय क्षेत्रों को चिह्नित किया है जो पश्चिमी यूरोप के तटीय इलाकों, अमेरिका के पूर्वी और दक्षिणी तटों और पूर्वी एशिया, खासतौर पर जापान में केन्द्रित हैं ।
महासागरों में नियमित रूप से रेड टाइड एलगे ब्लूम्स उत्पन्न होते हैं जो मछलियों और समुद्री स्तनपायियों को मार डालते हैं और जब ये ब्लूम्स तटों के नजदीक पहुंचते हैं तो मनुष्यों एवं पशुओं में श्वास संबंधी समस्याओं को जन्म देते हैं ।
भू-अपवाह के साथ-साथ मानव गतिविधियों द्वारा अमोनिया में तब्दील हुई वायुमण्डलीय नाईट्रोजन खुले समुद्र में प्रवेश कर सकती है । 2008 में हुए एक शोध के मुताबिक ये महासागरों की बाहरी (नॉन-रीसाइकल्ड) नायट्रोजन सप्लाई का एक-तिहाई और सालाना नए समुद्री जैविक उत्पादन का तीन प्रतिशत हिस्सा है ।
यह सुझाव दिया गया है कि वातावरण में Accumulating प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में डालने के गंभीर परिणाम हो सकता है ।
i. प्लास्टिक मलबा (Plastic Debris):
समुद्री मलबा मुख्यत: मानवों द्वारा फेंका गया कचरा है जो समुद्र में तैरता या झूलता रहता है । समुद्री मलबे का अस्सी प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक है- एक ऐसा अवयव जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बहुत तेजी से जमा हो रहा है । समुद्रों में मौजूद प्लास्टिक का वजन सौ मिलियन मेट्रिक टन के बराबर हो सकता है ।
त्यागे गए प्लास्टिक बेग, सिक्स पैक रिंग्स और अन्य प्लास्टिक कचरा जो समुद्रों में प्रवेश करता है, वो वन्य जीव-जंतुओं और मत्स्य उद्योग के लिए खतरा है । इससे जलचर जीवन के फंसने, सांस रुकने और अंतर्रग्रहण का खतरा है । मछली पकड़ने का जाल, जो आमतौर पर प्लास्टिक से बनता है, मछुआरों द्वारा समुद्रों में छोड़ा या खो सकता है ।
घोस्ट नेट्स के तौर पर जाने वाले इन जालों में, मछलियां, डॉल्फिन्स, समुद्री कछुएं, शार्क्स, ड्च्यूगान्ग्स, मगरमच्छ, सीबर्डस, केकड़े और दूसरे जंतु फंस सकते हैं, उनका आवागमन बाधित होता है, जिससे भुखमरी, मांस या अंग कटना और संक्रमण हो सकता है और जो जीव सांस लेने के लिए समुद्री सतहों पर आते हैं वो दम घुटने से मर जाते हैं ।
कई जंतु जो समुद्र में जीते हैं या फिर इन पर निर्भर करते हैं, बहते हुए कचरे को निगल सकते हैं, क्योंकि वो अक्सर उनके शिकार की तरह दिखता है । प्लास्टिक कचरा, जब स्कूल और उलझा हुआ हो तो इसे निगलना मुश्किल होता है और ये इन जंतुओं के पेट या आंत में स्थायी तौर पर जमा रह सकता है, इससे भोजन का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है और भूख और संक्रमण से मौत हो सकती है ।
प्लास्टिक एकत्र होता रहता है क्योंकि वो दूसरे पदार्थों की तरह बायोडीग्रेडेबल यानि स्वाभाविक तरीके से सड़नशील नहीं होता है । सूर्य किरणों के संपर्क में आने से वो जरूर फोटोडीग्रेड होते हैं लेकिन वो ऐसा सिर्फ सूखी परिस्थितियों में करते हैं, क्योंकि पानी इस प्रक्रिया को रोकता है ।
समुद्री वातावरण में फोटोडीग्रेडिड प्लास्टिक ओर भी छोटे टुकड़ों में विघटित होता है, जबकि बचे हुए पॉलीमर, आणविक स्तर तक विघटित होते हैं । जब तैरते हुए प्लास्टिक कण प्राणीमन्दप्लवकों के आकार में फोटोडीग्रेड होते हैं, जैलीफिश उन्हें निगलने की कोशिश करती हैं और इस तरह प्लास्टिक समुद्री खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है ।
