राष्ट्रपति पर निबंध | Essay on the President in Hindi!
राष्ट्रपति पर निबंध | Essay on the President
Essay # 1.
राष्ट्रपति का अर्थ (Meaning of President):
संविधान बनते समय संविधान सभा में इस बात पर गंभीर चर्चा हुई कि भारत में सरकार का स्वरूप क्या रखा जाए अध्यक्षीय या संसदीय । अन्तत: के. एम. मुंशी की इस दलील के अनुरूप संसदीय शासन को अपनाया गया कि- ”जब हमारे यहां विगत 100 वर्षों से ब्रिटिश परम्परा को निभाया जा रहा है तथा प्रान्तों में संसदीय सरकारें अर्से से काम कर रही है तो इस अनुभव को छोड़कर नया प्रयोग क्यों करें ।”
और देश में ”संसद में से सरकार” के नियम को अपना गया । फलत: राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटेन के ताज के समान संवैधानिक प्रधान की हो गयी तथा वास्तविक प्रधान ‘मंत्रिपरिषद’ बनी । राष्ट्रपति के पद, अर्हता, चुनाव, कार्य आदि के बारे में विस्तृत उपबंध संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 52 से 74 तक तथा मामूली तौर पर अन्य अनुच्छेदों में भी किये गये हैं ।
ADVERTISEMENTS:
संवैधानिक स्थिति:
(1) भारत का एक राष्ट्रपति होगा (अनु. 52) ।
(2) राष्ट्रपति में सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्ति निहित होगी (अनु. 53) ।
संविधान द्वारा भारत में संघात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है, जिस का प्रधान राष्ट्रपति को बनाया गया हैं । संघ सरकार के कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य राष्ट्रपति के नाम से ही किये जाते हैं । भारत सरकार की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है, जिसका उपयोग वह प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित मंत्रिपरिषद के सहयोग से करता है ।
ADVERTISEMENTS:
संघीय शासन प्रणाली में शक्ति के एक केन्द्र की आवश्यकता ”संघ शक्ति” के प्रतीक के रूप में होती हैं । यह शक्ति केन्द्र अध्यक्षात्मक-प्रजातन्त्र में वास्तविक और संवैधानिक दोनों दृष्टि से राष्ट्रपति होता हैं, लेकिन संसदीय प्रजातन्त्र में इसे मात्र ‘संवैधानिक सर्वोच्च’ के रूप में किया जाता है तथा वास्तविक शक्ति इसके पीछे मंत्रिपरिषद की होती हैं ।
अमेरिकी संघ में राष्ट्रपति ‘अध्यक्षात्मक-प्रजातन्त्र’ प्रणाली के कारण पूरे राष्ट्र का वास्तविक शासक हैं, जबकि ब्रिटेन और भारत जैसे देशों में ‘संसदीय प्रजातन्त्र’ ने राष्ट्रपति को संवैधानिक शासक बनाया है, जो मंत्रिपरिषद रूपी ‘वास्तविक शासक’ की सलाह से काम करता है ।
Essay # 2.
राष्ट्रपति की योग्यताएं और नियोग्यताएं (Qualification and Disqualification of President):
अनुच्छेद 58 में राष्ट्रपति पद के लिये योग्यताएं तय की गयी है ।
ADVERTISEMENTS:
अनुच्छेद 58(1) के अनुसार ये हैं:
(अ) भारत की नागरिकता ।
(ब) न्यूनतम 35 वर्ष की उम्र ।
(स) लोकसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने की योग्यता ।
(द) वह केंद्र, राज्य या स्थानीय निकाय में किसी लाभ के पद पर नहीं हो ।
नियोग्यताएं (Disqualification):
अनुच्छेद 58(2) के अनुसार:
1. वह अन्य किसी लाभ के पद पर नहीं हो ।
2. राष्ट्रपति को संसद तथा विधानमंडल में से किसी का भी सदस्य नहीं होना चाहिए । यदि निर्वाचन के समय वह संसद या राज्य विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य हैं तो निर्वाचन के दिन से उसकी उक्त सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाती हैं ।
राष्ट्रपति पद के लिये शर्तें (अनु. 59):
i. अनु. 59(1) कहता है कि राष्ट्रपति संसद या राज्य विधानमण्डल का सदस्य नहीं होगा और यदि होते हुए राष्ट्रपति चुन लिया जाता है तो पद ग्रहण दिनांक से उसका पूर्व पद रिक्त माना जाएगा ।
ii. अनु. 59(2) के अनुसार राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।
iii. अनु. 59(3) उसे संसद द्वारा निर्धारित वेतन-भत्ते और नि:शुल्क निवास उपलब्ध कराता है ।
iv. 59(4) कहता है कि उसके वेतन भत्ते और उपलब्धियां कार्यकाल के दौरान कम नहीं किये जाएंगे ।
Essay # 3.
