कर्मचारी प्रेरणा पर निबंध | Essay on Employee Motivation in Hindi.
Essay Contents:
- कर्मचारी प्रेरणा का अर्थ (Meaning of Employee Motivation)
- कर्मचारी प्रेरणा के उद्देश्य (Objectives of Employee Motivation)
- कर्मचारी प्रेरणा का महत्व (Importance of Employee Motivation)
- कर्मचारी प्रेरणा के प्रकार (Types of Employee Motivation)
- कर्मचारी प्रेरणा की विचारधाराएं (Ideas of Employee Motivation)
Essay # 1. अभिप्रेरणा का अर्थ (Meaning of Motivation):
”अभिप्रेरणा उन शक्तियों का समूह है जो किसी संगठन में एक व्यक्ति को काम प्रारंभ करने तथा उस पर बने रहने के लिए प्रेरित करता है ।” अमेरिकी जनरल फूड कॉर्पोरेशन के भूतपूर्व अध्यक्ष कलेरेन्स फ्रांसिस के शब्दों में, ”आप किसी व्यक्ति का समय खरीद सकते है, किसी विशेष स्थान पर उसकी शारीरिक स्थिति को खरीद सकते है, किंतु किसी व्यक्ति के उत्साह को, उसकी पहली शक्ति को अथवा उसकी वफादारी को नहीं खरीद सकते ।”
कर्मचारियों से अधिकाधिक कार्य लेने के लिए उन्हें नियमित रूप से प्रेरित करना आवश्यक है और ऐसी प्रेरक शक्ति ही अभिप्रेरणा (Motivation) है । दूसरे शब्दों में किसी भी उपक्रम में चाहे वह निजी क्षेत्र का हो या लोक क्षेत्र का, कर्मचारियों में कार्य की इच्छा और शक्ति को बनाए रखने के लिए कर्मचारी अभिप्रेरणा एवं प्रेरणाओं का विशेष महत्व है ।
ADVERTISEMENTS:
अभिप्रेरणा या अभिप्रेरण से आशय उस मनोवैज्ञानिक उत्तेजना से है जो व्यक्ति को कार्यशील बनाती है, उसे कार्य-निष्पादन के लिए प्रेरित करती है । अभिप्रेरणा को हम व्यवहार का गतिज या कमानी कह सकते हैं । व्यक्ति में कितनी ही योग्यता क्यों न हो, यदि अभिप्रेरणा नहीं है तो उसकी योग्यता एक ऐसे सुंदर इंजन की तरह होगी जिसमें भाप न हो । मानव की बडी-बडी सफलताएं अभिप्रेरणा के कारण ही है ।
अभिप्रेरणा का अर्थ भली प्रकार स्पष्ट करते हुए डॉ॰ मामोरिया एवं दशोरा ने लिखा है कि ”अभिप्रेरणा किसी व्यक्ति को कार्य निष्पादन करने के लिए प्रेरित करना है ।” यह उस रुचि का प्रतीक है जिसके द्वारा व्यक्ति में कार्य करने की इच्छा जागत होती है । प्रबंध की दृष्टि से अभिप्रेरणा बहुत आवश्यक है ।
वे प्रबंधक जो कर्मचारियों के सफल अभिप्रेरक हैं, सामान्यतः ऐसा वातावरण तैयार करने में सफल होते हैं जिससे उद्देश्यों की पूर्ति सफल की जा सके । मानव प्रकृति से मिलजुलकर रहना पसंद करता है तथा सहयोगियों की भावना और आगे बढने की प्रवृति के साथ अधिकाधिक उत्पादन की होड़ में लगा रहता है । इस प्रकार की होड़ में कर्मचारी व्यक्तिगत रूप में विभिन्न समूहों में विभक्त हो जाता है ।
एक समूह की तुलना में दूसरा समूह अधिक उत्पादन, अधिक कार्य एवं अधिक सफल होने की प्रवृति से प्रेरित होकर कार्य करता है । किसी भी संस्था या उपक्रम में कर्मचारियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करने हेतु वित्तीय प्रलोभन मजदूरी या वेतन वृद्धि, बोनस, पुरस्कार पदोन्नति, पेंशन, आदि को सम्मिलित किया जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