इनमें से कई लंबे समय तक बने रहने वाले प्लास्टिक समुद्री पक्षियों ओर जानवरों के पेट में प्रवेश कर जाते हैं, इनमें समुद्री कछुए और ब्लैक-फुटेड एल्बट्रास भी शामिल है । प्लास्टिक कचरे की समुद्री भंवरों के बीच में इकट्ठा होने की प्रवृत्ति है ।
खासतौर पर ग्रेट पैसेफिक गारबेज पैच में पानी के ऊपरी हिस्से में तैरते प्लास्टिक कणों की मात्रा बहुत ज्यादा है । 1999 में लिए गए नमूनों में, इस क्षेत्र में प्लास्टिक का भार प्राणीमन्दप्लवकों (जो इस क्षेत्र में प्रमुख तौर पर पाए जाते हैं) के भार से छह गुना ज्यादा पाया गया ।
सभी हवाई द्वीपों के बीच मिडवे एटॉल में इस गारबेज पैज से काफी मात्र में कचरा आता है । इस कचरे का नब्बे प्रतिशत प्लास्टिक है जो मिडवे के तटों पर इकट्ठा होता है जहां ये द्वीप के पक्षियों के लिए खतरा बन जाता है ।
लेसेन एल्बट्रास की वैश्विक संख्या का दो-तिहाई (1.5 मिलियन) हिस्सा मिडवे एटॉल में पाया जाता है । यहां पाए जाने वाले करीबन हर एल्बट्रास के पाचन तंत्र में प्लास्टिक मौजूद है और इनके एक-तिहाई चूजे मर जाते हैं ।
प्लास्टिक पदार्थों के उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले जहरीले योगज जब पानी के संपर्क में आते हैं तो वो आस-पास के वातावरण में घुल कर बह जाते हैं । जलप्रसारित जल विरोधी प्रदूषक प्लास्टिक कचरे की सतह पर इकट्ठा और आवर्धन होते हैं ओर प्लास्टिक को समुद्र में उससे और भी ज्यादा खतरनाक बना देते हैं, जितना वो जमीन पर होते हैं ।
जल विरोधी संदूषक प्राकृतिक रूप से वसा ऊतकों में बायोएक्युम्यूलेट के रूप में जाने जाते हैं और भोजन श्रृंखला को प्राकृतिक रूप से और भी बड़ा बना देते हैं जिससे शीर्ष परभक्षियों पर दबाव पड़ता है ।
कुछ प्लास्टिक योगज ग्रहण होने पर अंतःस्त्रवी तंत्र को भी अस्त-व्यस्त कर देते हैं, जबकि कुछ प्रतिरक्षी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं या फिर प्रजनन दर को घटा सकते हैं । तैरता मलबा समुद्री पानी से PCBs, DDT ओर PAHs जैसे दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषकों को सोख सकता है ।
विषैले प्रभावों के अलावा, जब इनमें से कुछ ग्रहण कर लिए जाते हैं तो जानवरों का मस्तिष्क इन्हें एस्ट्राडियोल समझ सकता है, जिससे जीव-जंतुओं में हॉर्मोन प्रभावित हो सकते हैं ।
ii. विष (Poison):
प्लास्टिक के अलावा, वो अन्य विषैले पदार्थ जो समुद्री वातावरण में तेजी से विघटित नहीं होते, उनकी अलग समस्या है । PCBs, DDT, कीटनाशक, फ्यूरन्स, डायऑक्सिन्स, फिनोल्स ओर रेडियोधर्मी कचरा ऐसे दीर्घस्थायी विष के उदाहरण हैं ।
भारी धातुएं वो रासायनिक तत्व होते हैं जिनका घनत्व अपेक्षाकृत ज्यादा होता है और कम सघनता में भी जहरीली होती हैं । पारा, सीसा, निकल, आर्सेनिक ओर केडमियम इसके उदाहरण हैं ।
ऐसे विष जलचर प्रजातियों के ऊतकों में बायोएक्युमुलेशन नाम की प्रक्रिया से इकट्ठा हो जाते हैं । ये नितल जीवसमूही वातावरण में एकत्र होते हैं, खासकर खाड़ियों में और इन खाड़ियों के तल में पाई जाने वाली मिट्टी मेंरू ये पिछली शताब्दी में मानव गतिविधियों का भू-वैज्ञानिक रिकॉर्ड है ।