राष्ट्रपति के शपथ (अनु. 60) (Oath of President):
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कर्त्तव्यपालन, संविधान और विधि के अनुरक्षण और जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहने की शपथ लेता है ।
उम्मीदवार के नाम की प्रस्तावना और अनुमोदन:
1997 को राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यादेश जारी करके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम कम से कम 50 निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावित व कम से कम 50 निर्वाचकों के द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक कर दिया है ।
इसी प्रकार उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार का नाम कम से कम 20 निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावित और से कम 20 निर्वाचकों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए । इसी अध्यादेश द्वारा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए जमानत की धनराशि 15,000 रू. की गई है ।
Essay # 4.
राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल (Electoral College of President):
राष्ट्रपति के चुनाव के लिये अप्रत्यक्ष निर्वाचन को अपनाया गया है । अनुच्छेद 54 के तहत राष्ट्रपति का चुनाव ऐसे निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है ।
जिसमें:
a. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य;
b. राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा
c. 70वें संवैधानिक संशोधन (1992) के अनुसार संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं ।
स्पष्ट है कि मनोनीत सांसद और विधायक राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं ।
न्यूनतम कोटा (Minimum Quota):
सफलता प्राप्त करने के लिये उम्मीदवार के लिये न्यूनतम कोटा प्राप्त करना आवश्यक होगा, जिसके लिये यह सूत्र अपनाया जाता है ।
Essay # 5.
राष्ट्रपति के चुनाव के निर्वाचन रीति (अनु. 55) (Methods for Electing President):
राष्ट्रपति के निर्वाचन की एक विशेष बात यह हैं कि निर्वाचक मण्डल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य समान नहीं होता । प्रत्येक सांसद का तो एक ही मत मूल्य होता है, लेकिन विधायकों के मूल्य में राज्यवार अंतर रहता है ।
भारतीय संघ के कुछ विशाल राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य अधिक जनसंख्या का और कुछ राज्यों की विधानसभा के सदस्य बहुत कम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसलिये विधायकों के मतमूल्य में राज्यवार अंतर है । लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में केन्द्र तथा राज्यों का बराबर का हिस्सा होता है ।
राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनाव में विधायक और सांसद के मतों की मूल्य गणना इस तरह की जाती है:
i. विधायक के मत का मूल्य:
प्रत्येक राज्य की जनसंख्या को उस राज्य की विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित किया जाएगा और जो भागफल आता है, उसे पुन: 1000 से विभाजित किया जाता है ।
ii. सांसद के मत का मूल्य:
सम्पूर्ण भारत की समस्त विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को प्राप्त कुल मतों की संख्या को संसद के दोनों सदनों के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित करने के बाद जो भागफल आएगा, वही प्रत्येक सांसद के मत का मूल्य होगा ।
iii. मत पद्धति:
राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व (एकल संक्रमणीय) मत पद्धति के अनुसार होता है मतदान गुप्त होता है ।
iv. मतों की वरीयता:
अनु 58(3) के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव एकल संक्रमणीय मत पद्धति से आनुपातिक आधार पर होता है । इसमें जितने उम्मीदवार होते हैं, सबको एक निश्चित क्रम मतदाता को देना होता है, अर्थात प्रत्येक मतदाता, प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी पसन्द के अनुसार चुनता हैं ।
इस प्रकार के मतों के मूल्य के आधार पर मतों की गणना की जाती है और यदि प्रथम वरीयता में कोई उम्मीदवार न्यूनतम कोटा (50 प्रतिशत) प्राप्त कर ले तो वह चुना जाता है, अन्यथा दूसरी वरीयता के मत गिने जाते हैं ।
1969 में भारतीय राष्ट्रपति का जो पांचवा चुनाव हुआ, उसमें द्वितीय वरीयता के मतों की गणना भी आवश्यक हो गई थी और बी.बी गिरी निर्वाचित हुए थे । चुनाव के समय दिल्ली और राज्य की राजधानी में मतदान सुविधा रहती हैं ।
Essay # 6.