दूसरी गैर वित्तीय प्रलोभन जिसमें प्रशंसा-पत्र, कार्य मान्यता, सद्व्यवहार, पीठ थपथपाना आदि सम्मिलित है । अतः अभिप्रेरणा एक मानसिक विचार है जिसके द्वारा व्यक्ति कार्य करने के लिए प्रेरित होता है । वर्तमान और संभावित प्रलोभन के आधार पर उसे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है, अर्थात् अभिप्रेरणा व्यक्ति की कार्य पर संतुष्टि का परिणाम है ।
अभिप्रेरणा कर्मचारियों को अधिकाधिक कुशलतापूर्वक और अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित करती है कर्मचारियों में मनोबल को ऊँचा उठाना, उनमें आत्मविश्वास और निष्ठा की भावना पैदा करना, कर्मचारियों की सामाजिक आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करना तथा उन्हें यथासंभव संतुष्टि प्रदान करना और संस्था के प्रति उनमें लगाव उत्पन्न करना, मानवीय साधनों का सदुपयोग करना, तथा संस्था के लक्ष्यों आदि की प्राप्ति केवल अभिप्रेरणा के माध्यम से ही संभव है ।
मेकग्रेगर के अभिप्रेरणा संबंधी ‘X’ and ‘Y’ सिद्धांतों (Theory) की विवेचना करने से पहले इसके प्रकार, विधियों और इससे संबंधित परंपरागत विचारधाराओं का उल्लेख आवश्यक है ।
Essay # 2. अभिप्रेरणा के उद्देश्य (Objectives of Motivation):
अभिप्रेरणा प्रदान करने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
ADVERTISEMENTS:
1. कर्मचारियों को प्रोत्साहित करके उनके मनोबल को बढाना;
2. कर्मचारियों की आर्थिक, वैयक्तिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि करना,
3. कर्मचारियों की कार्यक्षमता तथा उनके मनोबल में संतुलन स्थापित करना;
4. मधुर श्रम संबंधों की स्थापना करना,
5. बाहर से थोपे गये नियंत्रण के स्थान पर कर्मचारियों में आत्मनियंत्रण की प्रवृति को जाग्रत करना;
6. प्रबंधक को इस सत्य की जानकारी कराना कि कर्मचारी केवल आर्थिक मनुष्य ही नहीं है वरन् जीवन के अन्य मूल्य भी उसे कार्य हेतु प्रेरित करते हैं ।
Essay # 3. अभिप्रेरणा का महत्व (Importance of Motivation):
1. प्रशासकीय संगठन के कर्मियों को आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने से निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना अत्यंत सरल व सुलभ हो जाता है ।
2. अभिप्रेरणा द्वारा कार्मिकों के मनोबल को ऊँचा रखने से सहायता मिलती है तथा उनमें निराशा व असंतोष की भावना उत्पन्न नहीं हो पाती ।
3. वित्तीय अवित्तीय प्रोत्साहन से सौहार्दपूर्ण मानवीय संबंधों की स्थापना को बल मिलता है ।
4. कार्मिक संगठन में स्थायी सेवा प्रदान करने के लिए उत्सुक रहते है तथा दूसरी संस्थाओं में नहीं जाते ।
5. मिलती है जिससे अंततः उत्पादकता में वृद्धि होती है ।
6. कार्मिकों से स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ व स्वस्थ साधन है ।
Essay # 4. अभिप्रेरणा के प्रकार (Types of Motivation):
अभिप्रेरणा या प्रोत्साहन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और यह प्रकारों में विभक्त भी किया जाता है:
1. धनात्मक अथवा सकारात्मक अभिप्रेरणा:
इस अभिप्रेरणा के द्वारा स्वेच्छा से काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है । इसके कई रूप हो सकते हैं- नकद-पारिश्रमिक देना, कुशल व योग्य कार्य के लिए पुस्कृत करना आदि । ऐसा अभिप्रेरण कर्मचारियों के मनोबल को ऊँचा उठाता है ।
2. ऋणात्मक अथवा नकारात्मक अभिप्रेरणा:
इस अभिप्रेरणा का आधार भयपूर्ण व दवाबपूर्ण होता है जिससे वह अपने कार्य को पूरा कर सके । इस अभिप्रेरणा के कई रूप हो सकते हैं- डांटना, फटकारना, मौद्रिक दंड देना, जबरन छुट्टी देना, नौकरी से अलग करना, सेवानिवृत करना, वेतन वृद्धि व पदोन्नति रोकना आदि ।
3. मौद्रिक अभिप्रेरणा:
जब किसी कर्मचारी को कार्य के एवज में दिया जाने वाला पारिश्रमिक मुद्रा के रूप में हो तो उसे वित्तीय या मौद्रिक अभिप्रेरणा कहेंगे । यह अभिप्रेरणा अधिकतर वेतन, मजदूरी, बोनस, प्रीमियम या लाभांशभागिता के रूप में होता है ।
4. अमौद्रिक अभिप्रेरणा:
अवित्तीय अभिप्रेरणा मानसिक व अदृश्य प्रकृति का होता है जिसका वित्त या मुद्रा से कोई संबंध नहीं होता । इसके प्रमुख उदाहरण हैं- कार्य की प्रशंसा करना, कार्य की सुरक्षा प्रदान करना, श्रेष्ठतर कार्य दशाएं प्रदान करना, उदार अवकाश नीति अपनाना आदि ।
Essay # 5. अभिप्रेरणा की विचारधाराएं (Ideas of Motivation):
A. अभिप्रेरणा की परंपरागत विचारधाराएं (Traditional Ideas of Motivation):
किसी भी नये सिद्धांत को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम उससे संबंधित परंपरागत सिद्धांतों की ओर भी ध्यान दें क्योंकि ऐतिहासिक परिपेक्ष्य के बिना किसी भी नई खोज (सिद्धांत) को समझ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकीन-सा लगता है ।
अतः मेकग्रेगर के अभिप्रेरणा सिद्धांत को समझने के लिए हमें उससे संबंधित परंपरागत सिद्धांतों का भी अध्ययन करना होगा जो इस प्रकार है:
1. भय एवं दंड की विचारधारा:
यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति पेट की खातिर ही काम करता है । अतः यदि उसको धमकी दी जाए कि काम न करने की दशा में नौकरी से निकाल दिया जाएगा तो घबराकर वह काम करेगा । इसी प्रकार दंड का भय भी मनुष्य से बरबस कार्य करा सकता है ।
औद्योगिक क्रांति के चरण में विचारधारा ने सफलतापूर्वक काम किया, शनै: शनै: इसका महत्व कम होता गया एवं आजकल तो भय दिखाकर एवं दंडित करके कार्य करना अमानवीय समझा जाता है ।
2. पुरस्कार का सिद्धांत:
इस विचारधारा के प्रतिपादक फ्रेडरिक डब्ल्यू टेलर हैं । उनकी यह मान्यता है कि काम का संबंध पारिश्रमिक से जोड़ देने से कर्मचारी अधिक काम करने के लिए अभिप्रेरित होगा अर्थात् अधिक पैसा कमाने के लिए वे अधिक कार्य करेंगे । इसी मान्यता के आधार पर उन्होंने विभेदात्मक भर्ती पद्धति की अनुशंसा की है । एडम स्मिथ की विचारधारा भी इससे मिलती-जुलती है ।
3. केरट व स्टिक विचारधारा:
इस विचारधारा की मान्यता है कि जिन व्यक्तियों का कार्यनिष्पादन निश्चित न्यूनतम स्तर से नीचा हो उनको दंडित किया जाना चाहिए । यह विचारधारा अभिप्रेरणा हेतु पुरस्कारों को शर्त युक्त बना देती है । यह दृष्टिकोण कतिपय विशिष्ट परिस्थितियों में ही प्रभावशील कहा जा सकता है ।
B. अभिप्रेरणा की आधुनिक विचारधारा (Modern Ideas of Motivation):
अभिप्रेरणा के आधुनिक सिद्धांतों में मैंस्लो, हर्जबर्ग तथा लिकर्ट, ड्रकर, मैकग्रेगर के सिद्धांत अग्रणी हैं ।
जिसमें विशेषकर मैकग्रेगर के प्रबंध संबंधी विचारों को निम्न दो भागों में बांटा गया है:
1. एकस-सिद्धांत, (X-Theory.)
2. वाई सिद्धांत, (Y-Theory.)