विशिष्ट उदाहरण (Specific Examples):
चीनी और रूसी औद्योगिक प्रदूषण द्वारा आमुर नदी में छोड़े गए फिनोल और भारी धातुओं ने मछलिओं का भंडार नष्ट कर दिया है और खाड़ी की मिट्टी को बर्बाद कर दिया है । कनाडा में एल्बर्टा की वाबामन झील कभी इलाके की सबसे बढ़िया वाइटफिश झील हुआ करती थी, लेकिन अब इसमें और यहां पाई जाने वाली मछलियों में भारी धातुओं की मात्रा बेहिसाब तरीके से बढ़ चुकी है ।
अत्याधिक और दीर्घकालिक प्रदूषण गतिविधियों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया के केल्प जंगलों को प्रभावित किया है, हालांकि इस प्रभाव की तीव्रता संदूषकों के स्वभाव और उनके संपर्क में रहने की समयसीमा, दोनों पर निर्भर करता है ।
भोजन श्रृंखला में सबसे ऊपर होने के नाते और अपने आहार से भारी धातुओं के एकत्र होने से, ब्लूफिन और एल्बाकोर जैसी बड़ी प्रजातियों में पारे का स्तर बहुत ज्यादा हो सकता है । नतीजतन, मार्च 2004 में संयुक्त राज्य FDA ने दिशानिर्देश जारी करते हुए सलाह दी कि गर्भवती महिलाएं, नर्सिग माएं और बच्चे ट्च्यून मछली और अन्य परभक्षी मछलिओं का आहार सीमित करें ।
कुछ सीपदार मछलियां और केकड़े प्रदूषित वातावरण, भारी धातुओं और विष के ऊतकों में एकत्र होने से बचे रह सकते हैं । उदाहरण के तौर पर मिटन केंकड़े, जिनके अंदर प्रदूषित पानी जैसे बेहद बदले हुए जलचर माहौल में बचे रहने की अनूठी क्षमता है ।
इन प्रजातियों का पालन अत्यंत सावधान प्रबंधन मांगता है, अगर इन्हें भोजन के तौर पर इस्तेमाल किया जाना हो । कीटनाशकों भू-अपवाह मत्स्य प्रजातियों के लिंग को आनुवांशिक तौर पर बदल सकता है, जिससे नर मछली मादा मछली में तब्दील हो जाती है ।
भारी धातुएं तेल के छलकने से वातावरण में प्रवेश करती हैं- जैसे कि गैलेशियन तट पर हुआ प्रेस्टीज तेल छलकाव या फिर अन्य प्राकृतिक या मानवजनित स्रोतों से ।
2005 में इटली के माफिया गिरोह, एनड्रंघेटा, पर विषैले कचरे से लैस करीब तीस पोतों को डुबाने का आरोप लगा, जिसमें से ज्यादातर रेडियोधर्मी था, इससे रेडियोधर्मी कचरे को फेंकने वाले गिरोहों के खिलाफ व्यापक जांच की शुरुआत हुई ।
द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद कई राष्ट्रों ने, जिसमें सोवियत संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी शामिल हैं, रासायनिक हथियारों को बाल्टिक समुद्र में फेंक दिया, जिससे वातावरण प्रदूषण को लेकर चिंता बड़ी ।
iii. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution):
समुद्री जीवन ध्वनि प्रदूषण से आसानी से प्रभावित हो सकता है, खासकर गुजरते हुए जहाजों, तेल अन्वेषण भूकंपीय सर्वेक्षणों और नेवल लो-फ्रीक्वेंसी एक्टीव सोनार से समुद्र में ध्वनि की गति वायुमण्डल से कहीं ज्यादा होती है और ये ज्यादा दूरी तय करती है ।
समुद्री जीवों की, जैसे की सेटेशियन्स, देखने की क्षमता अक्सर कम होती है ओर ये ध्वनि के जरिए ही जानकारी हासिल करते हैं । ये बात गहराई में रहने वाली समुद्री मछलियों पर भी लागू होती है, जो अंधेरे में रहती हैं । 1950 से 1975 के बीच समुद्र में परिवेशी शोर का स्तर करीबन दस डेसीबल तक बढ़ गया (ये दस गुना बढ़ौतरी है) ।
