पर्वत: पर्वत पर निबंध | Mountains: Essay on the Mountains in Hindi language!

1. पर्वत के आशय पर निबंध (Essay on the Introduction to Mountains):

पर्वत पृथ्वी की सतह पर द्वितीयक क्रम (Second Order) के उच्चावच हैं । ये वैसे ऊँचे स्थल हैं, जिनका ढाल तीव्र व शिखर-क्षेत्र संकुचित होता है । ये निकटवर्ती क्षेत्रों की तुलना में सामान्यतः 1,000 मी. से अधिक ऊँचे होते हैं ।

पर्वतों के लघु रूप जिनकी ऊँचाई 1,000 मी. से कम होती है, पहाड़ी कहलाते हैं । किसी पर्वत या पहाड़ी की चोटी या सर्वोच्च भाग पर्वत शिखर (Peak) कहलाता है ।

एक ही काल में निर्मित तथा एक सँकरी पेटी में विस्तृत पर्वत एवं पहाड़ियों के क्रम को पर्वत श्रेणी (Mountain Range) कहते हैं । इसमें अनेक पर्वत शिखर व घाटियाँ मिलती हैं । भिन्न-भिन्न कालों में निर्मित विभिन्न समानान्तर श्रेणियाँ व एकाकी पर्वत मिलकर पर्वत शृंखला (Mountain Chain) बनाते हैं ।

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एक पर्वत समूह (Mountain Group) पर्वत तंत्रों का वह समूह होता है, जिसमें कई युगों में निर्मित पर्वत व पहाड़ियाँ पाई जाती हैं । कार्डिलेरा (Cordillera) के अंतर्गत कई पर्वत समूह व पर्वत तंत्र शामिल किए जाते हैं । उत्तरी अमेरिका का प्रशांत तटीय पर्वतीय भाग रॉकी कार्डिलेरा इसका प्रमुख उदाहरण है ।

2. पर्वतों का वर्गीकरण पर निबंध ( Essay on the Classification of Mountains):

i. मोड़दार या वलित पर्वत (Twisted or Folded Mountain):

ये संपीडन की शक्तियों द्वारा निर्मित पर्वत हैं । जब चट्‌टानों में पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों द्वारा मोड़ या वलन पड़ जाता है तो उसे मोड़दार पर्वत कहा जाता है । मोड़दार पर्वत विश्व के सबसे ऊँचे तथा सर्वाधिक विस्तृत पर्वत हैं ।

ये पर्वत लहरदार होते हैं तथा इनमें अनेक अभिनतियाँ व अपनतियाँ पाई जाती हैं । हिमालय, आल्प्स, यूराल, रॉकी, एंडीज, एटलस आदि प्रमुख मोड़दार पर्वत हैं ।

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ii. अवरोधी या ब्लॉक पर्वत (Block Mountain):

इनका निर्माण तनाव या खिंचाव की शक्तियों द्वारा होता है । इनसे भ्रंश या दरारें बनती हैं, जिससे धरातल का कुछ भाग धँस जाता है तथा कुछ भाग ऊपर उठ जाता है । दरारों के समीप के ऊँचे उठे भाग ब्लॉक पर्वत कहलाते हैं । भ्रंशों के निर्माण से संबद्ध होने के कारण इसे भ्रंशोत्थ पर्वत भी कहते हैं ।

कैलिफोर्निया का ‘सिएर्रा नेवादा’ पर्वत विश्व का सबसे अधिक विस्तृत ब्लॉक पर्वत है । यू.एस.ए. के ऊटा प्रांत का वासाच रेंज इसका उदाहरण है । यूरोप में वॉसजेस तथा ब्लैक फॉरेस्ट पर्वत ब्लॉक पर्वत के प्रमुख उदाहरण हैं । इनके मध्य के भाग के धँसाव के कारण राइन भू-भ्रंश घाटी का निर्माण हुआ है । पाकिस्तान का साल्ट रेंज भी ब्लॉक पर्वत का उदाहरण हैं ।

iii. गुम्बदाकार पर्वत (Oval Mountain):

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ज्वालामुखी क्रिया एवं स्थल में उभार के कारण इनकी उत्पत्ति होती है । संयुक्त राज्य अमेरिका का सिनसिनाती उभार, ब्लैक हिल्स व बिगहार्न्स इसके उदाहरण हैं ।

iv. संग्रहित पर्वत (Stored Mountain):