मैकग्रेगर ने मानव में दो भिन्न विचार प्रस्तुत किये । एक तो मूल रूप से नकारात्मक और निराशावादी है तथा दूसरा सकारात्मक एवं आशावादी है । इसका एक्रन सिद्धांत वस्तुतः प्रबंध का परम्परागत सिद्धांत ही है, और एक्स-सिद्धांत के दोषों के निवारण के लिए भी मैकग्रेगर ने वाई-सिद्धांत का प्रतिपादन किया । इनकी विस्तार से विवेचना इस प्रकार की जा सकती है ।
1. एक्स-सिद्धांत (X-Theory):
एक्स-सिद्धांत एक परंपरागत सिद्धांत है जो यह मानकर चलता है कि व्यक्ति प्रायः कार्य करना नहीं चाहता, अतः उनसे कार्य लेने हेतु उन्हें डराना, धमकाना, लताडना तथा अन्य किसी भी प्रकार से भय दिखाना आवश्यक है । प्रारंभिक काल में उद्योगपतियों का प्रमुख विचार था कि श्रमिकों से पूरा काम लेने के लिए उन्हें भय या दंड से आतंकित किया जाना चाहिए ।
उसका मानना था कि- ‘भय बिन न हो प्रीति’ कठोर नियंत्रण बनाना, नियमों का कठोरता से अनुपालन करवाना, और नियम के उल्लंघनकर्ता को नौकरी से निकाल देना या अन्य प्रकार से शारीरिक या मानसिक रूप में दंडित करना आवश्यक समझा जाता था । भय, प्रताड़ना, दंड देना, कर्मचारियों से अधिक लंबे समय तक काम लेना, कठोरता का व्यवहार करना आदि विचारों में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा, क्योंकि श्रमिक अधिकाधिक संगठित होने लगे और उनके शोषण को रोकने के लिए आवाज उठने लगी ।
अब भय और दंड को प्रेरणा विरोधी माना जाने लगा और पुरस्कार की विचारधारा सामने आई । टेलर ने यह मत व्यक्त किया कि अधिक कर्म के लिए अधिक पुरस्कार देना आवश्यक है । उचित पारिश्रमिक श्रमिकों के लिए अभिप्रेरणा का काम करेगा और वे अधिक कुशलतापूर्वक कार्य करेंगे ।
यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया कि श्रमिकों से काम लेने के दो ढंग हो सकते हैं- प्रोत्साहन अथवा दण्ड, और इनमें से जो ढंग उपयुक्त हो वही अपनाया जाना चाहिए । श्रमिकों को विश्वास में लेकर ही उनसे अधिक काम लिया जा सकता है ।
कर्तव्यनिष्ठा और कुशल कर्मचारियों को सामान्य मजदूरी या वेतन के अतिरिक्त पुरस्कार देकर भी अधिक कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है, जबकि कामचोर और कर्तव्य के प्रति उदासीन व्यक्तियों को वेतन कटौती, दंड आदि के प्रावधान द्वारा ठीक और अधिक काम के लिए प्रेरित किया जा सकता है ।
मैकग्रेगर ने उपरोक्त सभी विचारों-भय एवं दंड विचारधारा, पुरस्कार विचारधारा, प्रोत्साहन अथवा दंड विचारधारा के सम्मिश्रण को एक्स-सिद्धांत हैं (Theory) की संज्ञा दी । मैकग्रेगर ने बताया कि एक्स-सिद्धांत भ्रामक धारणाओं पर आधारित है, यथा-श्रमिक सामान्यतः सुस्त जीव होते हैं, श्रमिक कामचोर होते हैं, अधिकांश कर्मचारी उत्तरदायित्व टाल देना पसंद करते हैं, अतः उन्हें ठीक ढंग से काम पर लगाने के लिए भय और नियंत्रण की विधियां आवश्यक है ।
इस प्रकार की मिथ्या धारणाओं के कारण ही मैकग्रेगर तथा अन्य आधुनिक विद्वानों में एक्स-सिद्धांत जिन मान्यताओं को लेकर चलता है, उनमें मुख्य ये हैं:
1. एक सामान्य व्यक्ति स्वेच्छा से कार्य करने को उत्सुक नहीं होता है ।
2. एक सामान्य व्यक्ति में कार्य के प्रति प्रायः रुचि की भावना नहीं होती है ।
3. अधिकांश व्यक्ति महत्वाकांक्षी नहीं होते, अतः उनमें कुछ कर दिखाने की भावना नहीं होती ।
4. अधिकांश व्यक्तियों में उत्तरदायित्व वहन-क्षमता बहुत कम होती है और वे यह चाहते हैं कि उन्हें समय-समय पर अधिकारियों का निर्देशन प्राप्त होता रहे ताकि वे निर्देशानुसार काम करते रहें या लकीर के फकीर बने रहें ।
5. अधिकांश व्यक्तियों में प्रबंधकीय समस्याओं को सुलझाने की रचनात्मक क्षमता नहीं होती ।