शोर से प्रजातियों को ऊँचे स्वर में संचार करना पड़ता है, जिसे लॉम्बार्ड वोकल रिस्पॉन्स कहा जाता है । व्हेल मछली की आवाज लंबी होती है जब पनडुब्बी संसूचक चालू होते हैं । अगर जीव ज्यादा ऊँचे स्वर में संवाद नहीं करते तो उनकी आवाज मानवजनित ध्वनियों के नीचे दब जाती है ।
ये अनसुनी आवाजें चेतावनी, शिकार की खोज या फिर नेट-बब्लिंग की तैयारियां हो सकती हैं । जब एक प्रजाति ऊँचा बोलने लगती है तो ये दूसरी प्रजातियों की आवाज को दबा देती है, जिससे पूरा पारिस्थितिक तंत्र ऊँचा बोलने लगता है ।
समुद्र वैज्ञानिक सिल्विया अर्ल के मुताबिक, समुद्री के अंदर ध्वनि प्रदूषण, हजार घावों के साथ मरने के बराबर है । हर ध्वनि भले ही बड़ी चिंता का विषय ना हो, लेकिन अगर जहाजों के शोर, भूकंपीय सर्वेक्षण और सैन्य गतिविधियों को एक साथ लिया जाए तो एक बिल्कुल ही अलग माहौल तैयार हो जाता है जो पचास साल पहले भी मौजूद था । ध्वनि प्रदूषण का ये बढ़ा हुआ स्तर । समुद्री जीवन पर कड़ा और व्यापक असर डालेगा ही ।
iv. अनुकूलन और शमन (Optimization and Mitigation):
ज्यादातर मानवजनित प्रदूषण समुद्र में प्रवेश करता है । ब्यार्न जेनसन (2003) ने अपने लेख में लिखा है- “मानवजनित प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की जैव-विविधता और उत्पादकता को घटा सकता है, जिससे मानव के समुद्री भोजन संसाधन कम और खत्म हो सकते हैं ।”
प्रदूषण के इस समग्र स्तर को कम करने के दो तरीके हैं- या मानव जनसंख्या घटा दी जाए, या फिर एक आम इंसान द्वारा छोड़े गए पारिस्थितिक पदचिह्नों को कम करने का रास्ता खोजा जाए । अगर ये दूसरा रास्ता नहीं अपनाया गया, तो फिर पहला रास्ता थापना पड़ सकता है, क्योंकि दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा रहे हैं ।
दूसरा रास्ता मनुष्यों के लिए है कि वो व्यक्तिगत तौर पर कम प्रदूषण फैलाए । इसके लिए सामाजिक और राजनीतिक इच्छा की जरूरत है, साथ ही जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि ज्यादा लोग पर्यावरण की इज्जत करें और इसे कम हानि पहुंचाए ।
परिचालन स्तर पर, नियम और अंतर्राष्ट्रीय सरकारों के हिस्सा लेने की जरूरत है । समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि प्रदूषण अंतर्राष्ट्रीय सरहदों को लांघता है, जिससे नियम बनाना और उन्हें लागू करना कठिन होता है ।
कदाचित समुद्री प्रदूषण को कम करने की सबसे महत्वपूर्ण सामरिक नीति शिक्षा है । ज्यादातर लोग स्रोतों और समुद्री प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से अनजान हैं और इसलिए इस स्थिति से निपटने के लिए कम कदम ही उठाए जा सके हैं ।
जनता को सभी तथ्यों की जानकारी देने के लिए गहन शोध की जरूरत है ताकि स्थिति का पूरा ब्यौरा दिया जा सके और फिर इस जानकारी को जनता तक पहुंचाना चाहिए ।
दाओजी और डैग के शोध में लिखा गया है कि, एक मुख्य कारण जिसकी वजह से चीनियों में पर्यावरण को लेकर चिंता नहीं है, वो यह है कि उनमें जागरूकता की कमी है ओर उन्हें जागरूक बनाना होगा । इसी तरह, नियम जो गहन शोध पर आधारित हों, लागू किए जाएं ।
