भारत में गरीबी की समस्या पर निबंध | Essay on Poverty Problem in India in Hindi language!

Essay # 1. भारत में गरीबी की समस्या का परिचय (Introduction to Poverty Problem in India):

”दरिद्रता एक ऐसी दीवार है जो इन्सान के बढ़ते कदम को थाम लेती है । व्यक्तित्व विकास एवं सर्वागीण विकास के लिये यह एक बाधक तत्व है । यह न केवल व्यक्ति के लिए अपितु सम्पूर्ण मानव समाज के लिए अभिशाप है ।”

गरीबी एवं सर्वव्यापी समस्या है । विश्व के अनेक देश इसके चपेट से नहीं बच सके है । भारत में ग्रामीण विकास मंत्रालय पैनल की अध्यक्षता वाली एन. सी. सक्सेना समिति ने 50 प्रतिशत भारतीयों को गरीबी रेखा के नीचे बताया है ।

जो औसत दर्जे का जीवनयापन नहीं कर पाते हैं एवं उनके पास पर्याप्त भोजन एवं वस्त्रों का अभाव है । औद्योगिक क्रांति ने गरीबी और अमीरी में भीषण आर्थिक विषमता पैदा कर दी है । आज समूचा विश्व आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न और विपन्न दो भागों में बट गया है ।

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दरिद्रता और अमीरी तुलनात्मक शब्द हैं, साधारण भाषा में निर्धनता के विषय में प्रसिद्ध समाज शास्त्री, गिलिन एवं गिलिन का कथन है कि- ‘निर्धनता वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति या तो अपर्याप्त आय अथवा मूर्खतापूर्ण व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को इतना ऊँचा नहीं कर पाता है कि उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता बनी रह सके ।

उसको तथा उसके आश्रितों को अपने समाज से स्तरों के अनुसार उपयोगी ढंग से कार्य करने के योग्य बनाए रख सके ।’ इसी प्रकार का कथन वीवर और गोडार्ड ने भी कहा है । गरीबी का निर्धारण ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जा सकता है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में वे व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे आंके गये हैं, जो 1993-94 के मूल्य स्तर 229 रूपये प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय नहीं कर सकता और शहरी क्षेत्र में 264 रूपये प्रति व्यक्ति प्रति माह उपभोक्ता व्यय नहीं कर सकता है । गाँवों में पाँच व्यक्तियों की सदस्यता वाला परिवार गरीब है ।

जो 11060 रूपये प्रतिवर्ष खर्च नहीं कर सकता और नगरों में 11850 रूपये उपभोक्ता प्रतिवर्ष खर्च नहीं कर सकता फरवरी 1997 में सरकार ने जो विवरण संसद में प्रस्तुत किया उसके अनुसार अधिकतम 15000 रूपये वार्षिक कमाने वाले व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने वाले माने जायेंगे ।

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गरीबी निर्धारण का एवं आधार यह भी है कि एक व्यक्ति को प्रतिदिन गाँवों में 2400 केलोरी ऊर्जा प्रदान करने वाला एवं नगरों में 2100 केलोरी ऊर्जा प्रदान करने वाला भोजन मिलना चाहिए । उतनी केलोरी ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए हमें जितना उपभोग खर्च प्रति माह करना चाहिए यदि हम उतना खर्च नहीं कर पाते हैं तो हम गरीब हैं ।

स्पष्ट है कि निर्धनता एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति तथा अपने आश्रितों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है । यह एक सापेक्ष शब्द है । इसका अर्थ यह है कि एक देश में जिसे हम निर्धन कहते हैं दूसरे देश में वह धनवान हो सकता है । अमेरिका में गरीब व्यक्ति वह है जो प्रतिवर्ष अपनी कार नहीं बदल सकता और नवीन वैज्ञानिक उपकरणों एवं संसाधनों का अभाव है, जबकि ऐसा व्यक्ति भारत में धनवान की श्रेणी में आता है ।

निर्धनता के निर्धारण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य आय का स्त्रोत है । कम आय वाले लोगों को ही गरीब कहा जा सकता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं की पूर्ति एवं बचत संभव नहीं होती है । आय ही जीवन स्तर को तय करने में मुख्य कारक है ।

