गरीबी को कम करने में स्वास्थ्य उद्योगों का योगदान | Contribution of Health Industries in Reducing Poverty in India in Hindi Language.

जनसंख्या प्रधान देश के साथ विकासशील अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र है । यहाँ विश्व की 17.5 फीसदी जनसंख्या निवास करती है । वर्ल्ड डवलपमेंट रिपोर्ट 2013 के अनुसार- ”भारत विश्व का सबसे युवा देश है, यहाँ 15-35 वर्ष की जनसंख्या 65 फीसदी है, और 2020 तक भारत विश्व का सबसे युवा देश होगा ।”

परन्तु स्वतंत्रता से लेकर 2013 तक देश में गरीबी के प्रतिशत में तो कमी आयी है, परन्तु गरीबों की संख्या में कोई विशेष कमी नहीं आयी है । सन 1950 में कुल 36.1 करोड़ जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा था ।

जिसके पीछे अनेक कारण थे, उन्हीं कारणों में एक समुचित स्वास्थ्य व्यवस्था का अभाव था । समुचित स्वास्थ्य सुविधाएँ न होने के कारण जनसमुदाय अनेक बीमारियों से ग्रसित रहता था, जिससे उनकी श्रम करने की क्षमता कमजोर होती थी, और वे गरीबी के दुष्चक्र में फसें रहते थे ।

ADVERTISEMENTS:

योजना आयोग के “इंडिया विजन 2020” के अनुसार भारत में सन 2000 में 26 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जिनको 2020 तक 13 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । जिससे आने वाले समय में गरीबों की संख्या को न्यूनतम करके देश को गरीबी से मुक्ता किया जा सके ।

निर्धनता एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है । इसकी उत्पत्ति और स्वरूप बड़ा जटिल है । निर्धनता का अर्थ उस स्थिति से है, जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में असमर्थ रहता है ।

जब समाज का एक बहुत बड़ा अंग न्यूनतम जीवन-स्तर से वंचित रहता है और केवल निर्वाह-स्तर पर गुजारा करता है, तो यह कहा जाता है कि समाज में व्यापक गरीबी और असमानता विद्यमान है । जब देश में असमानता का स्तर बहुत अधिक हो जाता है, तो उस स्थिति में आर्थिक विकास की दर नीचे गिर जाती है ।

गरीबी पर अपना मत देते हुए वीवर ने लिखा है ”गरीबी एक ऐसे जीवन स्तर के रूप में परिभाषित की जा सकती है जिसमें स्वास्थ्य और शरीर सम्बन्धी क्षमता नहीं बनी रहती है ।”  इस प्रकार सामाजिक, आर्थिक उन्नति और गरीबी उन्मूलन की प्रक्रिया में स्वास्थ्य के महत्व को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन स्तर को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा प्रदानगी प्रणाली में अपेक्षित संरचनात्मक परिवर्तन किया है ।

ADVERTISEMENTS:

जिससे देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ्य एवं कुशल श्रमिक बनाकर आर्थिक विकास की दर में और वृद्धि लायी जा सके । गरीबी पर अपना मत देते हुए प्रो अमर्त्य सेन ने लिखा “गरीब लोग कितने अभावग्रस्त हैं और उनकी दशा में किस दिशा में परिवर्तन आ रहे हैं, इन दो बातों पर विचार किए बिना गरीबी की समस्या का सही निदान सम्भव नहीं होगा, और सही निदान के अभाव में सही उपचार कैसे हो पाएगा ।”

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अनेक अर्थशास्त्रियों एवं संस्थाओं ने निर्धनता के निवारण के लिए योजनाओं को क्रियांवित करने के पक्ष पर जोर दिया है । योजना आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ दल ‘Task Force on Minimum Need and Effective Consumption Demand’, डांडेकर एवं रथ, लकड़वाला फॉर्मूला, तेन्दुलकर समिति और 2012 में गठित डॉ. सी. रंगराजन समिति इत्यादि समितियों ने अपने-अपने प्रमाप बनाए हैं, जिससे देश में व्याप्त गरीबों की सही स्थिति का पता लगाया जा सके और उसका निवारण किया जा सके, क्योंकि गरीबी अभिशाप के साथ-साथ आर्थिक-सामाजिक विकास में बाधक होती है ।