कैलिफोर्निय में ऐसे नियम मौजूद हैं, जिन्हें कैलिफोर्निय के तटों को कृषि अपवाह से बचाने के लिए लागू किया गया है । इसमें कैलिफोर्निय वॉटर कोड सहित कई दूसरे स्वैच्छिक कार्यक्रम शामिल हैं । इसी तरह भारत में समुद्री प्रदूषण को रोकने के लिए कई नीतियां अपनाई गई हैं, हालांकि ये समस्या से उल्लेखनीय ढंग से नहीं निपटतीं । भारत के चेन्नई शहर में गटर खुले पानी में खाली किए जा रहे हैं ।
Essay # 5. सागरीय पौधे और प्रदूषण (Sea Plants and Pollution):
सागरीय पौधों को प्रमुख रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
(a) स्थलीय आवास तथा
(b) जलीय आवास ।
जलीय आवास को पुन: दो वृहद आवासों में विभक्त किया जाता है:
(i) सागरीय आवास तथा
(ii) अवलवणीय जलीय आवास या स्थलस्थित जलीय भाग यथा नदी जिसमें जल सतत गतिशील रहता है एवं झील, तालाब, जलभण्डार जिनमें अपेक्षाकृत जल स्थिर रहता है) ।
सागरीय आवास को पुन: दो भागों जिसमें सागर की तली को ही सम्मिलित किया जाता है । सागरीय भागों में पादपों की स्थलीय पादपों की तुलना में बहुत कम प्रजातियाँ होती है । सागरीय पादप-जगत का निर्माण मुख्य रुप से सूक्ष्मदर्शी फाइटोलैप्क्टन तथा छिछले भागों की तली में रहने वाले शैवाल से हुआ है ।
सागरीय पादपों में प्राय: समरुपता का मुख्य कारण यह है कि स्थलीय भागों की तरह इनमें अवरोध नहीं होते हैं, अपितु इनमें सागरीय गतियों के कारण पादपों में मुक्त मिश्रण होता रहता है तथा स्थलीय भागों की तरह तापमान में विषमता भी अधिक नहीं होती है । सागरीय पादपों में तली में रहने वाले तथा जल पर तैरने वाले पादपों में ही सर्वाधिक विषमता होती है ।
सागरीय पौधों को सागरीय तापमान के आधार पर दो भागों में विभक्त कर सकते हैं:
(i) गर्म जल वाले पादप तथा
(ii) शीतल जल वाले पादप ।
सागरीय पादपों की सर्वाधिक जातियाँ तथा वंश उष्ण कटिबन्धीय भाग के गर्म जलमंडल में पाये जाते हैं । इस प्रदेश को चार मण्डलों में विभक्त किया जाता है ।
जो निम्न प्रकार हैं:
1. पश्चिमी भाग,
2. पूर्वी प्रशान्त महासागरीय अनवर्ती भाग,
3. अटलाण्टिक अयनवर्ती भाग,
4. हिन्द महासागरीय अयनवर्ती भाग ।
पादपों के सर्वाधिक प्रकार हिन्द, प. प्रशान्त महासागरीय मंडल के जलमग्न तटीय भागों में पाये जाते हैं ।
Essay # 6. सागरीय जन्तु और प्रदूषण (Sea Bodies and Pollution):
स्थलीय तथा सागरीय प्राणियों के वितरण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है क्योंकि स्थलों पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ (शैवाल से लेकर उच्च वृक्ष) पायी जाती है जबकि सागरों में अधिकतर सूक्ष्म फाइटोप्लैंकटन तथा सागरों के छिछले भागों में तली में रहने वाले शैवाल आदि ही पाये जाते हैं ।
स्थलीय भागों में समान सागरीय भागों में अवरोध नहीं पाये जाते हैं, अत: प्राणियाँ अधिक दूरी तक प्रवास कर जाती है । तापमान में भी भिन्नता कम ही होती है क्योंकि सागरों में क्षैतिज तथा लम्बवत गतियाँ तापमान का मिश्रण कर देती हैं तथा उसे एकसम बनाने का प्रयास करती है ।