राष्ट्रपति के चुनाव से सम्बन्धि विवाद (अनु. 71) (Disputes in Electing President):
44वें संशोधन द्वारा यह तय किया गया है कि राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव से सम्बन्धित शंकाओं और विवादों की जांच एवं विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका निर्णय अन्तिम होगा ।
वेतन भत्ते:
संसद ने एक विधेयक पारित कर राष्ट्रपति का मासिक वेतन 1.50 लाख रूपये कर दिया है । राष्ट्रपति का वेतन आयकर से मुक्त होता है । इसके अतिरिक्त उन्हें नि:शुल्क निवास स्थान तथा संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते है । अब राष्ट्रपति की पेन्शन तीन लाख रुपये वार्षिक निर्धारित की गई है ।
पद की स्वतंत्रता:
जब तक कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर आसीन है तब तक उसके विरूद्ध किसी दीवानी या फौजदारी न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है । कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति के वेतन तथा भत्ते में कोई कमी नहीं की जा सकती है ।
कार्यकाल (अनु. 56):
1. राष्ट्रपति का कार्यकाल शपथ ग्रहण के दिनांक से 5 वर्ष तक निश्चित किया गया है ।
2. यदि राष्ट्रपति का पद इस अवधि के बीच में ही रिक्त हो जाये तो इस स्थिति में राष्ट्रपति का निर्वाचन पुन: 5 वर्ष की सम्पूर्ण अवधि के लिए होता है न कि शेष अवधि के लिए ।
3. राष्ट्रपति का पद 6 माह से अधिक रिक्त नहीं रखा जा सकता है ।
4. यद्यपि संविधान द्वारा राष्ट्रपति के पुर्ननिर्वाचन के लिए कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है फिर भी यह एक परम्परा स्थापित है कि कोई व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित नहीं होगा ।
पदमुक्ति (अनु. 56):
राष्ट्रपति दो प्रकार से अपने पद से मुक्त हो सकता है:
(अ) उपराष्ट्रपति को संबोधित स्वहस्ताक्षरित त्यागपत्र द्वारा या
(ब) संविधान का उल्लंघन करने पर महाभियोग द्वारा (अनु. 56) ।
अनु. 56(ग) के अनुसार अवधि समाप्त होने के बाद भी राष्ट्रपति उत्तराधिकारी के पद धारण करने तक अपने पद पर बना रहेगा ।
पुर्ननिर्वाचन की पात्रता:
अनु. 57 कहता है कि वर्तमान राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति पुर्ननिवाचित हो सकते है ।
Essay # 7.
राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया (अनु. 61) (Impeachment Process of President):
अनुच्छेद 56 (ख) के अनुसार राष्ट्रपति को संविधान का अतिक्रमण करने पर महाभियोग लगाकर पदच्युत किया जा सकता है ।
अनुच्छेद 61 में राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाए जाने के सम्बंध में यह प्रक्रिया है:
(1) महाभियोग संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है । प्रस्ताव पर उस सदन के कम से कम 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होना आवश्यक है । सदन द्वारा 14 दिन पूर्व राष्ट्रपति को सूचित करना आवश्यक है । प्रस्ताव का उस सदन के न्यूनतम 2/3 सदस्यों से पारित होना जरूरी होता है ।
(2) पारित प्रस्ताव अन्य सदन को प्रेषित किया जाता है । दूसरा सदन प्रारम्भिक जाँच करता हैं । राष्ट्रपति स्वयं या अपने द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा बचाव कर सकता है । सदन जवाब से संतुष्ट हैं, तो प्रस्ताव समाप्त हो जाता है । असंतुष्ट होने पर मतदान होता है । यदि दूसरा सदन भी अपने 2/3 बहुमत से उसे पारित करता है तो इस स्थिति में राष्ट्रपति तत्काल पद मुक्त हो जाता है ।
नोट:
भारत में महाभियोग की प्रक्रिया व प्रावधान अमेरिका से लिये गये हैं, जहाँ यह 4 बार आया है, भारत में एक बार भी नहीं । राष्ट्रपति पर महाभियोग के समय मतदान में दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य भाग नहीं ले सकते हैं ।