Here is an essay on ‘Multinational Corporations (MNCs) for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Multinational Corporations’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay Contents:
- बहुराष्ट्रीय निगम की परिभाषा [Meaning of Multi-National Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगम की उत्पत्ति [(Origin of Multi-National Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगमों के लक्षण [(Characteristics of Multinational Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगमों की किस्में [(Types of Multinational Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगमों की वृद्धि के लिये उत्तरदायी कारक (Factors Responsible for Growth of MNCs)
- बहुराष्ट्रीय निगमों का महत्व [(Importance of Multinational Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगमों पर नियन्त्रण [(Control Over Multinational Corporations (MNCS)]
- बहुराष्ट्रीय निगमों से मुख्य जोखिम [(Main Dangers of Multinational Corporation (MNCS)]
Essay # 1. बहुराष्ट्रीय निगम की परिभाषा [Meaning of Multi-National Corporations (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों को ऐसी कम्पनी अथवा उद्यम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो सीधा विदेशी निवेश लेता है । इन कम्पनियों को अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियां अथवा राष्ट्रपार निगम भी कहा जा सकता है । ऐसी कम्पनियों की विशेषता यह है कि ये मुख्य निर्णय व्यापक संदर्भ में लेती हैं ।
ADVERTISEMENTS:
इसी कारण से इसके संचालन सम्बन्धी निर्णय देशों से बाहर लिये जाते हैं । उद्देश्यों के अधिक-तमीकरण की परियोजना इसके संचालन के विपरीत प्रभावों का इसके घेरे पड़ने वाले देशों में कार्यों की ओर ध्यान नहीं देते । इन कम्पनियों के अन्तर्राष्ट्रीय कार्य विविध प्रकार के संस्थानिक रूपों द्वारा किये जाते हैं । वह अपने औद्योगिक एवं विपणन कार्यों को अपनी शाखाओं के ढांचे से अथवा उनके ‘मैजोरिटी ओनड एफीलियेटस’ (MOFAS) द्वारा बढ़ाते हैं ।
Essay # 2. बहुराष्ट्रीय निगम की उत्पत्ति [(Origin of Multi-National Corporations (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों की धारणा नई नहीं है । इसका इतिहास वाणिज्यवादी काल में खोजा जा सकता है । हडसन्ज बे. को., रॉयल अफ्रीकन को और ईस्ट इण्डिया कम्पनी इस किस्म के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं, जो अपने उत्पाद के विक्रय की खोज में अपने देश से बाहर गये । इन निगमों के पास भारी पूजी के साधन, नवीनतम प्रौद्योगिकी और विश्व-स्तरीय सद्भाव था ।
ADVERTISEMENTS:
वास्तव में अल्प-विकसित देशों के लोग इन कम्पनियों के उत्पादों के अधिक दीवाने होते हैं । दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व काल में बड़ी संख्या में उपनिवेश इन महान् निगमों के प्रभुत्व में थे । उन्होंने अपनी सहायक ब्रांचो की सहानता से विकासशील देशों को पूजी निर्यात करने पर विचार किया ।