ज्वालामुखी के उद्‌गार से निस्मृत लावा, विखंडित पदार्थ तथा राखचूर्ण आदि के क्रमबद्ध अथवा असंबद्ध एकत्रीकरण के फलस्वरूप इन पर्वतों का निर्माण होता है । अतः इन्हें ज्वालामुखी पर्वत भी कहा जाता है । जापान का फ्यूजीयामा और इक्वेडोर का कोटोपैक्सी इसके प्रमुख उदाहरण हैं ।

v. मिश्रित पर्वत या जटिल पर्वत (Complex Mountain):

जब किसी पर्वत में बनावट संबंधी अनेक जटिलताएँ पाई जाती हैं तथा सामान्यतः चट्‌टानों के मिश्रित रूप पाए जाते हैं तो इस प्रकार के पर्वत का निर्माण होता है । यू.एस.ए. का सिएर्रा नेवादा व एनाकोंडा श्रेणी इसके प्रमुख उदाहरण हैं ।

vi. अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains):

ये मौलिक पर्वत नहीं हैं । अपरदन की शक्तियों द्वारा जब प्रारंभिक पर्वत घर्षित हो जाते हैं तो घर्षित पर्वत या अवशिष्ट पर्वतों का निर्माण होता है । भारत के विंध्याचल, अरावली, सतपुड़ा, महादेव, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, पारसनाथ आदि अवशिष्ट पर्वतों के उदाहरण हैं ।

पर्वत निर्माणकारी घटनाओं (आयु) के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण (Classification of Mountains on the Basis of Mountain-Building Events):

1. प्री-कैम्ब्रियन या कैम्ब्रियन युग के पूर्व के पर्वत (Precambrian Mountains):

ये प्राचीनतम पर्वत हैं, परन्तु अत्यधिक अनाच्छादन के कारण ये आंशिक रूप में ही मिलते हैं । इस काल के दौरान उत्तरी अमेरिका में लॉरेंशियन पर्वत, एलगोमन पर्वत, किलानियन पर्वतों का निर्माण हुआ था ।

यूरोप महाद्वीप में भी फेनोस्केंडिया व स्कॉटलैंड में प्री-कैम्ब्रियन पर्वतीकरण के उदाहरण पाए गए हैं । भारत में अरावली पर्वत इसी युग के पर्वत के उदाहरण हैं ।

2. कैलिडोनियन पर्वत (Caledonian Mountains):

स्कॉटलैंड के प्राचीन पर्वत कैलिडोनिया के नाम पर इस युग के पर्वतों को ‘कैलिडोनियन क्रम के पर्वत’ कहा गया है । कैलिडोनियन पर्वतीकरण की क्रिया पैल्योजोइक महाकल्प के विभिन्न युगों विशेषकर सिलूरियन व डिवोनियन युगों में सम्पन्न हुई ।

इस समय निर्मित पर्वतों में यूरोप में स्कॉटलैंड व आयरलैंड के पर्वत, स्कैंडिनेवियन पर्वत, दक्षिण अमेरिका के ब्राजीलाइड्स तथा भारत के विंध्याचल, महादेव व सतपुड़ा पर्वत प्रमुख हैं । इनमें से अधिकतर पर्वत अब घर्षित या अवशिष्ट पर्वत के रूप में बचे हुए हैं ।

3. हर्सीनियन पर्वत (Hercynian Mountain):

कैलिडोनियन पर्वतीकरण के पश्चात् एक शांत काल आरंभ हुआ जो कार्बोनिफेरस युग तक रहा । उसके पश्चात् पैल्योजोइक कल्प के अंतिम चरण में पर्मियन व कार्बोनिफेरस युगों में इन पर्वतों का उद्‌गम हुआ । जर्मनी के हॉर्ज पर्वत को आधार बनाकर इस काल के पर्वतों का यह नामकरण किया गया ।

यूरोप में ब्रिटेन के पर्वत, फ्रांस का ब्रिटेनी पर्वत, वासजेस, ब्लैक फॉरेस्ट, फ्रेंकेनवाल्ड पर्वत तथा, पर्वत एवं एशिया में अल्ताई, तिएनशान, नानशान, अलाई व ट्रांस अलाई, अमूर व गोबी के पर्वत इस युग के पर्वतों में प्रमुख हैं । उत्तरी अमेरिका में अप्लेशियन पर्वत हर्सीनियन हलचल के प्रमुख पर्वत हैं ।