6. सामान्य व्यक्तियों से कार्य लेने के लिए उन पर दबाव डालना या उन्हें भय दिखाना आवश्यक है । डराना, धमकाना, लताड़ना आदि उपायों को काम में लेना चाहिए क्योंकि तभी व्यक्ति कार्य करने को तत्पर होंगे ।
7. अधिकांश व्यक्ति वित्तीय प्रलोभन के आधार पर कार्य करते हैं । अतः यदि उन्हें अधिक पारिश्रमिक दिया जाएगा तो वे अधिक समय तक और अच्छा कार्य करने को तत्पर रहेंगे ।
8. प्रबंध की दृष्टि से सामान्यतः श्रमिक की कोई आवाज नहीं होती, वह तो एक मशीनी पुर्जा होता है जिसे अपनी बुद्धि का परिचय देने का सुअवसर प्राप्त ही नहीं होता ।
9. अधिकांश व्यक्ति परंपरागत ढंग से कार्य संपन्न करना उचित समझते हैं ।
अधिकांश परंपरावादी सिद्धांत उपरोक्त मान्यताओं पर आधारित है और नेतृत्व का निरंकुशतावादी सिद्धांत भी इन्हीं मान्यताओं में विश्वास करता है । लगभग पन्द्रहवीं सदी के मध्य से 18वीं सदी के मध्य तक प्रबंधकों का विश्वास दवाबकारी और दमनकारी नीतियों में ही रहा, पर कालान्तर में एक्स-सिद्धांत प्रतिपादित करने के उपरांत मैकग्रेगर को अपने सिद्धांत के प्रति आशंका पैदा हो गई लेकिन सर्वप्रथम इस सिद्धांत के प्रति मास्लो (Maslow) को आशंका पैदा हुई, उसने श्रमिकों की ‘आवश्यकताओं की क्रमबद्धता’ पर ध्यान दिया ।
उसके अनुसार मनुष्य की कुछ आवश्यकताएं होती हैं ।
जैसे:
1. जल, भोजन, कपड़ा आदि जो कि व्यक्ति को कार्य करने के लिए सबसे अधिक प्रेरित करती हैं । शारीरिक आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाने के उपरांत
2. व्यक्ति-सुरक्षा, स्थायित्व और निश्चितता पाने का प्रयत्न करता है ।
3. सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी आवश्यक है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । उसके पश्चात व्यक्ति सम्मान तथा स्वाभिमान की आवश्यकता की पूर्ति चाहता है ।
4. एक व्यक्ति जितने अधिक ऊँचे पद पर होगा उसके सम्मान व स्वाभिमान की आवश्यकताएं उतनी ही ऊँची और अधिक होंगी । मारो के अनुसार आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में अर्थात्
5. अंतिम स्थान आत्मविश्वास का है । इसकी ओर व्यक्ति का ध्यान अंत में जाता है ।
मास्लो (Maslow) के अनुसार विभिन्न स्तर के व्यक्ति विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं से प्रेरणा प्राप्त करते हैं । मैकग्रेगर ने भी बदलती हुई परिस्थितियों के परिवेश में यह अनुभव किया कि मानवीय व्यवहार की दृष्टि से यह सिद्धांत सही नहीं है, तथा मास्लो के सिद्धांत के आधार पर ही उसने वाई सिद्धांत (Y Theory) का गठन किया ।
उसके अनुसार मनुष्य सामाजिक प्राणी है, स्वतंत्र समाज में रहता है, उसकी आवश्यकताओं, शिक्षा के रहन-सहन के स्तर में परिस्थितियों के अनुसार सुधार होता रहता है, वह प्रबंधक से अच्छे व्यवहार की आशा करता है क्योंकि यह मानव स्वभाव है कि वह दंड और भय के वातावरण के विरुद्ध विद्रोह कर बैठता है ।
आलोचकों के अनुसार भी एक्स-सिद्धांत मानव व्यवहार की गलत धारणाओं पर आधारित है क्योंकि इसके अंतर्गत कर्मचारियों को आर्थिक पशु समझा जाता है जो केवल धन के लालच में काम करते हैं । आगे चलकर मैकग्रेगर ने यह अनुभव किया कि प्रबंधकीय क्रियाओं के सफल संचालन के लिए व्यक्ति की प्रकृति तथा उसके प्रेरक विचारों को समझना जरूरी है । अपनी इस परिवर्तित विचारधारा के आधार पर मैकग्रेगर ने वाई-सिद्धांत को जन्म दिया ।
2. वाई-सिद्धांत (Y-Theory):