मात्र एक प्रभुत्वशाली के रूप में यू.एस.ए. सामने आया जो सीधे निवेश के रूप में पूंजी निर्यात करता था । परन्तु स्वतन्त्रता पश्चात् काल में इन बहुराष्ट्रीय निगमों, विशेषतया यू.एस.ए. ने विभिन्न देशों के विदेशी सहयोग वाले निगमों में प्रवेश किया ।
Essay # 3. बहुराष्ट्रीय निगमों के लक्षण [(Characteristics of Multinational Corporations (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
ADVERTISEMENTS:
1. बड़ा आकार (Giant Size):
बहुराष्ट्रीय निगमों की बिक्री और सम्पत्ति अनेक बिलियन डालरों की होती है जिस कारण वह सामान्य से कहीं अधिक लाभ अर्जित करते हैं ।
2. अल्पाधिकारिक ढांचा (Oligopolistic Structure):
बहुराष्ट्रीय उद्यम अन्य कम्पनियों के विलयन अथवा उन्हें अपने अधिकार में लेकर अधिक शक्ति प्राप्त कर लेते हैं । बहुराष्ट्रीय निगमों की यह प्रक्रिया उन्हें अल्पाधिकारिक स्वरूप दे देती है ।
3. साधनों का सांझा स्थानान्तरण (Collective Transfer of Resources):
एक बहुराष्ट्रीय निगम साधनों के बहुपक्षीय स्थानान्तरण को सुविधापूर्ण बनाता है जो एक पैकेज के रूप में घटित होता है । इसमें तकनीकी ज्ञान, कच्चा माल, तैयार वस्तुएँ प्रबन्धकीय सेवाएं आदि सम्मिलित होती है । इसमें उत्पादन से लेकर, विपणन, वित्त और प्रबन्ध जैसी जटिल आधुनिक प्रौद्योगिकी सम्मिलित होती है ।
4. अन्तर्राष्ट्रीय कार्य (International Operations):
ऐसी संस्थाओं का नियन्त्रण एक संस्था के हाथ में रहता है परन्तु इसके हित और कार्य राष्ट्रीय सीमाओं में बाहर फैले होते हैं । यह अपने देश में एक मूल निगम द्वारा कार्य करती है ।
5. स्वाभाविक उत्पत्ति (Spontaneous Evolution):
बहुराष्ट्रीय निगमों की उत्पत्ति प्रायः स्वाभाविक होती है । वह प्रायः रेंगती हुई वृद्धि से बढ़ते हैं । बहुत सी फर्में संयोग से अन्तर्राष्ट्रीय बन गई हैं ।
Essay # 4. बहुराष्ट्रीय निगमों की किस्में [(Types of Multinational Corporations (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों की तीन किस्में हैं जिन पर परिचर्चा नीचे की गई है:
(i) बहुराष्ट्रीय निगम का प्रभुत्व,
(ii) विदेशी पूंजी का उद्योग अनुसार आबंटन
(i) बहुराष्ट्रीय निगमों का प्रभुत्व (Domination of MNCs):
बहुराष्ट्रीय निगमों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर दृढ़ प्रभुत्व है । वास्तव में, 1960 और 1970 के दशकों में महाकाय क्षेत्र की 53.7 प्रतिशत सम्पदा पर इन निगमों का नियन्त्रण था । औद्योगिक अनुज्ञा नीति जाँच समिति ने वर्ष 1966 में, भारत में 112 कम्पनि रिकार्ड की जिनकी सम्पत्ति का मूल्य 10 करोड़ अथवा अधिक था ।
इनमें से 48 कम्पनियां या तो विदेशी कम्पनियों की शाखाएँ थीं अथवा सहायक कम्पनिया थीं । इसके अतिरिक्त 14 कम्पनियां ऐसी थीं जहां या तो विदेशी पूजी की भारी मात्रा निवेश की गई थी अथवा जिन्होंने अपने कार्य के संचालन के लिये पर्याप्त विदेशी ऋण ले रखे थे । रुचिकर बात यह है कि इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के वित्तीय साधनों का बड़ा भाग देश के भीतर से ही एकत्रित किया है ।