4. अल्पाइन पर्वत (Alpine Mountain):

हर्सीनियन पर्वतीकरण के पश्चात् एक लंबा शांत काल रहा जो मेसोजोइक महाकल्प के प्रायः अन्त तक रहा । इस महाकल्प के अंतिम समय में पर्वतीकरण की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हो गई । परन्तु अधिकतम पर्वत इसके बाद के सेनोजोइक महाकल्प यानि टर्शियरी युग के विभिन्न युगों इयोसिन, ओलिगोसिन, मायोसिन व प्लायोसिन में ही निर्मित हो सके ।

अतः अल्पाइन पर्वतों को टर्शियरी पर्वत भी कहा जाता है । इस समय के पर्वतों को अल्पाइन क्रम के पर्वत का नाम यूरोप के आल्प्स पर्वत के नाम पर दिया गया है । अल्पाइन पर्वतीकरण के फलस्वरूप प्रायः हर महाद्वीप में विस्तृत तथा उच्च मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ है तथा कुछ प्राचीन पर्वतों का उत्थान भी हुआ है ।

उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वत, द. अमेरिका में एंडीज पर्वत, यूरोप में अल्पाइन पर्वत क्रम (मुख्यतः आल्प्स, डिननॉरिक आल्प्स, कारपेथियन, पिरेनिज, बाल्कन, काकेशस, कैंटेब्रियन, एपिनाइन आदि), अफ्रीका के एटलस पर्वत, एशिया में हिमालय व पामीर की गाँठ से निकलने वाले नवीन मोड़दार पर्वत (जाग्रोस, एलबुर्ज, क्युनलुन, काराकोरम आदि), म्यांमार का अराकानयोमा, पूर्वी एशिया के मोड़दार पर्वत, आस्ट्रेलिया का ग्रेट डिवाइडिंग रेंज आदि इसी युग के पर्वत हैं ।

अल्पाइन पर्वतीकरण अभी भी संतुलन की दृष्टि से अव्यवस्थित भू-भाग हैं, क्योंकि यहाँ अभी भी उत्थान जारी हैं ।

i. कार्डिलेरा डि लॉस एंडीज विश्व की सबसे लंबी पर्वत शृंखला है । उसके बाद क्रमशः रॉकी, हिमालय व ग्रेट डिवाइडिंग रेंज का स्थान आता है ।

ii. हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है । विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटी एवरेस्ट (ऊँचाई 8,848 मी.) इसी श्रेणी में स्थित है ।

iii. माउंट मैकिन्ले उत्तरी अमेरिका की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है ।

iv. काकेशस श्रेणी में स्थित एलब्रुश यूरोप की एवं माउंट ब्लैक आल्प्स पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी है ।

3. भू-सन्नति पर निबंध (Essay on Geosynclines):

भू-सन्नतियाँ, लंबे, सँकरे तथा उथले जलीय भाग होती हैं, जिनमें तलछटीय निक्षेप के साथ-साथ तली में धँसाव होता है । मोड़दार या वलित पर्वतों की व्याख्या के क्रम में भू-सन्नति संकल्पना का विकास हुआ । हाल व डाना ने इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास किया, परन्तु एक सिद्धान्त के रूप में इस संकल्पना का प्रतिपादन सर्वप्रथम ‘हॉग’ द्वारा किया गया ।

भू-सन्नतियों का पर्वत निर्माण से संबंध होने के कारण कोबर ने इसे ‘पर्वतों का पालना’ (Cradle of mountain) भी कहा है एवं पर्वत निर्माणक भू-सन्नति सिद्धांत दिया । कोबर के अनुसार टेथिस भू-सन्नति के अवसादों के वलन से हिमालय पर्वत की श्रेणियों का निर्माण हुआ है ।

4. पर्वत निर्माण के विभिन्न सिद्धान्त पर निबंध (Essay on the Various Theories of Mountain-Building):

1. कोबर का पर्वत निर्माणक भू-सन्नति सिद्धान्त

2. जेफ्रीज का तापीय संकुचन सिद्धान्त

3. डेली का महाद्वीपीय फिसलन सिद्धान्त

4. वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त

5. होम्स का संवहन तरंग सिद्धान्त

6. जोली का रेडियो एक्टिविटी सिद्धान्त

7. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त (हैरी हेस, मैकेंजी, पार्कर, मोर्गन आदि द्वारा विकसित)

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