गरीबी के दुष्चक्र पर निबंध | Essay on the Vicious Circle of Poverty in Hindi.

अर्द्धविकास के प्राथमिक कारक एक-दूसरे के साथ इस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं कि इनसे एक विषम दुश्चक्र का जन्म होता है । कम विकसित देश इस विषम दुश्चक्र से घिरे हुए हैं ।

रागनर नवर्से के अनुसार- यह दुश्चक्र अनेक शक्तियों का ऐसा चक्रीय समूह है जो एक-दूसरे को प्रभावित करता है । एक गरीब देश में आय कम होती है । अत: बचत भी कम हो पाती है, न्यून बचत के कारण न्यून विनियोग होता है । न्यून विनियोग से आशय है न्यून उत्पादकता । अत: न्यून उत्पादकता पुन: कम आय को उत्पन्न करती है ।

विषम दुश्चक्र का तर्क कम विकसित देशों में आर्थिक विकास की सम्भावनाओं को असम्भव बना देता है । यह मानकर चला जाता है कि व्यक्ति इतने निर्धन है कि वह बचत नहीं कर सकते । बचत न होने के कारण देश के विकास हेतु आवश्यक विनियोग भी सम्भव नहीं हो पाते । विनियोग न होने से देश में उत्पादकता का स्तर ही प्राप्त हो पाएगा । अत: व्यक्ति कम आय प्राप्त करेंगे व निर्धन बने रहेंगे

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इस प्रकार विषम चक्र एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़ी सन्तुलन की परिस्थितियाँ हैं जो एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं । अल्प विकास के दुश्चक्र को चित्र 6.1 से प्रदर्शित किया गया है ।

नवर्से के अनुसार- निर्धनता का मूल कारण पूँजी का अभाव है । अत: पूँजी निर्माण का न्यून होना पूँजी की पूर्ति एवं पूँजी की माँग के पक्षों से सम्बन्धित होता  विनियोग की प्रेरणाओं पर तथा पूंजी के पूर्ति पक्ष के अधीन व्यक्तियों की बचत की इच्छा व क्षमता पर निर्भर रहता है ।

पूँजी का पूर्ति पक्ष अर्द्धविकसित देश में पूँजी के अभाव से श्रम प्रधान परम्परागत तकनीक का प्रयोग किया जाता है जिससे कुल उत्पादन न्यून ही रहता है । उपभोग आवश्यकताओं के पूर्ण होने के पश्चात् पूँजी संचय के लिए पर्याप्त अतिरेक शेष नहीं रह जाता है । इस प्रकार पूंजी की कमी के कारण विनियोग सीमित रहते है तथा आय का न्यून स्तर प्राप्त हो जाता है ।

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पूँजी का माँग पक्ष अर्द्धविकसित देशों में वास्तविक आय के न्यून स्तर होने के कारण उपभोग क्षमता सीमित रहती है । अत: वस्तु व सेवाओं की कम माँग होती है । इस स्थिति में विनियोगी उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास नहीं करता ।

विषम दुश्चक्र के तर्क की इसकी मान्यताओं के आधार पर आलोचना की जाती है । यह माना जाता है कि अर्द्धविकसित देशों में बचत का स्तर न्यून होता है । केयरनक्रास ने ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट किया कि विभिन्न देशों में आय की व्यापक विषमताएँ होने के बावजूद भी व्यक्ति बचत करने में समर्थ होते हैं ।

पी.टी. बायर अपनी पुस्तक Dissent on Development में लिखते है कि यदि विषम दुश्चक्र के कथन को सत्य मान लिया जाये तो इससे अभिप्राय यही होगा कि विश्व में निर्धन देश कभी प्रगति नहीं कर पाएँगे । वास्तव में आज सम्पन्न कहे जाने वाले देश भी कभी निर्धन थे ।

विषम दुश्चक्र को माँग एवं पूर्ति दोनों ही पक्षों के द्वारा खंडित किया जा सकता है । पूँजी की पूर्ति को ध्यान में रखते हुए सरकार घरेलू क्षेत्र एवं विदेश से अधिक बचतें गतिशील करने का प्रयास कर सकती है । इस प्रकार प्राप्त पूँजी को अल्प समय अवधि में उत्पादन प्रदान करने वाले विनियोग कार्यक्रमों में लगाकर उत्पादकता में वृद्धि सम्भव है । उत्पादन की वृद्धि करते हुए उत्पादन साधनों को अधिक रोजगार प्राप्त होगा जिससे आय बढ़ेगी । आय की वृद्धि माँग में वृद्धि करेगी ।

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गुन्नार मिरडल अपने ग्रन्थ Asian Drama में लिखते है कि कम विकसित देशों में गरीबी का दुश्चक्र इस कारण विद्यमान होता है, क्योंकि वहाँ संसाधन अल्पशोषित है । इसका कारण इन देशों के निवासियों का निराशावादी दृष्टिकोण है । अशिक्षा, कौशल की कमी व साधन गतिशीलता के अभाव के कारण संसाधनों का कुशल व समर्थ प्रयोग नहीं हो पाता जिससे अर्द्धविकास की प्रवृति बढ़ती है ।

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