आय का संबंध परिवार में सदस्यों की संख्या और कमाने वालों की संख्या से भी है । जब कमाने वाले कम और उन पर निर्भर व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है तो कम आय निर्धनता और दरिद्रता को जन्म देती है ।

Essay # 2. भारत में गरीबी की समस्या के कारण (Causes for Poverty Problem in India):

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गरीबी का जन्म किसी एक कारण या घटना के फलस्वरूप नहीं होता है ।

यह अनेक कारणों की पारस्परिक क्रियाओं का प्रतिफल है, जिसमें से सामाजिक, आर्थिक अन्य कारण उत्तरदायी हैं:

(i) कृषि की पिछड़ी अवस्था,

(ii) जमींदारी प्रथा,

(iii) प्राकृतिक प्रकोप,

(iv) प्राकृतिक संसाधनों का अपूर्ण दोहन,

(v) साहूकारी प्रथा,

(vi) बेकारी,

(vii) औद्योगीकरण और पूंजीवाद,

(viii) पूंजी का अभाव,

(ix) अकुशल श्रमिक,

(x) यातायात एवं संचार के साधनों का अभाव,

(xi) संयुक्त परिवार व्यवस्था का विघटन,

(xii) जाति प्रथा,

(xiii) अज्ञानता और अशिक्षा,

(xiv) सामाजिक कुप्रथाएं,

(xv) गंदी बस्तियां,

(xvi) निम्न स्वास्थ्य स्तर,

(xvii) अंग्रेजी राज्य,

(xviii) युद्ध,

(xix) जनसंख्या की वृद्धि,

(xx) बीमारी,

(xxi) वैश्यावृत्ति एवं बुरी आदतें,

(xxii) आलस्य एवं निष्क्रियता,

(xxiii) नरम राज्य,

(xxiv) सुधार नीतियों की असफलता ।

गरीबी का भारतीय समाज पर दुष्प्रभाव:

(i) भुखमरी और कुपोषण,

(ii) जनसंख्या का घनत्व,

(iii) अशिक्षा,

(iv) बेरोजगारी एवं बेकारी,

(v) शारीरिक और मानसिक प्रभाव,

(vi) सामाजिक प्रभाव,

(vii) अपराधों में वृद्धि,

(viii) पारिवारिक विघटन,

(ix) भिक्षावृत्ति,

(x) दुर्व्यसनों में वृद्धि आदि अनेक जिम्मेदार कारक हैं ।

Essay # 3. गरीबी की समस्या समाप्त करने के लिए कुछ उपाय अथवा सुझाव (Remedial Measures and Suggestion Taken to Reduce Poverty Problem):

भारत सरकार ने निर्धनता को समाप्त करने के लिए विशेष प्रयत्न किए हैं जिसमें से प्रमुख निम्नांकित हैं:

(1) पंचवर्षीय योजनाऐं,

(2) स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना,

(3) प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना,

(4) इंदिरा आवास योजना,

(5) स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना,

(6) आम आदमी बीमा योजना,

(7) राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना,

(8) खेतीहर मजदूर रोजगार गारन्टी कार्यक्रम,

(9) जवाहर रोजगार योजना,

(10) संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना,

(11) अन्नपूर्णा योजना,

(12) अन्त्योदय अन्न योजना,

(13) वृहद उद्योगों का विकास,

(14) कुटीर उद्योगों का विकास,

(15) बाजारों का विस्तार,

(16) बचत व विदेशी पूजी को प्रोत्साहन,

(17) राजनीतिक स्थिरता,

(18) प्रशासनिक कुशलता,

(19) भारत निर्माण योजना,

(20) मनरेगा ।

अन्य उपाय:

(i) प्राकृतिक विपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, अनावृष्टि तथा कीड़े-मकोड़ों के प्रकोप आदि से रक्षा की उचित व्यवस्था करना ।

(ii) मद्य निषेध को प्रभावी ढंग से लागू करना ।

(iii) गंदी बस्तियों के स्थान पर नियोजित बस्तियों का निर्माण करना ।

(iv) स्वास्थ्य संरक्षण की उचित व्यवस्था करना ।

(v) देश में प्राकृतिक साधनों का पूर्ण विदोहन करना ।

(vi) देश में यातायात के साधनों को अधिकाधिक विकसित करना ।

(vii) सट्टे एवं जुए पर रोक लगाना ।

(viii) बचत की आदत को प्रोत्साहन करना ।

देश में व्याप्त भयंकर निर्धनता अनेक प्रयासों के बावजूद भी समाप्त नहीं हुई है, उसे समाप्त करने के लिए कुछ सुझाव निम्नांकित हैं:

(1) बेकारी एवं गरीबी का सहसंबंध है, ग्रामीण लोग वर्ष में 5-6 माह बेकार बैठे रहते हैं । अतः ग्रामीण बेरोजगारों को प्रोत्साहित एवं रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कुटीर एवं लघु उद्योगों की व्यवस्था की जा सकती है ।

(2) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या हमारे आर्थिक विकास को शिथिल कर देती है । अतः भारतीय संस्कृति एवं समाज के अनुरूप परिवार नियोजन की विधियों का प्रयोग करते हुए बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित किया जाऐ ।

(3) कृषि में परम्परागत तरीकों के स्थान पर नवीन तरीकों उन्नत बीज खाद सिचाई के नवीन साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए ।

(4) भारत में आर्थिक विकास की गति धीमी रही है, इसके लिए हमें अधिक से अधिक औद्योगीकरण एवं ग्रामीण उद्योगों को विकास के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।

(5) केवल उत्पादन बढ़ाने से ही निर्धनता की समस्या का हल नहीं होगा जब तक कि उत्पादन के साधनों और लाभों का समाज के सभी लोगों में उचित वितरण न किया जाय ।

(6) भ्रष्टाचार का निवारण किया जाना चाहिए ताकि गरीबी उन्मूलन के प्रयत्न कारगर ढंग से किए जा सकें इसके लिए प्रशासन द्वारा कठोर कदम उठाना आवश्यक हैं ।

(7) सामाजिक कुप्रथाओं छूआछूत, दहेज, मृत्युभोज एवं ऐसी ही अन्य सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति के लिए कठोर कानून बनाए जाऐ । दंड की व्यवस्था की जाए एवं जन जागरण का कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए ।

(8) औद्योगीकरण एवं शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए जिससे एक तरफ रोजगार के अवसर बढ़ेंगे तो दूसरी तरफ अज्ञानता रूढ़ियां एवं सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा मिलेगा । लोगों की कार्यक्षमता में वृद्धि होगी । शिक्षा को व्यवसाय तथा आर्थिक विकास से जोड़ा जाना चाहिए ।

(9) देश में क्रय शक्ति कम होने के कारण बाजारों को विस्तार करने की संभावनाएं न हो तो निर्यात को प्रोत्साहित कर विदेशी मुद्रा को अर्जित किया जा सकें ।

(10) बचत की आदत को प्रोत्साहन किया जाना चाहिए इससे पूँजी की वृद्धि होगी और पूँजी को उत्पादन के कार्यों में लगाया जा सकेगा, जिससे प्रतिव्यक्ति एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी ।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि निर्धनता एक सामाजिक एवं आर्थिक चुनौती है, जिसकी उत्पत्ति के लिए अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं प्राकृतिक कारण उत्तरदायी हैं इस समस्या को हल करने के लिए सरकार ने योजनाबद्ध प्रयास किए हैं । फिर भी यह आज गंभीर रूप से मौजूद हैं ।

नगरों में गंदी बस्तियों की समस्याओं का समाधान व मकान बनाने की योजना बनाई गई है । बँधुआ मजदूरी प्रथा समाप्त करने के लिए 1976 में अधिनियम बनाया गया तथा लोगों को शिक्षा, शुद्ध पेयजल, चिकित्सालय आदि उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं में विशेष धन राशि रखी गई है ।

निर्धनता अनुपात में उडीसा राज्य देश में 46.4 प्रतिशत के साथ प्रथम स्थान पर है । दूसरा स्थान बिहार 41.4 प्रतिशत तथा तीसरा स्थान छत्तीसगढ़ 40.9 प्रतिशत का है । इसके बाद झारखंड व मध्य प्रदेश आते हैं । जम्मू कश्मीर में सबसे कम निर्धनता है । जहां मात्र 5.4 प्रतिशत जनसंख्या ही गरीबी रेखा से नीचे हैं । सतत् प्रयासों से 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) में देश में निर्धनता अनुपात को घटाकर 10 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है ।

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