सागरीय प्राणियों को उनके जीवन रुप के अन्तर के आधार पर दो प्रमुख श्रेणियों में विभक्त करते हैं:
1. तलस्थ प्राणी तथा
2. तैरने वाले प्राणी जो जल के ऊपरी भाग में रहते हैं ।
तापमान में भिन्नता के आधार पर इन्हें दो भागों में विभक्त किया जाता है:
(i) ठंडे जल के प्राणी तथा
(ii) गर्म जल के प्राणी ।
भू मध्य रेखा से ध्रुवों तक सागर के गल में जो तापमान में भिन्नता होती है वह जल के ऊपरी भाग तक में ही सीमित होती है । सागर जल के भीतरी तापमान में यह भिन्नता ये अंतर नहीं पाया जाता है । यहाँ सागर-जल की गहराई में सर्वत्र तापमान की समरूपता पाई जाती है ।
अपन वाली प्रदेश के सागरों में ऊपरी सतह में रहने वाले प्राणी अधिक संख्या में खण्ड प्रदेश की तुलना में पाए जाते हैं तथा केवल अयनवर्ती भागों में सागरीय प्राणियों के वितरण में पाया वर्तीय को रुपों के मण्डलों प्राणियों का कटिबन्धीय प्रतिरुप जाता है ।
1. अटलांटिक मण्डल,
2. हिन्द महासागरीय मण्डल,
3. पश्चिमी प्रशान्त महासागरीय मण्डल तथा
4. पूर्व प्रशान्त महासागरीय मण्डल ।
मत्स्य संसाधन (Fisheries Resources):
मछली पकड़ना मानव के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है । वर्तमान समय में मत्स्य पालन का विकास एक उद्योग के रूप में किया जा रहा हैं । किसी सागर, झील, तालाब या अन्य जलाशय में एक उद्योग के रूप में मत्स्य पालन तथा मछली पकड़ने से लेकर उसके व्यापार तक ही समस्त क्रियाओं को मत्स्योद्योग के अन्तर्गत शामिल किया जाता है ।
मत्स्य उत्पादक जल क्षेत्र जहाँ मछलियों को व्यापारिक स्तर पर पाला जाता है, उसे मत्स्य पालन केन्द्र कहते हैं । किसी मत्स्य केन्द्र (झील, नदी, तालाब, सागर आदि) पर व्यापारिक स्तर पर किये जाने वाले मत्स्य पालन को पिसीकल्वर कहते हैं ।
मत्स्योद्योग के अन्तर्गत किसी झील, नदी, तालाब, सागर आदि जलाशयों के संरक्षित भाग में नियंत्रित परिस्थितियों में बड़ी सावधानीपूर्वक वैज्ञानिक ढंग से मछलियों को पाला जाता है और सामान्यत: मछलियों के पूर्ण विकसित हो जाने पर उन्हें पकड़ लिया जाता है तथा डिब्बा बन्द करके उन्हें बाजार में भेजा जाता है ।
मछली पकड़ना एक परम्परागत प्राथमिक व्यवसाय है जिसका प्रचलन प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक है । वर्तमान समय में विश्व के अनेक भागों में इस व्यवसाय को एक उद्योग के रूप में विकसित किया गया है जिसके अन्तर्गत मछलियों को वैज्ञानिक तरीके से पाला जाता है और उन्हें विकसित होने के लिए संरक्षण तथा उपयुक्त दशाएं प्रदान की जाती है ।
मछली एक महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ है । मछली के तेल का उपयोग दवाओं के बनाने में भी किया जाता है । इसीलिए मछली पकड़ने का व्यवसाय प्राय: उन सभी क्षेत्रों में प्रचलित है जहाँ जलाशयों में मछलियाँ पायी जाती हैं । समस्त जलीय संसाधनों में मछलियों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है ।
मछलियाँ सागरों के खारे जल और नदियों के स्वच्छ जल सभी प्रकार के जलाशयों में पायी जाती हैं । स्थलीय स्वच्छ जल और सागरीय खारे-जल के मत्स्याखेट या मत्स्योत्पादन में पर्याप्त भिन्नता है ।