सन्दीप चौधरी ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के वित्तीय साधनों के सम्बन्ध में वर्ष 1956-75 की अवधि तक अध्ययन किया । अध्ययन के लिये चुने गये सैम्पलों में 50 विशालतम विदेशी सहायक शाखाएँ थीं जो वर्ष 1975 में विद्यमान थीं । अध्ययन ने दर्शाया कि विदेशी साधनों ने समग्र रूप में वर्ष 1956 से 1966 के दौरान इन कम्पनियों के वित्तीय साधनों में केवल 5.4% का योगदान किया है जबकि 94.6 प्रतिशत घरेलू साधनों द्वारा जुटाया गया था ।
वर्ष 1990 के दशक के आरम्भ में लगभग 37,000 बहुराष्ट्रीय निगम थे जिनके स्पर्शकों ने अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को इसके 1,70,000 विदेशी सम्बन्धों द्वारा निमग्न किया । इन निगमों के पास भारी मात्रा में संचित साधन हैं । 200 सर्वोच्च निगमों (MNCs) द्वारा अर्जित आय महत्वपूर्ण रूप से बढ़ते हुये वर्ष 1982 में $3,046 बिलियन से बढ़ कर 1992 में $5,862 बिलियन हो गई ।
बहुराष्ट्रीय निगमों का कुल घरेलू उत्पाद में भाग इसी समय के दौरान 24.2% हो गया । बहुराष्ट्रीय निगमों के कुल लाभ वर्ष 1992 में 5734 बिलियन के उच्च स्तर पर थे । इसमें से, 10 विशालतम निगमों का भाग $34.8 बिलियन था जो 200 बडे निगमों के लाभों का लगभग 47 प्रतिशत था । यह बहुराष्ट्रीय निगम विश्व अर्थव्यवस्था के व्यापार के बड़े भाग पर नियन्त्रण कर रहे हैं ।
भारी पूजी साधनों का स्वामित्व नवीनतम प्रौद्योगिकी और विश्व स्तरीय कीर्ति इनके पास होने के कारण यह बहुराष्ट्रीय निगम विभिन्न देशों में अपने उत्पादों के बाजार का विविधीकरण कर रहे हैं तथा जिस भी वस्तु का उत्पादन करते हैं उसे सरलता से बेच लेते हैं । यहां यह याद रखना आवश्यक है कि अल्प-विकसित देशों के लोग बहुराष्ट्रीय निगम के उत्पादों के दीवाने होते हैं ।
(ii) विदेशी सहयोगों का उद्योग अनुसार आबंटन (Industry-Wise Distribution of Foreign Collaboration):
वर्ष 1979-80 के दौरान, बहुराष्ट्रीय निगमों की शाखाओं के उद्योग के अनुसार आबंटन में विभिन्न महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये । बागान और खनन में विदेशी निवेश वर्ष 1980 में 19.7% से घट कर 2.2 प्रतिशत रह गया । इसी प्रकार इसी समय में व्यापार में निवेश 16.3% से घट कर 1.1% रह गया ।
इसके विपरीत निर्माण में निवेश की पर्याप्त वृद्धि हुई । वर्ष 1990 में यह 49.2% था जबकि 1948 में इसका भाग 26.7% था । यह भी देखा गया है कि कुल खड़े दीर्घकालिक विदेशी दायित्व सापेक्ष रूप में बागान, पैट्रोलियम और खनन में वर्ष 1974 से घट रहे हैं । दूसरी ओर सेवाओं के क्षेत्र में, इसने तीव्र वृद्धि दर्शायी है ।
वर्ष 2000 में यह कुल विदेशी दायित्वों के 46 प्रतिशत भाग के लिये उत्तरदायी है । इसलिये, हम कह सकते हैं कि विदेशी ब्रांचों तथा सहायक शाखाओं में निवेश बढते हुये दर से निर्माण उद्योगों और पूंजी वस्तुओं में केन्द्रित हो रहा है ।
Essay # 5. बहुराष्ट्रीय निगमों की वृद्धि के लिये उत्तरदायी कारक (Factors Responsible for Growth of MNCs):
बहुराष्ट्रीय निगमों की वृद्धि के अनेक कारण हैं ।
उनमें से कुछ की सूची नीचे दी गई है:
1. उत्पादों की खोज (Products Innovation):