सामाजिक आर्थिक विकास एक लगातार गतिशील प्रक्रिया है, सामाजिक विकास में मानवनीय विकास सबसे मुख्य पहलू है, क्योंकि बिना मानवीय विकास के समाजिक आर्थिक विकास होना सम्भव नहीं है और मानवीय विकास पूर्णत: स्वास्थ्य पर आधारित है, क्योंकि स्वस्थ्य श्रमिक ही सामाजिक आर्थिक विकास की गति में वृद्धि करता है ।

इस प्रकार स्वास्थ्य के महत्व पर बल देते हुए ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एवं राजन वाई. सुन्दर का मत है कि ”देश के विकास में स्वास्थ्य सुविधाओं पर विशेष महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि देश का विकास तभी संभव है जब देश का हर नागरिक स्वस्थ हो, ओर भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की अपार सम्भावनाएं हैं, यहाँ विश्व के अन्य देशों के मुकाबले बहुत सस्ती स्वास्थ्य सेवाऐं प्राप्त हो जाती हैं, यदि भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाये, तो यह देश दुनिया का सबसे उन्नतशील स्वास्थ्य सुविधाऐं प्रदान करने वाला राष्ट्र होगा ।”

ADVERTISEMENTS:

स्वास्थ्य मनुष्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूंजी है, जिसके आधार पर ही मानवीय विकास की नींव पड़ती है । जो भी राष्ट्र, समाज और व्यक्ति स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़ा हुआ होगा वह न केवल सम्पन्नता, बल्कि अपने जीवन के मूल्यों की स्थापना करने में भी पिछड़ा होगा । स्वास्थ्य किसी भी समाज की प्रगति के लिए अनिवार्य है, जो भी समाज अथवा व्यक्ति स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है ।

वह न केवल सम्पन्नता, बल्कि वह जीवन के मूल्यों की स्थापना करने में भी पिछड़ा होगा । स्वास्थ्य मानव जीवन की अनमोल सम्पत्ति है, स्वस्थ्य शरीर कुशलता सम्पन्नता एवं प्रसन्नता का प्रतीक है । मनुष्य के जीवन में स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण किसी अन्य वस्तु की कल्पना करना कठिन है ।” इस प्रकार समाज के विकास में स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

एशियाई देशों में गरीबी की स्थिति:

गरीबी एक ऐसी समस्या है जिससे पूरी दुनिया प्रभावित है । विश्व में गरीबी और भूखे लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है जिसे देखकर संयुक्त राष्ट्र संघ समिति ने कहा कि गरीबी से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रहीं हैं लोग बुनियादी सुविधाएँ नहीं जुटा पा रहें हैं, यहीं तक दोनों समय का खाना भी नहीं खा पा रहे हैं ।

इस प्रकार गरीबी को कम करने के लिए ”सन 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहस्राब्दी विकास लक्ष्य के तहत बीड़ा उठाया था कि सन 2015 तक दुनिया से भूख और गरीबी घटाकर आधी कर दी जाएगी । लेकिन जब इस विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन में इस दिशा में प्रगति की समीक्षा की गई तो पता चला कि सन 2000 में भूखे और गरीब लोग दुनिया में लगभग 80 करोड़ थे, जबकि अब पिछले दस वर्षों में इनकी संख्या 100 करोड़ से अधिक हो गई है ।” यह रिपोर्ट बयान करती है कि गरीबी और भूख से प्रभावितों की संख्या में लगातार वृद्धि होना कहीं न कहीं हमारी योजनाओं में कमी होना है ।

2010 में एशियाओं देशों में गरीबी का सबसे अधिक प्रतिशत भारत का है । जो अन्य देशों के औसत से लगभग 5 गुना है । यह कड़ा भारत में करीब भ फीसदी गरीबी को दर्शाता है वहीं विश्व का सबसे जनसंख्या वाला देश चीन लगभग 16 फीसदी, पाकिस्तान लगभग 4 फीसदी, नाईजीरिया और इन्होनेशिया क्रमश: लगभग 7 और 5 फीसदी गरीबी को दर्शाता है ।