मछलियों की अनेक किस्में हैं जिन्हें जलाशय की प्रकृति के अनुसार दो वृहत् भागों में विभक्त किया जा सकता है:
(1) स्वच्छ जल की मछलियाँ और
(2) खारे जल की मछलियाँ ।
विश्व में उत्पादित कुल मछलियों का लगभग 84 प्रतिशत खारे भागों से ओर 16 प्रतिशत स्थलीय स्वच्छ जलाशयों (नदी, झील, तालाब आदि) से प्राप्त होता है ।
मत्स्योत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ:
(1) शीतोष्ण जलवायु (Temperate Climate):
मछलियों के विकास तथा मत्स्योत्पादन के लिए शीतोष्ण जलवायु सर्वाधिक उपयुक्त होती है । इसीलिए संसार के प्रमुख मत्स्य उत्पादक क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध में स्थित हैं ।
उष्ण कटिबंधीय जलाशयों-झीलों इत्यादि में अनेक प्रकार के जीवाणु (बैक्टीरिया) पाये जाते हैं जो मछलियों के भोज्य पदार्थ प्लैंकटन को खा जाते हैं या नष्ट कर देते हैं । इतना ही नहीं, कुछ बड़े सखी या जलीय जीव मछलियों को भी खा जाते हैं जिससे मछलियों का प्रचुर विकास नहीं हो पाता है ।
(2) प्लैंकटन की बहुलता (Plankton’s Plurality):
प्लैंकटन मछलियों के प्रमुख भोज्य पदार्थ हैं । समुद्री जल में पाये जाने वाले सूक्ष्म जन्तुओं एवं पादपों को प्लैंकटन कहते हैं । ये प्लैंकटन समुद्र के तटवर्ती भागों में अधिक पाये जाते हैं । जिन भागों में प्लैंकटन अधिक पाये जाते हैं वहाँ मछलियों का विकास सर्वाधिक होता है ।
प्लैंटकटन की बहुलता वाले क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
1. नदियों द्वारा स्थलीय भागों से लाये गये सूक्ष्म जलीय जीव तथा खनिज एकत्रित होते रहते हैं । इससे नदियों के मुहानों के समीप समुद्री जल में प्लैंकटन की मात्रा पर्याप्त पायी जाती है ।
2. जहाँ गर्मजल और ठण्डे जल का मिश्रण होता है, वहाँ सामान्यत: प्लैंकटन जल में ऊपर तैरते रहते हैं और मछलियों के लिए अधिक भोज्य पदार्थ प्राप्त होते हैं ।
3. समुद्र के जिन भागों में ठण्डी धाराएं और गर्म धाराएं मिलती हैं वहां पर ठण्डे जल में पाये जाने वाले और गर्म जल में पाये जाने वाले दोनों प्रकार के प्लैंकटन इकट्ठे होते हैं । इससे वहाँ प्लैंकटन की अधिकता पायी जाती है ।
4. महाद्वीपों के किनारे स्थित विस्तृत महाद्वीपीय मग्न तटों पर तथा उथले जलाशयों में सूर्य की किरणें तली तक पहुँच जाती हैं जिसके कारण वहाँ प्लैंकटन अधिक मिलते हैं ।
(3) प्रचुर मांग (Abundant Demand):
मछलियों की मांग उन प्रदेशों में अधिक है जहाँ मछलियों का उपयोग प्रमुख भोज्य पदार्थ के रूप में होता है । सामान्यतः उन प्रदेशों में मत्स्योत्पादन अधिक किया जाता है जहाँ के लोग भोजन में मछलियों का उपयोग कम करते हैं या नहीं करते हैं ।
(4) मत्स्याखेट की सुविधा (Fisheries Facility):
जिन समुद्री तटों पर या स्थलीय जलाशयों में मछली पकड़ने की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, वहीं मत्स्योत्पादन सुगम होता है । कटे-फटे समुद्री तट और बन्दरगाह युक्त तटीय स्थल मत्स्य ग्रहण के लिए उपयुक्त होते हैं । वाणिज्यिक अधिकांश देशों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त बड़े-बड़े मत्स्य पत्तनों को विकसित किया गया है जहाँ से मछलियों का निर्यात किया जाता है ।