प्रायः यह ठीक ही देखा गया है कि बहुराष्ट्रीय निगमों के पास पर्याप्त अनुसंधान और विकास की सुविधाएँ होती हैं । इसलिये वह नये उत्पादों के विकास में और वर्तमान उत्पादों के बेहतर नमूनों की रचना के कार्य में व्यस्त रहते हैं । अतः राष्ट्रीय कम्पनियों की तुलना में उनके पास उत्पादन के बेहतर अवसर होते हैं ।
2. बाजार श्रेष्ठताएं (Market Superiority):
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को राष्ट्रीय फर्मों की तुलना में अनेक बाजार श्रेष्ठताएं उपलब्ध होती हैं ।
जैसे:
(i) दक्ष माल गोदाम सेवाएँ,
(ii) बाजार में कीर्ति,
(iii) विश्वसनीय बाजार सूचना,
(iv) प्रभावी प्रचार और संवर्धक तकनीकें आदि ।
3. प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठताएं (Technological Superiority):
तकनीकी श्रेष्ठताओं के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों को अल्प विकसित देश अपने औद्योगिक विकास में भाग लेने के लिये उत्साहित करते हैं । ये देश प्रौद्योगिक स्थानान्तरण को अपनी आर्थिक उन्नति के लिये लाभप्रद समझते हैं ।
4. बाजार का विस्तार (Expansion of Market):
एक बड़े आकार की फर्म होने के कारण, बहुराष्ट्रीय निगम विस्तृत बाजार में अपने कार्यों का विस्तार करता है तथा परिणामस्वरूप उसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त होती है जिस कारण ये अपनी गतिविधियों का निगमित देश की भौतिक सीमा के बाहर प्रसार करता है । इस प्रकार, विभिन्न देशों में व्यापार के विस्तार की लालसा बहुराष्ट्रीय निगमों की वृद्धि के लिये उत्तरदायी है ।
5. वित्तीय श्रेष्ठताएं (Financial Superiorities):
बहुराष्ट्रीय निगमों की वृद्धि का एक अन्य कारण राष्ट्रीय कम्पनियों की तुलना में इनकी वित्तीय श्रेष्ठता भी है ।
जैसे:
(i) बाहरी पूंजी बाजार तक सरल पहुंच,
(ii) अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति,
(iii) उच्चस्तरीय कोष का उपयोग,
(iv) भारी वित्तीय साधन आदि ।
Essay # 6. बहुराष्ट्रीय निगमों का महत्व [(Importance of Multinational Corporations (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों का अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर क्रांतिकारी प्रभाव है । यही कारण है कि बहुराष्ट्रीय निगमों ने पूजी बहावों के अधिक परम्परागत रूप को तथा अनेक अर्थव्यवस्थाओं के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित किया है । वर्तमान संसार में वह विश्व अर्थव्यवस्था की सबल शक्ति है ।
इसके मुख्य महत्व और लाभों पर निम्न बिन्दुओं द्वारा प्रकाश डाला गया है:
1. श्रेष्ठ तकनीक का स्थानान्तरण (Transfer of Superior Technology):
जैसा कि हम जानते हैं कि अल्प विकसित देश प्रौद्योगिक रूप में पिछड़े हुये होते हैं । अपने बलबूते पर शोध एवं विकास गतिविधियाँ जारी रखने के लिये उनके पास कुशल साधन नहीं होते । इस दृष्टिकोण से, अपने देश में बेहतर प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण के लिये वह एक अभिकर्ता का कार्य करते हैं ।
2. पूंजी का स्थानान्तरण (Transfer of Capital):
बहुराष्ट्रीय निगमों ने विश्व के विकसित देशों से विकासशील देशों की सहायता के लिये पूंजी प्राप्त करके महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है । अतः यह निगम पूंजी बहुल देशों से दुर्लभ पूजी वाले देशों में पूंजी का स्थानान्तरण करते हैं ।