जो 1981 से 2005 तक सामान्य: एक जैसी बनी हुई हे । इससे स्पष्ट होता है कि पूर्वी एशिया के देशों ने गरीबी पर लगातार नियंत्रण किया है और दक्षिण एशिया के देशों में गरबों की संख्या 1981 से मुकाबले 2005 में वृद्धि को दर्शाता है ।

गरीबी निवारण में स्वास्थ्य सुविधाओं का योगदान:

किसी भी देश में गरीबी और सामाजिक विकास में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है । जिस देश में गरीबों की संख्या अधिक होती है, वहाँ मानव संसाधन पूँजी की स्थिति असामान्य होती है । जिससे श्रम शक्ति प्रभावित होती है और देश के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है ।

श्रमशक्ति प्रभावित होने का मुख्य कारण बीमारियों से ग्रसित होना है । जिस देश का जनसमुदाय बीमारियों से ग्रसित होता है, उस देश की अर्थव्यवस्था के विकास में विपरीत प्रभाव पड़ता है । स्वतंत्रता से लेकर 1970 तक भारत में अनेक बीमारियों की भरमार होने का कारण, देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी थी, जिससे जन्म और मृत्यु दर बहुत अधिक थी और गरीबों की संख्या भी अधिक थी ।

देश में जैसे-जैसे स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति में सुधार आता गया गरीबी की संख्या में कमी और सामाजिक-आर्थिक विकास में वृद्धि होती गयी है । हिक्स व स्ट्रीटन के अनुसार “स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषकता, पेयजल आपूर्ति और आवास जैसे मुद्दों पर किया जाने वाला व्यय उत्पादक होता है ।”

इस प्रकार स्वास्थ्य सुविधाओं पर किया गया विनियोग देश के विकास में तेजी लाता है । स्वास्थ्य के द्वारा न केवल मानवीय सुख में वृद्धि होती है. वरन् समुदाय की उत्पादकता शक्ति एवं कार्यकुशलता में भी विस्तार होता है । कार्यकुशलता, क्षमता, उत्पादकता एवं स्वास्थ्य परस्पर अतः सम्बन्धित होते हैं ।

मानवीय संसाधनों की कार्यक्षमता और कार्यकुशलता शारीरिक योग्यता पर निर्भर करती है, और शारीरिक योग्यता उचित स्वास्थय और पर्याप्त भोजन पर निर्भर करती है, जो गरीबी को कम करने में सहयोग प्रदान करती है ।

प्रो. रिचार्ड टी. गिल के अनुसार ”आर्थिक विकास कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं बल्कि यह एक मानवीय उपक्रम है, जिसकी प्रगति उन लोगों की कुशलता, गुणों, दृष्टिकोणों एवं अभिरूचियों पर निर्भर करती है ।” इस प्रकार स्वास्थ्य सुविधाओं पर किया गया प्रत्येक विनियोग सही अर्थों में देश की गरीबी निवारण और आर्थिक विकास का वास्तविक विनियोग है ।

1950-51 में जब जनसंख्या 36.1 करोड़ थी उस समय जन्मदर और मृत्युदर स्तर क्रमश: 39.9, 27.4 प्रति हजार थी । जिसकी मुख्य वजह स्वास्थ्य सुविधाओं का कम होना था और जैसे-जैसे स्वास्थ्य सुविधाओं. में वृद्धि होती गयी जन्मदर और मृत्युदर में लगातार कमी को देखा जा सकता है ।

1990-91 में जब जनसंख्या 84.6 करोड़ थी उस समय तक जन्मदर में 10.4 अंक और मृत्युदर में 17.6 अंक की कमी आ चुकी थी । इस प्रकार जनसंख्या और जन्मदर एवं मृत्युदर में लगातार बढ़ता अन्तर स्वास्थ्य सुविधाओं में हो रही वृद्धि को दर्शाता है । जिससे यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से सामाजिक विकास में वृद्धि हो रही है ।

गरीबी निवारण पर किया गया योजनागत व्यय:

भारत सरकार ने विकास को ध्यान में रखते हुए पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा सामाजिक-आर्थिक प्रगति और गरीबी निवारण के लिए निवेश किया है । वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं को केन्द्र में लाकर लोगों को सक्षम बनाने के लिए योजनाओं के अन्तर्गत निवेश किया है ।