एक्स-सिद्धांत के दोषों को दूर करने के लिए मैकग्रेगर ने जिस वाई-सिद्धांत का प्रतिपादन किया, वह मानवीय मूल्यों तथा प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं पर आधारित है । इस सिद्धांत की मान्यता है कि व्यक्ति स्वेच्छा से कार्य करना चाहता है और उसमें आशावादी तथा रचनात्मक प्रकृति होती है ।
1. व्यक्ति स्वतंत्र वातावरण चाहता है, और प्रबंधक से सद्व्यवहार की अपेक्षा करता है ।
2. व्यक्ति स्वेच्छा से कार्य करना चाहता है । अतः उसे कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए ।
3. कार्य करना उतना ही स्वाभाविक है जितना कि खेलना और विश्राम करना ।
4. एक औसत कर्मचारी दायित्व को निभाना सीख लेता है ।
5. बाह्य नियंत्रण, भय, प्रताडना, कठोर अनुशासन ऐसी विधियां ही व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करतीं वरन् व्यक्ति स्वयं निर्देशित और नियंत्रित होता है तथा जिस कार्य के लिए उसे नियुक्त किया जाता है, उसको पूरा करना वह अपना उत्तरदायित्व समझने लगता है । यह आवश्यक है कि प्रबंध कर्मचारियों को कार्य करने का उचित वातावरण प्रदान करे तथा कार्य करने के उचित साधन सुलभ कराए ।
6. व्यक्ति में उत्तरदायित्व से बचने की प्रवृति स्वाभाविक नहीं वरन् इसका मूल कारण महत्वाकांक्षा का अभाव होना और सुरक्षा को अत्यधिक बल दिया जाना है ।
7. व्यक्ति कार्य-निष्पादन केवल वित्तीय प्रलोभनों के कारण ही नहीं करता है बल्कि गैर-वित्तीय प्रलोभन भी उसे कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं । कार्य संबंधी अभिप्रेरणा सामाजिक स्वाभिमान तथा आत्म-सम्मान स्तरों पर भी ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती है जिस तरह कि शारीरिक तथा सुरक्षात्मक आवश्यकता स्तरों पर । इसी प्रकार कार्य-निष्पादन के लिए अभिप्रेरणा केवल पुरस्कार से ही नहीं मिलती बल्कि यह भी आवश्यक है कि उसकी उपलब्धियों की प्रशंसा की जाए । कार्य को मान्यता देना भी अपने आप में एक पुरस्कार है ।
8. संगठन संबंधी समस्याओं का समाधान करने की विवेक शक्ति सामान्यत सभी लोगों में पाई जाती है कुछ में कम और कुछ में अधिक । चातुर्य तथा सृजनात्मकता का गुण न्यूनाधिक सभी में पाया जाता है । प्रबंध को चाहिए कि वह कर्मचारियों से काम लेते समय इन गुणों का लाभ उठाए ।
9. वर्तमान औद्योगिक युग में मानव-योग्यता और क्षमता का पूरा उपयोग नहीं किया जा रहा है ।
10. वाई-सिद्धांत लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है और कर्मचारियों की संतुष्टि पर बल देता है । इस सिद्धांत का मूल उद्देश्य व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में उन दशाओं का सृजन करना है जिनके माध्यम से संगठन अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें ।
मैकग्रेगर ने लिखा है कि – ”एक प्रभावशाली संगठन वह है जहां नियंत्रण तथा निर्देशन के स्थान पर निष्ठा और सहयोग संस्थापित हो गया है और प्रत्येक निर्णय से प्रभावित होने वाले व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं ।” वाई-सिद्धांत सहभागिता विचारधारा के महत्व पर बल देती है जिसमें कर्मचारियों से अधिक कार्य लेने के लिए अभिप्रेरित करने हेतु संस्था के प्रत्येक स्तर पर भागीदारी की जानी चाहिए ।
मैकग्रेगर द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त दोनों सिद्धांतों को अन्य विद्वानों ने विभिन्न नामों से पुकारा है । लिकार्ट ने एक्स-सिद्धांतों को ‘कार्य-संगठन’ तथा वाई-सिद्धांतों को सामूहिक अभिप्रेरणा की संज्ञा दी है, तो ड्रकर ने वाई-सिद्धांत को ‘उद्देश्य तथा प्रबंध’ कहा है और क्रिस आर्गारिस ने समन्वित एवं स्वनियंत्रित प्रबंध (Management by Integration & Self-Control) पुकारा है ।