3. संयोजन प्रभाव (Linkage Effect):
अल्प विकसित देशों के पास अन्य उद्योगों के साथ संयोजन प्रभाव का अभाव होता है । अतः बहुराष्ट्रीय निगम मेजबान देशों में संयोजक प्रभाव उत्पन्न करते हैं । वह संयोजित उद्योगों की रचना में भी सहायता करते हैं जो उन्नत अथवा पिछड़े किस्म के होते हैं ।
4. भुगतानों के सन्तुलन पर प्रभाव (Effect of Balance of Payments):
बहुराष्ट्रीय निगमों के कार्यों का देश के भुगतानों के सन्तुलन पर हितकर प्रभाव होता है । उनके पास व्यापक विपणन संगठन होते हैं जिसके द्वारा वे विकासशील देशों से निर्यातों का संवर्धन कर सकते हैं ।
5. रोजगार के अवसर (Effects of Balance of Payments):
बहुराष्ट्रीय निगम अल्पविकसित देशों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में सहायता करते हैं । मौलिक रूप में रोजगार की उत्पत्ति दो तत्त्वों का कार्य है ।
जैसे:
(i) निवेश की वृद्धि,
(ii) प्राद्योगिकी का स्वरूप ।
इसलिये बहुराष्ट्रीय निगमों ने पिछड़े देशों के उत्पादक मार्गों में निवेश को प्रोत्साहित किया है, जो बदले में बड़ी सीमा तक रोजगार के अवसर उत्पन्न करता है ।
6. मानवीय साधनपूंजी का विकास (Development of Human Resource Capital):
बहुराष्ट्रीय निगमों के पक्ष में यह बात भी है कि वह मानवीय साधनों की पूंजी को विकसित करने में सहायक रहे हैं । वह विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान और अनुभव के वाहक का कार्य भी करते हैं । इस प्रकार वह अल्प विकसित देशों को परिशुद्ध तकनीक तथा संशोधित प्रशिक्षण और ज्ञान उपलब्ध करते हैं ।
Essay # 7. बहुराष्ट्रीय निगमों पर नियन्त्रण (Control Over Multinational Corporations):
भारत जैसे विकासशील देशों पर बहुराष्ट्रीय निगमों के हानिकारक प्रभाव को ध्यान में रखते हुये देश में बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों को नियन्त्रित करने का दायित्व अनेक सरकारी अभिकरणों को सौंपा गया है ।
इन अभिकरणों में सम्मिलित हैं:
(क) भारतीय रिजर्व बैंक,
(ख) कम्पनी मामलों का मन्त्रालय,
(ग) ओद्योगिक विकास का मन्त्रालय और
(घ) वित्त मन्त्रालय ।
परन्तु, इन अभिकरणों में तालमेल के अभाव के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों के कार्यों पर कोई व्यवस्थित नियन्त्रण नहीं है । ऐसे मामलों पर इन अभिकरणों द्वारा इनके गुणों के आधार पर कोई समन्वित मार्ग अपनाये बिना विचार किया जाता है । इन अभिकरणों के पास कोई निष्पक्ष मानक नहीं है जिसके द्वारा प्रार्थनाओं को स्वीकृत किया जाये तथा विभिन्न मन्त्रालय प्रायः लम्बे और जटिल मार्ग अपनाते हैं ।
भारत में विदेशी प्रौद्योगिकी को असंगत एवं महंगा समझा गया है तथा माना गया कि इससे विदेशी निर्भरता बढेगी । माइकल किडरन (Michael Kidron) के अध्ययन का विवरण प्रकाशित होने के पश्चात इस विश्वास को और भी दृढ़ता प्राप्त हुई जिसका शीर्षक था भारत में विदेशी निवेश (1965) और रिपोर्ट ऑफ इन्डस्ट्रीयल लाइसैंसिंग पॉलिसी इन्क्वायरी कमेटी (1968) ।