योजना आयोग भारत सरकार ने सामाजिक-आर्थिक विकास को केन्द्र में रख कर गरीबी निवारण और मानवीय विकास के लिए योजनागत व्यय में 1951-56 में कुल वास्तविक निवेश का 22.00 फीसदी सामाजिक सेवाओं के विकास में खर्च किया, परन्तु चौथी पंचवर्षीय योजना जो मुख्यतः स्वास्थ्य सुविधाओं पर आधारित थी उस पर कुल योजनागत व्यय का मात्र 18.00 फीसदी ही सामाजिक सेवाओं पर खर्च किया गया और इसी प्रकार दूसरी से आठवीं योजना अवधि में प्रथम योजना के प्रतिशत से भी कम खर्च किया गया जिससे गरीबी के निवारण में विशेष सफलता नहीं मिली परन्तु ग्यारहवीं योजना में कुल निवेश का उ5 5 फीसदी खर्च किये जाने से गरीबी घटकर 21 फीसदी होना सामाजिक सेवाओं पर निवेश और गरीबी निवारण में सीधे सम्बन्ध को दर्शाता है ।

इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि सामाजिक सेवाओं निवेश की दर में वृद्धि कर दी जाये तो गरीबी को बहुत जल्द ही खत्म कर सकते हैं । योजना आयोग ने स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के महत्व पर बल देते हुए कहा के प्रगति की आधारशिला स्वास्थ्य है । इस लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की प्रदानगी प्रणाली में संरचनात्मक परिवर्तन एवं सुधार करके अत्याधिक निवेश किया जाना चाहिए ।

विश्व बैंक ने सन 2010 में अपनी रिपोर्ट में कहा भारत में गरीबी का निर्धारण मैं 1 डॉलर प्रति दिन आय के स्थान पर 1.25 डॉलर से कम आय वाले परिवार को गरीबी रेखा में माना जाना चाहिए, क्योंकि अब भारत की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ चुका है ।

यहीं अन्य विकासशील देशों की अपेक्षा सामाजिक-आर्थिक विकास एवं मानवीय विकास की स्थिति बहुत अच्छी है । वर्तमान में सरकार द्वारा कार्यान्वित कल्याणकारी योजनाओं की अवधारणा समाज को विकसित करना है, जिसके देश में व्याप्त निर्धनता में कमी लायी जा सके ।

सरकार द्वारा निर्धनता निवारण, महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति, आधारित संरचना व पर्यावरण आदि के मामलों को दृष्टिगत करके राष्ट्रीय स्तर पर 27 व राज्यों के लिए विभिन्न लक्ष्य योजनाओं द्वारा गरीबी निवारण के लिए योजनाएँ और कार्यक्रम चला रहीं हैं ।

(1) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना,

(2) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना,

(3) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता सुरक्षा योजना,

(4) कृषि श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना,

(5) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना,

(6) इन्दिरा आवास योजना,

(7) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम,

(8) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना,

(9) प्रधानमंत्री रोजगार योजना,

(10) ग्रामीण आवास योजना,

(11) प्रधानमत्री ग्राम सड़क योजना,

(12) सूखा राहत क्षेत्र कार्यक्रम,

(13) मरू विकास कार्यक्रम,

(14) अत्योदय अन्न योजना,

(15) वाल्मिकी अम्बेडकर आवास योजना,

(16) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन,

(17) राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना,

(18) राष्ट्रीय मलेरिया निवारण कार्यक्रम,

(19) राष्ट्रीय कुपोषण उन्मूलन कार्यकम,

इत्यादि योजनाओं में हजारों करोडों का निवेश कर देश से गरीबी को कम करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है ।

समस्याएँ एवं समाधान:

आजादी के 66 वर्षों के बाद एवं आर्थिक सुधारों के लगभग 16 वर्ष के उपरान्त भी गरीबी निवारण में विशेष सफलता नहीं मिल पाने का कारण ग्रामीण भारत में समुचित स्वास्थ्य सुविधाएँ न होना है । ग्रामीण स्वास्थ्य की हकीकत आज भी सोचनीय बनी हुई है. देश की लगभग 70 फीसदी जनसंख्या गाँवों में निवास करती है, परन्तु वही शहरों के मुकाबले मात्र 15 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाएं का होना एक सोचनीय पहलू है, जो गरीबी बढ़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।

‘NSSO रिपोर्ट 1998 के अनुसार ग्रामीण ण ग्रस्तता, गरीबी का प्रमुख कारण स्वास्थ्य से जुड़ा है । अस्पतालों में भर्ती होने वाले बहुत से भारतीयों की जेब अस्पताल के खर्च में ही खाली हो जाने से वे गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं ।’

इन सभी पहलुओं पर सरकार को ध्यान देकर सरकारी अस्पतालों में दवाओं की सप्लाई प्रचुर मात्रा में करनी चाहिए, देश में टेलीमेडीसिन (सामान्य बीमारी के उपचार सम्बन्धी जानकारी टोल फ्री नम्बर द्वारा प्राप्त होने) की सुविधा को लागू करना चाहिए ।

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में उन्नतशील स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता के साथ, पूरा पैरामेडिकल स्टाफ होना चाहिए और ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधा में निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । इस प्रकार सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ा कर गरीबी निवारण में और तेजी लायी जा सकती है ।

निष्कर्ष:

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास और गरीबी निवारण में सीधा सम्बन्ध है । देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में जितनी तेजी से विकास होता है, गरीबी में भी उतनी तेजी से कमी आती है और आर्थिक विकास में उतनी तेजी से वृद्धि होती है ।

स्वतंत्रता के समय देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की समुचित व्यवस्था न होने के कारण लोग न चाहते हुए भी बीमारियों से ग्रसित होकर गरीबी की जिन्दगी जीने को मजबूर रहे । परन्तु जैसे-जैसे देश में स्वारथ्य सुविधाओं का विकास होता गया सामाजिक विकास में वृद्धि होने के साथ गरीबी में कमी को स्पष्ट देखा जा सकता है ।

सरकार ने गरीबी को कम करने और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ाने के दृष्टिगत प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान कुल निवेश का सामाजिक सेवाओं पर 22.00 फीसदी खर्च किया जाना बहुत कम था । यदि उस समय सामाजिक सेवाओं पर कुल निवेश का 30 फीसदी से अधिक खर्च किया जाता तो आज देश में गरीबी का स्तर बहुत कम होता ।

क्योंकि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 2007-12 के दौरान कुल निवेश के 356 फीसदी खर्च से देश की गरीबी दर में 153 अंकों की कमी आना बहुत बड़ी सफलता है । 1950-51 से 1990-91 तक के योजना काल में कुल निवेश का 1978 फीसदी खर्च किया गया और इस अवधि में गरीबी निवारण दर में कोई विशेष कमी देखने को नहीं मिली. परन्तु नियोजन के उपरांत जैसे ही सामाजिक सेवाओं के निवेश पर वृद्धि की गयी गरीबी की दर में पहले से अधिक गिरावट को देखा जा सकता है ।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में सामाजिक विकास पर अभी तक सबसे अधिक खर्च किया जाना गरीबी निवारण और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है । 2007 से 2012 की अवधि में सामाजिक विकास के साथ आर्थिक विकास में वृद्धि के साथ गरीबी की दर में आयी कमी को स्पष्ट देखा जा सकता है ।

इस प्रकार स्पष्टतः कहा जा सकता है कि गरीबी निवारण और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास में धनात्मक सम्बन्ध है, यदि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग बढ़ा दिया जाये और उसे ग्रामीण क्षेत्रों में कम कीमत पर जनसमुदाय को उपलब्ध करा दी जाये, तो देश की जनता को बीमारियों से निजात दिलाने के साथ गरीबी जैसे कलंक से भी देश को निजात दिलाई जा सकती है ।

स्वतंत्रता के समय देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा बीमारियों की वजह से गरीबी रेखा में जीवन यापन कर रहा था, परन्तु जैसे-जैसे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार होता गया, लोग स्वस्थ्य होते गये और गरीबों की संख्या में लगातार कमी आती गयी है । (शोध छात्र, शोध पत्र को तैयार करने में प्रो तपन चौरे (शोध निर्देशक), विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के द्वारा दिये गये सुझावों व मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता व्यक्त करता है) ।

Home››Essay››Poverty››