इसके परिणामस्वरूप सरकार की बहुराष्ट्रीय निगमों पर नीति और उनके कार्यों को क्रमिक निम्नलिखित ढंगों से कठोर किया गया:
(क) विदेशी प्रौद्योगिकी के आयात को पूर्णतया प्रतिबन्धित करना जो अनावश्यक वस्तुओं के उत्पादन से सम्बन्धित है तथा उन क्षेत्रों में जहां घरेलू प्रौद्योगिकी को पर्याप्त समझा जाता है ।
(ख) इजाजत वाली विदेशी प्रौद्योगिकी के अधिकतम रॉयल्टी दर को निर्धारित करना ।
(ग) कुछ पदनामित उद्योगों के सम्बन्ध में केवल नियम के रूप में विदेशी निवेशों की प्रकरण से प्रकरण के आधार पर प्रशासनिक अधिकारी की स्वीकृति से आज्ञा थी ।
(घ) समझौते की सामान्य आज्ञा अवधि 10 वर्षों से घटा कर 5 वर्ष कर दी गई ।
(ङ) निर्यातों और अन्य विक्रय मामलों में प्रतिबन्धों की आम तौर पर आज्ञा नहीं थी और उत्पादन के एक विशेष अनुपात के निर्यात पर बल दिया जाता था ।
(च) आयात करने वाले को प्रौद्योगिकी की उप-अनुज्ञा की इजाजत देने सम्बन्धी समझौते में एक धारा जोड़ना था ।
(छ) प्रौद्योगिकी के आयात के लिये स्वीकृति के प्रार्थना पत्र पर विचार करने के लिये, CSIR को इस पर गौर करने की इजाजत दी गई तथा यदि यह चाहे तो ऐसे प्रौद्योगिकी आयात को रोक सकता अथवा इसमें विलम्ब कर सकता है ।
Essay # 8. बहुराष्ट्रीय निगमों से मुख्य जोखिम [(Main Dangers of Multinational Corporation (MNCS)]:
बहुराष्ट्रीय निगमों से अनेक जोखिमों का सामना करना पड़ता है, उनमें से कुछ का वर्णन नीचे किया गया है:
1. लाभ प्रवृतिक (Profit Oriented):
बहुराष्ट्रीय निगम मुख्यता: लाभ प्रवृतिक है । वह समग्र आर्थिक विकास में रुचि नहीं रखते । वह लाशों को अधिकतम बनाने से रोकने वाली अड़चन को सहन नहीं कर पाते ।
2. प्रौद्योगिकी का स्थानान्तरण एक महंगा कार्य है (Transfer of Technology is a Costly Affair):
प्रौद्योगिकी का स्थानान्तरण बहुत महंगा प्रमाणित होता है । वह शुल्कों, रायल्टी तथा अन्य खर्चो के रूप में अत्याधिक खर्च वसूल करते हैं ।
3. भ्रष्ट व्यवहार (Corrupt Practices):
बहुराष्ट्रीय निगम अपने व्यापारिक व्यवहार में प्रायः अवांछनीय एवं भ्रष्ट प्रथाओं का आश्रय लेते हैं ।
4. अनावश्यक वस्तुओं का उत्पादन (Production of Non-Essential Goods):
उपरोक्त के अतिरिक्त, बहुराष्ट्रीय निगम बहुल-उपयोग वाली और अनावश्यक वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेने को वरीयता देते है ।
5. क्षेत्रीय असमानताओं का संवर्धन (Promote Regional Disparities):
बहुराष्ट्रीय निगम क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं को प्रोत्साहित करते हैं । वह अल्प-विकास के सागर में विकास और समृद्धि के भीतरी प्रदेश बनाते हैं ।
6. पूंजी गहन प्रोद्योगिकी (Capital Intensive Technology):
बहुराष्ट्रीय निगम अपनी प्रौद्योगिकी लाते हैं जो प्रायः पूंजी गहन होती है तथा इसलिये उन्नत देशों के लिये अधिक प्रासंगिक होती है ।
7. श्रमिकों का शोषण (Exploitation of Labour):
बहुराष्ट्रीय निगमों ने अल्प विकसित देशों में, सस्ते में उपलब्ध श्रम का शोषण करने के लिये वहां उद्यम स्थापित किए हैं । इसलिये वे अपने देश में और मेजबान देश में वेतनों में अन्तर कायम रखने में रुचि रखते हैं ।